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Friday, 23 December 2016

इमीग्रेशन एवं एयरपोर्ट ट्रांसफर Immigration& Airport Transfer Hong Kong Yatra Part 2 हांग कांग की यात्रा भाग 2 नीलम भागी


           

                                       

इमीग्रेशन के लिये काउण्टर पर तीनों पासपोर्ट दिये। वहाँ बैठी महिला ने उत्तकर्षिनी, गीता को ध्यान से देखा और मुझे भी देखा, इतने में एक अधिकारी आया, मुझसे बोला ,"आप मेरे साथ चलिए" और काउण्टर पर बैठी महिला से मेरा पासपोर्ट ले लिया। उसने  उत्कर्षिनी और गीता को जाने को बोल दिया, पर वे दोनो मुझसे कुछ दूरी रख कर खड़ी रहीं। मुझे बिठा दिया गया, कुछ और लोगों को भी रोक रक्खा था। दस साल बाद जब मैंने अपना पासर्पोट रिन्यू करवाया था तो, जिस दिन मुझे इन्टरव्यू के लिये बुलाया गया था, उन दिनों मुझे डेंगू था। पहले पासपोर्ट में मैंने बहुत धक्के खाये थे। इसलिये अब मुझे जिस समय बुलाया गया था, मैं बिमारी की हालत में पासपोर्ट ऑफिस पहुँच गई थी, जहाँ मेरी तस्वीर भी ली गई और पता नहीं मैं कितनी मेजों पर गई। लौटी तो सीधे डॉ. के क्लिनिक में ब्लड रिर्पोट ली, तो मेरे साठ हजार प्लेटलेट्स थे। यह सुनते ही मैं बेहोश हो गई थी। पता नहीं कैसे उस हालत में पासपोर्ट का सब काम निपटा कर आई थी। खै़र जब पासर्पोट बन कर आया तो झट से मैंने खोल कर अपनी फोटो देखी। मैं पूरे यकीन के साथ कह सकती हूँ कि मेरे मरने के बाद, मेरे मुर्दे की शक्ल बिल्कुल मेरी पासर्पोट की फोटो से मिलेगी। विदेश यात्रा में मुझे कभी नहीं रोका गया। इस पासर्पोट को देखते ही मैं समझ गई थी कि पहली बार तो मुझसे जरूर पूछताछ होगी। मैं सोच ही रही थी कि पता नहीं कब तक बिठायेंगे। लेकिन वे बहुत जल्दी काम कर रहे थे। एक महिला मेरे पास आई। उसने पूछा,’’आप यहाँ क्यों आईं हैं?
 मैंने जवाब दिया,’’ होली डे पर।’’
’’किसके साथ?’’
मैं बोली,’’अपनी बेटी के साथ।’’
’’और कौन है?’’
मैंने प्रैम पर बैठी गीता की ओर इशारा करके कहा कि मेरी ग्रैण्ड डॉटर। उसने मेरा चश्मा उतरवा कर ध्यान से मेरी शक्ल को और पासर्पोट पर मेरी तस्वीर को देखा, गाल पर मेरे दोनों  तिलों   को छू कर, असली नक़ली की पहचान की और चली गई। एक आदमी ने आकर मेरा पासर्पोट लौटा दिया। यहाँ वीसा फीस नहीं थी। मैंने भी उन्हें धन्यवाद दे दिया। अब हम बताई गई बैल्ट पर लगेज लेने गये। लगेज लेकर हमने वहाँ का नक्शा लिया। हमने नाथन होटल में कमरा बुक किया था। जो मैट्रो स्टेशन के और हारबर और शॉपिंग एरिया के पास था। होटल तक जाने के तीन तरीके थे। पहला सांझा जिसमें एक वैन थी उसमें अलग अलग उड़ानों से आये सैलानी थे। अलग अलग होटल में उन्हें जाना था, ये सबको छोड़ते हुए जाती है। इसमें समय ज्यादा लगता है पर बचत होती है। दूसरा प्राइवेट ट्रांसफर वही टैक्सी लो और होटल जाओ। तीसरा है एयरर्पोट एक्सप्रेस ट्रेन जिसका प्लेटर्फाम एयरर्पोट के आगमन हॉल से कुल सौ मीटर की दूरी पर था। मैप में देखा फिर भी हमने पूछा, हमें होटल कैसे जाना चाहिए उन्होंने कहा कि ट्रेन से और फिर वहाँ से हमने ट्रेन का टिकट लिया और यहाँ के खाने पैक करवाये। एयरर्पोट मैट्रो हमारे देश की एयरर्पोट मैट्रो की तरह थी। उसमें सवार हुए। यहाँ वाई फाई फ्री है। हर जगह वहाँ का पासवर्ड लिखा होता है। ट्रेन पर बैठते ही मैं मोबाइल में खोने ही लगी थी कि मुझे अक्ल आ गई कि मोबाइल मेंं तो रूम मेंं जाने पर लग सकती हूं, यहां पर तो घूमने आई हूँ। अब तो मेरी नज़रें खिड़की से हट ही नहीं रहीं थीं। आकाश को छूती इमारतें और हरियाली देखने लायक थी। स्टेशन आया।  डस्टबिन का उपयोग करने वाले सभ्य लोग। महिला पुरूष स्मार्ट कपड़ों, क्लास्कि हैण्ड बैगऔर आर्कषक फुटवियर में फुर्ती से चलते नज़र आते हैं। ट्रेन से उतरते ही नक्शे में देखा कि हमारे होटल के पास कौन सा एग्ज़िट गेट पास पड़ता है। वहाँ हम पहुँचे। सीढ़ियाँ और एलीवेटर देख हम लिफ्ट का साइन देख रहे ही रहे थे कि इतने में हमारे दो भारतीय भाई कहीं से आये, दोनो ने हमारा एक एक बैग उठाया सीढिय़ों से पहले ऊपर रख आये और गीता को प्रैम समेत दोनों ले गये। बाहर हल्की बारिश हो रही थी। उन्होंने अपना छाता गीता पर कर दिया। हम टैक्सी करने लगे, उन्होंने इशारा किया, वो रहा होटल और हिन्दी में पूछा,’’इण्डिया में कहाँ से? हम तो आंध्रा प्रदेश से हैं।’’ हमने भी बताया कि हम नौएडा से। वे हमें होटल छोड़ कर बाय करके चले गये। क्रमशः 


Saturday, 10 December 2016

हाँग काँग की यात्रा पर दो माँ, दो बेटियाँ कुल तीन Hong Kong Yatra Part भाग 1 Neelam Bhagi नीलम भागी

बहुमत मध्य प्रदेश एवम छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में यह लेख प्रकाशित है



हाँग काँग की यात्रा पर दो माँ, दो बेटियाँ कुल तीन            भाग 1
                                      नीलम भागी
हमारी मंगलवार रात की जेट एयरवेज से फ्लाइट थी। मैंने और मेरी बेटी उत्तकर्षिनी ने तय कर लिया था कि हम ढाई साल की गीता को दिन में सोने नहीं देंगे। ताकि  फ्लाइट में वो हमें तंग न करे और सोती हुई जाये। सफ़र में सामान हम कम ले जाते हैं। एक मेरा बैग, एक गीता और बेटी का, हम दोनों ने बहुत बड़े पर्स लिये, जिसमें गीता की तुरंत जरूरत का सारा सामान आ गया। घर से एयरर्पोट के रास्ते में राजीव गीता से बतियाते आये। वहाँ पहुँचते ही राजीव ने गीता को प्रैम में बिठाया, गीता बहुत खुश थी कि सब घूमने जा रहे हैं। अब राजीव ने प्रैम मुझे हैण्ड ओवर कर, पीछे से उसे बिना बाय बोले, चले गये। हम तीनों ने एयरर्पोट में प्रवेश किया। गीता ने चारों ओर नज़रें घुमाई और पापा पापा कर, रोना शरू कर दिया। बड़ी मुश्किल से उसे समझाया कि शनिवार को पापा हमें मकाऊ में मिलेंगे। दोनों बैग चैक इन में डाल कर, हम लाउंज में चले गये। फ्लाइट से पहले हम बोर्डिंग पास पर लिखे नम्बर के गेट पर पहुँचे। गीता को देखते ही, स्टाफ ने हमसे प्रैम ले ली और हमें पहले प्लेन में बिठा दिया गया। इसमें दो दो सीटे विंडो के पास थी और बीच में चार सीट। बीच की चार सीटों में से तीन पर हम बैठ गये। प्लेन के उड़ान भरते ही मैंने देखा, मेरी बायीं ओर की दोनों सीटे खाली हैं। मैं तो झट से बीच का हत्था उपर कर, दोनों सीटों पर जाकर जम गई। विंडो के बाहर देखने को केवल अंधेरा था। मैंने चॉक और डस्टर फिल्म लगा ली। खा तो लाउंज में लिया था। चाय पीती रही। उत्कर्षिनी हाँगकाँग पहले भी आ चुकी थी, केवल दस घण्टे रूकी थी, उसकी इच्छा थी कि जब विमान उतरे, तो मैं यहाँ की ऊपर से खूबसूरती देखूँ। इसलिये मैं बिल्कुल नहीं सो रही थी। मेरी और गीता की सीट मिला कर उसके लिये लेटने की जगह हो गई थी। उसे दूध की बोतल देदी, वो तो सोती रही। दूसरी फिल्म मैंने जज़्बा लगा ली। निग़ाह मैंने बीच बीच में बाहर भी रक्खी। अचानक अंधेरा छटने लगा। अब मैंने बाहर नज़रें गड़ा दीं। पहली बार मैं पौ फटना विमान से देख रही थी। जिसे देखकर, मुझे वैसी ही अनूभूति हुई। जैसी पहली बार पुरी में समुद्र देखने पर हुई थी। जब विंडो सीन हमेशा की तरह हो गया, तो मैंने ब्रेकफास्ट किया और फिल्म कंटीन्यू की। लैंड होने के बीस मिनट पहले मैंने आँखें बाहर गड़ा दीं। सफेद बादलों के पहाड़ों पर न जाने कौन कौन से एंगल से धूप पड़ कर उनकी सुंदरता बढ़ा रही थी। बेल्ट बांधने का निर्देश मिला कि कुछ ही देर में लैंड करने वाले हैं। मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। काफी देर तक मुझे बाहर बस ग्रे भाप सी दिखती रही, बाहर वर्षा हो रही थी, खिड़की से सब धुंधला लग रहा था और कुछ क्षण के लिये लगा कि जमीन में बहुत ऊँचे ऊँचे बाँस धंसे है। पर  फिर समुद्र के सीने पर फेरियाँ तैरती नज़र आयीं। ऐसे लग रहा था, जैसे हम पानी पर लैंड कर रहे हों!! नहीं, तुरंत पहियों ने जमीन को छुआ। वहाँ के दस बज कर पाँच मिनट पर हम लैंड किये। बाहर वर्षा हो रही थी। तापमान तेइस डिग्री था। गीता को जगाया। प्लेन से बाहर आते ही हमें प्रैम मिल गई। गीता अब समझदार हो गई है, प्रैम खोलते ही, वह उस पर बैठ गई। हमने बैल्ट लगा दी और निशानों को फॉलो करते हुए चल दिये। हर नये मोड़ पर कर्मचारी खड़ा, बिना पूछे इशारे से बताता कि अब किधर जाना है। प्रैम के कारण हमें लिफ्ट का रास्ता दिखाता। अब हम एक छोटी ट्रेन पर चढ़े। जहाँ उसने हमें उतारा। वहाँ भी संकेत मिलते रहे और हम इमीग्रेशन की लाइन में लग गये। भारतीय पर्यटकों के लिये यहाँ वीसा ऑन एराइविल है। आपके पास पासर्पोट और उड़ान की टिकट होनी चाहिये। इमीग्रेशन पर बिना वीसा शुल्क के आपको वीसा दे दिया जाता है। बच्चा देख कर हमें तुरंत अलग डेस्क पर भेज दिया। यहाँ हमारा दूसरा नंबर था। क्रमशः

Wednesday, 7 December 2016

हरिद्वार एक बार, अब गंगा जी और वहां का खाना बुलाए बार बार Haridwar Neelam Bhagi नीलम भागी

                                            
रात दस बजे हरिद्वार पहुँचे, हर की पौड़ी की जगमगाहट देखते बनती थी। शैतान बच्चे तो रात ही में नहाने को तैयार थे। किसी तरह उन्हें सुबह के लिये मनाया। हर की पौड़ी के पास ही हम ठहरे। सुबह किसी को जगाना नहीं पड़ा, हमारे जगने से पहले ही बच्चे उठ गये थे। बचपन इलाहाबाद में बीतने से गंगा जी से मोह तो लगा हुआ है। जिस सूट में नहाना था, हम वही सूट पहन कर सोए, ताकि सुबह जरा भी वक्त बरबाद न हो। गंगा माँ को प्रणाम कर जंजीर पकड़ कर ठंडे ठंडे पानी में जी भर के डुबकियाँ लगाई। जून का महीना था। तेज बहाव और ठण्डा ठण्डा पानी। जब खूब ठण्ड लगती तो बाहर निकलते, तीखी धूप लगती तो फिर गंगा मइया में डुबकी लगा लेते। थकान और भूख से बेहाल होने पर हमने हर की पौढ़ी को छोड़ा और खाया पिया। धूप बहुत तेज हो गई थी। गर्मी थी पर लू नहीं चल रही थी। अब हमारी बस हमें हरिद्वार के दर्शनीय स्थल घुमाने ले गई। सबसे पहले खूब लंबी लाइन में लग कर केवल कार द्वारा मनसा देवी और चण्डी देवी के दर्शन करने को चले। केबल कार से हरिद्वार का दर्शन विस्मय विमुग्ध कर रहा था। बच्चे की कल्पना है, अचानक मनु बोला,’’मौसी, अगर केबल कार टूट जाये, तो हम सब नीचे गिर कर मर जायेंगे न।’’सभी कोरस में उसे मनहूस टाइटल देते हुए चिल्लाये,’’अरे शुभ शुभ बोल।’’ बेचारा रूआंसा होकर बोला,’’ मेरे मुहं से ऐसी गंदी बात पता नहीं क्यों निकली।’’बदले में मैंने प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेर दिया। अब मंदिर आ गया। एक दिन पहले गंगा दशहरा था। शायद इस वजह से मंदिर में संगमरमर के फर्श पर कालिख जमी हुई और फिसलन थी। हमारे पैरों के तलवे काले हो गये थे। जिसे मैं अब तक नहीं भूली हूँ। इसीलिये मेरी पहचान का कोई भी अब दर्शन करके आता है तो मैं उस दिन की गंदगी का ज़िक्र करती हूँ, तो जवाब मिलता है, ’’नहीं जी, बिल्कुल साफ सुथरा मंदिर है।’’सुनकर बहुत अच्छा लगता है। गरूकुल कांगड़ी, दक्षप्रजापति मंदिर, सप्तऋषि आश्रम, भीमगोड़ा तालाब, भारत माता मंदिर और अब पतंजलि भी दर्शनीय है। प्रत्येक दर्शनीय स्थल के बाहर लकड़ी की कारीगरी का सामान, बहुत सस्ते दामों में मिलता है। हम जहाँ जाते चप्पल बस में उतार कर जाते। नंगे पैर घूमने में बहुत मजा़ आ रहा था। हरिद्वार पवित्र शहर होने के कारण इसकी सीमा में शराब और मांसाहार मना है। काश! वैसे ही थूकने पर भी जुर्माना हो तो आनन्द आ जाये। तब हम राह चलते किसी भी नल का पानी पी लेते थे पर अब नहीं। शाकाहारी बेहद सस्ता और लाजवाब खाना है। पंजाबी खाना है तो होशियार पुरी ढाबा है। छोले भटूरे तो राह चलते खा सकते हैं। मथुरा की पूरी सब्जी़, कचौड़ी बेड़मी की दुकाने, साथ में रायते का गिलास, कढ़ाइयों में कढ़ता दूध जगह जगह आपको मिलेगा। पंडित जी पूरी वाले तो मशहूर ही हैं। हरा हरा दोना हथेली पर रखकर खाने का मज़ा ही कुछ और है। हम तो जो लड्डू, मठरी बना कर ले गये थे, उसे तो खोला भी नहीं। अब गंगा जी से मिलने जाती हूँ तो वहाँ गुजराती पोहा, मिठास गुजरात में छोड़ कर यहाँ थोड़ा तीखे हो गये हैं। लौटने पर कुछ देर आराम करने आये, तो बेसुध सो गये। आँख खुली तो जून की लंबी शाम थी। फिर हर की पौढ़ी पर चल दिये डुबकियाँ लगाने। मुझे तैरना नहीं आता, इतने तेज बहाव में, न जाने मुझे क्या सूझा कि मैं तैरने की कोशिश करने लगी। अचानक मेरे पैर उखड़ गये और एक हाथ से पकड़ी चेन भी छूट गई। दो आदमियों ने पानी में कूद कर मुझे बचाया। मैं बुरी तरह से डर गई। मैंने उनसे पूछा,’’आपको कैसे पता चला कि मैं बह रहीं हूँ।’’उनका जवाब था कि हम यही देखते हैं। और चल दिये शायद किसी और को बचाने। अब मैं उचित जगह देखकर गंगा जी की आरती देखने के लिये गुमसुम सी बैठ गई। हर की पौढ़ी पर आरती में शामिल होने के लिये श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती जा रही थी। हम सातों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर बैठ गये । अंधेरा घिरने पर अनुराधा पोडवाल की आवाज में गंगा मइया की आरती में श्रद्धालुओ का भाव भी जुड़ गया। अब आरती का ऐसा समा बधां कि उसको तो लिखने की मेरी औकात ही नहीं है। हाथ सबके जुड़े, आँखें दीपों पर टिकी हुई हैं। दिन भर की हर की पौढ़ी अब अलग लग रही थी। आरती संपन्न होते ही तंद्रा टूटी। भीड़ छटने लगी और सब कुछ पहले जैसा हो गया। दस बजे हमारी बस ने लौटना था। खाकर, कुल्हड़ में धुंए की महक वाला दूध पीकर, आबशार में नल का ठंडा पानी भर कर लौटे। मुंह अंधेरे घर में घुसते ही अम्मा को बताया कि हमने नीलकंठ महादेव की पैदल यात्रा की। सुनते ही अम्मा बोली,’’ क्या मांगा भोले से?’’ मैं बोली,"मैंने मांगा,बाबा, मैं अपने घर पहुँच जाऊँ।’’ सुनते ही अम्मा ने अखबार दिखाया, जिसमें लिखा था कि जंगल में आग लगने से जंगली जानवर बेहाल हो गये। हम तो उस समय जंगल में ही थे। डॉ. शोभा उसी समय बोली,’’अरे! मेरे तो नीलकंठ के रास्ते में एक बार भी घुटने में प्राब्लम नहीं हुई, न ही तक़लीफ याद आई। अगर याद आ जाती तो!! मैं बोली,’’चढ़ाई से आपके घुटने के नट बोल्ट कसे गये।’’आजतक उन्हें घुटने की परेशानी नहीं हुई है। आबशार में ठंडा ठंडा हरिद्वार का पानी था। जिसे सबने गंगा मइया की जै बोल कर तुरंत पी लिया। अब तो याद भी नहीं कि कितनी बार गंगा स्नान कर आई हूँं।