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Tuesday, 22 August 2017

कोंकण स्वाद, उत्तरी गोवा, माण्डवी का मुहाना Goa Yatra गोवा यात्रा भाग 5 नीलम भागी



कोंकण स्वाद, उत्तरी गोवा, माण्डवी का मुहाना
                                             नीलम भागी
नहा कर हम लंच के लिये निकले और बिल्कुल स्थानीय कोंकण स्वाद के रैस्टोरैंट में गये । हम किसी भी नियम कायदे से नहीं ऑर्डर करते थे कि थ्री कोर्स मील हो या फोर कोर्स। रबर की चप्पल पहने घूमते रहते, जहाँ सड़क किनारे नारियल पानी पिया, कभी उसी से पूछ लिया कि किस दुकान की क्या चीज मशहूर है। वहीं पैदल पैदल खाने पहुँच गये। बाकि हमारा घुमक्ड़ संघ हमें मैसेज़ करता रहता था कि कहाँ पर क्या मशहूर है। किसी भी खाने के स्वाद ने  हमें निराश नहीं किया। हमने वरन भात का आर्डर किया। वो तो दाल चावल आ गये फिर साबूदाने की खिचड़ी भी ऑर्डर की। ताजा कसा नारियल तो तकरीबन सब में पड़ता है। लौटे तो सो गये। उठते ही मैंने अंकूर से कहा कि मुझे यहाँ की टूरिस्ट बस में घूमने जाना है। वो बोला,’’कैब ले लेते हैं, कल सब चलते हैं।’’मैं बोली,’’बस में अलग अलग जगह के लोग होंगे, गाइड से सुनने को कहानियाँ मिलेंगी, मैं तो उसमें ही जाना चाहती हूँ।’’ अंकूर ने चुम्मू से पूछा,’’माँ के साथ जाना है या मम्मा पापा के साथ।’’ वो बोला,’’नीनो के साथ।’’अंकूर उसी समय स्कूटी लेकर चुम्मू के साथ टिकट लेने चला गया। आया तो चूम्मू बड़ा ही खुश, बोला,’’नीनो कल हम दोनों घूमने जायेंगे।’’ उसके खुश होने का एक सबसे बड़ा कारण था कि मैं उसे किसी बात से रोकती नहीं क्योंकि कभी कभी तो मेरा बेटे के घर जाना होता है। मैं सिर्फ उसे लाड करती हूँ और न ही किसी को कुछ कहने देती हूँ। मेरे साथ जाने की खुशी में वो सुबह एक ही आवाज में उठा, श्वेता ने जैसे जैसे कहा करता गया। यहाँ किचन की सुविधा से चाय दूध जब दिल करे बना लेते। 2 BHK अपार्टमेंट था। वह मेरे साथ रात को खूब उधम मचा कर सोता। सुबह साढ़े आठ बजे हम दोनों बस में बैठ गये़ . गाइड ने कहा,’’शाम 7.30 पर सबको बस यहीं उतारेगी। कुछ लोग लगेज़ लेकर आये थे। गाइड ने कहा कि आप जिस तरह अब सीट पर बैठे हैं, शाम तक यही आपकी सीट हैं। मैं जिस सीट पर बैठी थी, मुझे नहीं पता था कि उसमें से एक सीट गाइड की थी। गाड़ी में दो दो की सीट थी। गाइड ने आते ही अपनी सीट पर बैठते ही कहा कि  आपकी दो सीट हैं। आप कहीं भी बैठ जायें। चूम्मू झट से मेरी गोद में बैठ गया। मैं इसलिये खुश थी कि यहाँ से सुनाई अच्छा देगा। अब गाइड ने खड़े होकर गोवा के बारे में बताना शुरू किया।
महाभारत में गोवा का ज़िक्र क्गोपराष्ट्र गाय चराने वाले राष्ट्र के रूप में मिलता है। गाय सुनते ही चुम्मू ने मुझे गाय दिखा दी क्योंकि मैं ध्यान से सुन रही थी, वह खिड़की से बाहर देख रहा था। गोमांचल, गोपपुरी, गोमांतक नाम रचना परशुराम ने की थी। उन्होंने एक यज्ञ के दौरान अपने वाणों की वर्षा से समुद्र को कई स्थानों पर पीछे धकेल दिया। शायद इसलिये आज भी गोवा में बहुत से स्थानों का नाम वाणावली, वाणस्थली आदि है। गोवा पुर्तगालियों का एशिया में पहला क्षेत्रिय क़ब्जा था। उन्होंने यहाँ पर 450 साल तक राज्य किया। 1961 में वायु सेना और नौ सेना की मदद से यह आजाद हुआ। 1962 में इसे भारतीय गणराज्य में शामिल कर लिया गया। पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने में 26 साल लगे। 1987 में यह देश का सबसे छोटा राज्य बना है।  इसके उत्तर में महाराष्ट्र, पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में कर्नाटक है। अब हम पणजी जा रहें हैं। जो गोवा की राजधानी है। यह मांडवी के मुहाने के किनारे बसा है। यहाँ कभी बाढ़ नहीं आई है। पणजी का भी यही मतलब है। बस को कुछ पलों के लिये रोका गया, हमने बस के अंदर से ही पुल की तस्वीरें लीं। गाइड दोनों पंक्तियों के बीच में खड़े होकर उत्तरी गोवा के बारे में बता रहे थे। मैंने चूम्मू से उनकी सीट पर बैठने को कहा। बोला ,’’नहीं अंकल की है।’’लाल ढलवा छतों के खूबसूरत घर, साफ सुथरी सड़के देख कर बहुत अच्छा लग रहा था। माण्डवी के मुहाने पर बस रोक दी। हमें आधे घण्टे का समय दिया गया। हम सब बतियाते हुए चल दिये। सबने हैट पहना था मैंने हैट नहीं पहना था। चूम्मू ने अपनी पसंद का पिंक हैट मुझे खरीदवाया। जब मैंने पहना तो बहुत खुश हुआ। हम माण्डवी को निहारते रहे।
  

Wednesday, 2 August 2017

जल क्रीड़ा, बागा बीच, सोलकढ़ी, भाखरी, टैण्डर कोकोनट की सब्जी, कूड़ा मैनेजमैंट Goa Yatra गोवा यात्रा भाग 4 नीलम भागी




           
चूम्मू बीच की गीली रेत में लोट लगाता था, पानी से निकलता ही नहीं था। मार्था से कह कर हम उसको शाम का दूध अदरक उबलवा कर पिलाते थे। लेकिन हम खाना, चाय अलग अलग जगह पर जाकर खाते पीते थे। हमने देखा कोंकण खाने में कहीं कहीं महाराष्ट्र और कर्नाटक का पुट है। शायद पड़ोस का असर है। चाय के साथ हमने देबली खाई। आज जो हमें नेवरी एक दुकान से मिली, वो आटे की थी उसमें भरावन गुड़, कसा नारियल, मेवा था शेप तो वही गुझिया जैसी थी पर स्वाद बिल्कुल अलग. मसाले वाला अनानास तो कहीं भी मिल जाता था. हम डिनर तक घूमते ही रहते थे. हमारा गोवा पर्ल आफ ईस्ट कहलाता है। खूबसूरत बीच सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं इसलिये विदेशी पर्यटक यहाँ खूब आते हैं। उनको देखना भी बहुत अच्छा लगता था। अंकुर तो नानवेज़ खाता है। उसके लिये सी फूड की भरमार थी। श्वेता और मैं हर मील में नया वेज ट्राई करते थे। आज हमने चूम्मू के लिये लाइफ जैकेट खरीदी। रात हो गई थी पर उसने उसे पहन कर रट लगा ली कि बीच पर चलो। बड़ी मुश्किल से उसे समझाया कि सुबह चलेंगे। रात हमने भाखरी(चावल के आटे की रोटी) के साथ टैण्डर कोकोनट की सब्जी खाई, गज़ब का स्वाद था। सोलकढ़ी पीकर तो मजा ही आ गया। सोलकढ़ी में कोकम और कोकोनट मिल्क पड़ता है। जहाँ इतनी स्वादिष्ट पीने को सोलकढ़ी हो, वहाँ सॉफ्टड्रिंक का क्या काम भला, मेरा ऐसा मानना है।  थके हुए थे, आते ही सो गये। सुबह टन टन की आवाज से नींद खुली। जल्दी से बाहर आई। एक कूड़ा उठाने वाली गाड़ी रूक रूक कर चल रही थी। उस पर दो आदमी खड़े थे। लोग जल्दी जल्दी अपने घरों से डस्टबिन ला कर उसे देते जाते थे, वे गाड़ी में खाली कर के उन्हें लौटाते जाते थे। तब मुझे समझ आया कि यहाँ उत्तम कूड़ा निस्तारण के कारण जगह जगह कूड़े के ढेर नहीं हैं। आज हमें जल क्रीड़ाओं के लिये प्रसिद्ध बागा बीच जाना था। जल्दी नाश्ता किया और पहुँचे। यहाँ अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटकों की अधिकता के कारण अतिथी देवो भव की भावना साफ नजर आ रही थी। यानि जहाँ से रेत शुरू होती थी, वहाँ से पतली नारियल की जटा से बनी टाट पट्टी गीली रेत तक जाती थी। यानि गर्म रेत से उनके पैर न जले। चुम्मू में लाइफ जैकेट पहन कर गज़ब की फुर्ती आ गई। बार बार उसे लहरों से पकड़ कर लाना पड़ता था। दुकानदार ने बेचते समय जो जो कहा था, उसमें उसे ये समझ आया कि पीली जैकेट उसकी रक्षा करेगी इसलिये वो कुछ भी कर सकता है। अंकुर श्वेता चुम्मू को छोड़ कर जल क्रीड़ा पैराग्लाइडिंग, वाटर स्कींग, वाटर सर्फिंग, स्कूट्रिंग के लिये जाना चाहते थे। मैंने कहा कि कपड़े बदल कर ,इसकी जैकैट ले जाओ, गीली रेत है  ही इसके खेलने को। वो गये और उनके जाने के बाद, ये चुपचाप रेत से खेलता रहा, बीच बीच में मुझे देख लेता। अंकुर श्वेता आ गये। आते ही बोले,’’माँ आज अर्पाटमैंट में शिफ्ट होना है।’’हम चल दिये। मुझे और चुम्मू को अर्पाटमैंट






 में छोड़ दिया। अंकुर श्वेता सामान की पैकिंग करने चले गये। इसमें दो बालकोनी थी। एक सड़क की ओर थी, दूसरी स्वीमिंग पूल की ओर। हम टी. वी. देखने लगे कुछ देर में अंकुर श्वेता भी सामान लेकर आ गये। क्रमशः