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Monday, 22 December 2025

व्हीलचेयर असिस्टेंट कितना जरूरी है! अमेरिका की ओर How important is a wheelchair assistant! Towards Americaनीलम भागी Neelam Bhagi

 


फ्लाइट के समय असिस्टेंट आ गया था, मैंने कहा, " मैं प्लेन में चली जाऊंगी।" मेरे बाद भी जालंधर की महिला उसके साथ आई थी। वह पहली बार लंदन जा रही थी। बहुत घबराई हुई थी, प्लेन में भी पहली बार बैठ रही थी । असिस्टेंट  उसका  सामान लेकर  उसे प्लेन में पहुंचाने चला गया। 10 घंटे की फ्लाइट थी, उसका माहौल बिल्कुल भारतीय था। एयर होस्टेस भी हिंदी, पंजाबी और इंग्लिश बोल रही थीं। मेनू भी दिया था शायद वाइन की ब्रांड पूछने के लिए, मेरा तो वेजीटेरियन  था और पानी, चाय जूस।



प्लेन 7:45  लैंड किया।  सोने के कारण, मैं रात भर उठी नहीं इसलिए मुझसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, पर समय था। मैंने सोच लिया कि मैं लास्ट में निकलूंगी तब तक मेरे कदम तकलीफ से चलने लगे। वैसा नहीं था जैसा कभी-कभी एकदम घुटना जाम हो जाता हैं। प्लेन से बाहर आते ही असिस्टेंट ने मेरा अगली फ्लाइट का बोर्डिंग पास देखा और मुझे टर्मिनल 3 की बस में बिठा दिया। बस के रुकते ही, मुझे दूसरा असिस्टेंट सुरक्षा जांच के लिए ले गया। मैंने उसे कह दिया कि अभी मैं चल पा रही हूं क्योंकि व्हील चेयर पर बैठना, मेरा बहुत मजबूरी में होता है। उसने दूसरे यात्री को ले लिया मेरा लगेज़ उसकी व्हीलचेयर में रख दिया। मैं धीरे-धीरे उसके साथ चलती रही। वह रूक रुक कर मेरा इंतजार करता।

अगली फ्लाइट में मुझे 11 घंटे बैठना था।  अब मेरी लंदन हीथ्रो से 11:50 की अमेरिकन एयरलाइंस की फ्लाइट थी। सुरक्षा जांच के बाद अस्सिटेंट ने मुझे कैब में बिठा दिया। जो मुझे एक हॉल  में ले गया और मेरा बोर्डिंग पास वहां बैठे कर्मचारियों को दे दिया। उन्होंने मुझे बैठने को कहा, वहीं पास में ही वाशरूम और पीने का पानी था। हॉल में टीवी, फास्ट चार्जर और बैठने की अच्छी व्यवस्था थी। कुछ देर बैठने के बाद, एयरपोर्ट का मैंने थोड़ा चक्कर लगा लिया। वॉशरूम गई एकदम साफ सुथरे, एक नल खराब था, उस पर बोर्ड लगा था।

अब मैं इस हाल में आकर बैठ गई। यात्रियों पर नजर डाली, सभी असिस्टेंट व्हीलचेयर वाले थे। कर्मचारी, कंप्यूटर में देखकर, महिला को बताता, महिला जोर से यात्री का नाम बोलकर और फ्लाइट नंबर और जिस देश की होती आवाज लगाती। जो बिल्कुल नहीं चल पाता, उसके लिए व्हील चेयर आती जो चल पाता और अपना बोर्डिंग पास पढ़  पाता, उसे वह बाहर कुर्सियों पर बिठा देती। कैब वाला आता और उन्हें उनके गेट नंबर पर इसी तरह प्रायोरिटी लिखी कुर्सियों पर बिठा आता। यहां देश दुनिया के लोग बैठे हुए थे। कुछ तो सिर्फ अपने देश की भाषा जानते थे। फ्लाइट के समय अगर वह यात्री अपना नाम सुनकर नहीं उठा तो असिस्टेंट मोबाइल पर सिर्फ उसका नाम बड़ा करके एक एक सवारी के आगे करती और नाम बोलती जाती। यह प्रक्रिया बोर्डिंग टाइम से पहले हो जाती ताकि कोई वॉशरूम गया है तो तब तक आ जाता यानी फ्लाइट न छूटने की गारंटी। यहां बैठने पर यात्री के चेहरे पर कोई बेचैनी नहीं क्योंकि सारी जिम्मेवारी तो असिस्टेंट ने अपने पर ले रखी है। फ्लाइट में भी बिठा देते हैं और उतरने पर भी ले लेते हैं। और आपको, आपके परिवार के सदस्य को दे देते हैं। अगर यह सुविधा न हो तो मेरे जैसे लोग घुटनों की परेशानी के डर से और विदेश में इतने बड़े-बड़े हवाई अड्डों पर भटक जाएंगे या फ्लाइट मिस होगी और अनुभव भी अच्छा नहीं होगा। मन मसोस कर जाने से रह जाएंगे। अपने परिवार के सदस्यों में भी नहीं जा पाएंगे। विदेश में रहने वालों परिवारों की भी अपनी बहुत जायज़ समस्याएं होती हैं। इस सुविधा के कारण जरूरत के अनुसार आना-जाना दोनों ओर बुजुर्गों का चलता रहता है। 88 साल तक की उम्र में, मेरी अम्मा बिना व्हीलचेयर असिस्टेंट के दिल्ली मुंबई आती जाती थीं। अकेली विदेश यात्रा में मुझे असिस्टेंट की जरूरत है। यात्राएं करती हूं अपने देश में कहीं भी घुटना जाम होता है, किसी की भी तरफ़ हाथ बढ़ा देता हूं। वह मुझे साइड में बैठा देता है किसी दुकान के आगे होते हैं, वह कुर्सी, स्टूल दे देता है। राह चलते दो-चार इलाज भी बता देते हैं। ठीक होते ही मैं फिर चल पड़ती हूं। अजय पिक्चर देखने के बाद, जब मैं उठी, मेरे घुटने का फिर कोई स्क्रु खराब हो गया था। मेरी साथिने बड़ी मुश्किल से मुझे घर लाई 😄।  मुझे भी फ्लाइट के समय असिस्टेंट लेने आ गया। ढाई घंटे वहां बैठकर मैंने अस्सिस्टेंट व्हील चेयर की सेवा की उपयोगिता पर ध्यान दिया और मैं सेवा के लिए साधुवाद देती हूं। क्रमशः     

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