उग्रतारा मंदिर महिषी सहरसा बिहार यात्रा 18
नीलम भागी
अब हम सहरसा की ओर चल पड़े। सहरसा के रास्ते में जहाँ भी गाँव, कस्बे पड़ते, वे देश के लगभग अन्य गाँवो जैसे ही लगे। रास्ते में बस एक ही अंतर था, यहाँ सड़के ऊँची थीं। घर अधिकतर कच्चे थे। उसका भी कारण था, भूकंप और नेपाल से आने वाली नदियों कोसी और धर्ममूला द्वारा बाढ़। ज्यादातर हाइवे मिला जिसके दोनो ओर सुखद हरियाली देखने को मिल रही थी। एक रोड साइड ढाबे पर हम खाने के लिये रूके। लाइन से कई चारपाईयाँ बिछी थीं। हमने लंच किया। साथी महिलाओं का करवा चौथ का व्रत था। सीनियर सीटीजन और सफर में हैं तो उन्होंने दहीं ले लिया। जब तक मैं वहाँ रही, मैंने चारपाई पर बैठने का सुखद मौका नहीं छोड़ा। आदत के अनुसार मैंने आसपास मुआयना किया। ढाबे वाले ने पीछे पाँच जर्सी गाय पाली हुईं थीं। मुझे मेरठ में पाली अपनी गंगा यमुना याद आ गई। लंच कर चुकी थी, वर्ना बिना प्रिर्जवेटिव का दूध पीती। रोटियाँ भी उसकी चक्की के आटे की चोकर सहित थीं। क्योंकि वहाँ गेहूँ स्टोर करने का ड्रम रक्खा था। ड्राइवरों के रैस्ट के बाद हम चल पड़े। ज्यादा खराब सड़कों से वास्ता नहीं पड़ा। इसलिये दिन डूबने तक हम सहरसा पहुँच गये। सहरसा से 18 किलोमीटर दूर पश्चिम में धर्ममूला नदी के तट पर महिष्मती, वर्तमान का महिषी गाँव है। तीन ओर से तटबंध होने के कारण यहाँ पहुँचना आसान था। यहाँ स्थित उग्रतारा मंदिर है जो तंत्र सिद्धि के लिये विख्यात है। हम जब गये तब न तो शारदीय नवरात्र थे, न ही मंगलवार था, तब भी श्रद्धालुओं का वहाँ पर ताँता लगा हुआ था। यह शक्ति पीठ है। शक्ति पुराण के अनुसार महामाया सति का शरीर लेकर जब शिव क्रोध से ब्रह्मांड में घूम रहे थे, तब प्रलय की आशंका से विष्णु जी ने सुर्दशन से सति के शरीर को 52 भागों में विभक्त कर दिया था। इस स्थान पर सति का बायां नेत्र गिरा था। यह उग्रतारा शक्ति सिद्ध पीठ बन गया। दूसरी मान्यता हैं कि ऋषि वशिष्ठ ने उग्र तप से भगवती को प्रसन्न किया था। तो देवी सदेह यहाँ आईं। कालांतर में शर्त भंग होने से देवी पाषाण में बदल गई। देवी उग्रतारा उग्र से उग्र व्याधियों को नाश करने वाली है। महिषी में देवी तीनों रूपों में विद्यमान है। उग्रतारा नील सरस्वती एवं एकजटा रूप में विद्यमान है। कहते हैं कि कोई भी तंत्र सिद्धि देवी के आदेश के बिना पूरी नहीं होती। वशिष्ठ अराधिता उग्रतारा की प्रतिमा, महिषी में अपने भाव बदलती रहती है। सुबह में अलसाई, दोपहर में रौद्र रूप और शाम को सौम्य रूप में। श्रद्धालु तीनों रूपों में दर्शन करते हैं। मैं तो सौम्यरूप का दर्शन कर पाई। इस प्राचीन मंदिर की स्थापना दरभंगा राजघराने से संबंधित महारानी पद्यमावती ने 16 वीं शताब्दी में करवाया था।
बिहार के मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार ने 2011 में सेवायात्रा में 3.26 करोड़ रू, उग्रतारा महोत्सव एवं विकास कार्य के लिए दिए। पर्यटन विभाग ने यहाँ विवाह भवन, शौचालय, पुस्तकालय, यात्री शेड का नवीनी करण, दो बाहरी मुख्यद्वार और फर्श पर टाइल्स लगवा कर मंदिर की शोभा बढ़ाई है। यहाँ निशुल्क भण्डारा चलता है। नेपाल, बिहार और दूर दूर से लोग शारदीय नवरात्र को आते हैं। शारदीय नवरात्र की अष्टमी को लोग यहाँ आना अपना सौभाग्य समझते हैं। क्रमशः
नीलम भागी
अब हम सहरसा की ओर चल पड़े। सहरसा के रास्ते में जहाँ भी गाँव, कस्बे पड़ते, वे देश के लगभग अन्य गाँवो जैसे ही लगे। रास्ते में बस एक ही अंतर था, यहाँ सड़के ऊँची थीं। घर अधिकतर कच्चे थे। उसका भी कारण था, भूकंप और नेपाल से आने वाली नदियों कोसी और धर्ममूला द्वारा बाढ़। ज्यादातर हाइवे मिला जिसके दोनो ओर सुखद हरियाली देखने को मिल रही थी। एक रोड साइड ढाबे पर हम खाने के लिये रूके। लाइन से कई चारपाईयाँ बिछी थीं। हमने लंच किया। साथी महिलाओं का करवा चौथ का व्रत था। सीनियर सीटीजन और सफर में हैं तो उन्होंने दहीं ले लिया। जब तक मैं वहाँ रही, मैंने चारपाई पर बैठने का सुखद मौका नहीं छोड़ा। आदत के अनुसार मैंने आसपास मुआयना किया। ढाबे वाले ने पीछे पाँच जर्सी गाय पाली हुईं थीं। मुझे मेरठ में पाली अपनी गंगा यमुना याद आ गई। लंच कर चुकी थी, वर्ना बिना प्रिर्जवेटिव का दूध पीती। रोटियाँ भी उसकी चक्की के आटे की चोकर सहित थीं। क्योंकि वहाँ गेहूँ स्टोर करने का ड्रम रक्खा था। ड्राइवरों के रैस्ट के बाद हम चल पड़े। ज्यादा खराब सड़कों से वास्ता नहीं पड़ा। इसलिये दिन डूबने तक हम सहरसा पहुँच गये। सहरसा से 18 किलोमीटर दूर पश्चिम में धर्ममूला नदी के तट पर महिष्मती, वर्तमान का महिषी गाँव है। तीन ओर से तटबंध होने के कारण यहाँ पहुँचना आसान था। यहाँ स्थित उग्रतारा मंदिर है जो तंत्र सिद्धि के लिये विख्यात है। हम जब गये तब न तो शारदीय नवरात्र थे, न ही मंगलवार था, तब भी श्रद्धालुओं का वहाँ पर ताँता लगा हुआ था। यह शक्ति पीठ है। शक्ति पुराण के अनुसार महामाया सति का शरीर लेकर जब शिव क्रोध से ब्रह्मांड में घूम रहे थे, तब प्रलय की आशंका से विष्णु जी ने सुर्दशन से सति के शरीर को 52 भागों में विभक्त कर दिया था। इस स्थान पर सति का बायां नेत्र गिरा था। यह उग्रतारा शक्ति सिद्ध पीठ बन गया। दूसरी मान्यता हैं कि ऋषि वशिष्ठ ने उग्र तप से भगवती को प्रसन्न किया था। तो देवी सदेह यहाँ आईं। कालांतर में शर्त भंग होने से देवी पाषाण में बदल गई। देवी उग्रतारा उग्र से उग्र व्याधियों को नाश करने वाली है। महिषी में देवी तीनों रूपों में विद्यमान है। उग्रतारा नील सरस्वती एवं एकजटा रूप में विद्यमान है। कहते हैं कि कोई भी तंत्र सिद्धि देवी के आदेश के बिना पूरी नहीं होती। वशिष्ठ अराधिता उग्रतारा की प्रतिमा, महिषी में अपने भाव बदलती रहती है। सुबह में अलसाई, दोपहर में रौद्र रूप और शाम को सौम्य रूप में। श्रद्धालु तीनों रूपों में दर्शन करते हैं। मैं तो सौम्यरूप का दर्शन कर पाई। इस प्राचीन मंदिर की स्थापना दरभंगा राजघराने से संबंधित महारानी पद्यमावती ने 16 वीं शताब्दी में करवाया था।
बिहार के मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार ने 2011 में सेवायात्रा में 3.26 करोड़ रू, उग्रतारा महोत्सव एवं विकास कार्य के लिए दिए। पर्यटन विभाग ने यहाँ विवाह भवन, शौचालय, पुस्तकालय, यात्री शेड का नवीनी करण, दो बाहरी मुख्यद्वार और फर्श पर टाइल्स लगवा कर मंदिर की शोभा बढ़ाई है। यहाँ निशुल्क भण्डारा चलता है। नेपाल, बिहार और दूर दूर से लोग शारदीय नवरात्र को आते हैं। शारदीय नवरात्र की अष्टमी को लोग यहाँ आना अपना सौभाग्य समझते हैं। क्रमशः