सुबह उठते ही उत्कर्षिनी ने मेरे हाथ में चाय का कप पकड़ाया। मैंने पहला घूंट भरते ही उससे कहा,’’बेटी तू बदल गई है।’’ उसने पूछा,’’कैसे माँ।’’मैंने जवाब दिया,’’तूने तो कभी मुझे सुबह चाय नहीं पिलायी। आज कैसे?’’ वो बोली कि नया घर हैं। सब कुछ इण्डिया से अलग
है। चाय पियो फिर समझाती हूँ। चाय के बाद मैंने कहा कि तेरे लिए दूध तैयार करती
हूँ। वो बोली,’’ कल से, माँ भूल कैसे गई कि बैड छोड़ने के बाद मैं दूध
नहीं पीती।’’ फिर आपके हाथ से
दूध कल से।’’ बचपन से मैं सुबह
गुनगुना दूध उसे अपने हाथ से पिलाती हूँ, वो गिलास भी नहीं पकड़ती। अपने हाथ से मुझे धीरे धीरे चुटकी काटती रहती है और
आँखे बंद करके दूध पीती है। जब विदेश पढ़ने गई, जॉब लगा तब भी इण्डिया आने पर ऐसे ही दूध पीती है। मैंने
पूछा कि नाश्ते में क्या लेगी? बोली, "अण्डा मटर
की हरी मिर्च वाली भुजिया, जो मैं बताउंगी
वही मेरे लिए बनाया करना। माँ जब मैं अकेली होती थी, आपके हाथ का खाना बहुत मिस करती थी।" वो ऑफिस के लिए तैयार
होने लगी। उसके घर पर बेर का पेड़ छाया हुआ था। जिस पर मोटे मोटे बारीक गुठली वाले
बेर लदे हुए थे। कात्या मुले ने हमारे दरवाजे के आगे भी दो बड़े गमले लगा रखे थे।
सामने चार सफेद प्लास्टिक की कुर्सियाँ थी। जिस पर पके हुए बेर गिरते थे। कुर्सी
के बेर मैं खाती थी। जमीन के बेर झाड़ू से सब डस्टबिन में डालती। यहाँ कोई खाने
वाला ही नहीं था। उस अकेली लड़की ने लॉन मेनटेन किया हुआ था। करी पत्ता, धनिया ,पौदीना और न जाने कौन कौन सी र्हबस थी। र्गाडन फर्नीचर भी बहुत सुन्दर था। मैं
यह सब देख कर खुश हो गई कि हरियाली में बैठ कर पढ़ने में खूब मन लगेगा। बेटी बोली,’’माँ जल्दी तैयार होकर मेरे साथ चलो।’’ मैंने फटाफट साड़ी पहनी। इतने में उसने डस्टबिन
पॉलिथिन में पलट कर गाड़ी में रख लिये, मैं आकर बैठी, उसने गाड़ी
र्स्टाट की और मुझसे कहाकि आप रास्ता याद करो। रात वाले से ही चलेंगे। आपको स्टोर
पर छोड़ कर मै ऑफिस निकल जाउंगी। वहाँ घूमना फिर अकेली वापिस आना। थोड़ी दूरी पर
कूड़े दान पर उसने गाड़ी रोकी, गाड़ी से उतरी और
कूड़ा, कूड़ेदान में डाला। वहाँ
कोई भी गाड़ी का शीशा हटा कर कूड़ा नहीं फैकंता था। इसलिये वहाँ कूड़ेदान से बाहर
कूड़ा नहीं था। मैं मोड़ याद कर रही थी। स्टोर के आगे उतार कर वह कहने लगी पूरे पचास
मिनट घूमना फिर घर जाना दस मिनट का पैदल का रास्ता है, हो गया न पूरा एक घण्टा, कह कर वह चली गई। नया खाना और बनाना मेरा शौक है। वहाँ
चप्पन कद्दु की तरह एक नई सब्जी ली। बाकि जो चाहिए था वो लिया, टाइम पास किया और चल दी। बहुत सोच सोच कर मैं
कदम बढ़ाती, अपने घर के पास पहुँची।
बाहर कात्या मुले, ब्लू जिंस और
सफेद र्शट में और उसकी माँ मिनी र्स्कट और स्लीवलैस टॉप में, मेरे लिए चिंतित खड़ी थी। मुझे देखते ही उसने
मुझे गले लगा कर मेरे दोनो गालों पर चुम्बन जड़ा, ऐसा ही उसकी माँ ने मेरे साथ किया। इतने में एक गाड़ी आकर
रूकी, उसमें से एक प्रभावशाली
व्यक्तित्व का एक सांवला लड़का उतरा। उसने वही चुम्मन अभिवादन उन दोनो के साथ किया,
उन्होंने भी बदले में उसके साथ वैसा ही किया।
कात्या मुले ने बताया कि ये उसका मित्र ट्यूनेशिया से अनीस है। अनीस बड़ी अंतरंगता
से मेरी ओर बढ़ा और मैने दोनो हाथ जोड़ कर
नमस्ते किया, वह वहीं रूक गया
और जवाब में मेरी तरह हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। कात्या मुले ने फोन पर उत्कर्षिनी को मेरे
लौटने की सूचना दे दी। मैं अपने घर आ गई। मैं यहाँ से खोया लेकर गई थी। गाजर का
हलुआ बनाने लगी। चलते समय डॉ. शोभा ने भरवां करेले का डिब्बा दिया था। मैंने खबूस का
छठा हिस्सा काटा, उसे और करेले को माइक्रोवेव में गर्म किया। दहीं के साथ इन दोनो
को खाया। और गाजर का हलवा बन रहा था इसलिए हॉटप्लेट को स्लो करके सो गई। उठी तो गजब का गाजर का हलुआ तैयार था। मैं
पढ़ने बैठ गई। बेटी का फोन आया कि वह खाना लेकर आयेगी, बनाना नहीं है फिर हम शारजाह ऑफिस चलेंगे। एक दम सब कुछ नया
था। मैं पढ़ते हुए बीच बीच में सोती रही। आठ बजे बेटी आई। गाजर का हलुआ देखते ही
खुश हो गई। एक डब्बा शारजाह ऑफिस के लिये तैयार किया। हमने खाना खाया। वो लेट गई
और बोली,’’साढ़े दस बजे घर से निकलेंगे।’’कह कर सो गई, मुझे कहाँ नींद! क्रमशः