र्स्वण मंदिर के बाहर देश विदेश से आये श्रद्धालुओं, पर्यटकों के कारण मेले जैसा लग रहा था लेकिन धक्का मुक्की जरा भी नहीं थी। प्रवेश से पहले गुरुओं के प्रति श्रद्धा आती है और सिर
झुक जाता है। जूता चप्पल उतार कर पैर आठ फीट चौड़े और छ फीट गहरे तालाब में से गुजरते हुए साफ हो जाते हैं। मैंने तो साड़ी के पल्लू से सिर ढक रखा था। लेकिन वहां सिर ढकने के लिए रुमाल रखें हैं, आप सिर पर बांध ले, गुरुद्वारा परिसर से बाहर आते समय आप वहीं रख दें। रात का समय था इसलिए रोशनी की सुंदर व्यवस्था के कारण जगमगाते र्स्वण मंदिर के दूर से दर्शन हो रहे थे और
पानी में उसका झिलमिलाता प्रतिबिंब भी बहुत खूबसूरत लग रहा था। सीढ़ियां उतर कर सरोवर के बीच से र्स्वण मंदिर की ओर रास्ता जा रहा है। वहां मत्था टेकने के लिए लाइन में लग गए। कानों में शब्द कीर्तन सुनाई दे रहा था। श्रद्धालुओं की श्रद्धा के कारण अलग माहौल सा बना रहता है। कोई बात नहीं कर रहा था। शबद कीर्तन सुनते हुए इंतजार कर रहे थे। एक घण्टे के बाद हमारा हरमन्दिर साहिब में मत्था टेकने का नम्बर आया। कड़ा प्रशादा लेकर हम बाहर आए, अंदर फोटोग्राफी की मनाही है। बाहर कर सकते हैं। और हरिमंदिर साहब, सफेद संगमरमर से बने पावन धार्मिक स्थल के परिक्रमा करते हुए दर्शन करने लगे। इसके संस्थापक गुरु रामदास ने अमृत सरोवर का निर्माण करवाया। जिसके चारों ओर सरोवर के नाम पर, शहर का नाम अमृतसर पड़ा है। इसके वास्तुकार गुरु अर्जुन देव हैं। इसकी नक्काशी शिल्पसौन्दर्य देखते बनता है। चारों दिशाओं में चार द्वार हैं। गुरु रामदास की सराय है। 228 कमरे और 18 हॉल हैं। गद्दे तकिए और चादरें सब मिलता है। गुरु का लंगर हैं जहां हजारों लोग प्रतिदिन प्रशादा खाते हैं। पूरे परिसर में लाजवाब सफाई, चमचमाते फर्श हैं आपका कहीं भी जमीन पर बैठने का मन कर जायेगा। हम भी उस माहौल में बैठे रहे। मैं जब भी अमृतसर जाती हूं तो मत्था टेकने के बाद वहां बैठ जाती हूं। उस माहौल में बड़ी शांति और प्रसन्नता मिलती है। फेसबुक में मेरा ग्रुप हैं ’मेरी और आपकी यात्रा’ उसमें 23 मई को हैदराबाद के घुमक्कड़ सुदेन्द्र कुलकर्णी ने दरबार साहब पर पोस्ट लगाई। उनका कहना है कि उन्हें वहां जाना बहुत अच्छा लगता है। वे पंजाब के आसपास से गुजरें तो अमृतसर जरुर जाते हैं। पिछले साल कश्मीर जा रहे थे। चंढीगढ़ से अपने साथियों के साथ अमृतसर चल दिए। वहां होटल में सामान रख कर स्वर्ण मंदिर गए। रात बारह बजे स्वर्ण मंदिर बंद था। लगभग दो सौ श्रद्धालु शांत अध्यात्मिक वातावरण में लाइन में मत्था टेकने के लिए बेैठे हुए थे, वे भी बैठ गए। रात में भी पीने के पानी की सेवा लगातार थी। श्रद्धालुओं की श्रद्धा से अलग सा भाव था, जिसमें समय का पता भी नहीं चला। सुबह तीन बजे अपने क्रम से मत्था टेका, कढ़ा प्रशाद खाया। नींबू पानी पीकर होटल आ गए। कुछ देर आराम करके श्रीनगर चल दिए। गुड्डी दीदी बोलीं,’’चलो, तो हम भी घर आ गए। सुबह मेरी दिल्ली के लिए ट्रेन थी। कुछ दिन बाद मुझे फिर अमृतसर आना था। दिल्ली से अमृतसर 500 किमी. राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर स्थित है, बस द्वारा भी आ सकते हैं। नई दिल्ली, पुरानी दिल्ली से शाने पंजाब, शताब्दी रेल से 5 से 7 घण्टे में पहुंच जाते हैं। स्टेशन से रिक्शा पकड़ कर र्स्वण मंदिर। यहां अंतराष्ट्रीय हवाईअडडा हैं। यहां से टैक्सी ले सकते हैं बाकि पर्यटन स्थल अगली यात्रा पर। क्रमशः