राम अवतार ने सिल पर पीली सरसों, लहसुन, हरी मिर्च, अमियां और साबुत नमक डाल कर बारीक चटनी पीस
कर, मिट्टी की हण्डिया में निकाल लिया। मिस्से आटे(काला चना मिला गेहूं का आटा) में
नमक, हरी मिर्च, बारीक कटा प्याज
मिला कर, खपरैल की छत से जो
बारिश के पानी की अब साफ़ धार आ रही थी, उससे उसने आटा गूंध लिया। चूल्हा जला कर पानी का हाथ लगा कर, बिना चकले के हाथ से
मोटी मोटी रोटियां बनाने लगा। कच्ची सेक सेक के चूल्हे में डालता जा रहा था और
फूली फूली निकालता जा रहा था। उसने चमचमाती पीतल की थाली में हमें सरसों के तेल से
चुपड़ कर, सरसों की चटनी जो
ताजी पिसी थी, उसके साथ रोटी दी।
बाहर बारिश हो रही थी। चटनी के साथ पहला कौर मुंह तक ले जाते ही सरसों की तीखी गंध
नाक में लगी, पर मुंह में डालते
ही मजा़ आ गया। उसकी सारी चटनी हम लोग खा गए। अपने लिए उसने पहले की बनी खमीर उठी,
राई की चटनी की हण्डिया निकाली। ढक्कन हटाते ही उसकी महक कमरे में भर गई। हम वो भी
चाट गए। उसने तो आम के आचार के साथ रोटी खाई। हम पंजाब से प्रयागराज गए थे। उन दिनों हमारे
यहां सरसों का तेल सिर्फ आचार बनाने में इस्तेमाल होता था। इस दावत के बाद डॉ शोभा ने सरसों के तेल में कुछ सब्जियां छौंकने की शुरुवात की। उस बारिश ने बचपन
में हमें मस्टर्ड फ्लेवर का स्वाद जुबान पर चढ़ा दिया। उत्कर्षिनी ने पूछा,”मम्मा
फिर कभी वैसा खाना मिला, खपरैल से टपके
बरसाती पानी में बना। “मैंने जवाब दिया,”
कहां
बेटी, प्रयागराज से मेरठ, दिल्ली, नौएडा।“ मैंने कई
बार रामऔतार की आंखों देखी रैस्पी से सब कुछ वैसे ही घर में बनाया पर पानी आरो का इस्तेमाल किया। मैंने चटनी में कच्चे आम की जगह आम का आचार, दहीं डाल कर भी बना कर देखा, पर वो स्वाद
नहीं आया, खपरैल के नीचे बारिश
के पानी और चुल्हे में पका वाला, बरसाती दावत। तुम्हारी वसाबी का पहली बार स्वाद चखने में दिन में तारे
नज़र आ गए। रामऔतार की खमीरी सरसों की चटनी, पहली बार चखने पर सबने उसकी हण्डिया साफ कर दी थी। बचपन की बारिश
में लिया मस्टर्ड का स्वाद,
मेरा फेवरेट फ्लेवर बन गया है। तरह तरह के मस्टर्ड सॉस, मर्स्टड डिप, मर्स्टड मायोनीज अलग अलग ब्रांड के लाती हूं। बाजार में जगह बदल बदल कर लिट्टी चोखा खाने जाती हूं क्योंकि उसके साथ सरसों की चटनी जो मिलती है। बंगालियो की सरसों की चटनी को काशोंदो और असमिया में इसे पानी टेंगा कहते हैं, उसका भी स्वाद लिया| बिहार यात्रा पर गई। वहां जगह जगह सरसों की चटनी खाई| पर बारिश में खाई रामऔतार की बनाई मिट़टी की हण्डिया में रखी सरसों की चटनी के साथ, पानी के हाथ की चूल्हे की मिस्सी रोटी का स्वाद आज तक याद है। उत्कर्षिनी देश विदेश से आते हुए मेरे लिए हरे वसाबी मटर के पैकेट लाती है। और जहां भी उसे मस्टर्ड फ्लेवर में जो कुछ भी तीखा, खट्टा, मीठा मिलता है वो लाकर मुझे देते हुए कहती है,”मम्मा, इसमें शायद आपको रामऔतार डिश का फ्लेवर मिल जाए।" सब कुछ है पर बचपन का स्वाद, टेस्ट बड तो नहीं ला सकती न। समाप्त