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Sunday 2 August 2020

करोंदे के देर से आने का कारण Craneberry, Karonde ke Dher se Aane ka Karan Neelam Bhagi नीलम भागी

जनता कर्फ्यू 22 मार्च को था, मेरे जीवन में भी पहली बार था। खाली बैठी क्या करुं? ये सोच कर समय बिताने के लिए मैं कटर लेकर करोंदे की झाड़ की थोड़ी छटाई करने लगी। पर देखा झाड़ सफेद फूलों से भरा, लदा हुआ था। उसी समय छटाई का विचार स्थगित कर दिया। हमेशा जब कच्ची आमी मार्किट में मिलनी बंद हो जाती है। तब इसमें करौंदे लगने शुरु हो जाते हैं। समय महीने का मैंने कभी ध्यान नहीं रखा। अपने गमलों में से लहसून की हरी डंडियां, ताजा पौदीना और हरी मिर्च तोड़ कर उसमें करोंदे मिला कर चटनी पीस लेती हूं। पता नहीं शायद सब कुछ ताजा होने के कारण इसका स्वाद बहुत गजब का होता है। कुछ करोंदे धोकर, सूती कपड़े से पोंछ कर, उनमें छेद करके उसे आम के आचार में भी डाल देती हूं। पर इस बार पेड़ से फूलों को गायब हुए महीनों बीत गए। कोई करोंदा नहीं आया। अब मैं कोरोना को कोसने का काम करने लगी क्यूंकि कोरोना काल में ही करोंदे नहीं आए और विचारने लगी कि करोंदे क्यों नहीं आए? जहां तक मैं समझी, वो ये कि शुरु में सैनेटाइज़ खूब किया गया। तितलियां आनी भी बंद हो गई हैं। तो पॉलिनेशन कैसे होता!! शायद इसलिए इस बार अब तक करोंदे नहीं आये। अब मैंने करोंदों का इंतजार करना बंद कर दिया। ये मान लिया कि जब करोना जायेगा तब करोंदा आयेगा। पर मैं वैसे ही उसे केले, आलू और अण्डे के छिलके और पानी देती रही, उसकी सेवा करती रही। चमकदार हरे, पत्तों वाला, मेरा करोंदा खूब फैलता जा रहा था। वहां से गुजरने वालों को कोई तकलीफ न हो इसलिए आज मैं उसकी छटाई करने लगी। कांटे होने के कारण एक हाथ से सामने की टहनी को उठा कर काटने लगी तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीें रहा। नीचे गुच्छों में करौंदे निकल रहे थे। मैं ऊपर की टहनियां उठा उठा कर, हरे हरे करोंदे देखती जा रही थी और खुश होती रही। हमारे झाड़ में हरे करोंदे लगते हैं। पकने पर बहुत गहरे लाल कुछ जामुन से मिलते रंग के हो जाते हैं। कुछ ही करोंदे तोड़े तब तक शाम हो गई। घर में सबको सूचना दी कि करोंदे आ गए। सबने आकर करोंदे देखे। मैं अब तक करोंदों के देर से आने कारण नहीं समझी। कुछ साल पहले 20 रूपए का पोधा ख़रीदा था| इस बेचारे के कोई नख़रे नहीं| हर साल ढेरो करोंदा मिल जाता हैं|