हमेशा मुंबई से आते समय डिब्बा बोरीवली पर भर जाता है लेकिन इस बार बांद्रा में ही पूरी सीट भर गई । मैं अपनी लोअर विंडो सीट पर बैठी । मेरे सामने एक महिला और दो आदमी बैठे थे। गाड़ी के चलते ही वे उठ गए। थोड़ी देर में उसके साथी ने बड़ा सा बैग उठाया था और मेरे सामने वाला सबको एक पैकेट पकड़ा रहा था। जिसमें इवनिंग स्नैक्स थे। जब सबको वह डिब्बे बांट चुके तो उसी पुरुष ने सबको चाय देनी शुरू कर दी। वे सबको देने के बाद अपनी सीट पर बैठे तो मुझे भी चाय और पैकेट देने लगे। मैंने उन्हें कहा," धन्यवाद, मैंने अभी अभी प्लेटफार्म पर वडा पाव और चाय पी है।" फिर उन्होंने खुद लिया और अपने साथ की महिला को दिया। महिला मुझसे बोली,"बेन, हमारे पास इस सीट पर आपको बड़ी डिस्टरबेंस होगी, आप चाहें तो हम आपकी सीट बदल सकते हैं। मैंने जवाब दिया," कोई बात नहीं, मुझे को अच्छा लगेगा।" ऐसा मैंने इसलिए भी कहा क्योंकि मेरे सामने महिला है और मैं पालथी मार कर नहीं बैठ सकती और ज्यादा पैर लटका कर बैठेने से, मेरे पैर सूज जाते हैं।" मैंने उनसे पूछा, " मैं कभी-कभी आपकी सीट पर पैर रख लूंगी, आपको बुरा तो नहीं लगेगा!!" वे बोली," नहीं नहीं, दोनों एक दूसरे के आमने सामने पैर रखती रहेंगी।" हमेशा की तरह, मैंने अपनी बैडिंग लेकर कंबल चादर तकिया सिर के नीचे लगाया और एक चादर ओढ़ कर अधलेटी सी सिकुड़ कर टिक गई ताकि बाकि आराम से बैठ सके । अब वे मुझे बेन कहने लगी और मैं उन्हें बेन। हमारी आमने सामने की सीट पर मुझे और उस बेन को छोड़कर, वहां सवारियां बदलती रहती जो वहां से गुजरता, उनसे कहता," जय श्री कृष्णा।" फिर पास में बैठ कर दुनिया जहान की बातें शुरू हो जाती पर सब बातें गुजराती में ही होती। इतने में और कोई गुजरता, जय श्री कृष्णा बोलता और पहले वाला प्रणाम करके चल देता। बेन नाते पोतियों वाली थी। कोई महिला उसे छोटा बच्चा पकड़ा के जाती तो बेन उसे गोदी में लिटाके थपकते हुए कान्हा को सुनाने वाली लोरी वह गाती, बच्चा सो जाता तब उसकी मां उसे ले जाती। फिर हारमोनियम तबले पर डिब्बे में भगवान कृष्ण के भजन गाए जाने लगे लेकिन हमारी सीट पर बातें चलती, आगे की मथुरा वृंदावन यात्रा, गोवर्धन परिक्रमा के बारे में सलाह मशवरे चलते। अब बेन अगर खाली होती तभी मैं उनसे इस यात्रा के बारे में बात करती। उनसे तो मिलने वाले ही बहुत आ रहे थे और उनकी अपनी बातचीत थी पर मेरा सफर बहुत अच्छा कट रहा था। सूरत पर गाड़ी रुकी, खाने की ट्रे के बक्से हमारे डिब्बे में लोड हुए। गाड़ी के चलते ही मैंने घर से लाया अपना खाना निकाला। बेन ने मुझे कहा इसको अंदर रखो। अब जय श्री कृष्णा का प्रसाद खाना। इतने में जो दोनों आदमी शुरू में बेन के पास बैठे थे। सबको खाने की ट्रे और छाछ की बोतल देते हुए हमारे पास आए और हमें भी एक एक ट्रे पकड़ा दी। खाना क्या था पूरी लाजवाब गुजराती थाली। हम सब ने खाना खाया। मैं अपनी थाली डस्टबिन में डालने के लिए उठने लगी तो वही दोनों आदमी बड़े-बड़े पॉलिथीन लिए सबके सामने जा रहे थे और खाने की खाली थाली डालते जा रहे थे। मैं उठ कर डिब्बे का चक्कर लगाकर आई। उसमें सभी गुजराती थे अब वे खाना खाकर आपस में बतिया रहे थे और ठहाके लगा रहे थे। मैं अपनी सीट पर लौटी, मेरी सीट पर कोई भी नहीं बैठा था बिल्कुल मुझे पूरा बैठने का स्थान दिया। अब इनके बतियाते बड़ोदरा आ गया। यहां गाड़ी 10 मिनट खड़ी हुई तो बड़े-बड़े आइस बॉक्स हमारे डिब्बे में लोड हुए अब सबको आइसक्रीम मिली फिर उन दोनों आदमियों ने ऐसे ही हमारे खाली कप इकट्ठे किया। अब सब ने अपने-अपने बिस्तर लगाने शुरू कर दिए। थोड़ी देर में पूरा डिब्बा शयन कक्ष में बदल गया हमारे आसपास से भी खर्रतों की आवाज आ रही थी। मैं अपनी देर से सोने वाली और देर से उठने वाली आदत के कारण जाग रही थी। सामने की सीट पर बेन भी मेरी ओर देख रही थी। अब हमने सवारियों वाली बातें शुरू की। उन्होंने पूछा आप कहां जा रही हो? कहां से आ रही हो? मैंने बताया मुंबई बेटी के घर से आ रही हूं और नोएडा अपने घर जा रही हूं। मैंने पूछा आप सब लोग। बेन बोली," हम सब मुंबई से, वो जो इधर बैठा था। मेरा छोटा भाई है। यह साल में दो बार कम से कम सौ डेढ़ सौ लोगों को मथुरा मथुरा वृंदावन की यात्रा पर अपने खर्चे से हैं ले जाता है। गरीब रथ ए सी ट्रेन है। खाना बढ़िया बाहर से ऑर्डर का होता है जो गरम गरम आ जाता है। 2 दिन मथुरा वृंदावन सबको यात्रा, वहां के मशहूर खाने खिलवाने के साथ करवाएंगे। किसी को वहां एक पैसा खर्च नहीं करने देते और फिर सबको बांद्रा स्टेशन पर जय श्री कृष्णा करेंगे। हमारे साथी जो भजन गाते हैं, साज बजाते हैं इनमें कोई भी प्रोफेशनल नहीं है, यह सब गाते बजाते हैं। कन्हैया ने जहां-जहां अपने कदम रखें मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाने के दर्शन करेंगे। बेन रात को बहुत आनंद आता है। खूब भजन कीर्तन करते हैं। भाई ने शादी नहीं किया। व्यापार में खूब कमाई है। सब अच्छे कामों में लगाता है। हर बार यह कोशिश करता है हमारा कोई दोस्त साथी मथुरा वृंदावन देखे बिना ना रह जाए। हर बार पहले उनका नंबर लगता है जो पहले नहीं आए। सब एक ही स्टेशन से चढ़ते हैं और उनको वहीं छोड़ा जाता है। कृष्णा की कृपा से अब तक यात्रा में कोई परेशानी नहीं आई है ना ही किसी की कभी तबीयत खराब हुई है। आप भी चलो न, बहुत आनंद आएगा जब हम लौटेंगे इसी स्टेशन मथुरा से आप दिल्ली चले जाना, हम मुंबई। फिर दुनिया जहान की बातें करते करते सो गए। सुबह 07.27 पर गाड़ी मथुरा में 2 मिनट के लिए रूकती है। सब अपना सामान लेकर लाइन में लग गए ताकि भगदड़ न मचे । 6:00 बजे तक यह सब लगभग उठ चुके थे। बैडिंग इकट्ठे करने वाला भी कंबल चादर तह कर रहा था। डिब्बा खाली हो रहा था तो वह यहां का काम पहले निपटा रहा था। जब तक वह हमारे पास आया। गाड़ी रुक गई, पूरा डिब्बा खाली हो गया। यह क्या! 2 मिनट से ज्यादा हो गए, गाड़ी चली नहीं। जब उसने मेरे सामने की सीट से कंबल उठाया वहां दो मोबाइल बेन के भाई के रखे थे। जल्दी-जल्दी में उस पर बेन ने कंबल सरका दिया था। भाई को याद नहीं रहे होंगे। मैंने देखते ही झटपटकर मोबाइल उठाएं। कर्मचारी चिल्लाया आपके हैं!! मैंने उसे जवाब नहीं दिया, दरवाजे की ओर नंगे पैर दौड़ी, दरवाजा पास ही था और उनके ग्रुप की ओर चिल्लाने लगी इतने में उसके भाई की ही नजर मुझ पर पड़ी, गाड़ी हिलने लग गई थी। वह अपनी जेबों पर हाथ मारते हुए, मेरी तरफ दौड़ा। मेरे हाथ से मोबाइल लेते ही गाड़ी ने स्पीड पकड़ ली और मैं एकदम पलटी, मेरे पीछे ही कर्मचारी खड़ा था। और कुछ सवारिया एकदम पूछने लगी क्या हुआ था? क्या हुआ? वह कर्मचारी बोला," अभी जो बैठे थे ना उनके बहुत कीमती दो फोन छूट गए थे। उन्हें दे दिए। उनके फोन उनके पास पहुंचते ही, मैं बता नहीं सकती मुझे कितना अच्छा लगा!! वरना सारे तीर्थ यात्रियों का स्वाद बिगड़ जाता। सब कुछ तो उनका इंतजाम, खाना, रहना उन मोबाइलों में ही तो कैद था। उनके लिए कन्हैया ने जहां जन्म से लेकर बचपन बिताया वैसे ही पराया शहर हो जाता। पर माखन चोर, नंदकिशोर अपने भक्तों के साथ ऐसा कैसे होने दे सकते थे!