Search This Blog

Saturday, 27 August 2022

लोकमान्य तिलक द्वारा रोपा पौधा, आज देश का विशाल वट वृक्ष बन गया!! उत्सव मंथन नीलम भागी Special days in September Neelam Bhagi


जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधाष्टमी का त्योहार परंपरागत रूप से ब्रज, बरसाना, मथुरा वृंदावन के आसपास के क्षेत्र के साथ उत्तर भारत में मनाते हैं। भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की अष्टमी(4 सितम्बर) को राधाष्टमी मनाई जाती है। मंदिरों में कीर्तन का आयोजन किया जाता है। महान शास्त्रीय संगीतकार, संगीतज्ञों के आराध्य, ध्रु्रपद के जनक स्वामी हरिदास का जन्म भी इसी दिन हुआ था। बैजू बावरा, तानसेन जेैसे दिग्गज संगीतज्ञ उनके शिष्य थे। इनके जन्मोत्सव पर विश्वभर के शास्त्रीय संगीतज्ञ उन्हें भावांजलि देने स्वामी हरिदास संगीत एवं नृत्य महोत्सव में आते हैं।

   दक्षिण भारत में ओणम मुख्यतः केरल का सबसे प्राचीन पारंपरिक, धार्मिक, सांस्कृतिक उत्सव हैं, जिसे दुनियाभर में मलयाली समाज मनाता है। यह 30 अगस्त से शुरु हुआ है 8 सितम्बर को समापन होगा। केरल में चार दिन की छुट्टी होती हैं। हर दिन का अपना अलग महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन प्रत्येक वर्ष राजा महाबलि पाताल लोक से धरती पर अपनी प्रजा को आर्शीवाद देने आते हैं और नई फसल की खुशी में मनाया जाता है। ओणम उत्सव अपनी सांस्कृतिक प्रथाओं में नाव दौड़, नृत्य रुपों, फूलों, रंगीन कला, भोजन और पारंपरिक कपड़ों से लेकर ओनायद्या यानि भोज है, जिसमें केले के पत्ते पर 29 शाकाहारी व्यंजन परोसे जाते हैं। तिरुवोनम, दसवें दिन अपने घरों के प्रवेश द्वार पर आटे के घोल से अल्पना सजाते हैं। नये कपड़े पहनते हैं। ऐसा मानना है कि इस दिन राजा महाबली हर घर जाते हैं और परिवार को आर्शीवाद देते हैं और परिवार दावत के लिए इक्ट्ठा होता है। 

   तीन साल मुम्बई का मैंने गणेशोत्सव देखा। दस दिन महाराष्ट्र गणपतिमय रहता है। बप्पा के आवाहन से लेकर विर्सजन तक श्रद्धालु, आरती, पूजा, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में, लगभग सभी उपस्थित रहते हैं। बच्चों को तो इन दिनों घर में रहना पसंद ही नहीं है। मांए खींच खींच कर इन्हें घर में खिलाने पिलाने लातीं, खा पीकर बच्चे फिर पण्डाल में। रात को ये नन्हें दर्शक, जो सांस्कृतिक कार्यक्रम यहां देखते, दिन में गर्मी की परवाह किए बिना वे उसकी नकल स्टेज पर करते हैं। इसमें मेरी गीता भी शामिल होती। सभी बच्चे इस समय कलाकार होते हैं। दर्शकों की उन्हें जरुरत ही नहीं थी। मुझे बच्चों के इस कार्यक्रम में बहुत आनंद आता। इन दिनों मुझे यहां कुछ न कुछ प्रभावित जरुर करता रहता। घरों में भी गणपति 1,3,5,7,9 दिन बिठाते हैं। गौरी पूजन, दो दिन लक्ष्मी पूजन, छप्पन भोग, त्यौहार के बीच में बेटियां भी गणपति से मिलने मायके आती हैं और बहुएं भी मायके जाती हैं। मसलन हमारे सामने के फ्लैट में रहने वाले परिवार ने गणपति बिठाए तो उनके तीनों भाइयों के परिवार दूसरे शहरों से वहीं आ गए। पूजा तो हर समय नहीं होती, बच्चे आपस में घुल मिल रहें हैं। महिलाओं पुरुषों की अपनी गोष्ठियां चल रहीं थी। एक दिन अष्टमी मनाई गई। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गौंरा अपने गणपति से मिलने आती हैं। उपवास रखकर, कुल्हड़ के आकार या गुड़ियों के रुप में गौरी को पूजते हैं और सबको भोजन कराते हैं। दक्षिणा उपहार देते हैं पर उस दिन नियम है कुछ भी, जूठन(सभ्य लोग हैं जूठा नहीं छोड़ते) तक नहीं फेंकते। यहां तक कि पान खिलाया तो उसका कागज भी दहलीज से बाहर नहीं डालते। अगले दिन दक्षिणा उपहार ले जा सकते हैं। शाम को आरती के बाद कीर्तन होता है। मंगलकारी बप्पा साल में एक बार तो आते हैं इसलिए उनके सत्कार में कोई कमी न रह जाए। अपनी सामर्थ्य के अनुसार मोदक, लड्डू के साथ तरह तरह के व्यंजनों का भोग लगाते हैं। जो सब मिल जुल कर, प्रशाद में खाते हैं। थोड़ी सी जगह में संबंधियों, मित्रों के साथ आनंद पूर्वक नाच भी लेते हैं। गणेशोत्सव में, मैं प्रतिदिन कहीं न कहीं गई हूं। वहां हर जगह नियंत्रित भीड़ और जिस भी सोसाइटी के गणपति उत्सव में मैं गई, देखा सब थोड़ी जगह में एडजस्ट हो जाते हैं। 

     मेड और मैम दोनो एक दूसरे का सहयोग करते हैं। आपके घर मेड काम कर रही है। सोसाइटी के गणपति की आरती शुरु हो गई। वह हाथ धो कर बोलेगी,’’दीदी, मैं जाकऱ आती।’’ और आरती में जाकर शामिल हो जाती। समापन पर आकर वैसे ही जल्दी जल्दी काम में लग जाती। विर्सजन का दिन तो मुझे घर से बाहर ही रहने को मजबूर करता। गणेश चतुर्थी के बाद मैं पहली बार लोखण्डवाला से इन्फीनीटी मॉल के लिए निकली। ढोल नगाड़ों की आवाजें, एक लड़की ने बड़ी श्रद्धा से गणपति गोद में ले रखे हैं। दूसरी लड़की साथ चल रही है। ढोल की ताल पर दोनों के पैर चल रहें हैं। उनके चेहरे से टपकती श्रद्धा को तो मैं लिखने में असमर्थ हूं। मनचला तो मुंबई में होता ही नहीं है। कुछ सुनाई नहीं दे रहा था क्योंकि ढोल वाला भी जोर जोर से ढोल बजा रहा था। उनके पीछे, सामने से भी बड़ा विर्सजन  जूलूस आ रहा था। यहां ढोल से ज्यादा ऊंची आवाज़ में श्रद्धालु जयकारे लगा रहे थे,’’गणपति बप्पा मोरिया, अगले बरस तूं जल्दी आ।’’मैंने सैयद से पूछा,’’ये दोनों लड़कियां क्यों विर्सजन के लिए अकेली जा रहीं थीं?’’सैयद बोले,’’बाहर की होंगी। बप्पा ने जल्दी सुन ली। नई नौकरी होगी, तभी तो एक दिन के गणपति  बिठाएं हैं।’’ 

    सैयद जहां से भी रास्ता बदलते वहीं विसर्जन का जलूस मिलता। मैं ये दावे से कह सकती हूं कि आस्था और भक्ति भाव से किए उन नृत्यों को जिन्हें मैंने गणपति विर्सजन जूलूस में देखा है, उसे दुनिया का कोई भी कोरियोग्राफर नहीं करवा सकता। गणपति के आकार में और जूलूसों में श्रद्धालुओं की संख्या में र्फक था पर चेहरे के भाव को दिखाने के माप का अगर यंत्र होता तो सबका भाव एक ही होता। किसी के गणपति चार या तीन पहिए के सजे हुए ठेले पर हैं, ऑटो रिक्शा में हैं तो किसी ने उन्हें सिर पर बिठा रखा है। कहीं बप्पा बहुत सजे हुए ट्रक में विराजमान हैं। पर सब गणपति से बिनती कर रहें हैं कि अगले बरस तूं जल्दी आ। अगले दिन उत्कर्षिनी बोली,’’संगीता दास के घर गणपति आये हैं। उसका घर दूर हैं पहले उसके गणपति से मिलने जायेंगे फिर विजेता के गणपति से मिलेंगे। संगीता के घर हम तीन बजे पहुंचे। वह यहां अकेली रहती है। भतीजी चंचल दास(टुन्नु) दूरी के कारण होस्टल में रह कर पढ़ती है। गणपति को अकेला तो छोड़ते नहीं हैं। घर में दादी के गणपति के पास तो पूरा परिवार है। इस बार दोनों घर नहीं जा पाईं। यहां बुआ ने गणपति बिठाए, टुन्नु आ गई। संगीता ने बड़ी प्लेटों में अलग अलग, बहुत वैराइटी का प्रशाद दिया। सब कुछ घर में बनाया हुआ और बहुत स्वाद। उत्कर्षिनी ने पूछा,’’अकेली ने इतना सब कैसे बनाया!! एक को तो गणपति के पास बैठना है।’’ संगीता बोली,’’तीन दिन के लिए तो बप्पा आएं हैं। बाजार का भोग लगाने को मन नहीं मानता, बप्पा के लिए, मैं बहुत शौक से बनाती हूं।’’’’ टुन्नु चाय बना कर लाई बोली,’’कोई आता है तो चाय, पानी, प्रशाद मैं लाती हूं, बुआ उनसे बात करतीं हैं।’’ विजेता का घर तो हमारे रास्ते में था। वहां हम आरती के समय पहुंचे। पण्डित जी नौ बजे के बाद आरती करवाने आए, वो बहुत बिजी थे। आरती सम्पन्न होने तक घर के सभी सदस्य भी पहुंच गए थे सबने प्रसाद डिनर किया। रात 11 बजे हम लौटे। आनंद चर्तुदशी के दिन सोसाइटी के गणपति का विर्सजन था। नाचते जयकारे लगाते सब गणपति के जूलूस में चल दिए। पर्यावरण का ध्यान रखते हुए, वर्सोवा में एक तालाब बनाया था, वहां विर्सजन था। ट्रक में गणपति बाकि पैदल नाचते हुए जा रहे थे। मैं बैक रोड से जल्दी जल्दी पेैदल वर्सोवा पहुंच गई। वहां बड़े मंच पर गणमान्य लोग बैठे थे। मैं किसी तरह तालाब के साथ मंच के पास खड़ी हो गई। इस जगह से मुझे तीनों सड़कों से आते विसर्जन के जुलूस दिख रहे थे। लोग अपने गणपति के साथ लाइन में प्रतीक्षा कर रहे थे। अपने नम्बर से पहले गणपति की आरती करते। माइक से जब सोसाइटी का नाम बोला जाता तो वो गणपति को सुनिश्चत जगह पर लाते, तालाब में खड़े तीन आदमियों में से दो बड़ी श्रद्धा से गणपति लेकर विसर्जित करते। सब जोर जोर से जयकारे लगाते और म्यूजिक बजता। 

   और मेरे दिमाग में अब तक की सुनी गणपति की कथाएं चल रहीं थीं। महर्षि वेदव्यास महाभारत की कथा लिखना चाह रहे थे पर उनके विचार प्रवाह की रफ्तार से, कलम साथ नहीं दे रही थी। उन्होंने गणपति से लिखने को कहा। उन्होंने लिखना स्वीकार किया पर पहले तय कर लिया कि वे लगातार लिखेंगे जैसे ही उनका सुनाना बंद होगा, वह आगे नहीं लिखेंगे। महर्षि ने भी गणपति से विनती कर, उन्हें कहा,’’ आप भी एडिटिंग साथ साथ करेंगे।’’ गणपति ने स्वीकार कर लिया। जहां गणपति करेक्शन के लिए सोच विचार करने लगते, तब तक महर्षि अगले प्रसंग की तैयारी कर लेते। वे लगातार कथा सुना रहे थे। दसवें दिन जब महर्षि ने आखें खोलीं तो पाया कि गणपति के शरीर का ताप बढ़ गया है। उन्होंने तुरंत पास के जलकुंड से जल ला कर उनके शरीर पर प्रवाहित किया। उस दिन भाद्रपद की चतुर्दशी थी। इसी कारण प्रतिमा का विर्सजन चतुर्दशी को किया जाता है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। 

   गणपति उत्सव की शरूवात, सांस्कृतिक राजधानी पुणे से हुई थी। शिवाजी के बचपन में उनकी मां जीजाबाई ने पुणे के ग्रामदेवता कस्बा में गणपति की स्थापना की थी। तिलक ने जब सार्वजनिक गणेश पूजन का आयोजन किया था तो उनका मकसद सभी जातियों धर्मों को एक साझा मंच देना था। पहला मौका था जब सबने देव दर्शन कर चरण छुए थे। उत्सव के बाद प्रतिमा को वापस मंदिर में हमेशा की तरह स्थापित किया जाने लगा तो एक वर्ग ने इसका विरोध किया कि ये मूर्ति सबके द्वारा छुई गई है। उसी समय निर्णय लिया गया कि इसे सागर में विसर्जित किया जाए। दोनों पक्षों की बात रह गई। तब से गणपति विर्सजन शुरु हो गया।

   हमारे गणपति का रात नौ बजे विर्सजन हुआ और मैं सबके साथ घर लौटी। गणपति विर्सजन में 4 से 9 बजे तक वहां खड़ी हर प्रांत के लोग देख रही थी क्योंकि दक्षिण भारत के कला शिरोमणि गणपति तो सबके हैं। आज तिलक की याद आ रही हैं उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध सबको संगठित किया था। आज देश विदेश में भारतवासी इसे मिलजुल कर ही मनाते हैं। 

    लोकमान्य तिलक के लगाए पौधे की शाखाएं देशभर में फैल गईं हैं। उत्तर भारत में आनंद चतुर्दशी को गणपति विर्सजन होता है और जहां रामलीला होती है, उस स्थान का भूमि पूजन होता है।

       हमारे धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह आनंद चतुदर्शी के बाद पूर्णिमा से अमावस तक लगभग 16 दिन का होता है। यह 10 सितम्बर से 25 सितम्बर तक है। मान्यता है कि यमराज श्राद्ध पक्ष में पितरों को मुक्त कर देते हैं ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। इन दिनों पितरों को याद किया जाता है, उनके प्रति आदर भाव प्रकट किया जाता है। पितरों के निमित्त किए गए तर्पण से पितर तृप्त होकर वंशजों को आर्शीवाद देते हैं। जिससे जीवन में सुख समृद्धि प्राप्त होती है। अमावस को पितृ विर्सजन करते हैं।  

 सृजन, निर्माण, वास्तुकला, औजार, शिल्पकला, मूर्तिकला एवं वाहनों के देवता विश्वकर्मा जयंती 17 सितम्बर को मनाई जायेगी। कारीगरों का यह उत्सव का दिन है। सब एक जगह इक्कट्ठा होकर पूजा करते हैं और फिर मूर्ति का विर्सजन करते हैं। 

    पहले शारदीय नवरात्र(26 सितम्बर) को महाराजा अग्रसेन का जन्मदिन मनाया जाता है। महाराजा अग्रसेन जयंती पर अग्रवाल समुदाय द्वारा धार्मिक भक्ति भाव के साथ शोभा यात्रा निकाल कर मनाई जाती है। दिन भर भण्डारे और समाज की भलाई के कार्य किए जाते हैं। इसी दिन शारदीय नवरात्र आरम्भ हैं। प्रति दिन देवी दुर्गा के नौ स्वरुपों में से एक की पूजा, व्रत कर हम अध्यात्मिक और मानसिक शक्ति प्राप्त करते हैं। महिलाएं भजनों की डायरियां लेकर कीर्तनों में व्यस्त रहती हैं और नए भजन भी नोट करती हैं। जगह जगह रामलीला का मंचन शुरु हो जाता हैं। दुर्गा पूजा, गरबा डांडिया की जोर शोर से तैयारी शुरु होती है।

प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के सितंबर अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है