सैयद जहां से भी रास्ता बदलते, वहीं हमें विसर्जन का जलूस मिलता। मैं ये दावे से कह सकती हूं कि आस्था और भाव भक्ति से किए उन नृत्यों को जिन्हें मैंने गणपति विर्सजन जूलूस में देखा था उसे दुनिया का कोई भी कोरियोग्राफर नहीं करवा सकता है। गणपति के आकार में और जूलूसों में श्रद्धालुओं की संख्या में अंतर था पर चेहरे के भाव को दिखाने के माप का अगर यंत्र होता तो सबका भाव एक ही होता। किसी के गणपति चार या तीन पहिए के सजे हुए ठेले पर हैं, ऑटो रिक्शा में तो किसी ने उन्हें सिर पर बिठा रखा है। कोई बहुत सजे हुए ट्रक में विराजमान हैं। पर सब गणपति से बिनती कर रहें हैं कि अगले बरस तूं जल्दी आ।
छाया देवी परिवार नोएडा द्वारा आयोजित गणपति उत्सव में गणपति के आने पर हर्षोल्लास छाया है। सुर ताल में जमकर भजन कीर्तन किया जाता है। जब लिखने बैठी हूं तो स्मृति में मुंबई का भी आ जाता है।
अगले दिन उत्कर्षिनी बोली,’’संगीता दास के घर गणपति आये हैं। उसका घर दूर हैं पहले उसके घर जायेंगे फिर विजेता के गणपति से मिलेंगे।’’गीता लहंगा पहन कर तैयार हुई। संगीता के घर हम तीन बजे पहुंचे। वह फिल्म इण्डस्ट्री में है। वह यहां अकेली रहती है। भतीजी चंचल दास(टुन्नु) दूरी के कारण होस्टल में रह कर पढ़ती है। गणपति को अकेला तो छोड़ते नहीं। घर में दादी के गणपति के पास तो परिवार है। यहां वह बुआ के गणपति के पास आ गई।
संगीता ने बड़ी प्लेटों में तीनों को अलग अलग, बहुत वैराइटी का प्रशाद दिया। सब कुछ घर में बनाया हुआ था और बहुत स्वाद। उत्कर्षिनी ने पूछा,’’अकेली ने इतना सब कैसे बनाया!! एक को तो गणपति के पास बैठना है। टुन्नु चाय बना कर लाई बोली,’’कोई आता है तो चाय पानी प्रशाद मैं लाती हूं, बुआ उनसे बात करती है। संगीता बोली,’’तीन दिन के लिए तो गणपति आएं हैं। बाजार का भोग लगाने को मन नहीं मानता, मैं बहुत शौक से बनाती हूं।
खाना है तो बनाना भी होगा! अमेरिका प्रवास में मैंने देखा था, काम सब मिलजुल कर करते थे। बेटे शहजादो की तरह नही पालते थे। शाश्वत, अदम्य गणपति की शाम की आरती के लिए प्रसाद बनाते हैं।
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लड्डू गोल नहीं होते पर उनमें श्रद्धा भाव जुड़ने से बहुत स्वाद होते हैं। श्वेता बैंक से आते ही आरती की तैयारी करती है। क्रमशः



