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Tuesday 28 May 2019

बेट द्वारका मित्रता दिवस पर, friendship Dayगुजरात यात्रा भाग 20 Bet Dwarka Gujrat Yatra 20 नीलम भागी


नीलम भागी
 गाइड पण्डित जी ने हमें बताना शुरू किया। बेट द्वारका ओखा से 3 किमी. दूर है। इसकी लम्बाई लगभग 13किमी और चौड़ाई 4किमी. है। भारत की आखिरी बस्ती है। 160 किमी. तक समुद्र फैला है। यह कच्छ की खाड़ी में स्थित द्वीप है। आगे पाक करांची है। यहां जाये बिना द्वारका जी की ये यात्रा पूरी नहीं मानी जाती यानि पूरा फल नहीं मिलता। यह द्वारका से 30 किमी. दूर है और पाँच किमी समुद्री रास्ता है। बेट द्वारका का वह स्थान है जहां पर भगवान ने नरसी भगत की हुण्डी भरी थी। (तब पैदल यात्रा करते थे। धन चोर न चुरा लें इसलिये भरोसेमंद व्यक्ति के पास धन जमा कर, उससे दूसरे शहर के व्यक्ति के नाम धनादेश यानि हुण्डी लिखवा लेते थे।)  नरसी मेहता की गरीबी का मज़ाक उड़ाने के लिये कुछ खुरा़फाती लोगों ने द्वारका जाने वाले तीर्थयात्रियों से उनके नाम हुण्डी लिखवा ली पर जब यात्री द्वारका पहुंचे तो भगवान ने नरसी की लाज रखने के लिए श्यामल सेठ का वेश बना कर नरसी की हुंडी भर दी। इस हुण्डी का धन तीर्थ यात्रियों को दे दिया।
   भगवान Krishna आराम कर रहे थे। एक द्वारपाल ने आकर उनसे कहाकि एक भिखारी आप से मिलना चाहता है। पहले तो भगवान को गुस्सा आया कि उनके राज्य में भिखारी !! फिर उन्होंने कहा कि जो मांग रहा है उसे दे दो।  उसने कहा कि वो कुछ मांग नहीं रहा है। किसी गुरू सानदीपानी का नाम ले रहा है। सुनते ही भगवान नंगे पावं दौड़े। ये वो जगह है, जहां भगवान के मित्र सुदामा, पोरबंदर जिसे सुदामापुरी कहते हैं वहाँ से पैदल भगवान से मिलने गये थे। दोनो की भेंट का मतलब, मुलाकात और उपहार भी होता है, भेंट भी हुई थी और वे भेंट में भी चावल लाये थे। इसलिये इसका नाम भेट द्वारका पड़ा। गुजराती में यह बेट हो गया। यहाँ 10,000 परिवार रहते है, जिसमें से 2000 परिवार हिन्दु हैंं जिनकी जीविका मंदिरों से जुड़ी है। 8000 परिवार मुसलमान है उनकी मुख्य आजीविका मछली पकड़ना है। अब खाली वीरान शुष्क मैदान थे। बीच में टाटा कैमिकल्स का कारखाना था। पण्डित जी ने कहा कि बस जहाँ आपको उतारेगी। वहीं मिलेगी। सायं 6 बजे यहाँ से चल देगी। उतरने पर पैदल आपको जेट्टी तक जाना है। उसका किराया बीस रूपये है। मैं आपके साथ चलूंगा। जब आप दर्शन करके लौटोगे तब भी मैं आपको वहीं खड़ा मिलूंगा। वे इतने सुन्दर ढंग से हमें तीर्थों की कहानियां सुनाते हुए यात्रा करवा रहे थे। सबने अपनी श्रद्वा अनुसार उन्हें रूपये दिये। बस से उतर कर हम पण्डित जी के साथ जैट्टी के लिये चल दिये। बस की सब सवारियों को जेट्टी पर चढ़ाया। एक जेट्टी पर 200 सवारियां बिठाने की अनुमति थी। जेट़टी चलते ही समुद्री पक्षी उपर उड़ने लगे। वे हाथों से भी खाना ले रहे थे। जिधर देखो मछली पकड़ने वाली नाव ही नाव थीं। 30 मिनट में हम बेट द्वारका पहुंच गये। उतर कर एक पुल से पैदल किनारे की ओर चल पड़े। यहाँ चार पहिए के ठेले लिये, आदमी मंदिर तक 50रू में सवारियां ढो रहे थे और लोग भी बैठ रहे थे। पुल पार करते ही सड़क के दोनो ओर सामान की दुकाने थीं जहां प्रशाद और कई तरह का सामान था। यहाँ भी कैमरा मोबाइल ले जाना मना था। हमें यहाँ भी सिक्योरिटी जाँच के बाद जाने को मिला, बहुत भीड़ थी। कोई मंडली कीर्तन भी कर रही थी जिससे और आनन्द आ रहा था। यहाँ भगवान के सब परिवार जनों के मंदिर हैं। रूक्मणी जी का मंदिर नहीें है। श्रीकृष्ण सुदामा जी के मंदिर में पैरों में चावल बहुत चुभ रहे थे। ये श्रीकृष्ण का निवास स्थान था इसलिये यहां मंदिर में भी शिखर नहीं है। अन्य घरों की तरह छत सपाट है। अब हम वापिस जैट्टी के लिये चल पड़े। धूप ढल रही थी। हवा बहुत सुहानी थी। जैट्टी में बैठे। जाते समय तो धूप तेज थी, इस समय यह छोटी सी यात्रा बहुत आनन्दायक थी। किनारे लगते ही सब उतरने लगे। मुझे धक्का मुक्की की आदत नहीं है। ये जेट्टी किनारे से बहुत नीची थी। मैं नाव में ही रह गई, सब बताते हुए निकल गए। मेरे सब साथी बस पर पहुंच गये। पंण्डित जी ने मेरे लिये शोर मचा दिया। जे.पी. गौड़ मुझे लेने आये। पण्डित जी बस रूकवाये , खड़े रहे। मेरे बैठते ही बस चली। भद्रकाली चौक उतरते ही जो चाय की दुकान देखी, सबसे पहले चाय पी फिर होटल गये सामान लेने। होटल के रिसैप्शन के सोफों पर पसर गये। वहाँ बस बैड टी बनती थी। उसे कहा स्टील के बड़े बड़े गिलास भर के चाय बना दो। स्टाफ ने हंसते हुए बना कर दी। थेपले, खाकरे, फाफडे, ढोकला हरि मिर्च के आचार के साथ खाया, उस समय तेज मीठे की चाय ने स्स्वाद दुगना किया। हमने  तय किया कि डिनर रास्ते में करेंगे। अब सामान लेकर वॉल्वो की ओर चल दिए। अपने कैबिन में , मैंने लेटते ही कह दिया अगर मैं सो गई तो मुझे डिनर के लिये नहीं जगाना और मैं सो गई। क्रमशः क्रमशः