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Thursday 22 November 2018

बेल्ट की कौनू आवश्यकता नहीं है यहाँ! चरखा पार्क, बापूधाम मोतीहारी,Bihar Yatra बिहार यात्रा 3 नीलम भागी

बेल्ट की कौनू आवश्यकता नहीं है यहाँ! चरखा पार्क बापूधाम मोतीहारी  बिहार यात्रा 3
                                    नीलम भागी
मोतीहारी स्टेशन पर कदम रखते ही दीवारों पर बापू और उस समय चम्पारण सत्याग्रह 1917 में उनके मार्गदर्शन में किए गये कार्यो को दर्शाते चित्र, पेंटिंग, मूर्तियां देख कर मेरी मन स्थिति वैसी ही हो गई, जैसी साबरमती आश्रम में जाने पर हुई थी यानि बापूमय। स्टेशन पर गंदगी बिल्कुल नहीं थी। 15 अप्रैल 1917 को बापू यहाँ पर आये थे तो युवा थे इसलिये अधिकतर इन चित्रों में वे युवा हैं। स्टेशन से बाहर उस समय का रेल के डिब्बे का दृश्य है, जिस वेश भूषा में वे आये थे, वैसी ही बापू की मूर्ति पर पोशाक दर्शाई गई है। गैस्ट हाउस जाने के लिए गाड़ी पर बैठते ही मैं सीट बैल्ट लगाने लगी। तो ड्राइवर साहेब भीम सिंह बोले,’’ बेल्ट की कौनू आवश्यकता नहीं है यहाँ! ’’मैंने पूछा ,’’ यहाँ सीट बैल्ट न बांधने पर जुर्माना नहीं है।’’ उसने जबाब दिया कि कुछ नहीं होगा। सायं 4.30 हम गैस्ट हाउस पहुंचे वहाँ खाना तैयार था। खाते ही अपने कमरे में जाकर थोड़ा आराम किया और चाय पी कर हम गांधी स्मारक संग्रहालय गये। वहाँ श्री बृजकिशोर जी पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बिहार सरकार , सचिव गांधी स्मारक संग्रहालय से भेंट हुई। मैंने उन्हें अपना परिचय दिया। सुनकर गांधी विचारधारा के वे वयोवृद्ध सज्जन बोल,"मुझे तो तुम कस्तूरबा लग रही हो ।" सुनकर मेरा गला भर गया। बा जैसा असाधारण व्यक्तित्व !! अंधेरा हो गया था। उन्होंने किसी के साथ हमें चरखा र्पाक देखने भेजा और उन्होंने उससे कहा कि इन्हें लाइट जला कर अच्छे से दिखाना। वो हमें छोड़ कर आ गया। शायद उसकी ड्यूटी ऑफ हुए काफी समय हो चुका था इसलिये। यहाँ के चौराहे को भी चरखा चौराहा कहते हैं। यहाँ के गेट पर बाहर हाइ मास्ट लाइट लगी थी। उसकी रोशनी में सब दिख रहा था। बस तस्वीरें साफ नहीं आ रहीं थी। पत्थरों पर बा और बापू की तस्वीरें उभारी गईं थी। ऊँचाई पर एक बहुत बड़ा चरखा है। खादी कमीशन द्वारा यह विशाल चरखा लगाया गया है। बैठने के लिये भी स्थान है। इन पत्थरों पर सत्याग्रह के समय के दृश्य भी दर्शाए गए थे। काफी समय हमने चरखा पार्क में बिताया। मुझे तो यहाँ फिर से दिन की रोशनी में संग्रहालय देखने आना था फिर हम गैस्ट हाउस लौटे। रास्ते में दुर्गा विसर्जन का भी जुलूस दिखा.आते ही मैं सो गई। सुबह नौ बजे हमें चम्पारण बापू की  कर्मभूमि को देखने के लिए निकलना था। नाश्ता करके हम सुबह नौ बजे निकले। हमारे गाइड थे अभिषेक। चम्पा के पेड़ों के आरण्य से इस जगह का नाम चम्पारण है। सड़क के दोनो ओर पेड़ ,बागमती, गंडक नदियों के कारण यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ है। पूर्वी चंपारण की सीमा नेपाल से मिलती है। उत्तम कोटि के बासमती चावल और गन्ने की उपज के कारण यह जिला  मशहूर है। शायद इसलिये यहाँ जनसंख्या का घनत्व भी सबसे अधिक है। हर जगह घनी हरियाली देखने को मिल रही थी। पौराणिक दृष्टि से भी यह जगह पवित्र है। भक्त ध्रुव ने यहाँ घोर तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया था। देवी सीता की शरणस्थली भी यहाँ की पवित्र भूमि है। राजा जनक के समय यह मिथिला प्रदेश का अंग था। भगवान बुद्ध ने भी यहाँ उपदेश दिया था। भारत में बापू का स्वतंत्रता संग्राम का पहला सफल सत्याग्रह भी चंपारण सत्याग्रह है। इतनी उपजाऊ भूमि के किसान नील की तीन कठिया खेती के कारण बेहाल थे। राज कुमार शुक्ल ने गांधी जी को यहाँ की स्थिति से अवगत करवाया और उनसे चम्पारण चलने का आग्रह किया। पूरी जानकारी प्राप्त कर बापू 10 अप्रैल 1917 को कलकत्ता से पटना होते हुए बापू मुजफ्फरपुर पहुँचे थे फिर बापूधाम। अपने सत्याग्रह के बल पर यहाँ के किसानों को तीनकठिया से मुक्ति दिलाई। आज मैं भी इस हरीतमा पवित्रभूमि पर हूँ। मेरे दिमाग मेंं वही प्रश्न फिर खड़ा हो गया कि ऐसी भूमि के लोग प्रवासी क्यों हैं?








8 comments:

Mukesh Kaushik said...

चंपारण को बापू के संदर्भ में तो आज तक जाना पर भक्त ध्रुव, भगवान बुद्ध और राजा जनक भी इस ऐतिहासिक स्थल से संबंधित हैं यह बात आपके जानकारी पूर्ण रोचक लेख से ही प्राप्त हुई ।

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

डॉ शोभा भारद्वाज said...

अति सुंदर वर्णन बना यात्रा के यदि यात्रा का आनन्द उठाना है आपके लेख पढ़ कर मिल जाता है चरखे का महात्तम पढने के मिला आप हमें गांधी जी के युग में ले गयीं

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

डॉ शोभा भारद्वाज said...

लेख पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी परन्तु मन नहीं भरा चम्पारण "चम्पा के पेड़ों के आरण्य से इस जगह का नाम चम्पारण है। सड़क के दोनो ओर पेड़ ,बागमती, गंडक नदियों के कारण यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ है। पूर्वी चंपारण की सीमा नेपाल से मिलती है। उत्तम कोटि के बासमती चावल और गन्ने की उपज के कारण यह जिला मशहूर है। शायद इसलिये यहाँ जनसंख्या का घनत्व भी सबसे अधिक है। हर जगह घनी हरियाली देखने को मिल रही थी। पौराणिक दृष्टि से भी यह जगह पवित्र है। भक्त ध्रुव ने यहाँ घोर तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया था। देवी सीता की शरणस्थली भी यहाँ की पवित्र भूमि है। राजा जनक के समय यह मिथिला प्रदेश का अंग था। भगवान बुद्ध ने भी यहाँ उपदेश दिया था। यह जानकारी मेरे लिए नयी है आशीर्वाद सहित धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद जी

rakesh kumar said...

अति सुंदर लेख है गांधीजी के विचारों को बहुत ही गहराई से आप ने जाना और समझा है आपके हर एक लेख की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है और आप अपनी प्रत्येक यात्रा के अनुभवों को अपने पाठकों के साथ साझा करती हैं

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद, राकेश जी