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Thursday, 27 December 2018

बापूधाम मोतिहारी की मोती झील Moti Jheel Motihari Bihar yatra बिहार यात्रा भाग 7 नीलम भागी

 मोतीहारी झील
                नीलम भागी
 रात को जब मैं चरखा पार्क देखकर लौट रही थी तो ऑटो वाले ने अपना बायां हाथ घूमाकर बताया था कि वो मोती झील है। मैंने उसके हाथ की दिशा में देखा तो मुझे झील तो नहीं दिखीं हाँ, अस्थाई दुकाने नज़र आई। उस समय मैंने सोच लिया था कि दिन के समय जब गांधी संग्राहलय देखने  आउंगी तो झील भी देख लूंगी। मोती झील के नाम पर ही इस शहर का नाम मोतीहारी पड़ा। इस तीन सौ दो एकड़ की झील में कहते हैं कि पहले मोती की खेती होती थी इसलिए झील का नाम मोती झील पड़ा। धीरे धीरे इसमें जलकुंभी फैलने से, खरपतवार, अतिक्रमण और गंदगी होने से ये झील अपनी नैसर्गिक सुन्दरता खोने लगी। मछलियों का उत्पादन भी बहुत घट गया। इसके किनारों पर गंदगी और मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया। जो लोग झील की र्दुदशा के बारे में सोचते थे। उन्होंने लोगो से मिल कर इसके लिए लोक संवाद शुरू किया। अब सबको झील की चिंता सताने लगी। वे झील बचाओ आंदोलन से जुड़ने लगे। अब जल सत्याग्रह शुरू हो गया। तब नेता भी जागे। बिहार के पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार, कृषिमंत्री और भारतीय कृषि अनुसंधान के प्रयास से 15 अप्रैल 2017 से झील का पुर्नरूद्धार शुरू हो गया। वैज्ञानिको के दिशा निर्देशन में मानव श्रम, ट्रैक्टर और जेसीबी की मदद से 30 नवम्बर 2017 को सात महीने के अथक प्रयास से यह झील अपने असली रूप में आई। मछली पालन के लिए मतस्य बीज डाले गये और बत्तख पालन भी शुरू किया जाने लगा है। कतला, रोहू, जेंगा, टेगड़ा, मंगुर, सिंधी, नैनी, रेवा, पोटिका, शउरी, पटिया, बोआरी की प्रजातियों का पालन हो रहा है। 170 से 180 टन इनका उत्पादन है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये उत्पादन 1000 टन तक बढ़ सकता है। जिससे तेरह करोड़ अतिरिक्त आय हो सकती है। झील का नवजीवन अन्य प्रांतों के लिए उदाहरण है। इस मोतीहारी झील का ऐतिहासिक महत्व भी है। गांधी जी जब चंपारण सत्याग्रह के लिए यहाँ रूके थे तो उन्होंने मोतीहारी की शान, इस झील की प्रशंसा की थी। समय के साथ जो इसकी शान फीकी पड़ी थी उसे पुनः प्राप्त कर लिया गया है। अब भी जो हिस्सा झील का सड़क के साथ है। वहाँ अस्थाई मार्किट है। मैं इन दुकानों के पीछे गई। वहाँ लोगो ने मलमूत्र का विर्सजन किया हुआ था। झील की तस्वीरें लेने के लिए पैर बचा बचा कर रखना पड़ रहा था। बड़ी सावधानी से मैं कदम रख रही थी। ड्राइवर साहेब बोले,’’लाइए, फोटू हम लेते हैं, आप सिर्फ नज़रें नीची रखिए वर्ना आपके सेंडिल में पखाना लग जायेगा। फिर आप हमें नहीं कहिएगा कि हमने आपको सावधान नहीं किया।’’ अभी तक मैं सूखे पेशाब की गंध के कारण मुंह बंद कर, सांस रोक कर खड़ी थी। उसकी चेतावनी से मेरी हंसी छूट गई। फिर उसने बड़े दुख से कहा कि कुछ घरों ने तो अपने घर का पखाना भी झील में खोल दिया है। मैं भी उसकी बात से लोगों की ऐसी मानसिकता से दुखी हुई। सड़क की तरफ से तो झील दर्शनीय होनी चाहिए, जिससे जब पर्यटक वहाँ से गुजरे तो रूकने को मजबूर हो जाये।। बिहार पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार जी लाजवाब वक्ता हैं। मैंने उन्हें सुना है और उनके व्याख्यान से मैं बहुत प्रभावित हुई। झील के सौन्दर्यीकरण के लिये वे लगे हुए हैं। कुछ ऐसा प्रयास हो कि गंदगी फैलाने वाले लोग सुधरें।


2 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

अति सुंदर वर्णन लेखिका की विशेषता

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद