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Monday, 28 January 2019

ठाकरे फिल्म रिव्यू Thakeray Film Review नीलम भागी

 ठाकरे फिल्म रिव्यू
         नीलम भागी
कलाकार  नवाजुद्दीन सिद्दिकी, अमृता राव, सुधीर मिश्रा, अनुष्का जाधव और अन्य
निदेशक  अभिजीत पानसे
बाल साहेब केशव ठाकरे की जीवन यात्रा पर संजय राउत द्वारा लिखी कहानी पर बनी फिल्म देखकर आप जरा भी निराश नहीं होंगे। एक इमोशनल कलाकार का, एक जबरदस्त जनप्रिय राजनेता बनने का सफ़र है। आपकी राजनीति में दिलचस्पी है और उनके बारे में ज्यादा नहीं जानते तब तो जरूर देखने जायें। जो उन्हें जानता है तो वह उन्हें और जानेगा।
सत्तर प्रतिशत फिल्म ब्लैक एण्ड व्हाइट है। कैमरा र्वक और लाइटनिंग का जबरदस्त उपयोग किया है। आर्टिस्ट प्रीति शील सिंह ने प्रोस्थेटिक मेकअप से नवाजुद्दीन को लगभग बिल्कुल ही बालसाहेब बना दिया। नाक कुछ अलग लग रही थी। नवाजुद्दीन ने भी अपने अभिनय से किरदार को जीवंत कर दिया है। उसने उनका लहजा, हावभाव और तल्ख अंदाज का गहन अध्ययन किया है। पिता, पुत्र, पति संवेदनशील कलाकार सबको परदे पर बखूबी जिया है। किरदार और कहानी ऐसी कि सब कुछ उनके इर्द गिर्द ही घुमता है। उनकी पत्नी मीना ताई(अमृता राव) ने दमदार  उपस्थिति दर्ज की। किसी और के बारे में ध्यान ही नहीं जाता।
एक अखबार के र्काटूनिस्ट की लोकप्रिय नेता बनने की कहानी को बड़े दिलचस्प अंदाज में दिखाया गया है। बाल साहेब को कटघरे में खड़ा किया है। उन पर आरोप लग रहें हैं मराठा राजनीति, बाबरी विध्वंस, दक्षिण भारतीयों पर हमला, मुंबई दंगे, वैलनटाइन डे का विरोध, यू. पी. बिहार के लोगों का महाराष्ट्र में विरोध, पाकिस्तान के खिलाफ, उनकी सोच को लेकर वे विवादों में क्यों रहे? क्यों कहा कि वे केवल हिंदुत्व के एजेण्डा पर चुनाव लड़ेंगे? उनके इसी पक्ष को फिल्म में दिखाया गया है। इन सब आरोपों का जवाब वे दे रहें हैं। इतने आरोपों के बाद भी वे जनप्रिय नेता रहे और महाराष्ट्र के टाइगर कहलाये। अंत तक संजय राउत जो दिखाना चाह रहे थे, उस एजेंडा से जरा भी नहीं भटके और न ही दर्शकों को कुछ सोचने का मौका दिया। कुछ सीन तो धीरे धीरे प्रसिद्ध होने के गजब, मसलन कोई घर आता है। बाल ठाकरे के पिता पूछते हैं" किससे मिलना है? वह कहता है,"बाल साहब से।" पुत्र के नाम के साथ पहली बार 'साहब' सुन पिता के चेहरे से टपकती खुशी!! वह दोबारा प्रश्न करते हैं वही जवाब। अब अंदर जाकर पिता के 'बाल साहब ठाकरे' कहने पर लाजवाब नवाजुद्दीन की प्रतिक्रिया। आपातकाल लगने पर इंदिरा गांधी से मीटिंग और भी कई न भूलने वाले सीन हैं। कहते हैं भीड़ का दिमाग नहीं होता है लेकिन फिल्म देखने से पता चला कि वे भीड़ का दिमाग थे।
मनोज यादव के लिखे डायलॉग ’लोगों के नपुसंक होने से अच्छा, मेरे लोगों का गुंंडा होना है।’ ’जब सिस्टम के शोषण के कारण, लोगों की रीढ़ पिस गई थी तो मैंने उन्हें खड़ा होना सिखाया था।’ उस मौके पर लाजवाब डायलॉग। उन्होंने दो गीत भी लिखे हैं। सैट, लोकेशन सब कहानी के अनुरूप हैं।
संगीत और साउण्ड ट्रैक रोहन रोहन, संदीप शिरोड़कर, अमर मोहिने का अच्छा है। 




Saturday, 26 January 2019

जनकपुर नेपाल से मुज्जफरपुर बिहार यात्रा भाग 13 Janakpur se Muzaffarpur Bihar yatra नीलम भागी


जनकपुर नेपाल से मुज्ज्फरपुर बिहार यात्रा भाग 13


                                नीलम भागी

 जनकपुर नेपाल और नौलखा मंदिर का लेख पढ़कर गोविंद मिश्रा जी का कमेंट आया कि वहाँ सौर्न्दयीकरण किया जा रहा है। इसलिये हमें ऐसा रास्ता मिला था। खराब सड़क जीरो माइलेज़ से शुरू हो रही थी। वहाँ तक हम जल्दी से पहुँचे। आगे वही बिना स्ट्रीट लाइट के धूल मिट्टी की सड़क थी, सूरज डूब रहा था। गाय बकरियाँ झुण्डों में अपने डेरों में लौट रहीं थी। धूप नहीं थी शायद इसलिये जगह जगह साप्ताहिक बाजार लगे हुए थे। जहाँ लोग अपनी जरूरत का सामान ले रहे थे। हमने ठान रक्खा था कि लौटते समय भी उस छप्पर वाले की चाय पियेंगे। पर लौटते समय राजा बहुत जल्दी स्लिप लौटा कर आ गया। हम छप्पर खोज ही नहीं पाये। रात हो गई थी।  अब हमें लीचियों, आम और शहद के लिए मशहूर शहर मुज्जफरपुर जाना था। जिसे स्वीटसिटी भी कहते हैं, वहाँ पहुँचना था। मोड़ पर गाड़ी रोक, राजा उतर कर न जाने कहाँ चला गया? हमारे पीछे जाम लगना शुरू हो गया। अचानक एक आदमी ने गाड़ी का दरवाजा खोला, ड्राइविंग सीट पर बैठा और उसने गाड़ी र्स्टाट कर दी। मैं दरवाजा खुलते ही एकदम बोली,’’आप क्या कर रहे हो?’’ उसने जवाब गाड़ी र्स्टाट करके ही दिया,’’टेंशन काहे ले रहीं हैं। गाड़ी साइड में लगा रहें हैं। आपकी गाड़ी के चक्कर में, हम पूरे देश को तो नहीं रोक सकते न।’’ गाड़ी साइड में लगा, वो ये जा, वो जा। मैं दूर दूर तक नज़रें दौड़ा कर राजा को खोज रही थी। कुछ देर बाद राजा आया। सबने उस पर कोरस में प्रश्न दागा,’’कहाँ थे?’’उसने सबके चेहरों पर एक नज़र डाली, अपनी सीट पर बैठा और तब जवाब दिया,’’ र्चाजर खराब हो गए थे, नया लायें हैं न
।’’ अब मेरी समझ में आया कि लौटते समय गाने क्यों नहीं सुनने को मिले?’’ अब हमें थोड़ा टूटे पुलों और कच्ची सड़कों का रास्ता पार कर फिर हाई वे से 103 किमी की दूरी तय करके मुज्जफरपुर पहुंचना था।1764 में बक्सर की लड़ाई के बाद ये क्षेत्र सीधे अंग्रेजी हुकूमत के आधीन हो गया था। इसका नाम ब्रिटिश राजस्व अधिकारी मुज्जफर खान के नाम पर मुज्जफरपुर पड़ा। यहाँ गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती और लखनदेई नदियों के कारण ही भूमि बहुत उर्वरक है। यहाँ सड़क बहुत अच्छी मिली। रात नौ बजे हम होटल र्मौया रेजी़डेंसी, गोबरशाही चौक पहुँचे। चाय पी कर थोड़ा आराम किया। फिर डाइनिंग हॉल में गये और लाजवाब खाने का आनन्द उठाया। दिनभर के थके थे ,सो गये। सुबह नाश्ते में खस्ता कचौड़ी, स्वादिष्ट सब्जी और अफगान जलेबी खायी। बिहार और नेपाल में जलेबी का आकार कुछ अलग सा देखने को मिला। मुझे अफगान जलेबी का गाना बहुत अच्छा लगता है। इसलिये यहाँ की जलेबी के लिए मुंह से अफगान जलेबी ही निकला। बापू पर संगोष्ठी में श्री संजय पंकज जैसे लाजवाब वक्ताओं को सुना। लंच भी बढ़िया मिला। अगर मैं कभी दोबारा मुज्जफरपुर गई तो इसी होटल में खाना खाउंगी।    


यहाँ भी बापू दो बार आये थे और अपनी दो यात्राओं में इस क्षेत्र के लोगों में स्वाधीनता की चाह की नई जान फूंकी। स्वतंत्रता सेनानी खुदी राम बोस, जुब्बा साहनी, योगेन्द्र शुक्ल, शुक्ल बंधु, रामसंजीवन ठाकुर, पण्डित सहदेव झा और इनके क्रांतिकारी साथियों ने नमक सत्याग्रह 1930 और भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग लिया था। जुब्बा साहनी ने 16 अगस्त 1942 को मीनापुर थाने के इंर्चाज लियो वालर को आग में जिंदा झोंक दिया था।  बाद में पकड़े जाने पर 11 मार्च 1944 को जुब्बा साहनी को फांसी दे दी गई। उनकी याद में यहाँ अमर शहीद जुब्बा साहनी पार्क बनाया गया है। शहीद खुदीराम स्मारक भी। इस शहर ने देश को नामी साहित्यकार  बाबू देवकी नंदन खत्री, दिनकर, रामवृक्ष, बेनीपुर, जानकी बल्लभ शास्त्री आदि भी दिए हैं। बसोकुंड जैनियों का र्तीथस्थल है। जैन धर्म  के तीर्थांकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली के निकट बसोकुंड में लिच्छवी कुल में हुआ था। यहाँ अहिंसा एवं प्राकृत शिक्षा संस्थान भी हैं। जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह अत्यंत पवित्र स्थान है। बाबा गरीबनाथ मंदिर से लोगों की बहुत आस्था जुड़ी हुई है। इस शिव मंदिर की देवघर के समान ही श्रद्धा है। सावन के महिने में शिवलिंग पर जलाभिषेक करने वालों की भीड़ लगी होती है। सूती वस्त्र और लोहे की चूड़ियों के लिये मुज्जफरपुर मशहूर है। हिंदु मुस्लिम दोनों सभ्यतायें यहाँ गहरे से मिली हुई हैं। यही यहाँ की सांस्कृतिक पहचान है। अब हमें दरभंगा के लिये निकलना है।      




Thursday, 24 January 2019

इसकी शान ना जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए नीलम भागी Ye Desh Hamara Pyara Hindustan Jahan Se Nyara Neelam Bhagi

 



 

 मैं नौएडा की बांस  बल्ली मार्किट से मैट्रो स्टेशन की ओर जा रही थी। मेरे दाएं ओर सड़क के पार अस्थायी दुकानों में बिकने के लिये अनगिनत तिरंगे लहरा रहे थे। भीड़ बहुत थी इसलिये मैं वहाँ से तस्वीर नहीं ले पा रही थी। मैंने ऑटो का बिल चुका कर, सड़क पार की। सड़क पर आगे अस्थाई दुकाने और पीछे दोनो ओर झुग्गियां हैं। मैं ये देख कर हैरान की जाम न लग जाये इसलिये शेयरिंग ऑटोवाले ऑटो रोकते, बिना गाड़ी से उतरे, बिना दाम पूछे, जल्दी से पैसे देते तिरंगा लेते और चल पड़ते। जो दाम पूछते वे नहीं लेते और ये कहते हुए जाते कि भाई सवारी मिलती रही तो शाम तक यही वाला झण्डा लूंगा। सड़क पार एक ऑटो वाला ऑटो स्लो करके जोर से दहाड़ा,’’अरे मेरा झण्डा नहीं लाया न।’’दुकानदार ने भी फुल वॉल्यूम में जवाब दिया,’’जनाब, बहुत मंहगा है। रेट सुनकर आपको बहुत जोर का झटका लगेगा।’’वो जवाब में बोला,’’रेट तो मेरी जेब से जायेगा न, तुझे काहे का रोना।’’ मैंने उसे रूकने का इशारा किया, वह रूका और उसने पूछा,’’कहाँ जाना है?’’ मैंने कहा कि मैट्रो स्टेशन। सवारियों से भरे हुए ऑटो में उसने सीट पर बैठे बच्चे को मां की गोद में बिठवाया। सवारियों को आगे पीछे खिस्कवा कर , तीन के बैठने की जगह में चौथी मुझे सीट पर बिठवाया। मैं भी पचास प्रतिशत कूल्हे सीट पर टिका कर, ऑटो को पकड़ कर हवा में लटक गई। उसका गाड़ी चलाते हुए व्याख्यान साथ साथ  चलता जा रहा था कि बस ये सवारियां उतरने ही वाली हैं। सवारियां उतरती जा रहीं थीं और उसे दस रूपये देती जा रहीं थी। आराम से बैठने की जगह होते ही मैंने उसका नाम पूछा, उसने अपना नाम पुरषोत्तम बताया। मैंने उस पर अगला प्रश्न दागा,’’तुम्हें कैसा झण्डा चाहिए?’’उसने जवाब दिया,’’मैडम जी, झण्डा तो तिरंगा ही होता है। पर मुझे तो बड़ा और ऊँचा चाहिये। ताकि दूर से पता चले कि पुरषोत्तम का झण्डा सबसे ऊँचा है।’’और शुर्तुगर्मुग की तरह गर्दन को आगे पीछे करके गाता जा रहा था ’झण्डा ऊंचा रहे हमारा।’ इतने में चार छात्र उतरें, उन्होंने उसे पाँच पाँच के सिक्के दिए। मैंने कहाकि ये ज्यादा दूर तक आयें हैं, इनसे तुमने पाँच रूपये लिये हैं। वह बोला,’’हमने नेताओं की तरह प्रचार नहीं किया है। जब किराया पाँच से दस रूपया हुआ तो अगले दिन स्कूलों के बच्चों ने पाँच रूपये पकड़ाये हमने कुछ नहीं कहा, चुपचाप रख लिये। सभी ऐसा ही करते हैं। हम सब ये सोच लेते हैं कि इनके माँ बाप पढ़ाई पर भी तो खर्च करते हैं। किराया बढ़ गया तो इनकी पढ़ाई न छूट जाये इसलिये रख लेते हैं।’’ सुन कर मैं हैरान!! फिर मैंने पूछा,’कल तो 15 अगस्त है। दुकानदार तुम्हारा झण्डा मंगा देगा!!’’उसने कहा कि उसे शक है कि यदि मैं नहीं खरीदूंगा तो वो 26 जनवरी तक झण्डा कहाँ झुग्गी में संभालेगा? चूहे काट देंगे न। मैं लौटते हुए उसे एडवांस दे दूंगा। फिर तो उसे लाना ही पड़ेगा।’’स्टेशन आते ही मैं उतर गई। मेट्रो स्टेशन की ओर जा रही हूं और ज़हन में दादी आ रही है। मेरी दादी मलिका ए तरन्नुम नूरजहाँ का हमजोली(1946) फिल्म का गाना, हमें सिखाती थी। मैं चलती जा रहीं हूं और मन में उस देशभक्ति के गीत को गुनगुनाती जा रहीं हूं-
ये देश हमारा प्यारा, हिन्दुस्तान जहाँ से न्यारा।
 हिन्दुस्तान के हम हैं प्यारे, हिन्दुस्तान हमारा प्यारा। यें......
जाग उठें हैं हिंद के वासी, हम ये जग जाहिर कर देंगे।
वक्त पड़ा तो देश पर अपनी, जान न्यौछावर कर देंगे।  ये......
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कल मेरे साथ शाश्वत, अदम्य  जा रहे थे। सड़क किनारे जहां तिरंगे बिकते देखते दोनों "भारत माता की जय" जयकार करने लगते।😀

             





Tuesday, 22 January 2019

जनकपुर और नौलखा मंदिर नेपाल यात्रा 2 Janakpur Dham, Nolakha Mandir Nepal Yatra 2 नीलम भागी


उस समय हील पहनना मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं था। हुआ यूं कि मैं गलती से हील पहन कर चल दी। मेरा लगेज़ न जाने कौन सी गाड़ी में औरों के सामान के नीचे था। इसलिये मैं चप्पल बदल नहीं पाई। गाड़ी से उतरी और चल दी। मंदिर तक ई रिक्शा जा रही थी लेकिन मुझे तो पैदल जाना था। सड़क के दोनों ओर सामान से लदी दुकाने थीं, जिनमे विदेशी सामान भी था पर भारतीय सामान बहुतायत में था। फल सब्जियों से लदे हुए ठेले थे। उन दिनों नौएडा में सेब दो सौ रूपये किलो था। सेब वाले से सेब का रेट पूछा, उसने नेपाली डेढ़ सौ रूपये किलो बताया, साथ ही भारतीय सौ रूपये में किलो बताया। किसी भी चीज का रेट पूछती , दुकानदार दो रेट बताता भारत और नेपाल का। लग ही नहीं रहा था कि हम दूसरे देश में हैं लगता भी कैसे! हमारे संबंध तो रामायण काल से हैं। सड़क के दोनो ओर सीवर का पानी था। बीच में ही चला जा सकता था। इस सड़क पर फोर व्लिर प्रतिबंधित थे। बस गंदे छींटों का डर था। पैर गंदे होने से तो हील ने बचा रक्खे थे। अब बीच सड़क में कोई सवारी भी नहीं मिल रही थी क्योंकि ई रिक्शा सवारियों से भरी आ, जा रहीं थीं। आगे जाने पर देखा की वहाँ मेन सीवर लाइन पड़ रही थी। ये सारा काण्ड उसके कारण था। पास ही विशाल सरोवर था। उस तरफ जाने के लिये जरा सा बहुत पतला रास्ता था। एक तरफ सरोवर दूसरी ओर सीवर का विशाल गड्डा। जरा सी चूक होते ही गड्डे या पानी में गिर सकते थे। बड़ी सावधानी से वहाँ से गुजरी। बहुत तेजी से काम चल रहा था। पास ही गड्डे से निकली मिट्टी का पर्वत था, जिस पर सांड दंगल कर रहे थे। सांडो के डर से जल्दी जल्दी चली थोड़ा आगे जाते ही दाएं ओर राजस्थानी वास्तुकला को दर्शाता भव्य मंदिर था। मंदिर चार बजे खुलना था। अभी दो बजे थे। आस पास शाकाहारी रैस्टोरैट थे। लंच किया वहाँ की मिठाई खाई। अब मंदिर की ओर चल दिए। रास्ते में छोटे सांड भी दंगल कर रहे थे। शायद सरोवरों के कारण सिंघाड़े बहुत बिक रहे थे। मंदिर में चप्पल रखने की बहुत उत्तम व्यवस्था थी। चप्पल जमा करके अब चार बजे तक का समय व्यतीत करना था। आदत के अनुसार मैंने घूमना और पूछताश शुरू दी।  मंदिर का नाम नौलखा मंदिर है। पुत्र इच्छा की कामना से टीकम गढ़ की महारानी वृषभानु कुमारी ने इस मंदिर को बनाने का संकल्प लिया था और एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने पु़त्र को जन्म दिया। 4860 वर्गमीटर में मंदिर का निर्माण शुरू हो गया था। बीच में महारानी का निधन हो गया था। स्वर्गीय महारानी के पति से उनकी बहन नरेन्द्र कुमारी का विवाह हो गया। अब नरेन्द्र कुमारी ने मंदिर को पूरा करवाया। इसके निर्माण में अठारह लाख रूपये लगे पर मंदिर नौ लखा के नाम से ही मशहूर है। 1657 में सूरकिशोर दास को सीता जी की प्रतिमा मिली, उन्होंने उसकी स्थापना की थी। मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र के लोग भी नेपालियों के साथ दर्शनाभिलाषी थे। उत्तर की ओर ’अखण्ड कीर्तन भवन’ है। यहाँ 1961 से लगातार कीर्तन हो रहा है। एक जगह सीढ़ी पर चलचित्र लिखा था। मात्र दस रूपये की टिकट थी। वहाँ जानकी की जन्म से बिदाई तक को र्दशाने के लिये गीत और मूर्तियां थी। सोहर, विवाह और बिदाई के गीत नेपाली में थे। मैं वहाँ खड़ी महिलाओं से भाव यानि मतलब पूछती जा रही थी। एक महिला ने बताया ," यहाँ के रिवाज बिहार और मिथिलांचल से मिलते हैं।  फिर दुखी होकर बोली,"जानकी जी विवाह के बाद कभी मायके नहीं आईं। हमारी जानकी ने बड़ा कष्ट पाया। इसलिये कुछ लोग आज भी बेटी की जन्मपत्री नहीं बनवाते। न ही उस मर्हूत में बेटी की शादी करते हैं।" नीचे गर्भगृह में कांच के बंद शो केस में जेवर, मूर्तियां  पोशाकें संभाली गईं थीं। यहाँ ’ज्ञानकूप’ के नाम से संस्कृत विद्यालय हैं। जहाँ विद्यार्थियों के रहने और भोजन की निशुल्क व्यवस्था है। चार बजे मंदिर के कपाट खुले, मैं साइड में दर्शन की प्रतीक्षा में खड़ी थी। भीड़ का एक धक्का लगा।  अब मैं भीड़ में सबसे आगे मंदिर के सामने खड़ी थी। एक पुजारी ने मेरे माथे पर तिलक लगा दिया। एक ने प्रशाद दिया। मेरी आँखों से न ,जाने क्यूं आंसू बहने लगे। भीड़ से निकली तो ध्यान आया कि चढ़ावे के रूपये तो मेरी मुट्ठी में ही रह गये। मेरे में दुबारा भीड़ में जाने की हिम्मत नहीं थी। कुछ लोग दर्शन के लिये पूजा की थाली लेकर खड़े थे। एक की थाली में रूपये रख कर मैंने कहा कि इन्हें दानपात्र में डाल देना। चप्पल ले, अब हम उसी आने वाले तरीके से ही बाहर आये। वहाँ सें ई रिक्शा ले पार्किंग पर पहुँचे।   क्रमशः     











Sunday, 20 January 2019

कौन! पुरूष मन मोह लियो रे......कौन सजना तोहार!! भिठ्ठामोड़ से जनकपुर नेपाल यात्रा 1 Janakpur Nepal नीलम भागी

 कौन! पुरूष मन मोह लियो रे......कौन सजना तोहार!! भिठ्ठामोड़ से जनकपुर नेपाल यात्रा 1
                              नीलम भागी
   रास्ते में कुछ दुकानों के नाम भारत नेपाल साड़ी सेन्टर, भारत नेपाल मीट शॉप देख कर ही दोनो देशों की मैत्री का अंदाज हो जाता है। महिसौल, बथनाहा, सुतिहार और सुरसंड बाजार से होते हुए ,भिट्ठामोड़ नेपाल र्बाडर पर पहुँचे। र्बाडर पर कोई र्बाडर जैसी फीलिंग नहीं हुई। बी.एस.एफ वालों ने कुछ पूछा, हमारी गाड़ी के शीशे धूल के कारण बंद थे, बंद शीशों से ही उन्होंने अन्दर झांक लिया। थोड़ा सा आगे जाने पर नेपाल र्बाडर के सुरक्षा प्रहरी तैनात थे। अर्न्तराष्ट्रीय प्रवेश सीमा है पर कोई शानदार द्वार नहीं, सब सिंपल सादा। वहाँ राजा ने गाड़ी रोकी और उतर कर जाने लगा। मैंने पूछा,’’कहाँ जा रहे हो? उसने जवाब दिया,’’हम रूपिया देकर स्लिप बनवायेंगे। दिन भर उसे संभाला जायेगा। लौटने पर उस स्लिप को लौटाया जायेगा।’’ राजा अपने लिये हमेशा बहुवचन का प्रयोग करता था। वह अपने लिये मैं के स्थान पर हम बोलता था। मैंने देखा बिहार में अधिकतर लोग, अपने लिये हम का ही प्रयोग करते हैं। सामने विंडो पर बस, गाड़ियों वाले लाइन में लगे, स्लिप बनवा रहे थे। मुझे चाय ज्यादा पीने की आदत है। इसलिये आस पास मुआयना किया। एक छप्पर के नीचे चाय की दुकान थी। उसे चाय का आर्डर दिया। उसने बिना पूछे रेट बताया कि भारत के रूपये में छ रूपये की चाय है और नेपाल के रूपये में दस रूपये की। साथ ही उसने कहा कि आप लोग गाड़ी में बैठिये, हम वहीं पहुंचा देंगे। छ रूपये की चाय, कांच के फैले गिलासों मे ढेर सारी मिली। पहला घूंट पीते ही सबके मुंह से निकला ’वाह’। उसमें चीनी, दूध, पत्ती सब कुछ दिल खोल कर डाला गया था। अब तक रास्ते में जो भी चाय सड़क किनारे मिल रही थी, वो पोलियो ड्रॉप जितनी थी। इसलिये उसकी डवल डोज़ लेनी पड़ती थी। चाय पीते ही राजा भी स्लिप ले आया। पहला जो कस्बा था उसका नाम जलेश्रवर था। यहाँ से काठमांडू के लिये बसें जा रहीं थीं। जो इस जगह से 400 किमी दूर था। जनकपुर 22 किलोमीटर दूर था। 18 किमी. प्रति घंटा की गति से हम चल रहे थे। बिल्कुल बदहाल सड़क, जिसपर मोटी रोड़ी पड़ी थी। मुझे लगा कि शायद पक्की सड़क बननेवाली है। पूछने पर राजा ने बताया कि तीन साल से वह इस सड़क को ऐसे ही देख रहा है। कूद कूद कर हमारी गाड़ी चल रही थी। डायरी में कुछ लिखना चाहती तो ग्राफ बनता, जिसे पढ़ा नहीं जा सकता था। खैर लोकगीत सुनने को अच्छे मिल रहे थे। उनके अनुसार पहले इस इलाके में घनघोर जंगल था। ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ में राक्षस तंग करते थे। वे राम लक्षमण को राजा दशरथ से मांग कर लाये। दोनों भाइयों ने खर दूषण और ताड़का का वध कर दिया। सीरध्वज राजा जनक बहुत विद्वान और धार्मिक राजा थे। उनके पूजाग्रह में एक शिवजी का बहुत भारी धनुष रक्खा था। पूजाग्रह की सफाई जानकी जी करती थीं। एक दिन राजा ने देखा कि जानकी धनुष को उठाकर उसके नीचे साफ कर रही थी। राजा हैरान! उन्होंने स्वयंबर रचाया। देश विदेश के राजाओं को निमंत्रण भेजा कि जो शिव धनुष की प्रत्यंचा चढ़ायेगा, उसी से जानकी का विवाह होगा। किसी भी राजा से धनुष हिला तक नहीं। विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण भी गये थे। जब जनक जी बहुत निराश हो गये । तब लक्ष्मण के कहने पर, गुरू की आज्ञा लेकर राम जी ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और धनुष तीन टुकडों में टूट गया। गीतों में स्वयंबर में तनाव का माहोल था, उससे पहले जानकी गौरी पूजन के लिये जाती है। वहाँ उन्हें श्रीराम की एक झलक मिल जाती है। उनकी सखियाँ उनसे दिल का हाल पूछती है। इस गीत का कोरस बहुत बहुत अच्छा लगा
छोटी सखियां जनकपुर की हो, पूछें सिया जी से हाल।
कौन पुरूष मन मोह लियो रे, कौन सजना तोहार।
सीता जी जवाब देती हैं
सांवला सलोना सजनवा हो, हाथ में जिसके धनुष और बाण।
वो ही पुरूष मन मोह लियो रे, वो ही सजना हमार ....     राम सिया राम सियारामा, बोलो जै सिया रामा।
धनुष टूट गया अब विवाह की चुहलबाजी शुरू और लोकगीत ने ही जयमाला का सीन दिखा दिया।
       लेकर खड़ी जयमाला हो ...देखो सिया सुकुमारी।
       सिया सुकुमारी देखो जनक दुलारी। ले कर....
राम बड़े और जानकी छोटी, पहुँचे न वो रघुवर की चोटी।
कैसे वो डाले जयमाला हो...... देखो सिया सुकुमारी........
जानकी की प्रिय सखी, अपने आप से ही श्री राम को जानकी की जयमाला डालने की मजबूरी बताती है।
     एक सखि बोली मधुर वचनवा, तनिक जरा झुक जाओ सजनवा।
      डाल दे जयमाल हो....देखो सिया सुकुमारी.....
अब श्रीराम तो उस समय दूल्हा हैं वो भला क्यों झुकेंगें?
          करके विनय जब सखियां हारी, तब सीता लक्ष्मन को निहारी।
          देवर समझ गये बात हो, देखो सियासुकुमारी। लेकर......
          तब लक्ष्मण हरि चरनन लागे, झुककर राम उठावन लागे।
          डाल दी जयमाल हो..... देखो सियासुकुमारी......
इधर विवाह सम्पन्न हुआ और हमारी गाड़ी जनकपुर की विशाल पार्किंग में रूकी।









Friday, 18 January 2019

जानकी का देश है....सीतामढ़ी से जनकपुर नेपाल Sitamarhi se Nepal ke Yatra Bihar की यात्रा बिहार यात्रा 11 नीलम भागी

 जा

                           
 जनकपुर नेपाल के लिये हम जा रहें हैं। मैंने राजा से कहाकि यहाँ का कोई रेडियो या एफ.एम. लगाओ। उसने न जाने कौन सा स्टेशन लगाया पर उसमें तो र्सिफ मशहूरियां ही आ रही थीं, मसलन नामर्दी का इलाज़, निराश न हों अमुक शफा़खाने आएं, निसंतान दंपत्ति मिले। सड़कों पर बच्चे बच्चे देखकर मुझे लगा कि सारे आयुर्वेद विशेषज्ञ इसी रास्ते में ही रहते हैं। और सुनने का मुझमें धैर्य नहीं था। मैंने राजा से रेडियो बंद करने को कहा। उसने मुस्कुराकर तुरंत बंद कर दिया। अब उसने लोकगीत लगा दिये। लोकगीत तो मन के उद्गगार होते हैं इसलिये लोकगीतों की रचना में कोई नियम कायदे नहीं होते हैं। गीतों में ही संस्कृति की झलक थी। दिमाग में पौराणिक सुनी, पढ़ी कथाएं भी चल रहीं हैं। आँखें रास्ते की सुन्दरता, जगह जगह प्राकृतिक पोखरों को देख रहीं है और कच्चे मकानों के छप्पर पर पेंठो से लदी हुई बेलें थीं। वहाँ हो रहे विकास का बालरूप भी देखने को मिल रहा था। उम्मीद है कि ये विकास युवा भी होगा। सीतामढ़ी सांस्कृतिक मिथिला का प्रमुख शहर एवं जिला है। यह हिन्दुओं का बिहार में प्रमुख तीर्थ एवं पर्यटन स्थल है जो लक्षमना(लखनदेई) नदी के तट पर स्थित है।। पुनौरा धाम से हम जनकपुर नेपाल की ओर चल पड़े। जो सीतामढ़ी से 35 किमी. पूरब में एन.एच 104 पर भिट्ठामोड़ भारत नेपाल सीमा पर स्थित है। सीमा खुली है। रामायण काल में मिथिला राज्य का यह महत्वपूर्ण अंग बिहार के उत्तर में गंगा के मैदान में स्थित, यह जिला नेपाल की सीमा से लगा संवेदनशील है। यहाँ की बोली बज्जिका है जो मिथिला और भोजपुरी का मिश्रण है। हिन्दी उर्दू राज काज की भाषा एवं शिक्षा के माध्यम की भाषा है। त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री, भगवान राम की पत्नी  की पुनौरा जन्मस्थली है। जनश्रुति के अनुसार एक बार मिथिला में अकाल पड़ गया। पंडितों पुरोहितों के कहने पर राजा जनक ने इंद्र को प्रसन्न करने के लिये हल चलाया। पुनौरा के पास उन्हें भूमि में कन्या रत्न प्राप्त हुआ और साथ ही वर्षा होने लगी। अब भूमिसुता जानकी को वर्षा से बचाने के लिये तुरंत एक मढ़ी का निर्माण किया कर, उसमें सयत्न जानकी को वर्षा पानी से बचाया गया। अब वही जगह सीतामढ़ी के नाम से मशहूर है। प्राचीन काल में यह तिरहूत का अंग था। 1908 तक ये मुज्जफरपुर में ही शामिल था। 11 दिसम्बर 1972 में ये स्वतंत्र जिला बना। विष्णुपुराण के अनुसार पुनौरा ग्राम के पास ही रामायण काल के पुंडरीक ऋषि ने तप किया था। वृहद विष्णुपुराण के अनुसार अवतरण की भूमि के पास ही वे रहते थे। महन्त के प्रथम र्पूवज विरक्त महात्मा और सिद्धपुरूष थे। वहीं उन्होंने तपस्या के लिए आसन लगाया जो उनकी तपोभूमि हो गई। कालान्तर में उनके भक्तों ने उसे मठ बना दिया। अब वह गुरू परम्परा चल रही है। उन्होंने नेपाल जनकपुर से लखनदेई तक की भूमि को जनक की हल भूमि  में नापा। ये एक जनश्रुति है । सीतामढ़ी में जामाता राम के सम्मान में सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। यह दूर दूर तक ख्याति प्राप्त मेला चैत्र की राम नवमीं और जानकी राम की विवाह पंचमी को लगता है। सीतामढ़ी पटना से 105 किलोमीटर दूर है। यहाँ का तापमान मध्य नवम्बर से मध्य फरवरी तक 5 से 15 डिग्री और गर्मी में 35 से 45 डिग्री तापमान रहता है। मध्य जुलाई से अगस्त तक बागमती, लखनदेई और हिमालय से उतरने वाली नदियों की वजह से बाढ़ग्रस्थ रहता है। बाढ़ की विभिषिका को भी ये लोग गाकर हल्का कर लेते हैं। लोक गीतों में जट जटनी, झूमर जैसा है। झझिया मेंं नवरात्र में महिलायें सिर पर घड़ा रख कर नाचती गाती हैं। सोहर , जनेऊ के गीत, स्यामा चकेवा, फाग आदि। नचारी जिसमें शिव चरित्र का वर्णन है, यहाँ गाये जाते हैं।। बापू और चरखा यहाँ के लोक गीतों में भी हैं मसलन ’तीजन तभी मनाएं जब मिले हमें स्वराज’, ’चरखवा चालू रहे मोरा, गांधी बाबा हैं, दुल्हा बने, दुल्हिन बनी सरकार’हैं। विदाई के गीत तो इस फीलिंग से गाये हैं, ऐसे हैं जैसे राजाजनक की चारों बेटियों की बिदाई हो रही हो। सुनकर मैं इमोशनल होकर बोली,’’कितना सुन्दर गाया!!’  जवाब राजा ने गाड़ी रोक कर दिया,’’जानकी का देश है। सीता जी की विदाई पर क्या नाचा जायेगा!!!! कमशः



Tuesday, 15 January 2019

सीतामढ़ी जानकी प्रकटया मंदिर, जानकी पुनौरा धाम मंदिर, जानकी कुण्ड सीतामढ़ी बिहार यात्रा 10, Sitamarhi Bihar Yatra 10 नीलम भागी

 सीतामढ़ी जानकी प्रकटया मंदिर, जानकी पुनौरा धाम मंदिर, जानकी कुण्ड
                                                 नीलम भागी
रात साढ़े सात बजे हम सीतामढ़ी पहुँचे। थाने के सामने हमने गाड़ियाँ रोक दीं। किसी ने अपने स्थानीय मित्र को फोन कर बुलाया कि हमें होटल का इंतजाम कर दें। पास में ही जानकी प्रकट्या मंदिर था। गाड़ी में बैठे ही मैं देख रही थी कि पुलिस वहाँ बहुत घूम रही थी। हम गाड़ी से उतरे और पैदल चल दिये। मंदिर की ओर । सामने ही बापू की संगमरमर की मूर्ति नज़र आई, जिसके साथ रंग खेला गया था। एक दिन पहले ही दुर्गा पूजा में रंग खेला गया था। अब बापू तो बिहार की आत्मा में बसे हैं और आत्मा तो परमात्मा का रूप है शायद इसलिये माँ र्दुगा के साथ, बापू से भी रंग खेला गया था। लगभग सभी के इष्टदेव की वहाँ मूर्तियाँ थी। हमारा सौभाग्य था कि जिस समय हम वहाँ पहुँचे उस समय आरती चल रही थी। मंदिर प्रांगण में लोग बैठे थे। राम और जानकी की मूर्तियाँ सिंहासन पर विराजमान थीं। मैं भी श्रद्धालुओं की भीड़ में जाकर खड़ी होकर सोचने लगी कि जमींन पर बैठूं या न बैठूं क्योंकि डॉक्टर ने मुझे जमींन पर बैठने और पालथी मार कर बैठने को मना किया है। पर उसी समय वहां भीआरती के लिये सब खड़े हुए। समवेत स्वर में सब आरती में लीन थे। श्रद्धालुओ की श्रद्धा से वहाँ एक अलग सा भाव बना हुआ था। ताल के साथ सब ताली बजा रहे थे। मैं भी सबके साथ आरती गाते, ताली बजाते बिना किसी विचार के भगवान के सामने पहुँच गई। आरती खत्म होने पर मेरी तंद्रा टूटी। मेरे आगे आरती का थाल था। मैंने आरती ली। भगवान को देखती रही। धीरे धीरे प्रांगण खाली होने लगा। हम भी चल दिये। यहाँ ठेलों पर जगह जगह लिट्टी चोखा बिक रहा था। हम गाड़ी के पास पहुँचे तीनो ड्राइवर गाड़ियों के पास ही खड़े थे। मैंने उनसे पूछा कि आप दर्शन करने नहीं जाओगे। उन्होंने जवाब दिया कि आपको और सामान को होटल में पहुंचा कर आयेंगे। देर हो गई तो सुबह सुबह दर्शन कर लेंगे। होटल गये खाना खाकर सोने से पहले मोबाइल पर लगी तो इंटरनेट नहीं, जिसके बिना बड़ा अजीब लग रहा था। होटल वाले कह रहे कि यहाँ दंगा हुआ था। इसलिए बस एक बार कनेक्शन लगेगा। आप टी. वी. देखिये न। सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे मेरी इच्छा रामायण पढ़ने की है और कोई मुझे महाभारत पढ़ने को दे, यह कहते हुए कि ये भी तो धार्मिक है। खैर मैं देर से सोने वाली और देर से उठने वाली मैं, उस दिन रात साढ़े नौ बजे सो गई। सुबह तीन बजे मेरी नींद खुल गई। इंटरनेट आ रहा था। मैं उसमें लग गई। पर ये तो मेरा सोने का समय था। पता नहीं मैं फिर कब सो गई। रक्षा जी ने चाय आने पर जगाया। मैं कप उठाये कमरे से बाहर आई। मैं चाय पीती जा रही थी और एक सज्जन मुझे सुबह खाली पेट चाय पीने के नुकसान और खाली पेट पानी पीने के फायदे बताते जा रहे थे। मेरी चाय और उनका व्याख्यान दोनो एक साथ समाप्त हुए। मैं जल्दी से होटल की सबसे ऊँची छत पर चढ़ कर सीतामढ़ी को देखती रही। हमें यहाँ से नौ बजे निकलना था। जब धूप तेज लगने लगी तो नीचे उतरी। तैयार होकर नाश्ते के लिये गये। इतने में सामान गाड़ियों में रक्खा गया। अब हम पुनौरा धाम की ओर चल पड़े। यहाँ दुकानों के नाम जानकी, मां जानकी सीता जी के नाम से थे। मसलन जानकी मिष्ठान भंडार आदि। पुनौरा जानकी मंदिर के दर्शन किये। जानकी कुण्ड देखा। एक सुंदर सी बनी जगह पर लिखे पत्थर को मैं पढ़ नहीं पाई क्या थी क्योंकि उस पर लोगों ने कपड़े सुखा रक्खे थे। जगह जगह बोर्ड लगे थे। उस पर लिखा था कृपया यत्र तत्र थूकिए नहीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि लोगों को यहाँ इतना थूकना क्यों पड़़ता है?