जा
जनकपुर नेपाल के लिये हम जा रहें हैं। मैंने राजा से कहाकि यहाँ का कोई रेडियो या एफ.एम. लगाओ। उसने न जाने कौन सा स्टेशन लगाया पर उसमें तो र्सिफ मशहूरियां ही आ रही थीं, मसलन नामर्दी का इलाज़, निराश न हों अमुक शफा़खाने आएं, निसंतान दंपत्ति मिले। सड़कों पर बच्चे बच्चे देखकर मुझे लगा कि सारे आयुर्वेद विशेषज्ञ इसी रास्ते में ही रहते हैं। और सुनने का मुझमें धैर्य नहीं था। मैंने राजा से रेडियो बंद करने को कहा। उसने मुस्कुराकर तुरंत बंद कर दिया। अब उसने लोकगीत लगा दिये। लोकगीत तो मन के उद्गगार होते हैं इसलिये लोकगीतों की रचना में कोई नियम कायदे नहीं होते हैं। गीतों में ही संस्कृति की झलक थी। दिमाग में पौराणिक सुनी, पढ़ी कथाएं भी चल रहीं हैं। आँखें रास्ते की सुन्दरता, जगह जगह प्राकृतिक पोखरों को देख रहीं है और कच्चे मकानों के छप्पर पर पेंठो से लदी हुई बेलें थीं। वहाँ हो रहे विकास का बालरूप भी देखने को मिल रहा था। उम्मीद है कि ये विकास युवा भी होगा। सीतामढ़ी सांस्कृतिक मिथिला का प्रमुख शहर एवं जिला है। यह हिन्दुओं का बिहार में प्रमुख तीर्थ एवं पर्यटन स्थल है जो लक्षमना(लखनदेई) नदी के तट पर स्थित है।। पुनौरा धाम से हम जनकपुर नेपाल की ओर चल पड़े। जो सीतामढ़ी से 35 किमी. पूरब में एन.एच 104 पर भिट्ठामोड़ भारत नेपाल सीमा पर स्थित है। सीमा खुली है। रामायण काल में मिथिला राज्य का यह महत्वपूर्ण अंग बिहार के उत्तर में गंगा के मैदान में स्थित, यह जिला नेपाल की सीमा से लगा संवेदनशील है। यहाँ की बोली बज्जिका है जो मिथिला और भोजपुरी का मिश्रण है। हिन्दी उर्दू राज काज की भाषा एवं शिक्षा के माध्यम की भाषा है। त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री, भगवान राम की पत्नी की पुनौरा जन्मस्थली है। जनश्रुति के अनुसार एक बार मिथिला में अकाल पड़ गया। पंडितों पुरोहितों के कहने पर राजा जनक ने इंद्र को प्रसन्न करने के लिये हल चलाया। पुनौरा के पास उन्हें भूमि में कन्या रत्न प्राप्त हुआ और साथ ही वर्षा होने लगी। अब भूमिसुता जानकी को वर्षा से बचाने के लिये तुरंत एक मढ़ी का निर्माण किया कर, उसमें सयत्न जानकी को वर्षा पानी से बचाया गया। अब वही जगह सीतामढ़ी के नाम से मशहूर है। प्राचीन काल में यह तिरहूत का अंग था। 1908 तक ये मुज्जफरपुर में ही शामिल था। 11 दिसम्बर 1972 में ये स्वतंत्र जिला बना। विष्णुपुराण के अनुसार पुनौरा ग्राम के पास ही रामायण काल के पुंडरीक ऋषि ने तप किया था। वृहद विष्णुपुराण के अनुसार अवतरण की भूमि के पास ही वे रहते थे। महन्त के प्रथम र्पूवज विरक्त महात्मा और सिद्धपुरूष थे। वहीं उन्होंने तपस्या के लिए आसन लगाया जो उनकी तपोभूमि हो गई। कालान्तर में उनके भक्तों ने उसे मठ बना दिया। अब वह गुरू परम्परा चल रही है। उन्होंने नेपाल जनकपुर से लखनदेई तक की भूमि को जनक की हल भूमि में नापा। ये एक जनश्रुति है । सीतामढ़ी में जामाता राम के सम्मान में सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। यह दूर दूर तक ख्याति प्राप्त मेला चैत्र की राम नवमीं और जानकी राम की विवाह पंचमी को लगता है। सीतामढ़ी पटना से 105 किलोमीटर दूर है। यहाँ का तापमान मध्य नवम्बर से मध्य फरवरी तक 5 से 15 डिग्री और गर्मी में 35 से 45 डिग्री तापमान रहता है। मध्य जुलाई से अगस्त तक बागमती, लखनदेई और हिमालय से उतरने वाली नदियों की वजह से बाढ़ग्रस्थ रहता है। बाढ़ की विभिषिका को भी ये लोग गाकर हल्का कर लेते हैं। लोक गीतों में जट जटनी, झूमर जैसा है। झझिया मेंं नवरात्र में महिलायें सिर पर घड़ा रख कर नाचती गाती हैं। सोहर , जनेऊ के गीत, स्यामा चकेवा, फाग आदि। नचारी जिसमें शिव चरित्र का वर्णन है, यहाँ गाये जाते हैं।। बापू और चरखा यहाँ के लोक गीतों में भी हैं मसलन ’तीजन तभी मनाएं जब मिले हमें स्वराज’, ’चरखवा चालू रहे मोरा, गांधी बाबा हैं, दुल्हा बने, दुल्हिन बनी सरकार’हैं। विदाई के गीत तो इस फीलिंग से गाये हैं, ऐसे हैं जैसे राजाजनक की चारों बेटियों की बिदाई हो रही हो। सुनकर मैं इमोशनल होकर बोली,’’कितना सुन्दर गाया!!’ जवाब राजा ने गाड़ी रोक कर दिया,’’जानकी का देश है। सीता जी की विदाई पर क्या नाचा जायेगा!!!! कमशः
जनकपुर नेपाल के लिये हम जा रहें हैं। मैंने राजा से कहाकि यहाँ का कोई रेडियो या एफ.एम. लगाओ। उसने न जाने कौन सा स्टेशन लगाया पर उसमें तो र्सिफ मशहूरियां ही आ रही थीं, मसलन नामर्दी का इलाज़, निराश न हों अमुक शफा़खाने आएं, निसंतान दंपत्ति मिले। सड़कों पर बच्चे बच्चे देखकर मुझे लगा कि सारे आयुर्वेद विशेषज्ञ इसी रास्ते में ही रहते हैं। और सुनने का मुझमें धैर्य नहीं था। मैंने राजा से रेडियो बंद करने को कहा। उसने मुस्कुराकर तुरंत बंद कर दिया। अब उसने लोकगीत लगा दिये। लोकगीत तो मन के उद्गगार होते हैं इसलिये लोकगीतों की रचना में कोई नियम कायदे नहीं होते हैं। गीतों में ही संस्कृति की झलक थी। दिमाग में पौराणिक सुनी, पढ़ी कथाएं भी चल रहीं हैं। आँखें रास्ते की सुन्दरता, जगह जगह प्राकृतिक पोखरों को देख रहीं है और कच्चे मकानों के छप्पर पर पेंठो से लदी हुई बेलें थीं। वहाँ हो रहे विकास का बालरूप भी देखने को मिल रहा था। उम्मीद है कि ये विकास युवा भी होगा। सीतामढ़ी सांस्कृतिक मिथिला का प्रमुख शहर एवं जिला है। यह हिन्दुओं का बिहार में प्रमुख तीर्थ एवं पर्यटन स्थल है जो लक्षमना(लखनदेई) नदी के तट पर स्थित है।। पुनौरा धाम से हम जनकपुर नेपाल की ओर चल पड़े। जो सीतामढ़ी से 35 किमी. पूरब में एन.एच 104 पर भिट्ठामोड़ भारत नेपाल सीमा पर स्थित है। सीमा खुली है। रामायण काल में मिथिला राज्य का यह महत्वपूर्ण अंग बिहार के उत्तर में गंगा के मैदान में स्थित, यह जिला नेपाल की सीमा से लगा संवेदनशील है। यहाँ की बोली बज्जिका है जो मिथिला और भोजपुरी का मिश्रण है। हिन्दी उर्दू राज काज की भाषा एवं शिक्षा के माध्यम की भाषा है। त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री, भगवान राम की पत्नी की पुनौरा जन्मस्थली है। जनश्रुति के अनुसार एक बार मिथिला में अकाल पड़ गया। पंडितों पुरोहितों के कहने पर राजा जनक ने इंद्र को प्रसन्न करने के लिये हल चलाया। पुनौरा के पास उन्हें भूमि में कन्या रत्न प्राप्त हुआ और साथ ही वर्षा होने लगी। अब भूमिसुता जानकी को वर्षा से बचाने के लिये तुरंत एक मढ़ी का निर्माण किया कर, उसमें सयत्न जानकी को वर्षा पानी से बचाया गया। अब वही जगह सीतामढ़ी के नाम से मशहूर है। प्राचीन काल में यह तिरहूत का अंग था। 1908 तक ये मुज्जफरपुर में ही शामिल था। 11 दिसम्बर 1972 में ये स्वतंत्र जिला बना। विष्णुपुराण के अनुसार पुनौरा ग्राम के पास ही रामायण काल के पुंडरीक ऋषि ने तप किया था। वृहद विष्णुपुराण के अनुसार अवतरण की भूमि के पास ही वे रहते थे। महन्त के प्रथम र्पूवज विरक्त महात्मा और सिद्धपुरूष थे। वहीं उन्होंने तपस्या के लिए आसन लगाया जो उनकी तपोभूमि हो गई। कालान्तर में उनके भक्तों ने उसे मठ बना दिया। अब वह गुरू परम्परा चल रही है। उन्होंने नेपाल जनकपुर से लखनदेई तक की भूमि को जनक की हल भूमि में नापा। ये एक जनश्रुति है । सीतामढ़ी में जामाता राम के सम्मान में सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। यह दूर दूर तक ख्याति प्राप्त मेला चैत्र की राम नवमीं और जानकी राम की विवाह पंचमी को लगता है। सीतामढ़ी पटना से 105 किलोमीटर दूर है। यहाँ का तापमान मध्य नवम्बर से मध्य फरवरी तक 5 से 15 डिग्री और गर्मी में 35 से 45 डिग्री तापमान रहता है। मध्य जुलाई से अगस्त तक बागमती, लखनदेई और हिमालय से उतरने वाली नदियों की वजह से बाढ़ग्रस्थ रहता है। बाढ़ की विभिषिका को भी ये लोग गाकर हल्का कर लेते हैं। लोक गीतों में जट जटनी, झूमर जैसा है। झझिया मेंं नवरात्र में महिलायें सिर पर घड़ा रख कर नाचती गाती हैं। सोहर , जनेऊ के गीत, स्यामा चकेवा, फाग आदि। नचारी जिसमें शिव चरित्र का वर्णन है, यहाँ गाये जाते हैं।। बापू और चरखा यहाँ के लोक गीतों में भी हैं मसलन ’तीजन तभी मनाएं जब मिले हमें स्वराज’, ’चरखवा चालू रहे मोरा, गांधी बाबा हैं, दुल्हा बने, दुल्हिन बनी सरकार’हैं। विदाई के गीत तो इस फीलिंग से गाये हैं, ऐसे हैं जैसे राजाजनक की चारों बेटियों की बिदाई हो रही हो। सुनकर मैं इमोशनल होकर बोली,’’कितना सुन्दर गाया!!’ जवाब राजा ने गाड़ी रोक कर दिया,’’जानकी का देश है। सीता जी की विदाई पर क्या नाचा जायेगा!!!! कमशः