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Tuesday, 2 August 2022

ये देश हमारा प्यारा, हिन्दुस्तान जहां से न्यारा!! उत्सव मंथन अगस्त नीलम भागी

 


ये देश हमारा प्यारा, हिन्दुस्तान जहां से न्यारा!! उत्सव मंथन अगस्त  नीलम भागी  

 



कहते हैं कि पुरानी बातों को करने का नशा होता है और मित्र के बिना तो जीवन अधूरा सा लगता है। कितने भी व्यस्त हों पर सब मित्रों के लिए समय निकाल ही लेते हैं इसलिए अगस्त के पहले रविवार को अर्न्तराष्ट्रीय मित्र दिवस मनाया जाता है।

   नाग को हमारे यहां देवता की तरह पूजा जाता है। नागपंचमी(2 अगस्त) पर इनकी पूजा का विशेष दिन होता है। हमारे पूर्वजों ने इनकी पूजा करके हमें बताया है कि सभी सांप जहरीले नहीं होते हैं। इनको देखते ही मारना नहीं चाहिए। इनका मुख्य भोजन चूहे हैं और चूहे अनाज को नष्ट करते हैं।     

 गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सावन महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था। इस वर्ष 4 अगस्त को उनकी 525वीं जयंती है। इनके द्वारा रचित श्री रामचरितमानस और हनुमान चालीसा को घर में रखना शुभ मानते हैं। तुलसी जयंती को देश भर में संगोष्ठी और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं। 

  प्रधानमंत्री मोदी जी ने 7 अगस्त 2015 को चेन्नई में कॉलेज ऑफ मद्रास के शताब्दी कोरीडोर पर एक कार्यक्रम में इस दिन को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस घोषित किया। 7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन ने घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने और स्वदेशी उद्योगों की भावनाओं को लोगों में जगाने का काम किया था। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में हथकरघा बुनकरों ने अहम भूमिका निभाई थी। हैडलूम उद्योग भारत की सांस्कृतिक विरासत में से एक है। इस उद्योग में 70ः महिलाएं हैं। प्राचीनकाल से यह आजीविका का साधन है। असम में हथकरघे का काम तो प्रत्येक घर में होता है। लोग बहुत र्कमठ हैं। महिलाएं कुछ ज्यादा ही मेहनती हैं खेती के साथ, कपड़ा भी बुनती हैं। पुरुष गले में गमछा जरुर डालते हैं। कंगाली बिहू सादगी से मनाया जाता हैं तब भी भेंट में गमछा देते हैं। हमें भी राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर सूती हैंडलूम के कपड़े पहनने चाहिए। इस ह्यूमिडिटी वाले मौसम में पहनते ही अंतर पता चल जायेगा और फिर इस मौसम में तो आपकी पहली पसंद हैंडलूम वस्त्र बन जायेगा। 

 सावन के सोमवार को तो शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। 8 अगस्त को सावन का चौथा सोमवार है।

   भाई बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन सावन मास की पूर्णिमा को (इस वर्ष 11 अगस्त) को मनाया जाता है। भगवान कृष्ण ने जब शिशुपाल का वध किया था तो उनकी अंगुली से रक्त बहता देखकर द्रोपदी ने अपनी साड़ी चीर कर उसका टुकड़ा उनकी अंगुली पर बांधा था। तभी से रक्षा बंधन मनाने की परंपरा है। इतिहास में भी कई कहानियां हैं। रक्षा बंधन मनाने के पीछे हमारे पूर्वजों की बहुत प्यारी सोच है। गांव की बेटी दूसरे गांव में ब्याही जाती है। उसके सुख दुख की खबर भी रखनी है। माता पिता सदा तो रहते नहीं हैं। उनके बाद भाई बहन की सुध लेता रहे। इस त्यौहार पर भाई के घर बहन आती है या भाई, बहन के घर राखी बंधवाने जाता है। बहन भाई का यह उत्सव परिवारिक मिलन है।

 राष्ट्रीय त्यौहार 15 अगस्त भारतवासी कहीं भी हों धूमधाम से मनाते हैं। राष्ट्रपति और प्रधान मंत्री देश को संबोधन करते हैं। भारतवासी अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना के साथ स्वतन्त्रता दिवस मनाता है।

  कान्हा के जन्म (18 अगस्त) की खुशी हम ऐसे मनाते हैं जैसे परिवार में बालक का जन्म हो। दुबई से उत्कर्षिनी ने फोन किया,’’आप भारत से आते समय मेरी जर्मन मकान मालकिन के लिए मुरली ले आना वह प्रोफैशनल बांसुरी वादक है।’ दो मुरली लेकर मैं कात्या मुले के घर गई। उसके वैभवशाली ड्रांइगरुम में मुरलीधर विराजमान थे। मैंने कान्हा के चरणों में मुरलियाँ अर्पित कर दी और कात्या मुले से कहा,’’आज इनका हैप्पी बर्थ डे है।’’उसने चहक कर पूछा,’’कैसे सैलिब्रेट करते हैं?’’मैंने कहा,’’ नहा कर, इनके आगे घी का दीपक जलाते हैं।’’ उसने तपाक से पूछा,’’घी क्या होता है?’’ मैंने जीनियस की अदा से उसे समझाया कि दूध उबाल कर, उसे जमाकर ,दही बिलोकर, मक्खन निकाल कर, उसे पिघला कर, घी बनाते हैं। उसने इस सारे प्रौसेस को बहुत ध्यान से सुना। मैं घर आ गई। उसका जन्माष्टमी का बुलावा आया। मैं पहुँची। मूर्ति के आगे, कटोरी में दीपक, ताजे फूल सजे थे। उससे दीपक जलवाया। मैंने गणेश वन्दना कर, उसके हाथ में बांसुरी दी। उसने धुन छेड़ी। सामने मैं बैठ गई। वो आँखें बंद कर बजाने में तल्लीन थी। 

दक्षिण में दहीं हांडी तोड़ने आये गोविंदा टीम कई दिन तक प्रैक्टिस करके आते हैं। अलग अलग स्थानों में लगभग आठ दिन तक चलता है। 

जीवन के खास पलों को तस्वीरों में कैद कर उन्हें हम उन्हें यादगार बनाते हैं और उन्हें सांझा करते हैं। 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी का थीम है ’’लैंस के माध्यम से महामारी लॉकडाउन’’।

कटरा से लगभग तीन किमी़ की दूरी पर सड़क पर ही चामुण्डा देवी मंदिर के अन्दर से थोड़ा सा चलने पर प्राचीन स्थान गोगा वीर जी का है। यह देख मैं हैरान! अलग से भी प्रवेश द्वार है पता चला कि इनकी पूजा हर मजहब में होती है। लोक देवता गोगा वीर जी, गुरु गोरखनाथ के परमशिष्य थे। इन्हें हिन्दु और मुसलमान मानते हैं। वे इन्हें जहरवीर गोगा पीर कहते हैं।

 कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन गुग्गा नवमीं पर गोगा वीर जी की विशेष  पूजा की जाती है। 

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि( 30 अगस्त) को सौभाग्यवती महिलाओं का त्यौहार हरितालिका तीज व्रत है। व्रती महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए शिव पार्वती की पूजा करतीं हैं।

30 अगस्त को लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए वार्षिक उत्सव मनाया जाता है जिसे राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस कहते हैं।

अरुणा ने चहकते हुए घर में कदम रक्खा और बताया,’’दीदी मेरे बेटे ने कहा कि इस गणपति पर वह मुझे सोने की चेन लेकर देगा।’’मैंने पूछा कि तेरे बेटे की बढ़िया नौकरी लग गई हेै क्या? वो बोली,’’नहीं दीदी, मेरा बेटा बहुत अच्छा ढोल बजाता है। बप्पा को ढोल, नगाड़े बजाते, नाचते हुए लाते हैं  और ऐसे ही विसर्जन के लिए ले जाते हैं। इन दिनों बेटे की सूरत भी बड़ी मुश्किल से देखने को मिलती है पर गणपति बप्पा उस पर बड़ी मेहरबानी करते हैं।’’

      और बिना मेरे कहे गाते हुए ’सजा दो घर को दुल्हन सा, गजानन  घर में आएंगे।’’ घर का कोना कोना चमकाने लगी। मेरे मन में बड़ा उत्साह था कि मैं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा रोपा पौधा सार्वजनिक गणेश उत्सव, जो आज देश का विशाल वट वृक्ष बन गया है उसे मुम्बई में मनाउंगी। तिलक ने हमारे अग्रपूज्य, दक्षिण भारत के कला शिरोमणि गणपति को, 1893 में पेशवाओं के पूज्यदेव गजानन को बाहर आंगन में विराजमान किया था। आम आदमी ने भी, छुआछूत का भेद न मानते हुए पूजा अर्चना की, सबने दर्शन किए। उस समय का उनका शुरु किया गणेशोत्सव, राष्टीªय एकता का प्रतीक बना, जिसने समाज को संगठित किया। आज यह पारिवारिक उत्सव, समुदायिक त्योहार बन गया है।

इन दिनों अस्थाई दुकानों में बरसात से बचाते हुए, हर साइज के गणपति मूर्तिकारों ने सजाए हुए हैं। 

   सोसाइटी में गणपति के लिए वाटर प्रूफ मंदिर बनाया, स्टेज़ बनाई गई और बैठने की व्यवस्था की गई। सभी फ्लैट्स में गणेश चतुर्थी से अनंत चतुदर्शी तक होने वाले बौद्धिक भाषण, कविता पाठ, शास़्त्रीय नृत्य, भक्ति गीत, संगीत समारोह, लोक नृत्य के कार्यक्रमों की समय सूची पहुंच गई। सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मैं सूची पढ़ती जा रही और अपनी कल्पना में, मैं तिलक की आजादी की लड़ाई से इसे जोड़ती जा रही थी। इनके द्वारा ही समाज संगठित हो रहा था, आम आदमी का ज्ञान वर्धन हो रहा था और छुआछूत का विरोध हो रहा था। 

   गणेश चतुर्थी की पूर्व संध्या को सब तैयार होकर गणपति के स्वागत में सोसाइटी के गेट पर खड़े हो गए। ढोल नगाड़े बज रहे थे और सब नाच रहे थे। गणपति को पण्डाल में ले गए। अब सबने जम कर नाच नाच कर, उनके आने की खुशी मनाई। 31 अगस्त से 10 दिन तक चलने वाला गणेशोत्सव शुरु होता है।  

नीलम भागी(लेखिका, जर्नलिस्ट, टैªवलर, ब्लॉगर)


Thursday, 24 January 2019

इसकी शान ना जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए नीलम भागी Ye Desh Hamara Pyara Hindustan Jahan Se Nyara Neelam Bhagi

 



 

 मैं नौएडा की बांस  बल्ली मार्किट से मैट्रो स्टेशन की ओर जा रही थी। मेरे दाएं ओर सड़क के पार अस्थायी दुकानों में बिकने के लिये अनगिनत तिरंगे लहरा रहे थे। भीड़ बहुत थी इसलिये मैं वहाँ से तस्वीर नहीं ले पा रही थी। मैंने ऑटो का बिल चुका कर, सड़क पार की। सड़क पर आगे अस्थाई दुकाने और पीछे दोनो ओर झुग्गियां हैं। मैं ये देख कर हैरान की जाम न लग जाये इसलिये शेयरिंग ऑटोवाले ऑटो रोकते, बिना गाड़ी से उतरे, बिना दाम पूछे, जल्दी से पैसे देते तिरंगा लेते और चल पड़ते। जो दाम पूछते वे नहीं लेते और ये कहते हुए जाते कि भाई सवारी मिलती रही तो शाम तक यही वाला झण्डा लूंगा। सड़क पार एक ऑटो वाला ऑटो स्लो करके जोर से दहाड़ा,’’अरे मेरा झण्डा नहीं लाया न।’’दुकानदार ने भी फुल वॉल्यूम में जवाब दिया,’’जनाब, बहुत मंहगा है। रेट सुनकर आपको बहुत जोर का झटका लगेगा।’’वो जवाब में बोला,’’रेट तो मेरी जेब से जायेगा न, तुझे काहे का रोना।’’ मैंने उसे रूकने का इशारा किया, वह रूका और उसने पूछा,’’कहाँ जाना है?’’ मैंने कहा कि मैट्रो स्टेशन। सवारियों से भरे हुए ऑटो में उसने सीट पर बैठे बच्चे को मां की गोद में बिठवाया। सवारियों को आगे पीछे खिस्कवा कर , तीन के बैठने की जगह में चौथी मुझे सीट पर बिठवाया। मैं भी पचास प्रतिशत कूल्हे सीट पर टिका कर, ऑटो को पकड़ कर हवा में लटक गई। उसका गाड़ी चलाते हुए व्याख्यान साथ साथ  चलता जा रहा था कि बस ये सवारियां उतरने ही वाली हैं। सवारियां उतरती जा रहीं थीं और उसे दस रूपये देती जा रहीं थी। आराम से बैठने की जगह होते ही मैंने उसका नाम पूछा, उसने अपना नाम पुरषोत्तम बताया। मैंने उस पर अगला प्रश्न दागा,’’तुम्हें कैसा झण्डा चाहिए?’’उसने जवाब दिया,’’मैडम जी, झण्डा तो तिरंगा ही होता है। पर मुझे तो बड़ा और ऊँचा चाहिये। ताकि दूर से पता चले कि पुरषोत्तम का झण्डा सबसे ऊँचा है।’’और शुर्तुगर्मुग की तरह गर्दन को आगे पीछे करके गाता जा रहा था ’झण्डा ऊंचा रहे हमारा।’ इतने में चार छात्र उतरें, उन्होंने उसे पाँच पाँच के सिक्के दिए। मैंने कहाकि ये ज्यादा दूर तक आयें हैं, इनसे तुमने पाँच रूपये लिये हैं। वह बोला,’’हमने नेताओं की तरह प्रचार नहीं किया है। जब किराया पाँच से दस रूपया हुआ तो अगले दिन स्कूलों के बच्चों ने पाँच रूपये पकड़ाये हमने कुछ नहीं कहा, चुपचाप रख लिये। सभी ऐसा ही करते हैं। हम सब ये सोच लेते हैं कि इनके माँ बाप पढ़ाई पर भी तो खर्च करते हैं। किराया बढ़ गया तो इनकी पढ़ाई न छूट जाये इसलिये रख लेते हैं।’’ सुन कर मैं हैरान!! फिर मैंने पूछा,’कल तो 15 अगस्त है। दुकानदार तुम्हारा झण्डा मंगा देगा!!’’उसने कहा कि उसे शक है कि यदि मैं नहीं खरीदूंगा तो वो 26 जनवरी तक झण्डा कहाँ झुग्गी में संभालेगा? चूहे काट देंगे न। मैं लौटते हुए उसे एडवांस दे दूंगा। फिर तो उसे लाना ही पड़ेगा।’’स्टेशन आते ही मैं उतर गई। मेट्रो स्टेशन की ओर जा रही हूं और ज़हन में दादी आ रही है। मेरी दादी मलिका ए तरन्नुम नूरजहाँ का हमजोली(1946) फिल्म का गाना, हमें सिखाती थी। मैं चलती जा रहीं हूं और मन में उस देशभक्ति के गीत को गुनगुनाती जा रहीं हूं-
ये देश हमारा प्यारा, हिन्दुस्तान जहाँ से न्यारा।
 हिन्दुस्तान के हम हैं प्यारे, हिन्दुस्तान हमारा प्यारा। यें......
जाग उठें हैं हिंद के वासी, हम ये जग जाहिर कर देंगे।
वक्त पड़ा तो देश पर अपनी, जान न्यौछावर कर देंगे।  ये......
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कल मेरे साथ शाश्वत, अदम्य  जा रहे थे। सड़क किनारे जहां तिरंगे बिकते देखते दोनों "भारत माता की जय" जयकार करने लगते।😀