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Wednesday, 4 December 2019

ख़्वाब में झूठ क्या! और भला सच है क्या? हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 5 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 5 Neelam Bhagi नीलम भागी


सरोजा का अब एक ही सपना था, सुन्दर सी गोरी चिट्टी बहू और प्यारे प्यारे पोते। अपने ख्वाब को हकीकत में बदलने में वो जी जान से लगी हुई थी। किसी के घर से उसे जो भी मिलता, वो ले लेती। सामान तो रास्ते में ही कबाड़ी को बेच कर रुपये अंटी में कर लेती थी। कपड़े वगैरहा संभाल लेती थी। साल में दो बार सर्दी और गर्मी की छुट्टी में दस दस दिन के लिए गांव जरुर जाती। बाकि दिन वह कभी नागा नहीं करती थी। इसलिए उसकी मैडम लोग मैनेज़ कर लेतीं थीं। उसकी पांचों घरों की मैडम नौकरी वालीं थीं। गांव में उसका अपना मकान था। जिसको उसने रहने लायक कर रक्खा था। जब झोपड़ पट्टी में रहती थी तब सोचती थी कि बुढ़ापे में जाकर वहाँ रहेगी। अब शहर में मकान और रोजगार होने पर भी  इस उम्मीद से आती थी कि परशोतम का रिश्ता अच्छा हो जायेगा। परशोतम को शहर से भी रिश्ता आता था पर सरोजा का मानना था कि दिल्ली की लड़की को काम करने की आदत नहीं होती। भला घर का काम भी कोई काम है। छोटे छोटे घर में सफाई कित्ती! चौका बर्तन और कपड़े धो लिए बस। और गांव की लड़की सारा दिन खेत में काम, पशुओं का काम, घर का काम तो करना ही है। उसे काम करने की आदत होती है यानी काम करने की मशीन होती है। गांव जाते समय परशोतम के कपड़े, जूते, कच्छे बनियान तक नये होते थे। साथ में मैडम लोगों के घर सें  मिले कपड़ों के गठ्ठर ले जाती। दस दिन तक वह वहाँ कोई काम नहीं करती थी। सामने दूहा दूध, वहां पैदा होने वाली ताजी़ फल सब्जियां नगद पैसा देकर लेती थी। अच्छा खाती, अच्छा पहनती, सब उससे मिलने आते या वह जाती, जो भी उसे बुलाने जाता उसके घर जरूर जाती। अच्छी तरह ड्रैसअप होकर हैंडसम परशोतम सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा लगाये गाने सुनता रहता था। जो भी उसका काम करता उसे वह कपड़ा देती। सबसे कहती कि वो तो शहर में परशोतम की शादी तक है। उसका घर बसा कर, वह वापिस गांव में अपने लोगों के बीच में रहेगी। रहने को घर ऊपर से चार किराये और मौके का मकान है ,जिसकी कीमत अनमोल है। फिर गला भर कर नाक सुनक कर कहती,’’ बंसी की किस्मत में सुख नहीं था, उन्हेें जल्दी भगवान ने बुला लिया। परशोतम के दुख में वे चले गये। जिन्दा रहते तो देखते भगवान ने जे उसको आंख न दी तो नसीब ऐसा दिया है कि उसे काम करने की जरुरत ही न।’’ साथ ही बोलती,’’ परशोतम की शादी में मैं न कुछ दूंगी न कुछ लूंगी बस लड़की सुन्दर चाहिए।’’ उसके ठाठ देख कर शुरु शुरु में किसी ने कहा कि हमारे छोरा को ले जाकर किसी काम धंधे में लगा दो न दिल्ली में।’’ उसने दो टूक जवाब देते हुए कहा,’’हमारे यहाँ अंग्रेजी पखाना है। जिसे हमें खुद ही साफ करना पड़ता है। तुम हो जमीन पे हगने वाले, वहाँ जंगल दिशा के लिए कोई मैदान जगह नहीं है। हम न किसी का पॉट साफ करते न करवाते।’’ फिर लोगों ने कहना ही बंद कर दिया। लौटते समय अपने कपड़े भी दे आती। उसकी सूझ बूझ रंग लाई। एक खूबसूरत बेटी के गरीब पिता ने ये सोच कर कि उसकी बेटी चांदनी और उसके होने वाले बच्चों को दो वक्त की भर पेट रोटी मिलेगी। चांदनी का विवाह परशोतम से कर दिया। चांदनी सरोजा के घर में आई और उसकी सुन्दरता की चर्चा बाहर आई।   क्रमशः           

3 comments:

Neelam Bhagi said...

आंचलिक पुट के साथ ऊत्तम लेखन🙏🙏

Pushkar Rana said...

Ati sundar varnan

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद