Search This Blog

Showing posts with label # LADDU GOPAL. Show all posts
Showing posts with label # LADDU GOPAL. Show all posts

Sunday, 14 November 2021

लड्डू गोपाल संग 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 32 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

सारस्वत ब्राह्मण धर्मशाला पहुंचते ही सबसे पहले हॉल में गई जहां जलवाले गुरु जी का सत्संग चल रहा था। मेरे पहुंचते ही समापन पर था। उन्होंने सबको प्रशाद लेने के लिए कहा और सत्संग का समापन किया। हॉल से बाहर जाकर देखती हूं, वहां ऐसा लग रहा था मानों कोई साप्ताहिक बाजार लगा हो। स्वरोजगार करने वाले, अपनी बाइक पर सामान लगा कर बेच रहें हैं। अब घर ही तो जाना है, खूब जम कर खरीदारी हो रही थी। बेचने वालों के भी चेहरे खिले हुए और खरीदने वाले भी बहुत खुश थे। जिनके उपहार के लिए खरीदारी की जा रही थी, वे अपनों द्वारा गिफ्ट मिलने पर खुश होगें यानि घर में भी खुशी का माहौल होगा।


इस यात्रा से सभी को कुछ न कुछ मिला है। कुछ बता सकते है, कुछ महसूस कर सकते हैं। रानी हमेशा की तरह कहने आई,’’दीदी, प्रशाद खाने चलो।’’ प्रशाद में सीताफल और आलू की लजीज़ सब्जी़, खीर और गर्मागर्म पूरी थी। खाने के बाद मैं घूम रही थी। बारांडो में कहीं कहीं कुर्सियों के साथ चारपाइयां भी रखीं थीं। एक महिला लेटी थी, जगह देख कर मैं उसके पास बैठ गई। उसने खिसक कर मुझे भी लेटने की जगह दे दी। मैं भी लेट गई। कुर्सियों पर बैठी महिलाओं ने कुर्सियां मेरे पास कर लीं। एक महिला बड़े प्यार से बोली,’’दीदी, आपको वैष्णों देवी ने दर्शन पता है, क्यों नहीं दिए!!’’ मैंने कहा," नहीं।"  तो उसने खुद ही जवाब दिया,’’आपने सब देवियों के नंगे सिर दर्शन किए हैं इसलिए। हमने सोचा था कि आपको टोक दें फिर इसलिए नहीं टोका कि कहीं आप बुरा न मान जाओ।" मैंने उन्हें जबाब दिया कि आप टोक कर तो देखतीं। ये सुन कर उन्होंने मुझे सांत्वना देते हुए कहा कि कोई बात नहीं, मइया आपको फिर बुलाएगी। मेरे भवन पर न जा पाने से ये सब कितनी दुखी थीं!! मैं यात्रा में कम से कम सामान रखती हूं क्योंकि उठाना तो मुझे ही है इसलिए जिंस कुर्ते ले कर जाती हूं। उनसे बात करते करते मैं सो गई। बस चलने से पहले ओमपाल सिंह मुझे बुलाने आए। सब सवारियों के आने पर जलवाले गुरु जी ने चलने का आदेश दिया। बसें चल पड़ी। अब ढोलक नहीं बजी। वैसे ही अशोक भाटी ने सबको जल और मेवे का प्रशाद दिया। जितना मेवा बचा था, वह फिर से दिया। बस में नाचना गाना हंसी मज़ाक सब बंद।  ये देख, मुझे जसोला की उषा जी की बड़ी सरलता से कही बात याद आई, ’दीदी अब घर जायेंगे तो ऐसा लगेगा जैसे दिल में कुछ टूट सा गया है।’ सब चुप हैं। चाय पानी के लिए एक जगह बस रुकी। हमेशा की तरह सेवादार ने सीटी बजाई। सीटी बजते ही हमेशा सब बस में चढ़ जाते थे। पर आज वही सीटी की आवाज सुन कर, कुछ महिलाएं बड़बड़ाती हुई चढ़ी’’जब भी हम नीचे उतरें, ये धूतारा बजा देवे’’। ’धूतारा’ शब्द मैंने पहली बार सुना था। उषा जी से मतलब पूछा तो उन्होंने बताया ’सीटी’। सब उदास थे, बस सामने विराजमान हमेशा की तरह लड्डू गोपाल, मुस्कुराते हुए सबको देख रहे थे। 
   जाते समय की मुझे यादें आ रही हैं। सलारपुर की श्वेता जब बस रुकती, कहीं भी जाते वह बोनट से लड्डू गोपाल लेकर उतरती, बस में आते ही वहीं उन्हें बिठाती। रात में लड्डू गोपाल से सोने को कहती और उनको डोली में लिटा देती। मैंने उषा जी से पूछा कि ये लड्डू गोपाल को साथ में क्यों लाई है? उन्होंने बताया कि लड्डू गोपाल को बालक की तरह रखते हैं। जैसे तुम घूमने आये हो तो बालक को घर में अकेला छोड कर आओगे!! नहीं न, ये भी तो बालक हैं, लड्डू गोपाल भी घूमने आए हैं। 




याद आया गौतम नाच रहे थे उसकी पत्नी कुसुम को भी बस में उसके साथ नाचने को उठा दिया। वह घूंघट निकाल कर नाचने लगी। अशोक भाटी विडियो बना रहे थे। मैंने उषा जी से कहा,’’विडियों में कुसुम की शकल तो नहीं दिखाई देगी।’’वे बोलीं,’’अशोक भाटी, गौतम के मामा हैं। इसके मामा ससुर लगे न, सबके बहुत कहने पर भजन पर नाच रही है।’’ देख भी रही हूं याद भी आ रहा है जाने और आने का फर्क। नौएडा आते ही जिसको जहां पास पड़ रहा है, वहां उतारा जा रहा है। मुझे नहीं याद कहां, बस रुकते ही संदीप शर्मा ने ऑटो का भाड़ा तय करके मेरा लगेज़ भी रख दिया। मैं अपने घर पहुुंच गई।    ़        

 मैं तो लिखते हुए फिर से यात्रा का आनन्द उठा रही थी। ये मेरी कोरोना महाकाल के बाद पहली यात्रा थी। अब जो यात्रा करुंगी आपके साथ शेयर करुंगी।  समाप्त