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Wednesday 3 November 2021

श्री कालिका मंदिर कटड़ा 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 26 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

 

अब मैं श्री कालिका मंदिर कटड़ा की ओर चल दी। इस मंदिर का परिसर बहुत बड़ा है।  इसे इस्कॉन मंदिर भी कहते हैं। मां कालिका का दर्शन करके इस्कॉन भवन में गई।


वहां मुझे इस्कॉन भागवत गीता दी गई।

बाहर आते हुए, यहां अशोक मुझे हंसते हुए कालिका मंदिर की ओर हाथ जोड़ कर बताने लगा,’’ये माता रानी को यहीं रहना है, यही जगह पसंद है। जबकि इनके पास जगह की कोई कमी नहीं है।’’ यह कह कर अशोक अपने ऑटो की ओर चल दिया मैं कालिका मंदिर के आगे सीढ़ी पर कुछ देर बैठी रही

फिर एकदम याद आया कि अशोक को कैसे पता कि देवी माता को यही जगह पसंद है।’’मैं पूछती हूं। बाहर आकर सामने देखा तो त्रिकुट पर्वत, जहां वैष्णों मां की गुफा है। जिस पर भवन का रास्ता नीली लाइनों में नज़र आ रहा था। मां के दर्शनों की भूखी मैं, भुख्णों की तरह एकटक त्रिकुट पर्वत को ही देखती रही। वहां से गुजरने वाले एक आदमी ने कहाकि आप सामने उस बिल्डिंग की छत पर जाकर देखो, वहां से और भी ज्यादा अच्छा दिखेगा। मैं अब छत पर चली गई। वहां से कटड़ा और त्रिकुट पर्वत को देखती रही।



फिर दिल में वही तकलीफ़ कि मैं भवन नहीं जा पाई। अब अपने आप से ही डिबेट करने लगी कि समय तो मेरे पास उतना ही है। फिर मैं भी और भक्तों की तरह दरबार से आती, आराम करती और वापिस। पर मैं तो ग्रुप के साथ आई हूं। जो लोग परिवार या दोस्तों के साथ आए हैं, वे भी तो माता वैष्णों के दर्शन करके आने के बाद उसी दिन या अगले दिन वापिस लौटतें हैं। आज मुझे पता चला था कि कटड़ा और उसके आस पास कितने दर्शनीय स्थल हैं!! #पटनी टॉप में तो मौसम में स्नो फॉल भी होता है। #सजर बाबा का वाटर फाल आदि जहां मैं जा ही नहीं पाई। अगर हैलीकॉप्टर चलता तो मैं वैष्णों देवी के दर्शन के बाद, जिन दर्शनीय स्थलों पर जाने से मैंने प्राकृतिक सौन्दर्य को विस्मय विमुग्ध होकर देखा है, वो सब देख पाती भला! न न न। माता रानी के दर्शन कर लेती तो शायद दोबारा यहां न आती। फिर सोचा

  मैं कौन सा मरने वाली हूं!! अब माता रानी जब दर्शनों के लिए बुलायेगी तो थोड़ा समय, ज्यादा लेकर आउंगी ताकि भवन पर पहली बार जाने के बाद, यहां दोबारा आने का आनन्द उठाउं। मन शांत हो गया। अब अच्छी तरह कटड़ा से परिचय करते हुए भूमिका मंदिर की ओर जा रहें हैं। घने बाजारों से होते हुए जा रहे हैं। बीच में ही शालीमार बाग है। ड्राइफ्रूट्स की खूब दुकाने हैं। अखरोट सबसे ज्यादा भरे हुए हैं। शॉपिंग खूब हो रही थी। मुझे बहुत नसीहत दी गई थी कि अखरोट ध्यान से खरीदना। उनकी दुकान पर उनसे अखरोट मुट्ठी में दबाने से टूट जाते हैं। और गिरी पूरी निकलती है। वही अखरोट यहां आने पर हथोड़े से तोड़ने पड़ते हैं। गिरी भी उनमें फंसी रह जाती है। अशोक ने बताया कि जैसे दो सौ रुपये किलो से लेकर चार सौ रु किलो तक अखरोट हैं। सभी नहीं, कोई कोई दुकान वाला अपनी जेब में मंहगे अखरोट रखता है। आपने सस्ता मांगा। वह दिखाते समय आप से बात करते हुए जेब वाले निकाल कर आपको मुट्ठी में दबा कर तोड़ कर दिखायेगा। आप पूछोगे कि फिर दोनों के रेट में फर्क क्यों है? वो कहेगा कि ये एक साल पुराने हैं। इन्हे ज्यादा से ज्यादा दो महीने रख सकते हो। रेट का अंतर देख आप तुरंत ये सोच कर ले लोगे कि खाने और गिफ्ट करने के बाद कहां इतने दिन तक रखें जायेंगे!! और उनके बिक जायेंगे। हमारी बसों में आने वाले कई यात्री दुकानों के नाम लिख कर लाए थे कि उनसे ही लेंगे उनके अखरोट कभी शिकायत का मौका नहीं देते। मुझे तो कटरे में पूरा हिन्दुस्तान नज़र आ रहा था क्योंकि देश के कोने कोने से आए श्रद्धालू जो यहां थे। और हम भूमिका मंदिर पहुंच गए। क्रमशः