यहां पास ही विश्राम घाट है। कहते हैं कंस को मार कर वहां भगवान ने विश्राम किया था। अब यहां साधू संत विश्राम करते हैं। इसके आस पास कम रेट की धर्मशालाएं हैं। यमुना जी का मंदिर है। सुबह शाम को उनकी आरती में शामिल होना, अलग सा भाव पैदा करता है। यहां यमुना जी का बहुत महत्व है। बेटा पैदा होने पर यमुना पूजन होता है। यदि पुत्रवती महिला देश विदेश में कहीं भी हो, जब भी वह मथुरा, अपने परिवार में आती है। उसे सोलह श्रंृगार करा कर एक हाथ उसका सास पकड़ती है। दूसरा हाथ कोई परिवार की बुजुर्ग महिला थाम कर, बाजे गाजे के साथ सब आते हैं, यमुना जी की पूजा करने के लिए और फिर घर लौट कर दावत की जाती है। उपहारों का लेन देन होता है।
यम द्वितीया का त्यौहर, जो भाई दूज कहलाता है। यहां बहन भाई यमुना जी में नहा कर मनाते हैं। कहते हैं कि जो इस दिन यमुनाजी में स्नान करता है, उसे यमपुरी नहीं जाना पड़ता अर्थात मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इसके बारे में एक कथा प्रचलित है। सूयदेव की पत्नी संज्ञा की दो संताने यमी और यमुना का जन्म हुआ। संज्ञा सूर्य के ताप न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव में छाया बन कर रहने लगी। छाया की दो संताने ताप्ती नदी, शनिचर देव का जन्म हुआ। इधर छाया का व्यवहार यम और यमुना से विमाता की तरह होने लगा। इससे खिन्न होकर यम ने अपनी नगरी यमपुरी बसा ली। वहां वह पापियों को दण्ड देने का काम करते थे। यमराज का ये काम यमुना को न अच्छा लगता। वह गोलोक चली गईं। यमराज और यमुना में बहुत स्नेह था। यमुना जी उन्हें बार बार आने का निमन्त्रण देतीं, पर काम में बहुत व्यस्त होने के कारण वे बहन का निमंत्रण स्वीकार नहीं कर सके। अचानक एक दिन उन्हें बहन की बहुत याद आई। उन्होंने यमुना जी को ढूंढने के लिए दूतों भेजा, वे पता नहीं लगा पाए। फिर वे स्वयं ढूंढने आए। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया को विश्राम घाट पर यमराज और यमुना का मिलन हुआ था। यमुना जी भाई को मिल कर बहुत प्रसन्न हुईं। उनका अत्यंत सत्कार किया। उनके लिए स्वयं भोजन बनाया। यमराज बहन के व्यवहार से प्रसन्न होकर बोले कि वह उनसे कोई भी वरदान मांगे। यमुना जी ने छूटते ही मांगा कि जो नर नारी उनके जल में स्नान करें, वे यमपुरी न जाएं। सुनकर यमराज सोच में पड़ गये कि ऐसे तो यमपुरी का महत्व ही खत्म हो जायेगा। भाई को सोच विचार में पड़ते देख, यमुना जी बोली,’’नहीं नहीं, जो बहन भाई आज के दिन यहां स्नान करेंगे या आज के दिन भाई, बहन के घर जाकर भोजन करेगा, उसे यमपुरी न जाना पड़े। यमराज तुरंत प्रसन्न होकर बोले,’’ठीक है, ऐसा ही होगा।’’कहते हैं कि विवाह के बाद कृष्ण भी पहली बार सुभद्रा से यहीं मिले थे। यम द्वितीया भाई बहन का त्यौहार भइया दूज कहलाता है। भाई बहन के घर जाता है। बहन भाई का खूब आदर सत्कार करती है। भोजन कराती है। भाई बहन को उपहार देता है। पिछली तीन दिन की यात्रा में पण्डों से सुनी कहानियां दिमाग में छपी हैं। तस्वीरें भी दिल में बनी हुई हैं। अपनी धार्मिक यात्रा में मुझे उन स्थानों की कहानियां स्थानीय लोगों से सुननी, बहुत अच्छी लगती हैं। क्रमशः ं