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Saturday 9 February 2019

मैं जहाँ भी रहूँगी, बसंत न आने दूँगी ! नीलम भागी Autum will never set foot in my garden! Greens will Spring always Neelam Bhagi


ये जो मेरे चेहरे पर कोमलता है, वह किसी फेस क्रीम की वजह से नहीं है। वह है मेरे फूलों के प्रति प्रेम के कारण, मुझेे ऐसा लगता है। अब देखिए न, वर्षों से मेरी आदत थी, मैं सुबह सैर करने जाती और पार्कां से फूल तोड़ लाती। इन फूलों को घर सजाने या बालों में लगाने के लिए नहीं, बल्कि उनका उपयोग पूजा में करने के लिए लाती। कुछ और लोगों में भी मेरे जैसी आदत है वे लोग मुझसे पहले फूल न तोड़ लें, इसलिए मैं सुबह बहुत जल्दी जाती, रास्ते में कहीं भी फूल देखते ही मैं उन्हें तोड़ लेती। मैं 101 ताजे फूलों से पूजा करती हूँ। जैसे मुझे 101 बार राम-राम या ओइम् नमो शिवायः बोलना है तो, गिनती गलत न हो जाए; मैं एक-एक फूल भगवान को चढ़ाती जाती हूँ और जाप करती रहती हूँ। इसलिए मुझे दूर-दूर तक के पार्कों से फूल तोड़ने पड़ते हैं। आप यकीन मानिये मैं जिधर से गुजर जाती हूँ, उस रास्ते पर आपको फूल नहीं दिखाई दे सकता। ये सिलसला अब टूट गया है। हुआ यूं कि
मेरे घर में कुक और ट्रेडमिल दोनों एक साथ आए। अब घर पर ही ट्रेडमिल पर चल लेती हूँ। फूलवाला ही फूल दे जाता है। पता नहीं मुझे क्यों, वे फूल बासी लगते हैं। मेरे घर की बगिया और गमलों में लगे फूल तो मेरे घर की शोभा बढ़ाते हैं। उन्हें तोड़ना तो ठीक नहीं न। मेहमान हमारे फूल पौधों को देखकर, हमारे प्रकृति प्रेम की सराहना किए बिना नहीं रहते हैं।
मेरा कुक भी बहुत हैल्थ कांशियस है। वह मोटा न हो जाए, रोज़ इसलिए सैर को जाता है। अब मैं उसे ही थैली थमा देती हूँ ,फूल लाने के लिए। वह तो बहुत वैराइटी के फूल लाता है। वह लंबा है न वह ऊपर के फूल भी ले आता है।
मेरी  गीता सहेली  आई। आते ही उसने मेरे लॉन, फूल-पौधों की खूब प्रशंसा की। काफी दिनों बाद आई थी। इसलिए मैंने उसे रात को रोक लिया। सुबह कुक ढेर सारे फूल लाया। गीता ने पूछा, “इतने फूल कहाँ से लाए हो?” उसके मुहं खोलने से पहले ही मैंने बताया, “पार्कों से, फूटपाथ पर बनी लोगों की बगिया से, हॉटीकल्चर द्वारा लगाए सड़कों के किनारे  के पेड़ों से, किसी के घर के अंदर से नहीं लाया है।”
   गीता मुझे घूरने लगी, फिर घूरना स्थगित कर उपदेश देने लगी, “ तुम तो जहाँ रहोगी, सिवाय तुम्हारे घर के बसंत आस पास फटक भी नहीं सकता। फूल पार्कों, रास्ते की शोभा बढ़ाते हैं। जिन्हें देखकर सबका मन खुश होता है। पौधे पर लगे रहने से इनकी उम्र बढ़ जाती है। तरह-तरह के कीड़े, तितलियाँ मंडराती हैं। जैसे तुम्हारे घर में लगे, फूलों को देख कर तुम्हारा परिवार कितना खुश होता है, उसी तरह दूसरे लोगो का भी मन खिले फूलों को देखकर खिल उठता हैं। पर तुम जैसे लोगो की वजह से उन्हें ये खुशी नहीं मिलती।” उसके उपदेश सुनकर मैं कनविंस भी होने लगी और बोर भी। पर मैं कहाँ मानने वाली? मैंने जवाब दिया,’’ मैं नहीं तोड़ूंगी तो कोई और तोड़ लेगा।’’ “वह बोली,” तुम अपनी बुरी आदत छोड़ो। पूजा के लिए फूल खरीदो। जो लोग इसकी खेती करते हैं। वहाँ उनके खेत में फूलों की शोभा देखने के लिए जनता नहीं घूमती। पार्क सार्वजनिक हैं। तुम्हारे खरीदे, घर में उगे फूल तुम्हारे हैं। बाकि धरती भगवान की, वहाँ के फूलों से तुम पूजा करोगी।” ना गीता के जाते ही मैंने भी कुक को फूल लाने से मना कर दिया।