मैं सोचने लगी कौन सा गाउं! जिसमें कोरस न हो क्योंकि डिम्पू, नीतू और उत्कर्षिनी ने सबके हाथ में चाय, स्नैक्स देने शुरु कर दिए। पंजाब का एक बहुत मशहूर गीत है जिसे मेरी दादी बहुत मधुर स्वर में गाती थी,’’उचिंयां लम्बियां टालियां वे, विच गुजरी दी पींग वे माइया। पींग चुलैंदे दो जने ओए, छम छम वरदा सौन वे माइया’’मैंने गाया। पता नहीं मेरे अंदर दादी की आत्मा आ गई थी। भाभी मेरे कान में बोलीं,’’दीदी तुसी छा गये। अब ये सब जबरदस्त स्वांग करेंगी।’’बाद में उत्कर्षिनी ने भी कहा,’’मम्मा, ऐेसे मौके पर मैलोडी गाना ठीक रहा, आपने बहुत सुंदर गया।’’ अब स्वांग में एक महिला सेल लगा कर खड़ी हो गई। उसने कहा कि सब कहेंगे’’दो पैसे’’ढोलक की थाप पर तालियों पर
वह बोली, सेल लगी है
दो पैसे (कोरस)
बुआ ले लो
दो पैसे
चाची ले लो
दो पैसे
इस तरह उसने सारे दादा पक्ष वालों को दो दो पैसे में बेच दिया और बिके हुए दादके ढोलक की ताल पर खूब नाच रहे थे।
ढोलक रुकने पर बुआ खड़ी होकर सबको बताने लगी और चाची, चाचा का कुर्ता पहन कर, उनका चश्मा लगा कर सिर पर साफा बांध कर वैद्य जी बन कर बैठ गई। बुआ बोली,’’ये जो मोना के ननिहाल वाले हैं न जब से आएं हैं, खाए जा रहें हैं, खाए जा रहें हैं। बाकि सब ध्यान से सुन रहीं हैं और ऐसे हामी भर रहीं हैं जैसे सबने उनको, उसके कहे अनुसार खाते हुए देखा हो। बुआ आगे बोली,’’ मैंने इनको बड़ा समझाया कि पेट भी तुम्हारा अपना है। ये घर भी तुम्हारा अपना है। पर इन्होंने मेरी जरा नहीं सुनी। खाया ठूस ठूस कर और वो भी बार बार। सबने जिज्ञासा से पूछा,’’फिर क्या हुआ!!’’बुआ ने जबाब दिया,’’होना क्या था! वही हुआ जिसका हमें डर था। सारे घर में इनके छोड़े आवाज़ वाले और फुसफुसाने वाले गैस के गोलों ने बदबु फैला रखी थी। टॉयलेट तो इनका ही हो गया। एक जाए, एक आए। सबने कोरस में पूछा,’’इनको कैसे ठीक किया? बुआ ने जवाब में चाची जो नाक पे चश्मा रख कर वैद्य बनी हुई थी, उसकी ओर इशारा करके कहा,’’उनसे जाकर मैंने कहा कि ननिहाल के रिश्तेदारों को जुलाब लग गये हैं। लड़की की शादी है, हम शादी की तैयारी करें या इनकी तिमारदारी। वैद्य जी बोलीं,’’चिंता की कोई बात नहीं। लुकमान हकीम मेरे खानदानका था। मेरे पास हर मर्ज़ की दवा है। तुमने रेलगाड़ी को रुकते देखा है न। गार्ड लाल झंडी दिखाता है तो इतनी बड़ी रेलगाड़ी रूक जाती है। तुम इन सब को लाल कच्छी (panty, under wear) पहना दो, इनके जुलाब रूक जायेंगें। अब बुआ ढोलक की थाप पर हाथ झण्डे की तरह ऊपर करके कह रही थी
लाल कच्छी पाले तो
जुलाब रूक जायेंगे(कोरस)
कोरस में पेट का मरीज बना़ ननिहाल उसके पीछे नाचता हुआ बोल रहा।
लाल कच्छी पाले तो, जुलाब रूक जायेंगे।
ऐसा लेडीज़ संगीत जिसे मैं अब तक नहीं भूली हूं। आखिरी बार मनु की शादी में गई तो लेडीज़ संगीत का नाम अब मंहदीं वाली रात हो गया था। शगुन की परंपरा निभाते हुए ढोलक पर पांच बन्ने गाए। ढोलक रूकते ही, ढोल और डी़जे बजना शुरू। एक तरफ डिनर लगा हुआ था। लजीज़्ा खाना खाओ और नाचो। ये फिल्मों और टी.वी. सीरीयल जैसा ही लग रहा था। क्रमशः
लाल कच्छी पाले तो
जुलाब रूक जायेंगे(कोरस)
कोरस में पेट का मरीज बना़ ननिहाल उसके पीछे नाचता हुआ बोल रहा।
लाल कच्छी पाले तो, जुलाब रूक जायेंगे।
ऐसा लेडीज़ संगीत जिसे मैं अब तक नहीं भूली हूं। आखिरी बार मनु की शादी में गई तो लेडीज़ संगीत का नाम अब मंहदीं वाली रात हो गया था। शगुन की परंपरा निभाते हुए ढोलक पर पांच बन्ने गाए। ढोलक रूकते ही, ढोल और डी़जे बजना शुरू। एक तरफ डिनर लगा हुआ था। लजीज़्ा खाना खाओ और नाचो। ये फिल्मों और टी.वी. सीरीयल जैसा ही लग रहा था। क्रमशः