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Sunday 22 November 2020

एलोवेरा उगाना और उपयोग नीलम भागी Aloe Vera Neelam Bhagi




बचपन से अपने घर के आंगन में एक कंटेनर में क्वारगंदल लगी रहती थी। जब दो चार उसके तने फालतू हो जाते थे तो दादी उन्हें पौधे से काट लेती थी और किनारे की दोनों ओर की बाहर निकली नोंकें ऊपर से नीचे तक काट कर फेंक देती थी।

बाकि के बिना छिले टुकड़े काट कर थाल में फैला कर उसमें नमक और अजवाइन डाल कर मलमल के कपड़े से ढक कर धूप में रख देती थी।

जब तक वह सूख कर कड़कड़ आवाज़ करता। तब तक पौधे में दूसरी गंदल उग आती और ये काट कर उसी तरह सूखाने को रखी जातीं। पहली सूखी ग्वारपाठा बोतल में रखी जाती थी। मौहल्ले में जिसके भी पेट में दर्द होता, उसे ये सूखे क्वारगंदल खाने को मिलते। साथ ही दादी का लेक्चर पीने को। जलने पर इसका जैल लगाया जाता। घुटने सूजने पर इसके जैल से मालिश की जाती थी। डिमाण्ड बढ़ने से एक कोने पर जमीन में लगा दिया  था। सर्दियों में इसके बढ़ने की गति बहुत कम हो जाती थी। गर्मी में और बालुई मिट्टी में ये खूब बढ़ता। मेरठ से नौएडा शिफ्ट हुए तो अम्मा इसकी एक गंदल ले आई। 

 एक गमले के ड्रेनेज़ होल पर ठिकरा रख कर उसमें सामने पार्क से बालुई मिट्टी भरी, थोड़ी गोबर की खाद मिलाई और गंदल को उसमें लगा दिया और वो लग गई। कम पानी और अच्छी धूप, बस ये दो चीजे इसके लिए होनी चाहिए। यहां यह सिर्फ परिवार में इस्तेमाल होती थी। अब कुछ सालों से इसका बहुत नाम हो गया है। पता नहीं कब से हम भी इसे एलोवेरा कहने लगे हैैंं। कोई हमारे घर में इसे देख कर इसके गुण बताने लगता तो हम उसे पौधा दे देते थे। हमारी छत पर तो इसके बहुत पौधे और फूल हो गए।




आस पड़ोस में भी सबके घर लगा हुआ है। कोई इसे घृतकुमारी तो कोई इसे संजीवनी पौधा कहता है। हरे भाग को छील कर इसके जैल को मॉइस्राइजर की तरह इस्तेमाल करते हैं। खाने में चिकित्सक की सलाह से ही उपयोग में लाते हैं।