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Thursday 26 November 2020

लाजवाब सरसों का साग, अब उगाने भी लगी नीलम भागी Sarson Ka Saag Neelam Bhagi









मुझे अपने घर के लोग बहुत अजीब लगते थे जब वे सरसों के साग की खूब तारीफ करके खाते थे। मैं हर सब्ज़ी स्वाद से खाती हूं पर सरसों के साग को देख कर मेरा मूड खराब हो जाता था। मैं रोटी पर नमक मक्खन लगा कर लस्सी के घूंट भर भर के खा लेती। जब मै कपूरथला अपने मामा स्वर्गीय निरंजन दास जोशी जी के यहां रही तो सुषमा भाभी के गांव से सीजन का बहुत  बड़ा गट्ठर साग का आया। भाभी साग देखकर चहक रहीं थीं और मैं साग को घूर रही थी। भाभी ने लहलहाते ताजे सरसों के साग में से पता नहीं किस डिजाइन की गंदलें और पत्ते निकाले। बाकि जैसा हम यहां खरीदतें हैं, वो अच्छा नहीं बनता कह कर गाय को खाने को दे दिया।  लेकिन बथुआ पालक को वैसे ही देखा, उसमें से कुछ नहीं फैंका। अब सब को बहुत अच्छे से थपथपा कर धोया ताकि मिट्टी नीचे बैठ जाये। चारपाई पर कपड़ा फैला कर उस पर सारा साग डाल दिया। नानी के समय की बहुत बड़ी मिट्टी की हण्डिया को साफ किया गया। किचन से बाहर बना चूल्हा इस सीजन में पहली बार जला। दराती से भाभी फटाफट बारीक साग काटती जा रही थी हण्डिया भरती जा रही थी पता नहीं कितनी बार वह हण्डिया साग से भरी फिर उसमें नमक अदरक, हरी मिर्च काट कर डाल दी। उसमें उपले लगते रहे, शाम तक वो पकता रहा। शाम को भाभी ने घोटने से उसमें थोड़ा थोड़ा मक्के का आटा डाल कर घोटा फिर हण्डिया चूल्हे पर। डिनर में हाथ से फूली फूली मक्के की रोटी, साग में कोई छौंक नहीं। कटोरे में पहले मक्खन, उस पर साग और साग पर देसी घी और मक्का की रोटी। मैंने बड़े बेमन से पहला कौर साग के साथ मुंह में डाला। इतना ग़जब का स्वाद!! मैंने भाभी से हैरानी से पूछा,’’साग भी इतना स्वाद होता है!!’’ उन्होंने हथेलियों मे मक्का की रोटी बनाते हुए जवाब दिया कि साग तो ऐसा ही होता है। लंच में साग प्याज़ का छौंक लगा कर मिला। उसका स्वाद बिल्कुल अलग। मैंने कह दिया कि डिनर में भी मैं साग खाउंगी। डिनर में उसमें सरसों के तेल, मेथी, हींग और अक्खा(साबुत) लाल मिर्च का छौंक लगा कर दिया। ये तो बहुत ही लजीज़। एक ही साग तीनों बार स्वाद अलग और लाजवाब। अब साग मेरी मनपसंद डिश हो गई। भाभी की साग पर इतनी मेहनत करने के कारण मैं रोज साग की डिमाण्ड नहीं कर पा रही थी। थोड़ा समझाने से वह प्रेशर कूकर और मिक्सी की मदद से साग बनाने लगी। भाभी के हाथ का साग स्वाद तो बनता ही था। ताजा आता और तुरंत बनता। घर पर मैंने चिट्ठी लिखी कि जितनी सरसों उसका आधा पालक और पालक का आधा, बथुआ सरसों के साग की रेशो है। और खेत से प्लेट में


अपने हाथ से उगाई सरसों से तो वैसे ही मोह हो जाता है। नवंबर से मैं  गमलों में रसोई का कचरा जमा करते हैं, एक टब में 50%मिट्टी, 30% वर्मी कम्पोस्ट और बाकि कोकोपिट और रेत मिलाकर, इसे कचरे वाले गमलों पर 6" भर कर इसमें सरसों बो देती हूं। दो दो इंच की दूरी पर अंगुली से 1’’ का गड्डा करके उसमें 2 दाने सरसों के डाल कर मिट्टी से ढक देती हूं और धूप में रखती हूं। 40 दिन तक तोड़ने लायक हो जाता है। जब थोड़े पत्ते होते हैं तब सरसों के तेल में मेथी, साबुत लाल मिर्च और लहसून सुनहरा करके उसमें इसकी भुजिया बनाती हूं। बनाने से पहले ही तोड़ती हूं। स्वाद में बहुत अच्छी लगती है। और गमलों में इन्हें लगे देखना मन को भाता है। लोहड़ी पर हमारे यहां सरसों का साग जरुर बनता है। कम कैलोरी के कारण इसे खाने से वजन बढ़ने की चिंता नहीं। कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, खनिज़, फाइबर प्रोटीन से भरपूर सरसों का साग भाभी से बनाना तो सीख लिया पर उनके जैसी हाथ से पतली पतली मक्का की रोटी नहीं बना पाती। मैं चकले पर ही थपथपा के बना लेती हूं।    

 #रसोई के कचरे का उपयोग

 किसी भी कंटेनर या गमले में किचन वेस्ट फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती आदि सब भरते जाओ और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा और बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा के 6 इंच किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो। पर सरसों के बीज छिड़ककर उसे मिट्टी से ढक दिया।



            



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