मैं परिवार की इन 90 प्लस महिलाओं के बनाये हलुए को खाते ही बता देती कि ये कौन सी मासी या अम्मा के हाथ का है। रंग सबका बदामी या उससे गहरा होता। बड़ी प्रीत से सूजी मंदी आंच पर भूनी जाती। हलुए में रेशो का ध्यान रखा जाता। एक कटोरी सूजी में अगर चाशनी से बनाना है तो चार कटोरी पानी, चाशनी के बिना तीन कटोरी पानी। दादी नानी के समय सूजी के नाप की दुगुनी चीनी, तब महिलाएं आज के मुकाबले कई गुना शारीरिक श्रम जो करतीं थीं। अम्मा के समय डेढ़ गुना चीनी, अब सूजी के बराबर की चीनी पड़ती है। पानी का नाप वही है। इनके बनाये हलुए में कभी कोई कमी नहीं निकाल सका। अम्मा इसमें बेसन मिलाती थीं।
जैसे ही सूजी का रंग बदलने लगता तब वे उसमें बेसन सूजी का चौथाई मिला देतीं। साथ ही घी और डालती। अब भूनने के बाद बेसन के बराबर चीनी और दुगुना पानी भी मिलाना याद रखतीं। चाशनी बनने पर उसमें बारीक पिसी छोटी इलायची मिलातीं। मुझे बेसन मिला हलुआ बहुत पसंद है इसलिये मैं ऐसे ही बनाती हूं और खाने वालों को मेरा बनाया हलुआ अलग लगता है। अच्छी तरह भूनने के बाद उसमें चाशनी या पानी चीनी डाल कर मीडियम आंच पर चलाते हैं जब हलुआ किनारे छोड़ देता हैं तो आंच और कम कर चलाते हैं फिर घी छोडने पर गैस बंद कर देते हैं। कटे तले मेवे उसमें डाल देते हैं।
बहुत बड़ा परिवार है कई बार बहुत अजीब किस्सा हो जाता है। परिवार की एक लड़की जो सूजी भूनने में माहिर थी, उसके पति ने दादी से पूछा,’’माता जी हलुआ कैसे बनाते हैं?’’दादी जी ने बड़ी सरलता से जवाब देना शुरु किया,’’बेटा, ये बनाने वाली पर हैं जो जल्दबाज सी होतीं हैं। वे सूजी घी में भूनना शुरु करते ही जैसे ही महक आती है चाशनी डाल कर फटाफट सफेद सा हलुआ तैयार कर देती हैं। दुसरी सूजी का रंग जरा सा बदलते ही उसमें पानी या चाशनी डाल दिया। जबकि इन दोनों को बाहर बादामी हलुआ खाने को मिलता है। घर में कौन तसल्ली से भूने! उन्होंने आगे सुनने की बजाय, घड़ी देख कर कहा कि उन्हें जल्दी जाना है। उनके जाने के बाद में लड़की ने बताया कि वहां उसके ससुराल में सफेद हलुआ बनता है। मेरे बनाये हलुए को सासू जी कहतीं हैं कि मैंने सूजी जला दी है। सुनकर दादी बार बार सफाई देती रहीं कि आम बात अनजाने में उनके परिवार पर लग गई।