आयोजन के दूसरे दिन पहले सत्र में राष्ट्रीय महामंत्री ऋषिकुमार मिश्र द्वारा भारतीय साहित्य परंपरा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि अपनी उदात्त परम्पराओं को पुष्ट करने वाला साहित्य ही कालजयी साहित्य होता है। डॉ. मनीषी ने भी इसका पूरक वक्तव्य दिया। इसके बाद प्रो. नीलम राठी राष्ट्रीय मंत्री ने सभी साहित्यकारों को अपने दायित्वों के प्रति जागरण, मूल्यांकन के लिए कार्यक्रम, संगठन, कार्यकर्ता, साहित्य व विस्तार के विविध पहलुओं से संबंधित 45 प्रश्नों पर चर्चा की।
ऋषिकुमार मिश्र द्वारा प्रशिक्षण के तात्त्विक सार, पाथेय और भविष्य के लक्ष्यों के निर्धारण के साथ प्रशिक्षण सत्र का समापन किया गया। प्रान्तीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने आशा भरे शब्दों से सभी को सक्रियता का सन्देश दिया। उन्होंने अपने स्वभाव के अनुरूप स्थान स्थान पर अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम के सभी सात बौद्धिक सत्रों का संचालन प्रान्तीय महामन्त्री डॉ योगेश वशिष्ठ द्वारा किया गया।
समापन अवसर पर मंचस्थ अधिकारियों ने दिल्ली सहित करनाल, कैथल, कुरुक्षेत्र, चरखी दादरी, गुरुग्राम, जींद, पानीपत, भिवानी, रेवाडी, सिरसा, सोनीपत आदि सभी इकाइयों से आए प्रतिभागियों को स्मृति चिह्न और सहभागिता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।
इस कार्यक्रम में मेज़बान प्राचार्य डॉ. राममेहर रेढु, प्रान्तीय मार्गदर्शक डॉ. पूर्णमल गौड़, कार्यकारी अध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा, उपाध्यक्ष रामधन शर्मा, कोषाध्यक्ष हरीन्द्र यादव, संगठन मन्त्री डॉ. मनोज भारत, संयुक्त मन्त्री डॉ. जगदीप राही, दिल्ली प्रान्तीय महामन्त्री डॉ. भुवनेश सिंहल, जय सिंह आर्य, विनोद बब्बर ने विविध सत्रों में अपना सान्निध्य प्रदान किया। प्रान्तीय प्रचार मंत्री शिवनीत इस आयोजन में मौन भाव से कार्यक्रम की रीढ़ बने रहे। जींद इकाई अध्यक्ष डॉ. मंजुलता ने सभी के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया। डॉ योगेश वशिष्ठ द्वारा परिषद परम्परानुसार प्रस्तुत कल्याण मंत्र से सफल अभ्यासवर्ग सम्पन्न हुआ।
दो सत्र के बीच के टी ब्रेक में प्रतिभागियों के साथ हमारे आदरणीय कुर्सियां छोड़ कर, नीचे आलती पालती मार के बहुत अपनेपन से बैठ जाते। हम जो जानना चाहते, जो पूछते ये बताते । क्योंकि संकोचवश प्रश्नोत्तर काल में नहीं पूछ पाते थे
ऋषि कुमार मिश्र जी समझाते समय उदाहरण बहुत अच्छे दे रहे थे। मिश्र जी ने पांच बौद्धिक सत्रों में प्रशिक्षित किया। कहीं भी उबाऊपन नहीं लगा।
एक महिला ने मुझे बहुत ध्यान से देखा फिर बोली," आपने तो 1 ग्राम भी सोना नहीं पहना हुआ है।" मैंने जवाब दिया," मेरे पास नहीं है।" फिर उसने और अच्छी तरह मेरा मुआयना किया और कहा," खरीद लो।" ये सुन कर, मैं खिलखिला कर हंस पड़ी। अब सोच रही हूं कि मैं क्यों हंसी थी! मुझे लगता है कि दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में जो मैंने महसूस किया। वह सोना धारण करके तो मेरी आत्मा को कभी नहीं मिलता। हां हैंडलूम के कपड़े, साड़ी पहनना मुझे खुशी देता है।
लंच के बाद हम ऐतिहासिक जिला जींद के पर्यटन स्थल देखने के लिए निकले। क्रमशः