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Sunday, 7 January 2024

सर्दी से बचने राहत के उपाय नीलम भागी Neelam Bhagi

 




94 साल की अम्मा अखबारों से बहुत ज्ञान लेती हैं। उन्होंने पढ़ लिया कि कमरे में हीटर लगाने से हवा शुष्क हो जाती है। इस भयंकर ठंड में हीटर नहीं लगाने दे रही थीं। मैंने भी तरकीब ढूंढी। कमरे में अवन रखकर, उसमें  ट्रे में आधा केजी सूजी या दलिया  150  पर 30 मिनट के लिए रख देती। कमरा गर्म होने लग जाता। अब केक वगैरा भी खूब बना लिया। कितना सूजी दलिया भूनती!

 सर्दी बढ़ती जा रही थी। 5 जनवरी को #मध्यभारतहिंदीसाहित्यसभा और #अखिलभारतीयसाहित्यपरिषद् की ओर से की ओर से 6,7 जनवरी को आयोजित गोष्ठी में ग्वालियर  जाने से पहले उनके कमरे में हीटर लगा तो अम्मा ने विरोध नहीं किया और मैं शांति से जाकर लौट रही हूं। #akhilbhartiyasahityaparishad








Monday, 9 October 2023

नदी नारे न जाओ, श्याम पैंया पढ़ूँ! नदी संस्कृति! उत्सव उल्लास अक्तूबर प्रेरणा विचार नीलम भागी Neelam Bhagi

  

नेपाल में खतरनाक रास्ते से मुक्तिनाथ जो 3800 मीटर की ऊँचाई पर है, जा रही थी। बाजू में काली गंडकी नदी बह रही थी। उसके पत्थर शालिग्राम हैं।  


 मैं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के 15वें अधिवेशन में जबलपुर गई थी। सांस्कृतिक कार्यक्रम में डिंडोरी से आये आदिवासियों ने जो भी प्रस्तुति दी, उनके लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश सब कुछ माँ नर्मदा थी। नदी में तो इतनी शक्ति हैं वह पत्थर को भी भगवान बना देती है। तभी तो कहते हैं

नर्मदा के कंकर, सब शिव शंकर।  

नदियों के किनारे प्राचीन नगर, महानगर या तीर्थस्थल हैं। र्तीथस्थल हमारी आस्था के केन्द्र हैं। यहाँ जाकर मानसिक संतोष मिलता है। देश के कोने कोने से तीर्थयात्री आते हैं। एक ही स्थान पर समय बिताते हैं। अपने प्रदेश की बाते करते हैं और दूसरे की सुनते हैं। कुछ हद तक देश को जान जाते हैं। उनमें सहभागिता आती है। अपने परिवेश से नये परिवेश में थोड़ा समय बिताते हैं। कुछ एक दूसरे से सीख कर जाते हैं, कुछ सीखा जाते हैं। मानसिक सुख भी प्राप्त करते  हैं। धर्म लाभ तो होता ही है।  

हर नदी वहाँ के स्थानीय लोगो के लिये पवित्र है और उनकी संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ी है। हमारे अवतारों की जन्मभूमि भी नदियों वाले शहरों में है। उनका जन्मदिन उत्सव है। इसलिए हमारे उत्सव में नदी में स्नान करना शामिल है। हमारे यहाँ नदियों को माँ कहा जाता है। जैसे माँ निस्वार्थ संतान का पोषण करती है। वैसे ही नदी हमें देती ही देती है। जीवनदायनी नदियों को लोग पूजते हैं, मन्नत मानते हैं। 

हमारे यहाँ नदियों की दंत कथाएं हैं, कविताएं, चालीसा, आरती और गीत हैं। पद्मश्री विलक्षण लोकगायिका, मलिका ए नौटंकी गुलाब बाई का एक बहुत मशहूर गाना ’’नदी नारे न जाओ, श्याम पैंया पढ़ूँ! उनका गाना फिल्म में ले लिया पर उनको क्रैडिट भी नहीं दिया। एस.डी.बर्मन के नदी गीत बहुत मशहूर हैं।

साबरमती के संत गांधी जी का जन्मदिन 2 अक्तूबर ’विश्व अहिंसा दिवस’ के रुप में मनाया जाता है।    

   15 अक्तूबर से नवरात्र शुरु हैं, 20 अक्तूबर से दुर्गा पूजा  है। यह भारतीय उपमहाद्वीप व दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला सामाजिक-सांस्कृतिक धार्मिक वार्षिक हिन्दू पर्व है। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा और त्रिपुरा में सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। नेपाल और बंगलादेश में भी बड़े त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। हिन्दू सुधारकों ने ब्रिटिश राज में इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। दिसम्बर 2021 में कोलकता की दुर्गापूजा को यूनेस्को की अगोचर सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। 

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य की महिलाएं बड़े उत्साह से पूरे नौ दिन बतुकम्मा महोत्सव मनातीं हैं। ये शेष भारत के शरद नवरात्रि से मेल खाता है। प्रत्येक दिन बतुकम्मा उत्सव को अलग नाम से पुकारा जाता है। जंगलों से ढेर सारे फूल लाते हैं। फूलों की सात पर्तों से गोपुरम मंदिर की आकृति बनाकर बतुुकम्मा अर्थात देवियों की माँ पार्वती महागौरी के रूप में पूजा जाता है। लोगों का मानना है कि बतुकम्मा त्यौहार पर देवी जीवित अवस्था में रहती हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करतीं हैं। त्योहार के पहले दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। नौ दिनों तक अलग अलग क्षेत्रिय पकवानों से गोपुरम को भोग लगाया जाता है। और इस फूलों के उत्सव का आनन्द उठाया जाता है। नवरात्रि की अष्टमी को यह त्यौहार दशहरे से दो दिन पहले समाप्त है।

 बतुकम्मा से मिलता जुलता, तेलंगाना में कुवांरी लड़कियों द्वारा बोडेम्मा पर्व मनाया जाता है। जो सात दिनों तक चलने वाला गौरी पूजा का पर्व है। महाअष्टमी और महानवमी को नौ बाल कन्याओं की पूजा की जाती है जो देवी नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। हम भारतीय कन्या पूजन विदेश में रह कर भी करते हैं। 

15 से 23 अक्तूबर तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया जा रहा है किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया था। तिरूमाला में तो हर दिन एक त्यौहार है और धन के भगवान श्री वेंकटेश्वर साल में 450 उत्सवों का आनन्द लेते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मोत्सव है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ’ब्रह्मा का उत्सव’ जिसमें हजारो श्रद्धालू इस राजसी उत्सव को देखने जाते हैं।

दशहरे की छुट्टियों में जगह जगह  रात को रामलीला मंचन मंच पर होता है। जिसे बच्चे बहुत ध्यान से देखते हैं। लौटते हुए रामलीला के मेले से गत्ते, बांस, चमकीले कागजों से बने चमचमाते धनुष बाण, तलवार और गदा आदि शस्त्र खरीद कर लाते और वे दिन में पार्कों में रामलीला का मंचन करते हैं। जिसमें सभी बच्चे कलाकार होते। उन्हें दर्शकों की जरुरत ही नहीं होती। इन दिनों सारा शहर ही राममय हो जाता।

बहू मेला जम्मू और कश्मीर, जम्मू में आयोजित होने वाले सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक है। यह जम्मू के बहू किले में साल में दो बार नवरात्रों के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान पर्यटक और स्थानीय लोग रंगीन पोशाकें पहनते हैं और मेले में खरीदारी करते हैं और खाने के स्टॉल में वहाँ के पारम्परिक खानों का स्वाद लेते हैं।


शरदोत्सव दुर्गोत्सव एक वार्षिक हिन्दू पर्व है। जिसमें प्रांतों में अलग अलग पद्धति से देवी पूजन, क्न्या पूजन है। गुजरात का नवरात्र में किया जाने वाला गरबा, डांडिया नृत्य तो पूरे देश का हो गया है। जो नहीं करते, वे देखने जाते हैं।

तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में दशहरे से पहले नौ दिनों को तीन देवियों की समान पूजा के लिए तीन तीन दिनों में बांट दिया है। पहले तीन दिन धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं। अगले तीन दिन शिक्षा और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है और माँ शक्ति दुर्गा को समर्पित हैं और विजयदशमी का दिन बहुत शुभ माना जाता है। बच्चों के लिए विद्या आरंभ के साथ कला में अपनी अपनी शिक्षा शुरु करने के लिए इस दिन सरस्वती पूजन किया जाता है। 

कावेरी संकरमना 18 अक्तूबर हमारे देश की पाँच पवित्र नदियों में शुमार दक्षिण की गंगा, कावेरी का उदगम स्थल, ताल कावेरी है, ब्रहमगिरि की पहाड़ियों में भागमंडला मंदिर है। यहाँ से आठ किलामीटर की दूरी पर तालकावेरी है, कावेरी का उद्गम स्थल, मंदिर के प्रांगण में ब्रह्मकुण्डिका है, जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं। 17 अक्टूबर को कावेरी संक्रमणा का त्यौहार  है। जीवनदायिनी माता कावेरी ने दूर दूर तक कैसा अतुलनीय प्राकृतिक सौंदर्य और प्राकृतिक संपदा बिखेरी है। 

कोंगाली बिहु(18 अक्टूबर) इस समय धान की फसल लहलहा रही होती है। लेकिन किसानों के खलिहान खाली होते हैं। इसमें खेत में या तुलसी के नीचे दिया जला कर अच्छी फसल की कामना करते हैं यानि यह प्रार्थना उत्सव है। भेंट में एक दूसरे को गमुशा, हेंगडांग(तलवार) देते हैं। कोंगाली बिहू से ये भी युवाओं को समझ आ जाता है कि मितव्यवता से भी उत्सव मनाया जाता है।

 महाभारत के रचियता वेदव्यास महाभारत के बाद मानसिक उलझनों में उलझे थे, तब शांति के लिये वे तीर्थाटन पर चल दिए। दंडकारण्य(बासर का प्राचीन नाम) तेलंगाना में, गोदावरी के तट के सौन्दर्य ने उन्हें कुछ समय के लिए रोक लिया था। 

  यहीं ऋषि वाल्मिकी ने रामायण लेखन से पहले, माँ सरस्वती को स्थापित किया और उनका आर्शीवाद प्राप्त किया था। मंदिर के निकट वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि है। बासर गाँव में आठ तालाब हैं। जिसमें वाल्मीकि तीर्थ है। पास में ही वेदव्यास गुफा है। लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा की मूर्तियाँ हैं। पास ही महाकाली का विशाल मंदिर है। नवरात्र में बड़ी धूमधाम रहती है।  आज उस माँ शारदे निवास को ’श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर’ कहते हैं। हिंदुओं का महत्वपूर्ण संस्कार ’अक्षर ज्ञान’ विजयदशमी को मंदिर में मनाया जाता है जो बच्चे के जीवन में औपचारिक शिक्षा को दर्शाता है।  बासर में गोदावरी तट पर स्थित इस मंदिर में बच्चों को अक्षर ज्ञान से पहले अक्षराभिषेक के लिए लाया जाता है और प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है।

विजयदशमी को देश में कहीें महिषासुर मर्दिनी को सिंदूर खेला के बाद नदी में विसर्जित किया जाता है। नदी किनारे मेले का दृश्य होता है। तो कहीं श्री राम की रावण पर विजय पर रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले दहन किए जाते हैं। सबसे अनूठा 75 दिन तक मनाया जाने वाला बस्तर के दशहरे का रामायण से कोई संबंध नहीं है। अपितु बस्तर की आराध्या देवी माँ दन्तेश्वरी और देवी देवताओं की पूजा हैं।

मैसूर का दस दिवसीय दशहरा का मुख्य आर्कषण शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक मैसूर पैलेस की रोशनी, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम और विजयदशमी पर दशहरा जुलूस और प्रदर्शनी है।     

आज हर रामकथा के मूल में भगवान बाल्मीकि की रामायण है।

पहले महाकाव्य ’रामायण’ के रचयिता महाकवि महर्षि वाल्मिकी जयंती अश्विन महीने की पूर्णिमा(28 अक्तूबर) शरद पूर्णिमा को मनाई जाती है। जगह जगह जुलूस और शोेभायात्रा निकाली जाती है। लोगों में बहुत उत्साह होता है। 

कहीं कहीं अविवाहित लड़कियाँ सुबह नदी स्नान करने जाती हैं कहते हैं कि ऐसा करने से उन्हें अच्छा वर मिलता है। और अगले दिन से कार्तिक स्नान, तुलसी पूजन शुरु हो जाता है।

इन सभी उत्सवों में प्रकृति वनस्पति और नदियाँ(जल)है। यानि हमारी एक ही संस्कृति, हमें जोड़ती है।

नीलम भागी( लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, ट्रेवलर) 

प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित पत्रिका "प्रेरणा विचार" के अक्टूबर अंक में प्रकाशित हुआ है यह लेख 





Tuesday, 8 November 2022

अखिल भारतीय साहित्य परिषद की दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक झांसी यात्रा भाग 1 नीलम भागी

 

 मैं जब भी यात्रा से लौटती हूँ तो मुझ पर यात्रा लिखने का भूत सवार रहता है। इधर मेरा यात्रा वृतांत लिखना समाप्त होता है, तब तक दूसरी यात्रा में जाने का प्लान बनने लगता है। लेकिन अखिल भारतीय साहित्य परिषद के आयोजन में जाने से मैं कुछ सीख कर ही लौटती हूं। ये नहीं लिख सकती कि क्या सीखती हूं! झांसी यात्रा लिखने में एक महीने का विलंब हो गया। हुआ यूं कि मुझे यहाँ से बहुत पुस्तकें मिलीं। 


अब ये उपन्यास और कहानी संग्रह तो है नहीें, जिन्हें शुरु किया और समाप्त कर लिया और साहित्य एकेडमी लाइब्रेरी में जाकर लौटा आई। ये मेरी पुस्तकें हैं। इन्हें पढ़ते हुए हाथ में पेंसिल रखती हूँ, अण्डरलाइन करती हूँ। आज उत्कर्षिनी का फोन आया। उसे मेरे स्वास्थ्य की चिंता हो गई। घुमा फिरा कर पूछने लगी कि मैं लिख क्यों नहीं रही हूँ!! मैंने उसे आयोजन में मिली किताबें दिखाई। उसने कहा,’’मैं आपकी झांसी यात्रा पढ़ने का इंतजार कर रहीं हूं। पढ़ने का तो आपको शौक़ है पर लिखो भी न।’’ और मैं लिखने बैठ गई।    डॉ. साधना बलवटे(राष्ट्रीय मंत्री) का अखिल भारतीय साहित्य परिषद की दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक में झांसी पहुंचने का आमन्त्रण था।

   भारतीय भाषाओं का देशव्यापी राष्ट्रीय संगठन अखिल भारतीय साहित्य परिषद की दो दिवसीय राष्ट्रीय बैठक के आयोजन में पहुँचने के लिए सभी प्रांत अध्यक्ष/ महामंत्री/ सहमंत्री /मीडिया प्रभारी को आमंत्रण पत्र मिला।  

’समस्त प्रदेश प्रांत मीडिया प्रमुखों की बैठक 08 अक्तूबर 2022 शनिवार को( एक दिन की) प्रातः 09.00 बजे से सायं 6.00 बजे तक झाँसी(उत्तर प्रदेश) में तय हुई है। 9 अक्तूबर को अखिल भारतीय साहित्य परिषद की लेखक समूह की बैठक है। डॉ0 महेश पाण्डे ’बजरंग’ जी को अपने आगमन और प्रस्थान की सूचना दे दें।’ मैंने डॉ0 महेश पाण्डे जी को टिकट पेस्ट कर दी। कार्यक्रम से पहले डॉ. साधना बलवटे जी का फोन और मैसेज फिर आया। उन्होंने बताया कि हमारा स्टे कहाँ होगा और स्टेशन से हमें ले जाने की व्यवस्था है। फिर डॉ0 पवनपुत्र बादल जी(मार्गदर्शक,राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री) ने ग्रुप में होटल रॉयल रिर्सोट का गूगल मैप भेजा और लिखा कि स्टेशन से उसकी दूरी 10 किमी. है और बस स्टैण्ड से 6 किमी. है। यानि, मुझे कोई चिंता नहीं। 

हमारे प्रवीण आर्य जी(राष्ट्रीय प्रचार मंत्री) का फोन आया,’’नीलम जी आपने झांसी की टिकट बुक करवाली, नहीं करवाई तो डॉ. नृत्यगोपाल शर्मा (मीडिया प्रमुख दिल्ली प्रांत) करवा रहें हैं, उनके साथ करवा लो।’’ जवाब में मैंने उनको भी टिकट पेस्ट कर दी। 

 7 अक्टूबर को दोपहर बाद जाना था और 9 बजे रात्रि की गाड़ी से 10 अक्टूबर को सुबह लौटना था। प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित पत्रिका ’केशव संवाद’ के लिए लेख 10 अक्टूबर तक देना था। मैं जाने से पहले लेख भेजना चाह रही थी, उसी में लगी हुई थी। क्योंकि  लौटने पर तो मेरे दिमाग में झांसी छाई रहेगी। 6 अक्तूबर को मैंने लेख पूरा कर लिया पर ये सोच कर नहीं भेजा कि कल फिर पढ़ कर भेजूंगी। पैकिंग करके लैपटॉप खोल कर लेख पढ़ने बैठ गई और उसमें खो गई। प्रवीण आर्य जी का फोन आया,’’नीलम जी आपने डॉ. महेश पाण्डे जी को फोन कर दिया कि आप रात 9 बजे झांसी पहुंच रही हो, नहीं किया तो कर दो।’’लेख भेज कर, मैंने तुरंत पाण्डे जी को फोन किया।

  मुझे परिषद् का ये पारिवारिक माहौल बहुत पसंद है, जिसमें मेरे जैसी को समझाते भी हैं। मेरी आदत है स्टेशन के लिए घर से जल्दी निकलने की और मैं नौएडा से निजामुद्दीन दिल्ली स्टेशन के लिए निकल गई। क्रमशः          



Wednesday, 27 July 2022

भारतीय साहित्य की परंपरा नीलम भागी भाग 6 Part 6 Neelam Bhagi

 

    आयोजन के दूसरे दिन पहले सत्र में राष्ट्रीय महामंत्री ऋषिकुमार मिश्र द्वारा भारतीय साहित्य परंपरा पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि अपनी उदात्त परम्पराओं को पुष्ट करने वाला साहित्य ही कालजयी साहित्य होता है। डॉ. मनीषी ने भी इसका पूरक वक्तव्य दिया। इसके बाद प्रो. नीलम राठी राष्ट्रीय मंत्री ने सभी साहित्यकारों को अपने दायित्वों के प्रति जागरण, मूल्यांकन के लिए कार्यक्रम, संगठन, कार्यकर्ता, साहित्य व विस्तार के विविध पहलुओं से संबंधित 45 प्रश्नों पर चर्चा की।
ऋषिकुमार मिश्र द्वारा प्रशिक्षण के तात्त्विक सार, पाथेय और भविष्य के लक्ष्यों के निर्धारण के साथ प्रशिक्षण सत्र का समापन किया गया। प्रान्तीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने आशा भरे शब्दों से सभी को सक्रियता का सन्देश दिया। उन्होंने अपने स्वभाव के अनुरूप स्थान स्थान पर अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम के सभी सात बौद्धिक सत्रों का संचालन प्रान्तीय महामन्त्री डॉ योगेश वशिष्ठ द्वारा किया गया।
समापन अवसर पर मंचस्थ अधिकारियों ने दिल्ली सहित करनाल, कैथल, कुरुक्षेत्र, चरखी दादरी, गुरुग्राम, जींद, पानीपत, भिवानी, रेवाडी, सिरसा, सोनीपत आदि सभी इकाइयों से आए प्रतिभागियों को स्मृति चिह्न और सहभागिता प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया।






इस कार्यक्रम में मेज़बान प्राचार्य डॉ. राममेहर रेढु, प्रान्तीय मार्गदर्शक डॉ. पूर्णमल गौड़, कार्यकारी अध्यक्ष रमेशचंद्र शर्मा, उपाध्यक्ष रामधन शर्मा, कोषाध्यक्ष हरीन्द्र यादव, संगठन मन्त्री डॉ. मनोज भारत, संयुक्त मन्त्री डॉ. जगदीप राही, दिल्ली प्रान्तीय महामन्त्री डॉ. भुवनेश सिंहल, जय सिंह आर्य, विनोद बब्बर ने विविध सत्रों में अपना सान्निध्य प्रदान किया। प्रान्तीय प्रचार मंत्री शिवनीत इस आयोजन में मौन भाव से कार्यक्रम की रीढ़ बने रहे। जींद इकाई अध्यक्ष डॉ. मंजुलता ने सभी के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया। डॉ योगेश वशिष्ठ द्वारा परिषद परम्परानुसार प्रस्तुत कल्याण मंत्र से सफल अभ्यासवर्ग सम्पन्न हुआ।
दो सत्र के बीच के टी ब्रेक में  प्रतिभागियों के साथ हमारे  आदरणीय कुर्सियां छोड़ कर, नीचे आलती पालती मार के बहुत अपनेपन से बैठ जाते। हम जो जानना चाहते, जो पूछते ये बताते । क्योंकि संकोचव प्रश्नोत्तर काल में नहीं पूछ पाते थे 

ऋषि कुमार मिश्र जी समझाते समय उदाहरण बहुत अच्छे दे रहे थे। मिश्र जी ने पांच बौद्धिक सत्रों में प्रशिक्षित किया।  कहीं भी उबाऊपन नहीं लगा।
एक महिला ने मुझे बहुत ध्यान से देखा फिर बोली," आपने तो 1 ग्राम भी सोना नहीं पहना हुआ है।" मैंने जवाब दिया," मेरे पास नहीं है।" फिर उसने और अच्छी तरह मेरा मुआयना किया और कहा," खरीद लो।" ये सुन कर, मैं खिलखिला कर हंस पड़ी। अब सोच रही हूं कि मैं क्यों हंसी थी! मुझे लगता है कि दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में जो मैंने महसूस किया। वह सोना धारण करके तो मेरी आत्मा को कभी नहीं मिलता। हां हैंडलूम के कपड़े, साड़ी पहनना मुझे खुशी देता है।
लंच के बाद हम ऐतिहासिक जिला जींद के पर्यटन स्थल देखने के लिए निकले। क्रमशः

Monday, 25 July 2022

परिषद के कार्यक्रम और भव्य कवि सम्मेलन भाग 5 नीलम भागी Part 5Neelam Bhagi


    परिषद के कार्यक्रम’ सत्र की मुख्य वक्ता प्रो. नीलम राठी ने परिषद के तीन अनिवार्य कार्यक्रमों सहित सामयिक कविता, संगोष्ठी, पुस्तक चर्चा आदि के सम्बन्ध में विस्तार से बात रखी। उन्होंने साहित्य संवर्धन यात्रा व परिषद द्वारा इनके प्रकाशन की बात बतलाने सहित साहित्य परिक्रमा की सदस्यता बढ़ाने व इसमें अपनी रचनाएँ भेजने का आवाहन किया। कार्यक्रम के सूत्रधार डॉ. योगेश वासिष्ठ ने इस अवसर पर जानकारी दी कि हरियाणा में तीन नहीं अपितु प्रत्येक तिमाही आधार पर नव संवत्सर, व्यास जयंती, वाल्मीकि जयन्ती व वसन्त पंचमी के चार कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।


परिषद कार्य विस्तार सत्र में राष्ट्रीय महामन्त्री ऋषि कुमार मिश्र जी ने बतलाया कि 27 राज्यों में परिषद की 695 इकाइयाँ कार्य कर रही हैं। प्रदेशों में प्रान्त, प्रान्त में ज़िला, तहसील व इकाई स्तर पर कार्य हो रहा है। देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी साहित्य संवर्धन यात्राएँ हुई हैं। प्रश्न चर्चा के दौरान प्रवास को भी कार्य विस्तार के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया।


राष्ट्रीय प्रचार मन्त्री प्रवीण आर्य ने इस अवसर पर जानकारी दी कि इस वक्त परिषद कार्यकर्ता अपनी विदेश यात्राओं के दौरान वहाँ परिषद के बैनर तले कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। वहाँ साहित्य परिक्रमा भी भेजी जाने लगी हैं, जिससे विश्व स्तर पर इसका प्रसार हो रहा है। इस दृष्टि से उन्होंने अमेरिका में सुनीता बग्गा के योगदान का विशेष उल्लेख किया।

रात्रिकालीन सत्र में भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कवि सम्मेलन की अध्यक्षता ओज के सशक्त हस्ताक्षर हरियाणा प्रान्तीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने की। हास्य-व्यंग्य की फुलझड़ियों तथा ओज की बुलंदियों के आरोहण-अवरोहण के स्वरों से युक्त सधा हुआ मंच संचालन डॉ मनोज भारत द्वारा किया गया। कवि सम्मेलन की शुरुआत डॉ. जगदीप राही द्वारा की गई सरस्वती वंदना से हुई। जय सिंह आर्य, हंस राज रल्हन, कर्मवीर तिगड़ाना, नाहर सिंह दहिया और डॉ सुरेश पंचारिया ने अपनी रचनाओं के माध्यम से दुश्मन पड़ोसियों को ललकारा तो अखिलेश द्विवेदी, सत्यपाल पराशर ओर महेंद्र सिंह सागर द्वारा प्रस्तुत की गई गजलों के अशआर भी खूब सराहे गए। डॉ. शकुंतला शर्मा, भारत भूषण वर्मा, अनूप अनजान, डॉ. कविता और मोनिका शर्मा के शृंगारिक प्रतीक भी सभी के कोमल भावों को उद्वेलित करने में सफल रहे। इस कवि सम्मेलन में 21 कवियों ने सहभागिता की। कवि सम्मेलन की सबसे बड़ी विशेषता उसका सरस होने के साथ-साथ चिंतनपरक और राष्ट्र जागरण के संदेश से युक्त रहा। हरीन्द्र यादव ने जब लोकछन्द माहिया में राष्ट्रीयता के प्रतीकों को पिरोया तो श्रोता झूमने को मजबूर हो गए। अधिक समय होने पर भी प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी के स्वर जब मंच पर गूँजे तो श्रोता उत्साह से सराबोर हो गए। छोटी बहर की उनकी ग़ज़ल एक आँख रानी, एक आँख पानी। तृप्ति है बुढापा, प्यास है जवानी पर तो श्रोता साथ-साथ काव्य पाठ करने लगे।



   डिनर के बाद  हम  8 महिलाएं एक हॉल में सोने के लिए गईं। पर सोने की किसी को भी जल्दी नहीं थी। सत्र के बीच में ऋषि कुमार मिश्र जी ने परिचय तो सबका करवा ही दिया था। हमने ज़रा भी समय गवाएं बिना अंताक्षरी शुरू कर दी। कोई सोफे पर लेटा है,कोई गद्दे पर तो कोई खड़ा है। 4,4 की टीम में जबरदस्त मुकाबला हुआ। मजेदार बात यह कि एक भी गला बेसुरा नहीं था। डॉ शकुंतला शर्मा इस आयु में भी ने सधी हुई आवाज में गा रही थी और ऐसे ऐसे गीत निकाल रही थी कि जो किसी ने सुने ही नहीं थे। मैं गीतों की बहुत शौकीन हूं इसलिए मैंने सुने हुए थे। मोनिका शर्मा की तो आवाज बिल्कुल अलग तरह की  बहुत अच्छी है। एक श्रीमान शायद हाल के आगे से गुजर रहे होंगे, आवाज सुनकर अंदर आए, और बैठ गए, पर मुकाबला वैसे ही चलता रहा। इंदु दत्ता तिवारी कुछ जरूरी काम में लग गई तो वह सज्जन ने भी भाग लेना शुरू कर दिया। रात के 1:30 बजे वह बोले," अच्छा अब मैं चलता हूं।" तो सबने बस ओके कहा और वह चले गए। मैंने दरवाजा बंद कर दिया। मीनाक्षी गुप्ता ने पूछा," यह कौन था?"सब ने कोरस में जवाब दिया," पता नहीं।" फिर सब बोलीं कि हम तो सोचते रहे किसी का पहचान का होगा, कुछ देना या लेना भूल गया होगा। फिर सब खूब हंसी। मुकाबला फिर शुरू। डॉ. कविता और श्रुति शर्मा इन्हें तो कोई हरा ही नहीं सकता। दोनों अलग टीम में , लग रहा था कि कोई भी टीम नहीं हारेगी।  सुबह हो जाएगी तब विधु कालरा जी ने गेम समाप्त करवाया। मैं तो 3:00 बजे सो गई थी। 4:30 मेरी नींद खुली तो देखा ये तैयारी कर रही है जींद घूमने की क्योंकि 9:00 बजे से सत्र शुरू था तो मोनिका शर्मा, श्रुति शर्मा, डॉ. कविता  बाद में रुकने के बजाय पहले से   घूमने का काम करने को चल दीं ताकि सत्र से पहले आ जाए। हमारे लिए खूब तेज मीठे की चाय आ गई। उस चाय को  पीकर हमारे अंदर एनर्जी आ गई। अब हम पांचों की बतरस गोष्टी शुरू हो गई। ये गोष्ठी इतनी मनोरंजन थी कि फ्रेश होने जो भी जाता था फटाफट तैयार होकर आ जाता था ताकि वह कुछ मिस न कर दे। तीनों घूम कर आ गईं। अचानक पता चला कि कोई हाथ देखना जानता है। अब सबको अपने भविष्य की जानकारी लेनी थी तो उन सज्जन लेकर आ गई और सब ने नंबर लगा लिया । जिसका नंबर आता वह हस्त रेखा विशेषज्ञ के आगे अपना हाथ फैला कर जानकारी लेता। नाश्ता लग गया। डिनर से लेकर ब्रेकफास्ट तक जो हमारा आपस में सत्र चला था इसको क्या नाम दूं!



   अब 12 जून के पहले सत्र के लिए चल दीं। क्रमशः


 


 

Saturday, 23 July 2022

संस्कृति संरक्षण अभियान उत्तर क्षेत्रिय अभ्यासवर्ग भाग 4 नीलम भागी Part 4 Neelam Bhagi


सत्यराज लोक कला सदन हरियाणा की प्राचीन ग्रामीण लोक कला और संस्कृति को सुरक्षित रखने का प्रयास   

      यहां कपूरथला पंजाब में नानी के घर बचपन में उपयोग होने वाली लगभग सभी वस्तुएं थीं। मैं तो नौएडा में भी हमारी गाय गंगा, यमुना साथ लाई थी इसलिए मुझे सबसे पहले वे वस्तुएं नज़र आईं जो दूध के लिए इस्तेमाल होती थीं। कुछ के नाम मैं हिंदी में नहीं जानती क्योंकि उन्हें दादी और अम्मा जो पंजाबी में कहतीं थीं, वही मैं जानती हूं। आंगन में एक तरफ पड़ोली रखी रहती थी। जिसमें उपला(गोबर का कंडा) कोई न कोई डालता रहता था, उस पर बड़ी चाटी(मिट्टी की हण्डिया) दूध से भरी कढ़ती रहती थी। ये बदामी रंग का, धुएं की महक वाला दूध, पीतल के कंगनी वाले गिलास में गुड़ की डली के साथ पीना याद आने लगा। बचा दूध बड़ी चाटी में जमाया जाता। सुबह हाथ से बुनी पीढ़ी पर बैठ कर दहीं की मात्रा के हिसाब से मथनी का चुनाव होता, पुड लगा कर दोनों पैरों के अंगूठे उस पर टिका कर दहीं बिलोया जाता।



उसकी लय में नींद बहुत गहराने लगती, साथ ही साथ दादी का लड़की की जात पर भाषण शुरु हो जाता। अम्मा कानों से लैक्चर सुनते हुए जब तक मक्खन नहीं आ जाता, हाथ नहीं रोकती थी। नींद भगा कर उठते। जल्दी जल्दी काम में हाथ बटा कर, मक्खन रोटी और छाछ का ब्रेकफास्ट करके कॉलिज जाते। कांसे पीतल के बर्तन देख रही थी दादी याद आ रही थी जिसने अपने जीते जी लोहे(स्टील) के बर्तन नहीं आने दिए। बल्टोई देखकर लड़ाकी कृष्णा याद आई। उसका दूध बल्टोई में दूहते थे क्योंकि अगर उसकी लात पड़ी तो बल्टोई से ज्यादा दूध नहीं गिरता था। कंचे अब बच्चों को देखने को नहीं मिलते, यहां दिखे। ट्रांजिस्टर, रेडियो। लालटेन घर से बाहर खिड़की के आगे लटकी हुई जिससे कमरे में और बाहर भी रोशनी फैले।

      महिलाएँ कुछ भी बरबाद नहीं करतीं। बेकार कागज़ और मुल्तानी मिट्टी से लुगदी बना कर उससे टोकरियां बनातीं। ये टोकरियां नाज़ुक होतीं हैं इसलिए उसमें रुई की पुनिया और चरखें से काता सूत रखतीं थीं। कुछ महिलाओं में तो इतनी रचनात्मकता होती है कि वे घर की दीवारों और इन टोकरियों पर भी बेल, बूटे, फूल, पत्तियां, परिंदे बना देतीं हैं।



खजूर के पत्तों आदि से बने टोकरे टोकरियाँ देखीं। जब प्लास्टिक की तारे आ गईं तो उनसे बनी हैंण्डिल वाली खरीदारी करने के लिए डोलचियां भी रखीं थीं। तकड़ी(तराजू) यह आजकल सिर्फ कबाड़ियों के पास ही मिलता है।

दरातियां, रम्बे, गेहूँ छानने की छन्नियाँ, गंडासे, पत्थर की चक्की। खड़ाउं,

जोगियों के हाथ में रहने वाला वाद्ययंत्र जिसे तूंबा कहा जाता है। वो भी रखा था। किसी भी शुभ कार्य में महिला संगीत में तूंबे पर कोरस वाला गीत ज़रुर गाया जाता था।

कंचे
साधूवाद सत्यराज लोक कला सदन गांव ढिगाना जिला जींद को जिनके द्वारा किया गया है।   

 इस प्रदर्शनी को डिमोस्ट्रेशन करने वालों के लिए हार्दिक धन्यवाद करती हूं। मैंने तो कुल 30 मिनट उसे देखने में उनसे बातचीत करने में लगाए। उस समय मैं अकेली ही देख रही थी। उन्होंने मेरी तस्वीरें भी खींची। वे तो शाम तक भीषण गर्मी में प्रर्दशनी लगा कर बैठे थे। लंच अभी चल ही रहा था। मैं प्रशिक्षण हॉल में आई। ब्रेक में सब आपस में बतिया रहे थे। मैं भी बतरस में शामिल हो गई। 2.30 बजते ही सब अगले सत्र जिसका विषय था ’परिषद् के कार्यक्रम’ के लिए हम अपनी सीटों पर आकर बैठ गए। क्रमशः 


Friday, 22 July 2022

उत्तर क्षेत्रिय अभ्यासवर्ग भाग 3 नीलम भागी Part 3 Neelam Bhagi

 


           सड़क का रास्ता मुझे सदा अच्छा लगता है क्योंकि इससे शहर का परिचय हो जाता है। जींद की सीमा से पहले खूब बंदर सड़क के दोनो ओर थे।


शहर में घुसते ही भीड़ भाड़ वाला पुराना शहर है। कहीं सड़क के किनारे ही चारा मशीने लगी हुई हैं। भीषण गर्मी में भी हरे चारे से लदे हुए ट्रैक्टर की ट्रालियां खड़ी थीं। इसका मतलब है कि घर में गाय भैंस पाल सकते हैं क्योंकि चारा आस पास ही मिल जाता है।


कहीं सड़क के किनारे परिवार खजूर के पत्तों से झाड़ू बना और बेच रहे थे।

सम्पन्न शहर है दुकाने सामान से भरी हुईं थी और खरीदार भी थे। हुक्के की दुकाने भी आई जिसमें तरह तरह के हुक्के सजे हुए थे।


प्रशिक्षण शिविर में समय पर पहुंचने की जल्दी में मैं गाड़ी से नहीं उतरी। हुक्कों की तस्वीरें लेती रही। राजकुमार जी तम्बाकू की किस्में बताते रहे। रेलवे स्टेशन से छोटूराम किसान महाविद्यालय एक किमी दूर था। अब हम पहुंच चुके थे। आस पास बीजों की दुकाने देख कर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने सोच लिया था कि लौटते समय बीज खरीदूगीं। समय पर पहुंचने की कोशिश में हम रास्ते में कहीं चाय के लिए भी नहीं रुके क्योंकि नरेला मार्ग में निर्माण की वजह से वन वे ट्रैफिक होने से हम काफी लेट हो गए थे। महाविद्यालय सड़क पर ही है। पहुंचते ही हमने पंजीकरण करवाया। सभी आगंतुकों का अक्षत -रोली व तिलक के परम्परागत अभिनंदन



सहित महाविद्यालय प्राचार्य प्रो. राममेहर रेढु तथा जींद इकाई अध्यक्ष डॉ. मंजू रेढु ने हरियाणा, दिल्ली व कश्मीर से साहित्य परिषद के कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों का मंच पर भी विशेष सम्मान किया। पदाधिकारियों व अतिथियों के स्वागत के लिए पूरे महाविद्यालय परिसर को हरियाणवीं सांस्कृतिक प्रतीकों से सजाया गया था। आयोजन की शुरुआत माँ सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख अतिथियों द्वारा द्वीप प्रज्वलित कर की गई। डॉ. क्यूटी ने सरस्वती वंदना की और परिषद गीत का गायन किया।

          राष्ट्रीय महामंत्री ऋषि कुमार मिश्र ने कहा कि परिषद के साहित्यकारों का लक्ष्य सदैव लोक मंगल की भावना से युक्त होना चाहिए। विचारहीन साहित्य क्षणिक होता है। दूसरे सत्र में उन्होंने नए कार्यकर्ताओं के जुड़ाव, लक्ष्य के प्रति निष्ठा, संगठन में आने वाली बाधाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। स्थानीय इकाइयां ही किसी भी संगठन के मूल क्रियात्मक संघटक होते हैं। परिषद प्रसार के लिए प्रत्येक पदाधिकारी को अपना उत्तराधिकारी कार्यकर्ता अवश्य बनाना चाहिए। प्रांतीय अध्यक्ष प्रो. सारस्वत मोहन मनीषी ने सभी कार्यकर्ताओं से परिषद दायित्वों का तन्मयता से निर्वहन करते हुए राष्ट्र जागरण में जुट जाने का आवाहन किया।

         एक घण्टे का लंच ब्रेक था। महाविद्यालय में जब प्रवेश किया था तो मुझे दूर से विशाल बरगद के पेड़ के नीचे प्रदर्शनी सी दिखी थी। मैंने सोच रखा था लंच के बाद वहां जाकर देखूंगी। सुस्वादु भोजन के बाद मैं चल दी। गर्म लू के थपेड़े लग रहे थे। ग्रिल से बाहर मैं हैरान होकर प्रदर्शनी देखने लगीं। मैंने उनसे पूछा,’’मैं इन वस्तुओं को पास से देख सकती हूं।’’उन्होंने कहा,’’उधर से रास्ता है आप आइए।’’ मैं खुशी से उधर चल दी। पर वहां तो बंदरों का झुण्ड पहरेदारी कर रहा था। दो लोगों ने बंदरों को भगा कर मुझे वहां पहुंचाया। जहां संस्कृति संरक्षण अभियान के तहत प्रदर्शनी लगी थी। तेज गर्म हवा से मेरे बाल कपड़े उड़ रहे थे पर यहां तो मुझे अपनी 90़+ दादी, नानी याद आने लगीं और अब 93 साल की अम्मा, जो इनमें से प्रतिदिन किसी न किसी चीज का नाम लेती हैं। क्रमशः