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Wednesday, 1 March 2017

यमुना से यूनी तक का सफ़र, देसी पर विदेशी ठप्पा Yamuna se Yune Neelam Bhagi नीलम भागी

बहुमत मध्य प्रदेश एवम छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित समाचार पत्र में ,  केशव संवाद और ओम विश्रांति पत्रिका में यह लेख प्रकाशित 
   ’कटिंग करवा कर आई हो या आपके बाल चूहे ने कुतरे हैं।’ मुंबई एयरपोर्ट पर देखते ही  उत्कर्षिनी ने मुझ पर प्रश्न दागा और बड़े प्रेम से गले लगाया। सुनते ही मैं असहज सी हो गई। पर बाहर आने से पहले मैंने तो बालों में अच्छी तरह ब्रश भी किया था। कटिंग भी मैंने दिल्ली के नामी ब्यूटीपार्लर से करवाई थी। सभी को मेरी कटिंग बहुत पसंद आई थी पर ये कमंट! फिर मुझे याद आया उत्कर्षिनी को खाना तो देसी पसंद हैं पर हर विदेशी चीज में उसे गुण ही गुण नज़र आते हैं। मैंने सब्र किया कि इसकी तो आदत है। दो दिन बीते वो बोली,’’आप तैयार रहना, आपकी कटिंग यहाँ के मशहूर पार्लर से करवानी है। वहाँ चाइनीज़ लड़की कटिंग करती है। आपकी शक्ल बदल देगी। मैंने मन में सोचा इतने प्यार से करवा रही है, तो करवा लेती हूँ। एप्वाइमैंट लेकर हम दोनो चल दीं। रास्ते भर वह अपनी हेयर कटर यूनी की तारीफ़ करती रही।
   मैं कटिंग चेयर पर बैठी ही थी कि सफेद एप्रैन पहने यूनी आई। मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया। मेरे बालों की तारीफ करते हुए बोली,’’ आपके ऊपर ये कटिंग बहुत जच रही है। मेरे मना करने पर भी, तुरंत उसने नाशते का आर्डर दिया। वह लगातार अपनी समृद्धि का बखान कर रही थी और मैं उसके आत्मविशवास से भरे व्यक्तित्व को निहार रही थी। उसे देख कर मुझे इतनी खुशी हो रही थी कि मेरी औकात नहीं है कि मैं उसे शब्दों में बयान कर सकूं। उसने मुझे अपने घर पर भी आमंत्रित किया। जो मैंने उसकी व्यस्तता देख कर, समय की कमी बताकर टाल दिया। उत्कर्षनी, यूनी की धाराप्रवाह हिन्दी सुन कर हैरान थी! मैंने भी इस बातचीत में यूनी को एक बार भी उसके यमुना नाम से नहीं पुकारा। कटिंग तो यूनी ने पास कर दी, इसलिये करवाई नहीं गई। उसकी तरक्की की खुशी लेकर उससे विदाई ली।
   बाहर निकलते ही उत्कर्षनी ने पूछा,’’आप यूनी को कैसे जानती हो?’’मैं बोली,’’घर चल कर इत्मीनान से बताऊँगी।’’लंच बाहर से करके घर पहुँचते ही वह यूनी के बारे में जानने की जिज्ञासा में मेरे सामने बैठ गई। मैंने बताया कि यूनी का नाम यमुना है। यह सिंगापुर में श्वेता के घर में मेड थी। मैं सिंगापुर गई तो देखा, इसने बहुत अच्छे से उसका घर संभाल रक्खा था। श्वेता और अंकूर दोनों सुबह आठ बजे निकल जाते, शाम को सात आठ बजे तक लौटते। यमुना उनकी बच्ची ग्यारह महीने की रेया को बड़े प्यार से रखती, उसके सोने पर घर के काम निपटाती। शनिवार इतवार यमुना को फुरसत रहती। रेया अपने मम्मी पापा के पास रहती और ज्यादातर वे  घूमने चले जाते थे। कांट्रैक्ट के मुताबिक यमुना को महीने में दो संडे ऑफ मिलता था। यदि वह आफ नहीं लेती तो उसे एक संडे का बीस डाॅलर मिलता। यमुना मेरा बहुत ध्यान रखती। मैंने अपना समय इण्डियन ही रक्खा था। समय में ढाई घण्टे का र्फक था। अपनी आदत के अनुसार मैं रात बारह बजे सोती, सुबह सात बजे उठती। तब तक श्वेता अंकूर आफिस जा चुके होते थे। यमुना मेरी नींद खराब न हो, इसलिये रेया को मेरे कमरे से भी दूर रखती। मेरे खाने पीने का मेरी माँ की तरह ध्यान रखती। अक्सर वह काम करते समय एक गीत गाती जिसके बोल इस प्रकार हैंः
   चल गोरी ले जा बु तोके(मुझे) मोर गाँव, बाबा को बताइ दो, दादा को बताइ दो,
   के ले जा बु तो के, मोर गाँव, पहाड़ किनारे मोर गाँव, वो गोरी
   हरे हरे चाय के बगान......
उसके लोकगीतों में चाय के बागान और पहाड़ जरुर होते थे। पर इस घर की हर खिड़की से समुद्र और उसमें शिप नज़र आते थे। शाम को रेया को प्रैम में बिठा कर, हम ईस्ट काॅस्ट पार्क में समुद्र किनारे बनी बैंच पर आकर बैठ जाते। वो मुझसे दार्जिलिंग में रह रहे अपने घर परिवार की बातें करती। छ बहनों में वह चौथे नम्बर की है। वही विदेश में कमा रही है। अब उसकी छोटी बहन की शादी है। वह तो घर में काम करती है, वहीं रहती है, इसलिए उसका तो कोई खर्च नहीं है। पाँच सौ डाॅलर वह हर महीने अपने घर भेज देती है। सबकी शादी के बाद वो अपनी शादी करेगी। मैं यमुना के बारे में सोचती कि अब यह पिता की जिम्मेवारी निपटाने के लिए विदेश में खट रही है। शादी के बाद इसका पति भी तो इसे उसके परिवार के सहयोग के लिए विदेश  भेज सकता है। तब यह अपने पति बच्चों से भी दूर हो जायेगी।
  अक्सर समुद्र किनारे, यमुना से कोई चाईनीज़ आकर चीनी में कुछ पूछने लगता। यमुना उसे इशारों और बहुत कम शब्दों में, बड़ी मेहनत से जवाब देती। बाद में हंसते हुए मुझसे पूछती,’’क्या मैं चीनी लगती हूं? क्योंकि चाइनीज मुझसे चीनी में बात करते हैं।’’मैंने भी उसे मजाक में कहाकि तूँ ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर ले, सब तुझे चाइना की ब्यूटिशयन समझेंगे। बात आई गई हो गई। पर इस बार जब वो अपने सण्डे आफ से लौटी तो सीधे मेरे रुम में आई। उसने मुझे बताया कि आज वो ब्यूटीपार्लर गई थी। मैं उसका मुहँ देखने लगी और मेरे मन में प्रश्न उठने लगे कि ये तो पारिवारिक जिम्मेवारियों के कारण अपने कोई शौक़ ही नहीं रखती, आज कैसे ये पार्लर चल दी! मेरा सस्पैंस खत्म करते हुए बोली कि उसे मेरी चाइनीज़ ब्यूटीशियन वाली बात भा गई। इसलिए इस ऑफ पर वह हेयर कटिंग का कोर्स करने के लिए कई पार्लरस में गई। उसने अपनी परिस्थिति कई जगह बताई और एक जगह बात बन गई। अब वह शनिवार इतवार को वह छ घंटे के लिए हेयर कटिंग सीखने जाना चाहती थी, अगर मैम परमीशन दे तो! फिर विनती करते हुए बोली,’’मैं कोई ऑफ भी नहीं लूँगी। सुबह काम करके जाऊँगी और आकर करुँगी। रेया तो छुट्टी में वैसे ही अपने मम्मी पापा के साथ ही रहती है। मैं सब मैनेज़ कर लूँगी।’’ कुछ देर चुप रहने के बाद बोली,’’ मैं अपनी शादी के लिए पैसा नहीं जोड़ूगी, पैसा जोड़ूँगी सिर्फ, इण्डिया जाकर अपना ब्यूटीपार्लर खोलने के लिए’’। मैंने उसे कहा कि अब वह अपने कमरे में जाकर आराम करे। मैं इस बारे में श्वेता से बात करुँगी। वह चली गई। अब मेरा टी. वी. देखने में मन नहीं लग रहा था। सिंगापुंर के ग्यारह बजे वह मेरे पास से गई ,जबकि मुझे तो इण्डिया के बारह बजे तक जागने की आदत थी। मैं टी.वी बंद कर अपने कमरे में आ गई और लाइट बंद करके लेट गई। सामने खिड़की से रात में काले समुद्र में गोल घेरे में शिप्स की लाइटें चमकती दिख रहीं थीं। जो मुझे बहुत अच्छी लगती थीं। पर आज मैं यमुना के बारे में ही सोचने लगी। रेया के जन्म से पहले से वह इस घर में है। रात नौ बजे से सुबह छ बजे तक, उसकी डयूटी आफ रहती है। उस समय वह अपने कमरे में रहती थी। जिस संडे यमुना का ऑफ होता, शनिवार रात को अपने कमरे में जाने से पहले वह कोई काम नहीं छोड़ती, एक चम्मच तक रसोई में जूठा नहीं होता। ऐसे ही उस संडे रात को श्वेता अंकूर उसके लिए कोई काम नहीं छोड़ते। मतलब जैसा वह घर देती, वैसा ही वह उसे लौटाते हैं। मैं तो तीन महीने के लिए घूमने आई थी। अभी तो मुझे आए हुए कुल पंद्रह दिन ही हुए थे। श्वेता अंकुर रात दस बजे सो जाते क्योंकि सुबह उन्हे जल्दी उठना होता है। सब कुछ कांट्रैक्ट के अनुसार ही चल रहा था। ये तो उसके कांटैक्ट में नहीं था। रेया पाँच दिन मम्मी पापा से अलग रहती है इसलिए वीकएंड पर वे सारा समय उसके साथ बिताते थे। श्वेता की छोटी बच्ची के साथ गृहस्थी और नौकरी यमुना के कारण चल रही है। यमुना में भी मेड बनने के सिवाय कोई प्रशिक्षण नहीं है। कारण चाहे कुछ भी रहा हो। अब इसके मन में उमंग जगी है तो, हमें उसकी मदद करनी चाहिए। मैंने निश्चय कर लिया कि श्वेता कल ऑफिस से लौटेगी तो उसे यमुना को कोर्स करने भेजने के लिए राजी करना है।
    जब मैंने सिंगापुर एयरपोर्ट पर श्वेता को देखा तो वह पहले से मोटी हो गई थी। घर तो यमुना ने संभाल रक्खा था। मैंने वेट गेन पर टोका, तो उसने कहा," आप मुझे टोक टोक कर सुधारना।" अब वीकएंड पर वह स्वीमिंग करती थी। डिनर के बाद हम दोनों वाॅक पर निकल जाते थे। आज वाॅक पर मैंने जैसे ही यमुना की हेयरकटिंग सीखने की बात की तो सुनते ही वो खुश होकर बोली,’’यमुना बहुत अच्छी लड़की है। इसने रेया को बहुत प्यार से रक्खा है। मैं तो कंसल्टैंट हूँ। मेरी कंपनी जिस भी देश में उसकी ब्रांच है। वहाँ मुझे भेजती है। रेया इसके पास बड़े मजे से रुक जाती है। घरवालों ने इसे पढ़ाया नहीं, पर है बड़ी इंटैलिजैंट लड़की। मैटरनिटी लीव के समय मैंने इसे इंटरनैट सिखाया, फटाफट सीख गई। अब घर का सामान सब मेल से ऑर्डर करती है। कोई वेस्टेज़ नहीं। घर आते ही श्वेता ने यमुना से कहाकि मन लगा कर कटिंग सीखना। वीकएंड पर लंच हम बनाएंगे और तुम्हारे लिए रख देंगे। जब  कटिंग में परफैक्ट हो जाओगी। तब तक रेया भी प्ले स्कूल में जाने लायक हो जायेगी। इनाम में हम तुम्हें इण्डिया का टिकट देंगे। बैस्ट हेयरड्रैसर बनना। अगर कुछ कमीं रह जाएगी तो इण्डिया में चाइना की हेयरड्रैसर क्या किसी इण्डियन से सीखेगी? यमुना बस यस मैम, यस मैम करती जा रही थी। यमुना ने मुझे बताया कि जहाँ वो सीखने जा रही है, वो चाइनीज़ का ब्यूटीपार्लर है।
  पहले दिन जब वह पार्लर से लौटी तो उसने बताया इतने लंबे नाम की जगह उन्होंने मुझे यूनी कहना शुरु कर दिया। मैंने भी कहा,’’यूनी पहले तूँ कुछ खा ले।’’ वो हंसती हुई किचन में चली गई। उसके जाने से हमें कोई परेशानी नहीं हुई। वह लंच की पूरी तैयारी करके जाती थी। छोटी डिब्बियों में लहसून, अदरक, प्याज, हरीमिर्च, टमाटर कटे होते, सब्जी धो कर, काट कर रक्खी होती। दाल धोकर भिगोई होती। आटा गूंध कर, रायता बना कर फ्रिज में रख जाती। अक्सर उसकी लंच की तैयारीडिनर में काम आती क्योंकि वे मुझे घुमाने जाते और हर बार अलग देश के रैस्टोरैंट में वहाँ का ट्रेडीशनल खाना खिलाकर लाते। इसी तरह तीन महीने बीत गये। मेरे लौटने पर उसके आँसू नहीं थम रहे थे। मैंने उसे कहाकि मैं इण्डिया में तुझसे ही कटिंग करवाऊँगी। वो बोली,’’सच।’’श्वेता से फोन पर मैं उसके बारे में जरुर पूछती। सब ठीक चल रहा था। रेया प्ले स्कूल जाने लगी। अब सुबह शाम डोमैस्टिक हैलपर आती। यूनी को उसकी इच्छा से दार्जिलिंग भेज दिया गया। मैं भी ये सब भूल गई। मुंबई में तो मैं उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती थी। अब मैं जल्दी से श्वेता को यूनी के बारे में बताने के लिए उतावली हो रही थी। और अब यूनी के मुहँ से उसके यहाँ तक के सफ़र को जानने की इच्छा हो रही थी। उसकी व्यस्तता के कारण समय लेने में संकोच हो रहा था पर समय लूंगी और आपके साथ शेयर करूंगी।         
  

 

2 comments:

Neelam Bhagi said...

यमुना से यूनी तक का सफ़र

Sanjay kumar jain said...

बहुत ही प्रेरक कहानी यमुना से यूनी ।।वाह