96 वें साल में अम्मा 3 दिन से आईसीयू में हैं। हॉस्पिटल घर के पीछे ही है। विजिटिंग आवर्स में देख आतें हैं। बाजू में मेरे सोती हैं। उनका खाली बेड देखकर बड़ा अजीब लग रहा है। उनकी पिछली कुछ दिनों की बातें याद आ रही हैं । जीवन के पता नहीं कौन-कौन से फेस में चली जाती हैं। पहले सुबह 2 घंटे किताबों से पाठ करतीं थीं। सामने भगवानों के पुराने कैलेंडर लगा रखें हैं जिन्हें कोई हटा नहीं सकता। पाठ खत्म करके दूसरे कमरे में अपने बनाए मंदिर में माथा टेक कर, बाहर जाकर सूरज को हाथ जोड़कर फिर नाश्ता करती। एक दिन अचानक किताबों से पाठ करना बंद कर दिया! ऐसा उन्होंने आज तक नहीं किया था। अब जुबानी पाठ करती। पर अखबार शाम तक पूरी पढ़ती। अपने स्कूल की बातें, प्रयागराज में बिताएं 17 सालों की बातें करती। हॉस्पिटल जाने से पहले कई दिनों से हिंदी में ही बोलती। पंजाबी बिल्कुल बोलनी बंद कर दी। उन्हें धूप में बिठाकर मैंने गाढ़े रंग की शॉल से उन्हें लपेटा ताकि शरीर में अच्छी गर्मी आए, तो पंजाबी का लोकगीत मुझे हंसते हुए सुनाने लगीं।
नू कोलो डर्दी, मैं तां जुत्ती बी न पावंदी।
बुड्ढा तां लै आया सैंडल!
सुनो नी बेड़े वालियों , बुढ़ापा बड़ा लानतीं..........
मतलब कि बुढ़ापे में मैं बहू के कारण जूती भी नहीं पहनती लेकिन जो मेरा बुड्ढा है वह तो सैंडल लेकर आ गया। सुनो पड़ोसनो बुढ़ापा बड़ा लानतीं होता है।
उनके मुंह से पहले यह कभी ना सुनने वाला लोकगीत सुनकर खुशी से मैं पूछती अम्मा आगे क्या ?😃
अम्मा जवाब देती," आगे क्या? खुद बना, तुझे कॉलेज में इसलिए पढाया है कि आगे तुझे मैं ही बताऊं ।" बात-बात पर लोकोक्तियां पंजाबी की बोलतीं। वैसे हम पंजाबी में बात करते, वह हिंदी में जवाब देती। देखो! अम्मा कब तक हिंदी मोड में रहती हैं
1 comment:
हमारी अनन्त शुभकामनाएं
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