रोपड़ से हमारी बसें सुबह 11.30 बजे चलीं थीं। बस के अंदर भजन कीर्तन शुरु और अशोक भाटी ने सबको जल और मेवे का प्रशाद बांटना शुरु किया और साथ ही प्राकृतिक सौन्दर्य और सीधी चढ़ाई शुरु। पहले तो म्यूजिक सिस्टम पर बज रहे भजनों पर जम कर नाच होता रहा।
जैसे जैसे चढ़ाई की ऊंचाई बढ़ती जा रही थी। अब अशोक भाटी माता के जयकारे लगवा रहे थे। मैं जयमाता की भी बोल रही थी पर नज़रे मेरी बाहर ही टिकी हुईं थीं। क्योंकि ये 56वीं यात्रा थी, मेरे अंदर इसका बहुत कॉन्फिडेंस था इसलिए मुझे गहरी खाइयों, ऊंची सीधी चढ़ाइयों से जरा डर नहीं लग रहा था। बल्कि दिल में आ रहा था कि माता रानी तूने कितनी खूबसूरत वादियों में अपना भवन बनवाया है! रास्ते में बंदर बस की ओर भागते क्यों थे? ध्यान देने पर इसका भी जवाब मिल गया। कुछ यात्री इन्हें देख कर खिड़की से कुछ खाने को फैंक देते थे। 1 बजे हमें बस स्टैंड पर पहुंचा कर कहा कि जो पैदल जाना चाहते हैं, वे पैदल जायें और भवन तक वैन जाती हैं। मैं तो झट से बस से उतर कर एक वैन की आगे की सीट पर बैठ गई। हमारी साथी 6 सवारियां और बैठ गईं। ड्राइवर होशियार सिंह ने बताया कि 60रु प्रति सवारी आना जाना हैं और वैन चल पड़ी। वो तेज चलाने लगा तो मैंने उसे धीरे चलाने को कहा।
क्योंकि मैं इस खूबसूरत रास्ते को एंजॉय कर रही थी। अचानक मेरी होशियार सिंह की आवाज़ से तन्द्रा टूटी, वह बोला,’’आप मेरा मोबाइल न0 ले लों, ये सीढ़ियां हैं। दर्शन कर आओ। सब यहीं मिलना। मैंने सब की फोटो खींची।
कुछ सीढ़ी चढ़ी,
आगे थोड़ी सीढ़ियां शायद टूट गईं थीं। वहां छोटे छोटे गोल गोल पत्थर थे। दो चार ही कदम बढ़ाये, मुझे लगा कि मैं फिसल कर गिर जाउंगी। मैंने ऊपर देखा, मेरा कोई साथी नहीं।
किसी ने देखा, वह नीचे आया उसने मेरा हाथ पकड़ा, कुछ कदमों के बाद मैं सही सीढ़ियों पर आ गई। उसे धन्यवाद किया। इतने में मुझे आवाज आई।
दोनों ओर सजी दुकाने देखती, सीढ़ियां चढ़ती हुई
जूता भवन से टोकन लेकर मैं भवन पहुंच गई। वहां लिखा था
हिमाचल के बिलासपुर जिले में शिवालिक की पर्वत श्रेणी की पहाड़ियों पर स्थित नैना देवी भव्य मंदिर है। जो देवी के 51 शक्ति पीठों में शामिल है। यह स्थान नैशनल हाइवे न0 21 से जुड़ा है और समुद्र तट से 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर के गर्भ ग्रह में तीन मूर्तियां हैं। बीच में नैना देवी, बाईं ओर गणपति और दाईं ओर मां काली है। मंदिर में पीपल का पेड़ है जो कि अनेक शताब्दी पुराना है। मंदिर में चैत्र और शारदीय नवरात्रों में और सावन की अष्टमी को विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। देश के कोने कोने से श्रद्धालु यहां आकर मां की पूजा अराधना के साथ साथ आसपास के प्राकृतिक सौन्दर्य का भी आनन्द उठाते हैं। अन्य त्यौहारों पर भी श्रद्धालुओं की संख्या बहुत बढ़ जाती है। यहां आना भी बहुत आसान है। विमान से चण्डीगढ़ और वहां से मंदिर 100 किमी. दूर है। और वहां से बस या अन्य वाहनों से नैना देवी मंदिर तक पहुंच सकते हैं। पक्का सड़क मार्ग सभी सुविधाओं से युक्त है।
रेल से पालमपुर और चण्डीगढ़ तक भी जा सकते हैं। सबसे पास रेलवे स्टेशन आनंदपुर साहब है। यहां से मंदिर की दूरी 30 किमी. दूर है। रास्ते में होटल हैं जहां विश्राम किया जा सकता है। सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। जब सीढ़ियां उतर रही थी तो देखा यहां तो रोप वे(ट्रॉली) से भी आया जा सकता है।
बाहर आने से कुछ पहले मुझे वैन की साथिन मिल गई। वो देखते ही बोली,’’आप पता नहीं कहां रह जाती हो। न जाने क्या देखती रहती हो? जवाब में मैंने कहा,’’मैंने कभी किसी को इंतजार तो नहीं करवाया न। आप भी पहले जाकर, मेरे साथ ही उतर रही हो। सबके आने पर होशियार सिंह को फोन किया वो आ गया। उसकी गाड़ी पर एक झण्डा लगा था। मैंने पूछा,’’कहां से लिया?’’ बोला जमीन पर पड़ा था। उठा कर लगा लिया।
सबके आने पर हम अपनी बस की ओर चल दिए। क्रमशः