Search This Blog

Showing posts with label Chandriya. Show all posts
Showing posts with label Chandriya. Show all posts

Tuesday 4 December 2018

चंद्रहिया, चंपारण सत्याग्रह, यहाँ गांधी जी सबके प्रिय बापू कहलाये Bihar Yatra बिहार यात्रा भाग 4 नीलम भागी


धुंध के कारण रास्ते की तस्वीरें साफ नहीं आ रहीं थीं। यह देख कर और उन दिनों दिल्ली और नोएडा में हवा में पॉल्यूशन का स्तर बहुत बढ़ने से दोपहर तक फॉग रहता था। यहाँ धुंध देख कर और अभी तो सर्दी दस्तक ही दे रही थी। मैंने ड्राइवर साहेब से सुबह के सवा नौ बजे पूछा कि यहाँ भी धुंध रहती है! ड्राहवर साहेब बोले,’’ऐसे ही कोहरा है, कुछ ही देर में फ्रेश हो जायेंगे।’’ अच्छी बनी सड़क पर जिसके दोनो ओर दूर तक हरियाली ही दिख रही थी। साइड रोड पर अंदर चंद्रहिया गाँव में चंद्रिहया गाँधी स्मारक है। अभी 15 अप्रैल 1917 को जब बापू मोतिहारी पहुँचे तो उसी रात को उन्हें पता चला कि गाँव जसौली पटटी में किसानों पर बहुत अत्याचार किया जा रहा है। जिसका कारण नील की खेती था। बेतिया राज पतन पर था। अंग्रेजों ने उनसे पट्टे पर जमीन लेकर नील की खेती करवानी शुरू कर दी। मजदूरों को न के बराबर मजदूरी देते थे। एक बीघे में तीन कट्टे नील की खेती करना जरूरी था यानि तिनकटिया मतलब पंद्रहा प्रतिशत भूमि। अपनी जमीन पर अपनी मरजी से फसल भी नहीं पैदा कर सकते थे। बाबू लोमराज सिंह जसौला पट्टी के जमींदार थे। जगीरहां कोठी के जमादार थे। किसानों पर नीलहों के अत्याचार के कारण उन्होंने निल्हों की नौकरी को लात मार दी। अपने अदम्य साहस और जुझारूपन के गुणों कारण उन्होंने वहाँ किसानों को निल्हों के खिलाफ इक्ट्ठा करना शुरू किया। तिरकोलिया और पिपराकोठी में भी पीड़ितों को जोड़ा। ये काम आसान नहीं था। कोटक गांव के मिठुआवर के पास एक बड़ी सभा करने में वे कामयाब रहे। वे लगभग सात सौ किसानों के हस्ताक्षर  इस विरोध के लिए ले चुके थे। जसौली पट्टी में सत्याग्रह का बीजारोपण हो चुका था। इस काम को मुकाम तक पहुँचाना, उनके लिये आसान नहीं था। अंग्रेज साहब मि0 एमन के दमन के शिकार पं0राजकुमार शुक्ल ने भी विरोध का झंडा उठा लिया तो उसमें बाबू लोमराज की सिंह की शक्ति भी जुड़ गई। वकील बाबू गोरख प्रसाद की सलाह भी इसमें शामिल हो गई। गोरखप्रसाद जी ने इन्हें और इनके साथियों को बापू के द्वारा दक्षिण अफ्रीका में उनके द्वारा किए गये कार्यों को बताया और कहा कि अगर बापू आ जाये तो इस दमन, शोषण के विरूद्ध हमने जो शुरूवात की है। उसमें हमारी सफलता  निश्चित है। राजकुमार शुक्ला ऐसे समय बापू को लेकर आये। नामी वकीलों के साथ और गोरख प्रसाद जी, बाबू रामनवमी प्रसाद, धरनी बाबू के साथ वे हाथी पर बैठ कर जसौला पट्टी की ओर चल पड़े। चंद्रहिया पर यहाँ उन्हें अंग्रेज दरोगा ने गांधी जी को चंपारण  कलेक्टर डब्लू बी हेकॉक का नोटिस दिया। जिसमें कहा गया कि वो चंपारण छोड़ दें। गांधी जी ने कहा कि मैं सत्य को जाने बिना यहाँ से नहीं जाउँगा। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें वापिस मोतिहारी लाया गया। अगले दिन उन्हें अदालत में पेश किया गया। बाबू लोमराज सिंह की लोकप्रियता और जनशक्ति  इस कदर थी कि उनके साथ 10 हजार लोगों  की भीड़  थाने जेल और कचहरी के सामने जमा हो गई। सरकार ने बापू को छोड़ने का आदेश दिया। बापू ने कानून के अनुसार अपने लिये सजा की माँग की। गांधी जी ने इसके खिलाफ एसडी एम की अदालत में कानूनी लड़ाई, सत्य के आधार पर लड़ी। एक साल यह सत्याग्रह चला। किसानों के हक में डॉ0 अनुग्रह नारायण सिन्हा, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, रामनवमी प्रसाद, आचार्य जे. बी. कृपलानी, महादेव देसाई, नरहरि पारीख सत्याग्रह के साथ वहाँ के लोगो में आत्मविश्वास जगाते, उनको साफ सफाई का महत्व समझाते हुए, उनको शिक्षित करने के लिये योजनायें बनाने लगे। संत राउत ने यहाँ गांधी जी को बापू कहा। वे यहाँ सबके बापू हो गये। क्रमशः