अपने नवजात पुत्र लल्ला को गोद में लेते ही, मैं अपनी होने वाली सुशील बहू और उसके साथ मिलने वाले दहेज की सुन्दर कल्पना में खो जाती थी। मुझे दूसरी प्रैगनेंसी हुई, तो भी सभी महिलाओं ने कहा कि आपके तो इस बार भी, बेटा ही होगा। सिर्फ मेरी सासू माँ मेरे आराम करने पर, यह न कहे कि,’’बहू के लच्छन तो यही बताते हैं कि इस बार लड़की ही होगी। सारा दिन लेटी रहती है। बड़ी आलसी हो गई है। अगर लड़का होना हो, तो औरतें भागती फिरती हैं।’’ इसलिए मैं दिन भर अपने लाडले लल्ला के पीछे भागती फिरती रहती थी।
पर..... पैदा हो गई लल्ली। इसलिए अब मुझे महिलायें मानसिक रोगी लगती हैं। क्योंकि वे अपनी जानकार प्रैगनेंट औरत को अल्ट्रासाउण्ड मशीन की तरह, रिजल्ट बताती हैं कि तुम्हारे तो बेटा ही होगा। मुझे भी तो यही कहा था कि लल्ला का भइया होगा। ख़ैर.......
लल्ला के पैदा होने पर जोर-जोर से थाली पीटी गई थी। लल्ली के पैदा होने पर, मेरा जी कर रहा था कि अपना माथा पीट लूँ, पर पति ने कहा कि घर में लक्ष्मी आई है और प्यार से लल्ली का नाम गुड़िया रक्खा और मैंने भी अपनी भावनाओं पर कंट्रोल रक्खा।
लल्ला की बोतल का बचा दूध पीकर, उसके छोटे कपड़े पहन कर, उसके रिजेक्ट किये खिलौनों से खेलते हुए मेरी गुड़िया बड़ी हुई। भइया पंचमी का त्यौहार मनाते मनाते मेरी गुड़िया अपने आप समझ गई कि हमारे घर में भइया का दर्जा विेशेष है। जैसे दोनों बच्चे खेलने जाते, अगर लल्ला हार जाते या आउट हो जाते तो गुड़िया अपना चांस उसे दे देती। लल्ला से किसी बच्चे को चोट लग जाती, तो गुड़िया अपने कान पकड़ कर साॅरी करती रहती, फिर उठक बैठक लगाने लगती, जब तक दूसरे लल्ला को माफ नहीं कर देते। लेकिन उसके पापा ने उसका लल्ला के स्कूल में ही एडमीशन करवाया।
भला गुड़िया को इतने मंहगे स्कूल में एडमिशन दिलवाने की क्या जरुरत थी? मेरे मम्मी पापा ने मुझे ख़रैती स्कूल और काॅलिज में एम.ए तक पढ़ा कर पैसा बचाया और मेरे लिए अधिकारी पति जुटाया। अगर मेरे पिता जी पैसा न बचाते, तो अपने लिये अधिकारी दामाद खोज पाते भला ? नहीं,..... बिल्कुल नहीं। मैंने अपने पति को समझाया कि गुड़िया की शादी के लिए भी तो पैसा जोड़ना है। शिक्षा पर इतना मत खर्च करो। पर मेरी कोई सुने तब न।
मेरा ऐसा मानना है कि लड़कियों के लिए काम ही व्यायाम है। इसलिये काम मैं गुड़िया से ही करवाती हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं गुड़िया से प्यार नहीं करती। जब वह अपनी कज़न के साथ बैठी बतिया रही होती है, उस समय मुझे कोई काम कहना हो तो, काम मैं गुड़िया की बजाय उसकी कज़न को ही कहती हूँ। ये मेरा गुड़िया के प्रति प्यार ही तो है। कोई यदि कहता है कि आपकी गुड़िया बड़ी दुबली दिखती है तो मैं उन्हें समझाती हूँ कि इसकी न, जीरो फ़िगर है। कद छोटा है, नहीं तो माॅडल की जैसी दिखती।
गुड़िया को नैशनल स्वीमिंग कम्पटीशन से अण्डर वेट होने के कारण निकाल दिया गया। तब......
हमेशा व्यस्त रहने वाले उसके पापा ने पूछा,’’क्या गुड़िया ठीक से खाना नहीं खाती है।’’ मैंने उन्हें बताया,’’ ये न,... कुढ़ती बहुत है।’’ अब देखिये न, लल्ला जिम में पसीना बहाते हैं। आई. आई. टी. के लिए कोचिंग लेते हैं। कितनी मेहनत करते हैं! मैं उन्हें दुलार से ठूस-ठूस कर पौष्टिक आहार खिलाती हूँ। जिसका नतीज़ा, लल्ला का ऊँचा लम्बा कद और दर्शनीय बाॅडी है।
गुड़िया चाहती है, मैं उसे भी मनुहार करके भइया की तरह खिलाऊँ। मसलन लल्ला खाना खाते हैं, तो मैं उनकी दाल में घी डालती हूँ। सब्जी मैं उनसे पूछ कर ही बनाती हूँ। फिर भी उन्हें अगर सब्जी पसन्द नहीं आती है, तो मैं तुरन्त आर्डर करके रेस्टोरेंट से मंगवाती हूँ क्योंकि देर होने से लल्ला रुठ जाते हैं। लल्ला का यदि दूध पीने का मूड न हो तो मैं उनकी पसन्द का मिल्कशेक बना देती हूँ। यह सब देखकर गुड़िया चिढ़ी रहती है। इसमें चिढ़ने की भला कौन सी बात है ? पर हम तो अपने भइया से कभी नहीं चिड़े थे। ये सब भइया के स्कूल में पढ़ाने का नतीज़ा है। जो ये भइया से बराबरी करना चाहती हैं। पर ........
मैं तो इसकी माँ हूँ न। इसने पराये घर जाना है। मैं तो इसकी आदत नहीं बिगाड़ सकती न।
इतना ध्यान देने पर भी लल्ला पेमंट सीट पर इंजीनियर बने। अब जाॅब सर्च कर रहे हैं।
गुड़िया को हमारी तरफ से पूरी छूट थी ,जो मरजी पढ़े। न्यूज़ पेपर पढ़ कर, और कम्प्यूटर पर बैठ कर जो पढ़ाई कभी सुनी न थी, वह करके गुड़िया तो बढ़िया नौकरी भी पा गई है।
मेरे सामने के घर में "शर्मा परिवार अपनी तीन बेटियों के साथ रहने आया हैं। बेटियों को बेटों की तरह पाल रहें हैं और उनका चाव से जन्मदिन भी मनाते हैं। पर बेटों की माँ द्वारा किया जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत भी मिसेज शर्मा रखती हैं। मेरे अगर लल्ला से पहले, गुड़िया पैदा होती, तो मैं व्रत लल्ला के पैदा होने पर ही शुरु करती और लोगों के आगे आदर्श बघारती कि मैं तो दोनों के लिए व्रत करती हूँ। मेरे लिए तो बेटा बेटी दोनो बराबर हैं।
मिसेज शर्मा की हरकतों के कारण, मुझे उपदेश देने का दौरा पड़ गया। मैंने उनसे कहा,’’आपके पति तो मैडिकल लाइन में हैं। तब भी आपने तीन-तीन बेटियाँ पैदा की हैं। ऊपर से बेटों की लम्बी आयु की कामना के लिये रखने वाला व्रत भी, बेटियों के लिए रखती हो।’’उन्होंने उत्तर दिया,’’ न बेटी ने पास रहना है न बेटे ने, इन्हें प्यार से पालना, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा देकर, आत्मनिर्भर बनाना, हमारा कर्तव्य है। जो हम पूरा कर रहें हैं। उसने मेरे साँड की तरह पले बेरोज़गार लल्ला, और सूखी नाटी गुड़िया की ओर देख कर कहा,’’ क्या फर्क है बेटा बेटी में ?’’
लल्ला के पैदा होने पर जोर-जोर से थाली पीटी गई थी। लल्ली के पैदा होने पर, मेरा जी कर रहा था कि अपना माथा पीट लूँ, पर पति ने कहा कि घर में लक्ष्मी आई है और प्यार से लल्ली का नाम गुड़िया रक्खा और मैंने भी अपनी भावनाओं पर कंट्रोल रक्खा।
लल्ला की बोतल का बचा दूध पीकर, उसके छोटे कपड़े पहन कर, उसके रिजेक्ट किये खिलौनों से खेलते हुए मेरी गुड़िया बड़ी हुई। भइया पंचमी का त्यौहार मनाते मनाते मेरी गुड़िया अपने आप समझ गई कि हमारे घर में भइया का दर्जा विेशेष है। जैसे दोनों बच्चे खेलने जाते, अगर लल्ला हार जाते या आउट हो जाते तो गुड़िया अपना चांस उसे दे देती। लल्ला से किसी बच्चे को चोट लग जाती, तो गुड़िया अपने कान पकड़ कर साॅरी करती रहती, फिर उठक बैठक लगाने लगती, जब तक दूसरे लल्ला को माफ नहीं कर देते। लेकिन उसके पापा ने उसका लल्ला के स्कूल में ही एडमीशन करवाया।
भला गुड़िया को इतने मंहगे स्कूल में एडमिशन दिलवाने की क्या जरुरत थी? मेरे मम्मी पापा ने मुझे ख़रैती स्कूल और काॅलिज में एम.ए तक पढ़ा कर पैसा बचाया और मेरे लिए अधिकारी पति जुटाया। अगर मेरे पिता जी पैसा न बचाते, तो अपने लिये अधिकारी दामाद खोज पाते भला ? नहीं,..... बिल्कुल नहीं। मैंने अपने पति को समझाया कि गुड़िया की शादी के लिए भी तो पैसा जोड़ना है। शिक्षा पर इतना मत खर्च करो। पर मेरी कोई सुने तब न।
मेरा ऐसा मानना है कि लड़कियों के लिए काम ही व्यायाम है। इसलिये काम मैं गुड़िया से ही करवाती हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं गुड़िया से प्यार नहीं करती। जब वह अपनी कज़न के साथ बैठी बतिया रही होती है, उस समय मुझे कोई काम कहना हो तो, काम मैं गुड़िया की बजाय उसकी कज़न को ही कहती हूँ। ये मेरा गुड़िया के प्रति प्यार ही तो है। कोई यदि कहता है कि आपकी गुड़िया बड़ी दुबली दिखती है तो मैं उन्हें समझाती हूँ कि इसकी न, जीरो फ़िगर है। कद छोटा है, नहीं तो माॅडल की जैसी दिखती।
गुड़िया को नैशनल स्वीमिंग कम्पटीशन से अण्डर वेट होने के कारण निकाल दिया गया। तब......
हमेशा व्यस्त रहने वाले उसके पापा ने पूछा,’’क्या गुड़िया ठीक से खाना नहीं खाती है।’’ मैंने उन्हें बताया,’’ ये न,... कुढ़ती बहुत है।’’ अब देखिये न, लल्ला जिम में पसीना बहाते हैं। आई. आई. टी. के लिए कोचिंग लेते हैं। कितनी मेहनत करते हैं! मैं उन्हें दुलार से ठूस-ठूस कर पौष्टिक आहार खिलाती हूँ। जिसका नतीज़ा, लल्ला का ऊँचा लम्बा कद और दर्शनीय बाॅडी है।
गुड़िया चाहती है, मैं उसे भी मनुहार करके भइया की तरह खिलाऊँ। मसलन लल्ला खाना खाते हैं, तो मैं उनकी दाल में घी डालती हूँ। सब्जी मैं उनसे पूछ कर ही बनाती हूँ। फिर भी उन्हें अगर सब्जी पसन्द नहीं आती है, तो मैं तुरन्त आर्डर करके रेस्टोरेंट से मंगवाती हूँ क्योंकि देर होने से लल्ला रुठ जाते हैं। लल्ला का यदि दूध पीने का मूड न हो तो मैं उनकी पसन्द का मिल्कशेक बना देती हूँ। यह सब देखकर गुड़िया चिढ़ी रहती है। इसमें चिढ़ने की भला कौन सी बात है ? पर हम तो अपने भइया से कभी नहीं चिड़े थे। ये सब भइया के स्कूल में पढ़ाने का नतीज़ा है। जो ये भइया से बराबरी करना चाहती हैं। पर ........
मैं तो इसकी माँ हूँ न। इसने पराये घर जाना है। मैं तो इसकी आदत नहीं बिगाड़ सकती न।
इतना ध्यान देने पर भी लल्ला पेमंट सीट पर इंजीनियर बने। अब जाॅब सर्च कर रहे हैं।
गुड़िया को हमारी तरफ से पूरी छूट थी ,जो मरजी पढ़े। न्यूज़ पेपर पढ़ कर, और कम्प्यूटर पर बैठ कर जो पढ़ाई कभी सुनी न थी, वह करके गुड़िया तो बढ़िया नौकरी भी पा गई है।
मेरे सामने के घर में "शर्मा परिवार अपनी तीन बेटियों के साथ रहने आया हैं। बेटियों को बेटों की तरह पाल रहें हैं और उनका चाव से जन्मदिन भी मनाते हैं। पर बेटों की माँ द्वारा किया जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत भी मिसेज शर्मा रखती हैं। मेरे अगर लल्ला से पहले, गुड़िया पैदा होती, तो मैं व्रत लल्ला के पैदा होने पर ही शुरु करती और लोगों के आगे आदर्श बघारती कि मैं तो दोनों के लिए व्रत करती हूँ। मेरे लिए तो बेटा बेटी दोनो बराबर हैं।
मिसेज शर्मा की हरकतों के कारण, मुझे उपदेश देने का दौरा पड़ गया। मैंने उनसे कहा,’’आपके पति तो मैडिकल लाइन में हैं। तब भी आपने तीन-तीन बेटियाँ पैदा की हैं। ऊपर से बेटों की लम्बी आयु की कामना के लिये रखने वाला व्रत भी, बेटियों के लिए रखती हो।’’उन्होंने उत्तर दिया,’’ न बेटी ने पास रहना है न बेटे ने, इन्हें प्यार से पालना, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छी शिक्षा देकर, आत्मनिर्भर बनाना, हमारा कर्तव्य है। जो हम पूरा कर रहें हैं। उसने मेरे साँड की तरह पले बेरोज़गार लल्ला, और सूखी नाटी गुड़िया की ओर देख कर कहा,’’ क्या फर्क है बेटा बेटी में ?’’