शुरु में मुम्बई में कोई मुझसे पूछता?’’आप किस गांव से ? मैं तपाक से उन्हें सुधारने के लहजे़ में जवाब देती,’’मैं दिल्ली से हूं।’’फिर वो बाकियों से परिचय करवाते हुए कहतीं, इनका गांव बैंगलोर, इनका गांव कोलकता है यानि हमारे देश के महानगरों वाले, मुम्बई में सब गांव वाले। बाद में मुझे भी आदत हो गई थी। जब दिल्ली से लौटती तो कोई पूछता,’’दिखी नहीं!!’’मेरा जवाब होता,’’गाँव गई थी।’’वो बताती मैं भी आज ही गांव से लौटी हूं।’’मैं पूछती,’’तुम्हारा गांव का नाम? वो जवाब देती,’’चेन्नई।’’लेकिन त्यौहार में सारे गांव एक देश में तब्दील हो जाते हैं। नवरात्र के व्रत सबने कन्या पूजन से सम्पन्न किए। यानि हमारी एक ही संस्कृति हमें जोड़ती है। ये देखकर ही ताो कहते हैं कि भारत सभ्यताओं का नहीं, संस्कृति का राष्ट्र है। सभ्यताओं में संघर्ष हो सकता है पर संस्कृति हमें जोड़ती है। हमारी गीता इस दिन बहुत खुश रहती। छोटी सी गीता का उससे बड़ा पर्स गले में लटकाए रहती। लोखण्डवाला में अपनी सोसाइटी में एक दिन पहले ही उसका बुलावा, समय के साथ आता। बड़े दुलार से घरों में नौ देवियों के स्वरुप में नौ कन्याओं का पूजन होता।
सबके साथ गीता पैर धुलवाती, कलावा बंधवाती और तिलक लगवाती। सबसे छोटी थी जो दस वर्ष तक की कन्या दीदियां कहतीं वो करती यानि खा भी लेती। अपना गिफ्ट से उसे कोई मतलब नहीं, पर अपनी दक्षिणा तुरंत पर्स में रख लेती, जबकि पैसे गिनने उसे नहीं आते थे। उस दिन वह पर्स टांग कर बहुत गुमान में रहती थी। यू. एस. जाने पर रामनवमीं के दिन उत्कर्षिणी राजीव और उत्कर्षिणी की स्कूल की सहेली अंजली भी इनके पास आकर तीनों गीता को जिमातें हैं। वो बड़ी खुशी से अपना पूजन करवाती है। उसे हमेशा इस दिन का इंतजार रहता है। भारत आने पर श्वेता अंकूर उसे घघरा चोली चुनरी देते हैं। जिसे वह कन्या पूजन नवमीं पर पहनती है। इस बार उसने अपनी यूक्रेनियन सहेली को भी कन्यापूजन पर बुलाया। उत्कर्षिणी राजीव ने उसके माता पिता को भी पूजा में आमन्त्रित किया।
दोनों का कन्या पूजन किया। उसके माता पिता बहुत खुशी से इसमें शामिल हुए। पूजन के बाद सबसे पहले मातारानी का प्रशाद हलुआ, छोले और पूरी को खाया फिर जो मरजी साथ में खाओ।
इस बार गीता की छोटी बहन दित्या का कन्या पूजन किया।
का पहला कन्या