हम अपने बच्चों को वो सब देंगे जो हमें नहीं मिला है। ये लाइने मुझे अकसर सुनने को मिलती हैं। अपने आस पास के समाज को देखती हूँ तो मुझे माँ बाप संतान को हैसियत से ज्यादा देते हुए ही दिखते हैं। हमें भी हमारे अम्मा पिता जी ने दिया है और उन्हें भी उनके माँ बाप ने दिया होगा। ये इनसान की फितरत में शामिल है कि औलाद के भविष्य को बनाने के लिए आस पास की दुनिया से बेखबर होकर जुट जाना। सभी चाहते हैं कि उसकी संतान उससे कई सोपान ऊपर हो। झुग्गी झोपड़ी के अनपढ़ लोगो के बच्चों को मैंने पच्चीस साल पढ़ाया। मैंने देखा जिसने भी अपने बच्चे को स्कूल भेजना बंद किया, उसका मुख्य कारण आर्थिक ही था। पापा की फैक्टरी में ताला बंदी हो गई. खायें कहाँ से? गाँव वापिस लौटना मजबूरी है। बाइयों को अगर किसी के घर से फल या मिठाई मिलती, वह स्वयं न खाकर, स्कूल के आसपास मंडराती रहती किसी बच्चे को देखते ही इशारे से बुला कर, ,खाने का सामान अपने बच्चे के लिए भिजवाती। सबसे ज्यादा मैं उन बाइयों का सम्मान करती जो झाड़ू, पोचा बर्तन करने के लिए अपनी बच्चियों को साथ न ले जाकर उन्हें पढ़ने भेजतीं क्योंकि वे भी अपनी बच्चियों को अपनी मैडम की तरह देखना चाहती थीं। इतने सालो में सिर्फ एक बच्चा ओबीराम को मैं आज तक नहीं भूली, पढ़ने का बेहद शौकीन, हैण्डराइटिंग उसकी बहुत ही सुंदर!ने स्कूल आना बंद कर दिया। मैंने उसके साथी बच्चों से स्कूल न आने का कारण पूछा, उन्होंने बताया कि वह पॉलिथिन बिनने जाने लगा है। घर का पता तो इनका यही होता था आठ, नौ, पाँच सेक्टर झुग्गी और पिता का नाम। मैंने उसके पड़ोसियों से उसके माता पिता को बात करने के लिए बुलवाया। पता चला कि वे झुग्गी बेच कर कहीं और चले गए हैं क्योंकि उसका पिता मंहगा नशा करता है इसलिये ओबीराम का पन्नी बिनना बहुत जरूरी है। एक मशहूर टी.वी. शो में बाल दिवस के कारण सप्ताह बच्चों के लिए रखा गया। एक बच्चे से पहला प्रश्न पूछा गया कि इनमें से किसका स्वाद खट्टा मीठा है। चार विकल्प थे जिसमें इमली भी था। मेधावी बच्चे को नहीं पता था। उसने लाइफ लाइन का ऑडियंस के लिए इस्तेमाल किया। ऑडियंस भी बच्चे थे। 99 से ज्यादा प्रतिशत बच्चों का उत्तर था इमली। यह सुन कर एंकर भी बहुत हैरान हुए, जब बच्चे ने कहा कि उसने कभी इमली को देखा ही नहीं। एंकर ने शो में कई बार उस लायक बच्चे को कहा कि घर जाकर इमली जरूर खाना। किसी भी प्रश्न का वह तुरंत जवाब देता। जब उससे गुलिवर की यात्रा का साधारण प्रश्न पूछा, उसने लाइफ लाइन का इस्तेमाल किया। यानि माता पिता ने उसे असाधारण बनाने के लिए साधारण से दूर रक्खा। शायद शुरू के चार या पाँच प्रश्नों में सबसे सरल दो प्रश्नों में वह दो लाइफ लाइन इस्तेमाल कर चुका था। अगर उस बच्चे से सरल की जगह मुश्किल प्रश्न पूछे जाते तो वह निश्चय ही जवाब देता। जिस व्यंजन में इमली जो स्वाद देगी, वो अमचूर या अनारदाने का पाउडर नहीं देगा। मैं, अनिल, अंजना भाई बहन मेरठ मेंं के. वी. डोगरा लाइनस में पढ़ते थे। हम सबके दोस्त एक ग्रुप में पैदल घर से स्कूल आते जाते थे। कैंट एरिया है। आज की तरह स्कूल का गेट अलग नहीं था। कहीं से भी आते जाते थे। इमली, कैथा, अमरक, अमरूद, जामुन, चिलबिल, जंगल जलेबी, बेल पत्थर, अमरक न जाने क्या क्या जो भी उस एरिया में पेड़ होते उसके फल तोड़ना अपना अधिकार समझते थे। लड़के पेड़ पर चढ़ते थे। हम कैच करते थे। कोई डर भय नहीं होता था। नवीं कक्षा में आते ही ये कर्म अपने आप छोड़ देते थे। हमारे देश की धरती ने हमें जो भी वनस्पति खाने को दी है उससे अपने बच्चों को सर्मथ अनुसार परिचित कराया है और बाल साहित्य पढ़ाया है। वे भी अपने बच्चों को ऐसे ही पाल रहें हैं ताकि उनके बच्चों को इ से इमली और ई से ईख का स्वाद पता हो और वे उनकी तरह पंचतंत्र की कहानियों का रस ले। सिंगापुर रेया और अमेरिका से गीता आई। मेरे भाई यशपाल ने दोनों को कटोरी में करोंदे नमक लगाकर दिए। नमक लगा लगा कर वे उसे खा रहीं थीं और उनको वह याद करा रहा था करौंदा करौंदा। अपने बच्चों को वो जरूर दें जो उन्हें उनके माता पिता से मिला है मसलन गन्ने की गनेरियां भी। बाद में तो उनके लिए पूरी दुनिया के रास्ते खुले हैं।
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Thursday, 15 November 2018
हम अपने बच्चे को वह सब देंगे जो हमें.... नीलम भागी Neelam Bhagi नीलम भागी E se Imali E se EEkh
हम अपने बच्चों को वो सब देंगे जो हमें नहीं मिला है। ये लाइने मुझे अकसर सुनने को मिलती हैं। अपने आस पास के समाज को देखती हूँ तो मुझे माँ बाप संतान को हैसियत से ज्यादा देते हुए ही दिखते हैं। हमें भी हमारे अम्मा पिता जी ने दिया है और उन्हें भी उनके माँ बाप ने दिया होगा। ये इनसान की फितरत में शामिल है कि औलाद के भविष्य को बनाने के लिए आस पास की दुनिया से बेखबर होकर जुट जाना। सभी चाहते हैं कि उसकी संतान उससे कई सोपान ऊपर हो। झुग्गी झोपड़ी के अनपढ़ लोगो के बच्चों को मैंने पच्चीस साल पढ़ाया। मैंने देखा जिसने भी अपने बच्चे को स्कूल भेजना बंद किया, उसका मुख्य कारण आर्थिक ही था। पापा की फैक्टरी में ताला बंदी हो गई. खायें कहाँ से? गाँव वापिस लौटना मजबूरी है। बाइयों को अगर किसी के घर से फल या मिठाई मिलती, वह स्वयं न खाकर, स्कूल के आसपास मंडराती रहती किसी बच्चे को देखते ही इशारे से बुला कर, ,खाने का सामान अपने बच्चे के लिए भिजवाती। सबसे ज्यादा मैं उन बाइयों का सम्मान करती जो झाड़ू, पोचा बर्तन करने के लिए अपनी बच्चियों को साथ न ले जाकर उन्हें पढ़ने भेजतीं क्योंकि वे भी अपनी बच्चियों को अपनी मैडम की तरह देखना चाहती थीं। इतने सालो में सिर्फ एक बच्चा ओबीराम को मैं आज तक नहीं भूली, पढ़ने का बेहद शौकीन, हैण्डराइटिंग उसकी बहुत ही सुंदर!ने स्कूल आना बंद कर दिया। मैंने उसके साथी बच्चों से स्कूल न आने का कारण पूछा, उन्होंने बताया कि वह पॉलिथिन बिनने जाने लगा है। घर का पता तो इनका यही होता था आठ, नौ, पाँच सेक्टर झुग्गी और पिता का नाम। मैंने उसके पड़ोसियों से उसके माता पिता को बात करने के लिए बुलवाया। पता चला कि वे झुग्गी बेच कर कहीं और चले गए हैं क्योंकि उसका पिता मंहगा नशा करता है इसलिये ओबीराम का पन्नी बिनना बहुत जरूरी है। एक मशहूर टी.वी. शो में बाल दिवस के कारण सप्ताह बच्चों के लिए रखा गया। एक बच्चे से पहला प्रश्न पूछा गया कि इनमें से किसका स्वाद खट्टा मीठा है। चार विकल्प थे जिसमें इमली भी था। मेधावी बच्चे को नहीं पता था। उसने लाइफ लाइन का ऑडियंस के लिए इस्तेमाल किया। ऑडियंस भी बच्चे थे। 99 से ज्यादा प्रतिशत बच्चों का उत्तर था इमली। यह सुन कर एंकर भी बहुत हैरान हुए, जब बच्चे ने कहा कि उसने कभी इमली को देखा ही नहीं। एंकर ने शो में कई बार उस लायक बच्चे को कहा कि घर जाकर इमली जरूर खाना। किसी भी प्रश्न का वह तुरंत जवाब देता। जब उससे गुलिवर की यात्रा का साधारण प्रश्न पूछा, उसने लाइफ लाइन का इस्तेमाल किया। यानि माता पिता ने उसे असाधारण बनाने के लिए साधारण से दूर रक्खा। शायद शुरू के चार या पाँच प्रश्नों में सबसे सरल दो प्रश्नों में वह दो लाइफ लाइन इस्तेमाल कर चुका था। अगर उस बच्चे से सरल की जगह मुश्किल प्रश्न पूछे जाते तो वह निश्चय ही जवाब देता। जिस व्यंजन में इमली जो स्वाद देगी, वो अमचूर या अनारदाने का पाउडर नहीं देगा। मैं, अनिल, अंजना भाई बहन मेरठ मेंं के. वी. डोगरा लाइनस में पढ़ते थे। हम सबके दोस्त एक ग्रुप में पैदल घर से स्कूल आते जाते थे। कैंट एरिया है। आज की तरह स्कूल का गेट अलग नहीं था। कहीं से भी आते जाते थे। इमली, कैथा, अमरक, अमरूद, जामुन, चिलबिल, जंगल जलेबी, बेल पत्थर, अमरक न जाने क्या क्या जो भी उस एरिया में पेड़ होते उसके फल तोड़ना अपना अधिकार समझते थे। लड़के पेड़ पर चढ़ते थे। हम कैच करते थे। कोई डर भय नहीं होता था। नवीं कक्षा में आते ही ये कर्म अपने आप छोड़ देते थे। हमारे देश की धरती ने हमें जो भी वनस्पति खाने को दी है उससे अपने बच्चों को सर्मथ अनुसार परिचित कराया है और बाल साहित्य पढ़ाया है। वे भी अपने बच्चों को ऐसे ही पाल रहें हैं ताकि उनके बच्चों को इ से इमली और ई से ईख का स्वाद पता हो और वे उनकी तरह पंचतंत्र की कहानियों का रस ले। सिंगापुर रेया और अमेरिका से गीता आई। मेरे भाई यशपाल ने दोनों को कटोरी में करोंदे नमक लगाकर दिए। नमक लगा लगा कर वे उसे खा रहीं थीं और उनको वह याद करा रहा था करौंदा करौंदा। अपने बच्चों को वो जरूर दें जो उन्हें उनके माता पिता से मिला है मसलन गन्ने की गनेरियां भी। बाद में तो उनके लिए पूरी दुनिया के रास्ते खुले हैं।
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