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Friday, 15 November 2019

भक्तिकालीन साहित्य का इतिहास (पूर्वोत्तर भारत का भक्ति साहित्य) नीलम भागी


अखिल भारतीय साहित्य परिषद् न्यास द्वारा प्रकाशित
अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा आठ राज्यों से मिलकर बना क्षेत्र भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र कहलाता है। आसाम राज्य में पहले मणिपुर को छोड़ कर बंगलादेेश के पूर्व में स्थित भारत का संपूर्ण क्षेत्र सम्मिलित था। इसलिये इसकी सीमाओं से सटे राज्यों में भी यहाँ के भक्ति साहित्य का प्र्रभाव है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस स्थान को प्रागज्योतिच्ह के नाम से जाना जाता हे। महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ की उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार उषा ने अपनी सखी चित्रलेखा द्वारा अनिरुद्ध का अपहरण करवाया था। यह बात यहाँ की दंतकथाओं में भी सुनने में आती है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उसका अपहरण कर लिया था। इस घटना को यहाँ कुमार हरण के नाम से जाना जाता है। असम सात बहनों तक जाने का प्रवेश द्वार है। 
पूर्वोतर भक्ति साहित्य को जानने के लिये असम साहित्य को पाँच कालों में विभक्त किया जा सकता है।
1. वैष्णवर्पूव काल 1200-1449 ई. असमिया साहित्यिक  अभिरुचियों का प्रर्दशन 13वीं शताब्दी में कंदलि के द्रोण पर्व (महाभारत) तथा कंदलि के रामायण से आरम्भ हुआ। उपलब्ध सामग्री के अनुसार हेम सरस्वती और हरिवर विप्र असमिया के प्रारंभिेक कवि माने जा सकते हैं। हेम सरस्वती  का प्रह्लादचरित्र असमिया का प्रथम लिखित ग्रंथ माना जाता है। ये दोनो कवि  कमतातुर पश्चिमी कामरुप  के शासक दुर्लभनारायण के आश्रित थे। एक तीसरे कविरत्न सरस्वती भी थे। जिन्होंने ’जयद्रथवध’ लिखा। परंतु वैष्णवर्पूवकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि माधव कन्दली हुए, जिन्होंने महामाणिक्य के आश्रय  में रहकर अपनी रचनाएं कीं। माधव कन्दली के  रामायण के अनुवाद को विशेष ख्याति प्राप्त हुई। संस्कृत शब्द समूह को असमिया में रुपांतरित करना कवि की विशेष कला थी। लोकमानस में उस समय तंत्र मंत्र मनसापूजा आदि के विधान यहाँ की इन रचनाओं में अधिक चर्चित हुए। 
2. वैष्णवकाल     1400-1650 ई विष्णु से संबद्ध कुछ देवताओं को इस काल की पूर्ववर्ती रचनाओं को महत्व दिया गया था। परंतु आगे चल कर विष्णु की पूजा की विशेष रुप से प्रतिष्ठा हुई। स्थिति के इस परिवतर््ान में असमिया के महान कवि और र्धमसुधारक शंकरदेव(1449-1568)ई. का योग सबसे अधिक था। शंकरदेव की अधिकांश रचनाएं भागवत पुराण पर आधारित हैं। उनके मत को भागवती र्धम कहा जाता है। शंकरदेव की रचनाओं ने असमिया जनजीवन और संस्कृति को विशिष्टता में ढालने का श्रेय प्राप्त किया है। उनके साहित्य के कारण कुछ समीक्षक उनके व्यक्तित्व को केवल कवि के रुप में ही सीमित नहीं करना चाहते। वे मूलतः उन्हें धार्मिक सुधारक के रुप में मानते हैं। श्ंाकरदेव की भक्ति के मुख्य आश्रय थे श्रीकृष्ण। उनकी लगभग तीस रचनाएं हैं। जिनमें से ’कीर्तनघोष’ उनकी सर्वोत्कृष्ट कृति है। असमिया साहित्य के प्रसिद्ध नाट्यरुप ’अंकिया नाटक’ के प्रारंभकर्ता भी शंकरदेव ही हैं। उनके नाटकों में गद्य और पद्य का बराबर मिश्रण मिलता है। इन नाटकों की भाषा पर मैथिली का प्रभाव है। ’अंकिया नाटक’ के पद्यांश को ’वरगीत’ कहा जाता है, जिसकी भाषा प्रमुखतः ब्रजबुलि है।
       इस युग के दूसरे महत्वपूर्ण कवि माधवदेव हुए जो शंकरदेव के शिष्य हैं। उनका व्यक्तित्व बहुमुखी था। वे कवि होने के साथ साथ संस्कृत के विद्वान, नाटकार, संगीतकार और धर्मप्रचारक भी थे। ’नामघोषा इनकी विशिष्ट कृति है। इस युग में अनंत कंदली, श्रीधर कंदली तथा भट्टदेव विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं।
 
3. गद्य बुरंजी काल 1650-1926 ई अहोम राजाओं के असम में स्थापित हो जाने पर उनके आश्रय में रचित साहित्य की प्रेरक प्रर्वती धार्मिक न होकर लौकिक हो गई। इस में कवियों ने आश्रयदाता राजाओं का यशवर्धन किया। बहुमुखी साहित्य सर्जन तो हुआ जैसे ज्योतिष, गणित, चिकित्सा, विज्ञान संबंधी ग्रंथों का सृजन हुआ। कला तथा नृत्य विषयक पुस्तके भी लिखी गई। राजाश्रय होने के कारण इसमें र्धमनिरपेक्षिता की प्रवृति स्पष्ट रुप से देखी जा सकती है। दो सूफी काव्यों कुतुबन की ’मृगावती’ तथा मंझन की ’मधुमालती’ के कथानको के आधार पर दो असमिया काव्य लिखे गये। यह युग गद्य के विकास का रहा। 17 बार यहाँ मुगलों ने आक्रमण किया। केवल दो वर्ष तक राज्य कर पाये। बाद में ब्रिटिश हकूमत का प्रभाव पड़ा। भक्ति साहित्य की रचना कम होती गई।
4. आधुनिक काल   1026-1947 ई इसे अंग्रेजी शासन के साथ जोड़ा जा सकता है। यहाँ 1826 ई. अंग्रेजी शासन के प्रारम्भ की तिथि है। 1838 ई. से ही विदेशी मिशनरियों ने सामाजिक विषमता को ध्यान में रखकर व्यवस्थित ढंग से अपना कार्य आरम्भ किया। जनता में र्धमप्रचार का माध्यम असमिया को ही बनाया। अंगेजी शासन के युग में अंग्रेजी और यूरोपीय साहित्य के अध्ययन मनन से असमिया के लेखक प्रभावित हुए। कुछ पाश्चात्य आर्दश बंगला के माध्यम से भी अपनाये गये।
5. स्वाधीनतोत्तर काल 1947 अंग्रेजी कवियों से मुख्यतः प्रेरित नये असमिया लेखकों को मुख्यतः प्रेरणा मिली।
  धार्मिक अवसरों पर गाये जाने वाले अलिखित और अज्ञात लेखकों द्वारा प्रस्तुत वस्तुतः अनेकानेक लोकगीत मिलते हैं। जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक मौखिक परांपरा से सुरक्षित है इसमें भक्ति, आचारों के बीच का मौखिक साहित्य या जो जनप्रिय लोकगीतों और लोककथाओं का है या नीतिवचनों तथा मंत्रों सम्बध है। बहुत प्राचीन काल से तंत्र मंत्र की परंपरा रही है। कामरुप से घनिष्ठ संबंध होने से प्रदेश की तांत्रिक परंपरा को देखते हुए  काफी स्वाभाविक जान पड़ता है। ये साहित्य बहुत बाद में लीपिबद्ध हुआ है। जो असम से अलग हुए या जिनसे असम की सीमा लगी है। उनमें असम भक्ति साहित्य के प्रभाव की झलक मिलती है।
  मेघालय अर्थात बादलों का घर 21 जनवरी 1972 को पूर्णराज्य बना। उत्तर पूर्वी सीमाएं असम से और दक्षिणी पश्चिमी सीमाएं बंगलादेश से मिलने के कारण भक्ति साहित्य असम और बंगाल जैसा है। वर्षा अधिक होने के कारण सूर्यदेवता के सम्मान में गारो आदिवासी अक्तूबर नवम्बर में ’वांगला’ नामक त्योहार मनाते हैं। यह त्यौहार लगभग एक हफ्ते तक मनाया जाता है। मौखिक पीढ़ी दर पीढ़ी परम्परा से सूर्य की आराधना की जाती है। 
  मणिपुर साहित्य में वैष्णव भक्ति तथा मणिपुर की कला और संस्कृति झलकती है। दंत कथा के अनुसार रुक्मणी को भगवान कृष्ण आम भाषा में कहते हैं, भगा कर ले गये थे। ज्यादातर इसी से सम्बंधित लोक गीत, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाट्य, जनश्रुतियां पहेलियां आदि पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलती रहती हैं। आततायियों के कई आक्रमण झेल कर भी मणिपुर अपनी अस्मिता,  अपनी पहचान एवं सांस्कृतिक मूल्य सुरक्षित रख पाया है। राधा कृष्ण के मणिपुरी नृत्य विश्व प्रसिद्ध हैं। भावभंगिमाओं के साथ पोशाक बहुत आर्कषक होती है। बांग्ला लिपि में लिखी जाने वाली मणिपुरी को विष्णुप्रिया कहते हैं।
  अरुणाचल प्रदेश का गठन 20 फरवरी 1987 को हुआ था। अरुणाचल का हिन्दी अर्थ उगते सूर्य का पर्वत है। प्रदेश की सीमाएं दक्षिण में असम, दक्षिण पूर्व में नागालैंड, पूर्व में म्यांमार, पश्चिम में भूटान और उत्तर में तिब्बत से मिलती हैं। अलग अलग समुदायों के अलग अलग त्यौहार हैं। ज्यादाजर त्यौहारों में पशुओं की बलि चढ़ाने की पुरानी परंपरा है। मौखिक परंपरा के रुप में थोड़ा सा साहित्य है, वह भी बंगला, असमिया की सीमा लगने के कारण।
    फरवरी 1987 को यह भारत का 23वां राज्य बना। ये असम का एक जिला था। इस समय यहाँ इसाई धर्म को ही मानते हैं।
  नागालैंड का गठन 1 दिसम्बर 1963 को 16वें राज्य के रुप में हुआ था। नागालैंड की सीमा पश्चिम में असम से, उत्तर में अरुणाचल से, पूर्व में र्बमा से और दक्षिण में मणिपुर से मिलती है। 16 जनजातियां हैं । अंग्रेजी राज्य भाषा है। ईसाई धर्म है। बाकि हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन असम की तरह ही है।
   16 मई 1975 में सिक्किम औपचारिक रुप से भारतीय गणराज्य का 22वां प्रदेश बना और सिक्किम में राजशाही का अंत हुआ। सिक्किम भारत के पूर्वोतर भाग में अंगूठे के आकार का पर्वतीय राज्य है। पश्चिम में नेपाल, उत्तर तथा पूर्व में चीनी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र तथा दक्षिण पूर्व में भूटान से लगा हुआ है। भारत का पश्चिम बंगाल राज्य इसके दक्षिण में है। हिन्दू तथा बज्रयान बौद्ध धर्म सिक्किम के प्रमुख धर्म हैं। इसके उत्तरी पश्चिम भाग में नेपाल की सीमा पर है।
  त्रिपुरा की सीमाएं मिजोरम, असम, बांग्लादेश से लगी हुई हैं। उत्तर, दक्षिण तथा पश्चिम में यह बांग्लादेश से घिरा हुआ है। 15 अक्तूबर 1949 को इसे भारतीय संघ में विलय किया गया। त्रिपुरा की सभ्यता के साथ यहां मनासा मंगल या कीर्तन आदि प्रसिद्ध नृत्य तथा संगीत हैं। कई पौराणिक एवं ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित हैं। लगभग सभी पूर्वोतर भारत में बीहू के साथ, भक्तिभाव से दुर्गापूजा मनाते हैं।