प्लेन में जाते समय वे मेरे पीछे ही उसमें दाखिल हुए। प्लेन में सीट मेरी पहले थी, उनकी मुझसे तीन लाइने छोड़ कर पीछे थी। इसलिये यहाँ एयरहोस्टेज ने उन्हें उनकी सीट पर पहुँचा दिया। जैसे ही प्लेन लैंड किया। सीट बैल्ट खुलते ही क्या देखती हूं!!ं पूंछ मेरे बाजू में खड़ी थी। फ्लाइट में यदि मेरी विंडो सीट होती है तो मैं सबसे बाद में ही उतरती हूं, ये सोचते हुए कि गाड़ी तो नहीं है जो आपका स्टेशन छूट जायेगा। अब मैं खड़ी हुई तो वे बिना पीछे वालों को सॉरी बोले मुझे अपने आगे जगह देने को वे पीछे हो गये। मुझे उनके आगे लगना मजबूरी थी क्योंकि उनके पीछे वालों को भी तो उतरना था। उतरते ही कागज़ी कार्यवाही की लाइन में लगे। क्लीयर होते ही मैं सामान केे लिये अपनी बैल्ट की खोज में चल दी। सामान लेते ही, जैसे ही उनका लगेज आया। मैंने अपनी सीधी सरल पूछं से पूछा कि आपको कोई लेने आ रहा है। उनका जवाब था नहीं जी। वे मुझसे बोले,’’हमें पंजाब जाना है, कश्मीरी गेट से बस मिलेगी।’’हमें यहाँ से कश्मीरी गेट बस अड्डे के लिए कोई ऑटो या टैक्सी कर दो।’’मुझे उसी समय एक सुनी हुई घटना याद आ गई। पंजाब में हम शादियों में अपने ननिहाल जाते हैं तो रसोई संभालने के लिए महाराजिन आती है। उसे सब मासी कहते हैं। एक साल पहले मैं शादी में गई वह मुझे बड़े प्यार से खाना खिलाती जा रही थी और साथ ही दिल्ली वालों को कोस रही थी। उससे पहले एक शादी में वो अपने बेटे लाडी के अमेरिका जाने से बेहद खुश थी। इस खुशी का भी एक बहुत बड़ा कारण है वो ये कि वहाँ लड़को की क्वालिफिकेशन विदेश है। किसी से पूछो कि आपके बेटे ने क्या किया है? वे बड़े फख्र से जवाब देते हैं कि साडा मुंडा अमरिका च या अंगलैंड च या कनाडा च है। मतलब हमारा लड़का इंगलैंड, अमेरिका, कनाडा में है। यानि जिस भी देश में रह कर वह कमाता है, उस देश का नाम ही उसकी शैक्षिक योग्यता है। मासी बात बात में कहती कि उसके बेटे ने उसे काम करने से मना कर दिया है पर जब तक उसमें हिम्मत है वो मंदिर वाले जोशी परिवार में रसोई सम्भालने जरूर आयेगी क्योंकि यहाँ से उसकी सास का व्यवहार था। वह अपनी सास की मदद के लिए यहाँ आती थी। उसी परंपरा को वह निभा रही थी। हमारे परिवार ने भी उसकी भावना की कद्र की है और उसकी देखरेख में कामवालियाँ लगा देते हैं। हम सब खाते हैं। वो पास में पीढ़े पर बैठ कर सब के खाने का ध्यान रखती और बतियाती है। हुआ यूं कि उसने किसी तरह अपनी जमापूंजी और जुगाड़ से अपने लाडी को अमेरिका भेजा। बेटा पहली बार अमेरिका से घर आ रहा था। तो उसके एक दोस्त ने कहा कि उसका ससुराल दिल्ली में है। वे लाडी को एयरपोर्ट से उतार कर कश्मीरी गेट में उसके शहर की बस में बिठा देंगे। क्योंकि गाड़ी तो अपने समय पर जाती है। बस हमेशा मिल जाती है और उसमें सीट भी मिल जाती है। दोस्त ने अपने साले को कहा कि लाडी को एयरर्पोट से बस अड्डे तक टैक्सी से ले जाकर खिला पिला कर बस में बिठाना है। साले ने जीजा की आज्ञा का पालन किया। उसने देखा कि एयरपोर्ट से बाहर एयरपोर्ट स्पैशल बस भी खड़ी थी। लाडी की फ्लाइट के कुछ लोग, उनमें विदेशी भी थे, वे उसमें बैठ रहे थे। लाडी ने भी साले से कहा कि इस बस में चलते हैं। पर साला नहीं माना, उसने टैक्सी ही बुलाई। एयरपोर्ट से कुछ दूर निकलते ही जहाँ स्ट्रीट लाइट न होने के कारण अंधेरा था। एक पुलिस की वर्दी पहने आदमी ने गाड़ी रुकवाई। वह लाडी पर प्रश्नों की बौछार करते हुए बोला,’’दिखाओ कितने डॉलर लाये हो?’’ उसके पास पाँच सौ डॉलर ही थे। उसने आगे कर दिये। डॉलर लेते ही वह व्यक्ति दूर खड़ी जीप में जाकर बैठा और जीप नौ दो ग्यारह हो गई। तीन साल बाद लम्बे सफ़र से लौटे लाडी बेचारे का अपने देश में इस तरह स्वागत हुआ। गुस्से से कांपते लाडी ने साले से पूछा कि बस में भी ऐसे जांच करते हैं पुलिस वाले। जवाब टैक्सी वाले ने दिया कि बस में उनकी हिम्मत ही नहीें होती है। मुझे तो ठग लग रहे थे। खैर लाडी का तो घर आने का मजा ही खराब हो गया था। इस घटना को मासी पाँच सौ डॉलर ठगने वाले लुटेरों को कोसते हुए, सब को सुनाती है। अब मुझे अपनी ये अनपढ़ मेहनतकश पूंछ लाडी लगने लगी। मैंने सोच लिया कि मैं इन्हें पब्लिक ट्रांसर्पोट में ही ले कर जाउंगी। क्रमशः
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Sunday, 14 June 2020
मेरी मेहनतकश अनपढ़ पूंछ सिंगापुर यात्रा Mere Mehnatkash Anpardh Poonch Singapore yatra भाग 20 Neelam Bhagi नीलम भागी
प्लेन में जाते समय वे मेरे पीछे ही उसमें दाखिल हुए। प्लेन में सीट मेरी पहले थी, उनकी मुझसे तीन लाइने छोड़ कर पीछे थी। इसलिये यहाँ एयरहोस्टेज ने उन्हें उनकी सीट पर पहुँचा दिया। जैसे ही प्लेन लैंड किया। सीट बैल्ट खुलते ही क्या देखती हूं!!ं पूंछ मेरे बाजू में खड़ी थी। फ्लाइट में यदि मेरी विंडो सीट होती है तो मैं सबसे बाद में ही उतरती हूं, ये सोचते हुए कि गाड़ी तो नहीं है जो आपका स्टेशन छूट जायेगा। अब मैं खड़ी हुई तो वे बिना पीछे वालों को सॉरी बोले मुझे अपने आगे जगह देने को वे पीछे हो गये। मुझे उनके आगे लगना मजबूरी थी क्योंकि उनके पीछे वालों को भी तो उतरना था। उतरते ही कागज़ी कार्यवाही की लाइन में लगे। क्लीयर होते ही मैं सामान केे लिये अपनी बैल्ट की खोज में चल दी। सामान लेते ही, जैसे ही उनका लगेज आया। मैंने अपनी सीधी सरल पूछं से पूछा कि आपको कोई लेने आ रहा है। उनका जवाब था नहीं जी। वे मुझसे बोले,’’हमें पंजाब जाना है, कश्मीरी गेट से बस मिलेगी।’’हमें यहाँ से कश्मीरी गेट बस अड्डे के लिए कोई ऑटो या टैक्सी कर दो।’’मुझे उसी समय एक सुनी हुई घटना याद आ गई। पंजाब में हम शादियों में अपने ननिहाल जाते हैं तो रसोई संभालने के लिए महाराजिन आती है। उसे सब मासी कहते हैं। एक साल पहले मैं शादी में गई वह मुझे बड़े प्यार से खाना खिलाती जा रही थी और साथ ही दिल्ली वालों को कोस रही थी। उससे पहले एक शादी में वो अपने बेटे लाडी के अमेरिका जाने से बेहद खुश थी। इस खुशी का भी एक बहुत बड़ा कारण है वो ये कि वहाँ लड़को की क्वालिफिकेशन विदेश है। किसी से पूछो कि आपके बेटे ने क्या किया है? वे बड़े फख्र से जवाब देते हैं कि साडा मुंडा अमरिका च या अंगलैंड च या कनाडा च है। मतलब हमारा लड़का इंगलैंड, अमेरिका, कनाडा में है। यानि जिस भी देश में रह कर वह कमाता है, उस देश का नाम ही उसकी शैक्षिक योग्यता है। मासी बात बात में कहती कि उसके बेटे ने उसे काम करने से मना कर दिया है पर जब तक उसमें हिम्मत है वो मंदिर वाले जोशी परिवार में रसोई सम्भालने जरूर आयेगी क्योंकि यहाँ से उसकी सास का व्यवहार था। वह अपनी सास की मदद के लिए यहाँ आती थी। उसी परंपरा को वह निभा रही थी। हमारे परिवार ने भी उसकी भावना की कद्र की है और उसकी देखरेख में कामवालियाँ लगा देते हैं। हम सब खाते हैं। वो पास में पीढ़े पर बैठ कर सब के खाने का ध्यान रखती और बतियाती है। हुआ यूं कि उसने किसी तरह अपनी जमापूंजी और जुगाड़ से अपने लाडी को अमेरिका भेजा। बेटा पहली बार अमेरिका से घर आ रहा था। तो उसके एक दोस्त ने कहा कि उसका ससुराल दिल्ली में है। वे लाडी को एयरपोर्ट से उतार कर कश्मीरी गेट में उसके शहर की बस में बिठा देंगे। क्योंकि गाड़ी तो अपने समय पर जाती है। बस हमेशा मिल जाती है और उसमें सीट भी मिल जाती है। दोस्त ने अपने साले को कहा कि लाडी को एयरर्पोट से बस अड्डे तक टैक्सी से ले जाकर खिला पिला कर बस में बिठाना है। साले ने जीजा की आज्ञा का पालन किया। उसने देखा कि एयरपोर्ट से बाहर एयरपोर्ट स्पैशल बस भी खड़ी थी। लाडी की फ्लाइट के कुछ लोग, उनमें विदेशी भी थे, वे उसमें बैठ रहे थे। लाडी ने भी साले से कहा कि इस बस में चलते हैं। पर साला नहीं माना, उसने टैक्सी ही बुलाई। एयरपोर्ट से कुछ दूर निकलते ही जहाँ स्ट्रीट लाइट न होने के कारण अंधेरा था। एक पुलिस की वर्दी पहने आदमी ने गाड़ी रुकवाई। वह लाडी पर प्रश्नों की बौछार करते हुए बोला,’’दिखाओ कितने डॉलर लाये हो?’’ उसके पास पाँच सौ डॉलर ही थे। उसने आगे कर दिये। डॉलर लेते ही वह व्यक्ति दूर खड़ी जीप में जाकर बैठा और जीप नौ दो ग्यारह हो गई। तीन साल बाद लम्बे सफ़र से लौटे लाडी बेचारे का अपने देश में इस तरह स्वागत हुआ। गुस्से से कांपते लाडी ने साले से पूछा कि बस में भी ऐसे जांच करते हैं पुलिस वाले। जवाब टैक्सी वाले ने दिया कि बस में उनकी हिम्मत ही नहीें होती है। मुझे तो ठग लग रहे थे। खैर लाडी का तो घर आने का मजा ही खराब हो गया था। इस घटना को मासी पाँच सौ डॉलर ठगने वाले लुटेरों को कोसते हुए, सब को सुनाती है। अब मुझे अपनी ये अनपढ़ मेहनतकश पूंछ लाडी लगने लगी। मैंने सोच लिया कि मैं इन्हें पब्लिक ट्रांसर्पोट में ही ले कर जाउंगी। क्रमशः
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