अंकुर जून के महीने में सपरिवार बाहर चला गया था। हमेशा जाता है पर अपने पौधों का पूरा इंतजाम करके ही जाता है। इस बार भी वैसे ही गया। बीच में मैं भी उसके पौधे देख आती थी। लू लगने के कारण, मैं भी नहीं जा पाई। इस बार इतनी भयंकर गर्मी होने से, जब लौटा तो देखा, उसके पौधे मर गए थे या अंतिम सांस ले रहे थे। वह बहुत लगन से उन पर फिर से लग गया। क्योंकि हमेशा दिवाली में वह अपने पौधों को सजाता है। इस बार भी उसकी मेहनत रंग ला रही है। इसके पौधे पनप रहे हैं। कुछ कंटेनर अभी बचे हुए हैं। छत का घर है इसलिए वजन के कारण कोकोपीट भरता है। पूछने पर बताने लगा कि जब ज्यादा समय होगा तभी और कोकोपिट मंगा कर सारे गमले एक साथ भर देगा। वरना बचा हुआ संभालना पड़ेगा। दिवाली पर हमें प्रदूषण प्रदूषण करके रोना नहीं है, उसे काम करने में अपना योगदान देना है। ऐसा हरियाली बढ़ाने से ही होगा।
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