मेरे फेसबुक मित्र पर्यावरण प्रेमी सुदेन्द्र कुलकर्णी ने अपने साथियों और पेड़ पौधों के साथ मास्क लगाए हुए तस्वीरें भेजीं। मैंने पूछा,’’वन महोत्सव’ मना रहे हो, करोना महामारी के समय!! वे बोले ," हम राजनेता नहीं हैं जो किसी दिन विशेष मसलन धरती दिवस, पर्यावरण दिवस और वन महोत्सव को ही पेड़ लगा कर तस्वीर खिंचवाएं। मानसून आते ही हमारे पर्यावरण प्रेमी मित्र पेड़ पौधे लगा कर, अपने हिस्से का वायु प्रदूषण कम करने में लग जाते हैं। इन चार महीनों में पेड़ पौधे अच्छेे से जम जाते हैं। हम तो नर्सरी से पौधे खरीदने गए थे। करोना महामारी के कारण न के बराबर खरीदार देखकर, अच्छा नहीं लगा। इस समय तो यहां पौध बीज खरीदने वालों की भीड़ होती थी। करोना को तो जाना ही होगा पर मानसून तो एक साल क बाद आयेगा|" और मुझे हैदराबाद की हरी भरी नर्सरी की तस्वीरें भेज दी।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि हमें भले दिखाई न दे लेकिन हवा हर ओर है तो उसमें प्रदूषण भी हर ओर है। हम सांस लेना तो नहीं छोड़ सकते लेकिन हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रयास कर सकते हैं। हरियाली धरती का सौन्दर्य है। उसी से हम सबका जीवन संभव है। और हमारा कर्त्तव्य है कि इसकी हरियाली को बनाये रखें।
दश कूप सम वापी, दश वापी समोहृदः।
दशहृदसमः पुत्रो, दशपुत्रसमो द्रुमः।
दस कुओं के बराबर एक बावड़ी है, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र है और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष है। मत्स्य पुराण का यह कथन हमें पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमारे यहां किसी राजा की महानता का वर्णन करते हैं तो लिखते हैं कि उसने अपने शासन काल में सड़के बनवाईं थीं और उसके दोनो ओर घने छायादार वृक्ष लगवाए थे। हमारे यहां तो पेड़ों की पूजा की जाती हैं। जैसे वट सावित्री, तुलसी विवाह, आंवला अष्टमी आदि। अब हमें हरियाली बढ़ाने के लिए ग्रीन स्टेप्स लेने होंगे। सभी के थोड़े थोड़े योगदान से बहुत बड़ा परिवर्तन हो जायेगा। बच्चों को बचपन से ही पर्यावरण से जोड़ना होगा।
शाश्वत का जन्मदिन जुलाई में आता हैं। उस दिन अंकुर श्वेता माली की मदद से सोसाइटी में एक पेड़ शाश्वत से लगवाते हैं। माली को उसकी देखभाल का पैसा देते हैं पर अपने जन्मदिन पर अपने हाथ से लगाने से उस पेड़ से बच्चे को मोह रहता है। मैंने देखा शाश्वत स्कूल बस से उतरते ही पहले अपने पौधे में, वाटर बोतल का बचा हुआ पानी डालता है फिर घर जाता है। उससे पांच साल छोटा अदम्य जब स्कूल जाने लगा। तो वह भी अपनी बोतल का बचा पानी भाई के लगाए पौधे में डालता। उसका जन्मदिन जून में आता है। इस बार उसने भी अपना जन्मदिन पेड़ लगा कर मनाने की जिद पकड़ ली। उन दिनों दिल्ली में भयंकर लू चलती हैं। नया पेड़ बचाना मुश्किल होता है। माली अंकल ने आकर समझाया। तो वह माना लेकिन जुलाई में शाश्वत के जन्मदिन से पहले बरसात में अदम्य से पेड़ लगवाया। किराये पर रहते हैं। जिस भी सोसाइटी में जाते हैं वहां पेड़ों की सौगात छोड़ कर आते हैं।
हमारे देश में वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देने के लिए सन् 1950 में ,देश के पहले कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने वन महोत्सव की शुरूवात की थी। जिसे पेड़ों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है। हर साल सरकार जुलाई के प्रथम सप्ताह में देश भर में वन महोत्सव का आयोजन करती हैं। इस दौरान स्कूलों कॉलेजों, प्राइवेट संस्थानों द्वारा पौधारोपण किया जाता है। जिससे लोगों में पेड़ों के प्रति जागरूकता पैदा होती है। वनों का महत्व सामान्य लोगों को समझाना मकसद होता है। हमें बच्चों से वनों के पेड़ों के लाभ पर निबंध लिखवाना या वाद विवाद प्रतियोगिता करवाना ही काफी नहीं है। उन्हें पेड़ों को बचाना, उनका संरक्षण करना सिखाना है। “विश्व भौतिक विकास की ओर तो तेजी से बढ़ रहा है, मगर प्रकृति से उतना ही दूर हो रहा है। पानी दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। इसे बचाने के लिए खूब पेड़ लगाए जाएं। पेड़ बादल बनने में सहायक होंगे और उन्हीं बादलों से बारिश होगी। राजस्थान में इंदिरा कैनाल बनने के बाद उसके आसपास खूब पेड़ लगाये गये। अब उस इलाके में बारिश होती रहती है। मीडिया का काम खबरें देना ही नहीं है, बल्कि सामाजिक चेतना लाना भी है।”
जिस उत्साह से धरती दिवस, पर्यावरण दिवस और वन महोत्सव पर वृक्षारोपण किया जाता हैं ं उसी तरह उनका संरक्षण भी किया जाना चाहिए। जिन्होंने पौधा लगाया, फोटो खिचाई वे तो पौधे की देखभाल करने आयेंगे नहीं। इसके लिए वहां आसपास रहने वाले नागरिकों को ही देखभाल करनी होगी। कुछ ही समय तक तो!! जैसे जैसे पेड़ बड़ा होगा उसका सुख तो आसपास वालों को ही मिलेगा। वृक्षारोपण करके फोटो खिंचवाने वाले के बच्चे तो वहां खेलने आएंगे नहीं। इसलिए अपने आसपास पेड़ लगाएं। उन्हें बचाना अपनी नैतिक जिम्मेवारी समझें। नष्ट हुए पेड़ की जगह दूसरा पेड़ लगाएं। कहीं पढ़ा था कि पेड़ों के लिए काम करना, मां प्रकृति की पूजा करना है। जुलाई का पहला सप्ताह में वन महोत्सव मनाते है। तो इनका संरक्षण भी जरुरी है।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से एक साथ प्रकाशित बहुमत समाचार पत्र में प्रकाशित है यह लेख |