ओडिशा वास्तुकला का रत्न मुक्तेश्वर मंदिर दो मंदिरों परमेश्वर तथा मुक्तेश्वर का समूह है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह छोटी सी पहाड़ी पर 100 सीढ़ियां चढ़ने पर है। यह मंदिर, हिंदू मंदिर के विकास की ओर प्रगति के अध्ययन और प्रयोग की अवधि का आधार है। यह शैलीगत विकास दसवीं शताब्दी के वास्तु कला, शिल्प कला के प्रयोग और निर्माण के रूप में जाना जाता है। और बाद के मंदिर उसकी परिणिति हैं। 950 और 975 ईसा पूर्व इसका निर्माण कार्य है। ब्रह्मा, विष्णु, पार्वती ,लंगूर हनुमान और नंदी के लाल बालू पत्थर पर उकेरी मूर्तियां है। पंचतंत्र के पात्रों 970 में ई पू कहानी की चित्रकारी है। जिसमें कृशकाय साधुओं को दौड़ते बंदरों के पीछे दिखाया गया है। मंदिर के दाएं ओर मारीच कुंड है। गर्भ ग्रह में शिवलिंग है। मंदिर में नागर शैली और कालिंग शैली का अद्भुत मेल है। मंदिर के दरवाजे नक्काशी और अलंकृत आर्क की नक्काशी बेहद बेहतरीन है। यहां पहली बार तोरण की शुरुआत की गई। देखा जाए तो यह कलिंग वास्तु कला के रूप में भी जाना जाता है। मुक्तेश्वर नाम से ही समझा जाता है कि जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त करने वाले। यहां मंदिर में तोरण उस काल के कुशल शिल्प कौशल का प्रमाण है। इसका सोमवंशी काल के ययाति प्रथम ने निर्माण किया है। पीठा देउला शैली जिसमें आकार चौड़ा, छत पिरामिड की तरह है का भी प्रयोग किया गया है। अशोकाष्टमी कार सेवा के अवसर पर यहां उड़ीसा पर्यटन विभाग तीन दिवसीय नृत्य महोत्सव का आयोजन करता है। जिसमें ओडिसी शास्त्रीय नृत्य, संगीत और लोकप्रिय ओडिसी नर्तक मरदाला जैसे संगीत वाद्य यंत्रों के साथ प्रदर्शन करते हैं। अशोकष्टमी से एक दिन पहले कहते हैं कि मारीच कुंड में जो निसंतान महिला स्नान करती है, उसे संतान की प्राप्ति होती है। मंदिर में प्रवेश निशुल्क है।
सुबह 6:30 से शाम 7:30 तक दर्शन कर सकते हैं। एयरपोर्ट से 4.5 किमी और रेलवे स्टेशन से 4.8 किमी दूर है। टैक्सी ऑटो रिक्शा कैब खूब मिलते हैं। मुझे ट्रेन में भुवनेश्वर के मेरे सहयात्रियों ने मो बस के बारे में बताया था कि उसकी सर्विस बहुत अच्छी है और रेट भी कम है पर मेरा अभी तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सफ़र नहीं हुआ पर इसका यहां का अनुभव तो मैं जरूर लूंगी। मुक्तेश्वर मंदिर, लिंगराज मंदिर के पास ही है। पास में ही राजा रानी मंदिर भी है। यहां का पता है
केदार गौरी लेन, ओल्ड टाउन भुवनेश्वर
क्रमशः