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Monday 29 May 2017

हरा भरा गोवा, स्वच्छ गोवा, भिखारी रहित गोवा और काजू की सब्जी यात्रा भाग 2 नीलम भागी



मैं बहुत यात्रा करती हूँ इसलिये दुर्गंध से ही बर्थ पर लेटे लेटे बता देती हूँ कि स्टेशन आने वाला हैं। यहाँ ऐसा नहीं था। स्टेशन आने से पहले कोई बदबू नहीं आई और मडगाव स्टेशन भी आ गया। जो बिल्कुल साफ, बाहर भी साफ कहीं पान मसाले के थूक के निशान नहीं थे। 
       ये देख कर बहुत अच्छा लगा। यहाँ गर्मी थी। पहले सबने जैकेट स्वेटर उतारे। लंच का समय था, हम खाने के लिये गये। अपनी आदत के अनुसार कि जहाँ मैं जाती हूँ, वहाँ का नया वैज ट्राई करती हूँ। मैंने मैन्यु देखा उसमें मुझे काजू की सब्जी दिखी, जो मैंने पहले कभी नहीं खाई थी। अब मुझे तो वही खानी थी, सबने अपनी पसंद का आर्डर किया। काजू की सब्जी अच्छी लगी। हमें तो दो जिलों के राज्य गोवा में आठ दिन तक रहना था इसलिये हमें कोई जल्दी नहीं थी। बस आने से पहले स्टे को लेकर परेशानी हुई थी। हुआ यूं कि यहाँ श्वेता के बैंक का गैस्ट हाउस था। ट्रेन की रिजर्वेशन करवा लीं, तैयारी कर ली। ये सोचा ही नहीं था कि गेस्ट हाउस भी बुक करना होता है। चलने से पहले पता चला कि वो उन दिनों बुक था। उसे पहले बुक करना पड़ता है। जो हमने नहीं करवाया था। चुम्मू एलर्जिक हैं। डा. ने कहा था कि ध्यान रखना, पाँच साल का होने पर ये ठीक हो जायेगा। हमें किचन वाला स्टे चाहिये था। अंकूर का दोस्त यहाँ से घूम कर लौटा था। उसने एक ईसाई महिला का गैस्ट हाउस बताया, जो वहीं रहते भी हैं। वहाँ  चुम्मू के लिए हल्दी, अदरक, तुलसी, दूध उबालने का काम भी हो जायेगा। उस महिला से बात की। उसने कहा कि वह हमें तीन दिन तक रखेगी फिर वह हमें किसी और के एक टू बी.एच.के. अर्पाटमैंट में शिफ्ट कर देगी क्योंकि उसका गैस्ट हाउस आगे एक महीने तक बुक है। हम दिल्ली की कड़ाके की सर्दी के दस दिन, दो सफर में आठ यहाँ बिताने आये थे। खाना खाकर, हमने गैस्ट हाउस के लिये बड़ी गाड़ी ली.  सौरभ अर्पना ने कलंगूट बीच पर होटल में स्टे लिया था। हमारा गेस्ट हाउस उनसे एक किमी. दूर था। वे भी हमारे साथ शेयरिंग पर गये। क्रमशः रास्ता बेहद खूबसूरत, लाल मिट्टी के बीच में काली सड़क दोनों ओर हरे हरे घने पेड़, ज्यादातर काजू और आसमान को छूते नारियल के पेड़ों के झुरमुट दिख रहे थे। सबकी नज़रे बाहर टिकी हुई थीं। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। रास्ते भर मेरे मन में एक ही प्रश्न उठ रहा था कि इनके घरों में भी तो कूड़ा निकलता होगा पर यहाँ तो कचरे के ढेर कहीं देखने को नहीं मिले। खैर हमारा नारियल के पेड़ों से घिरा गैस्ट हाउस आ गया। हमने सामान उतारा और सौरभ अर्पणा आगे चल दिये। सामान लगा कर हम नहाये और सो गये। जब आँख खुली तो अंधेरा हो गया था। यहाँ हमें कोई काम तो था नही। बाहर खाना और घूमना हमने जाते ही आठ दिन के लिये एक एक्टिवा किराये पर लेली। चुम्मू छोटा है। इसलिये अंकूर या श्वेता चुम्मू के थकने पर कोई भी उसे बिठा कर ले जाता। रबर की चप्पले, जिससे बीच पर रेत पर चलना आसान होता है पहन कर, हम पैदल पैदल बीच की ओर चल दिये। सबसे पहले हमने नारियल पानी पिया। ताजा होने के कारण उसका स्वाद लाजवाब था। यहाँ 450 साल तक पुर्तगालियों ने शासन किया शायद इसलिये यहाँ मिठाई की दुकानों की अपेक्षा केक, पेस्ट्री, क्रैर्कस, कुकीज़ बिस्किट, ब्राउनीज़ और खारे की दुकाने अधिक थी। इन सब का स्वाद चखते न जाने कितनी देर हम बीच पर बैठे रहे। डिनर की तो पेट में गुंजाइश ही नहीं थी। लौटे रास्ते में कोई भिखारी नहीं मिला। और आते ही सो गये। सुबह इंगलिश ब्रेकफास्ट आया, जल्दी से करके कलंगूट बीच पर पहुँच गये।      

Thursday 25 May 2017

भारतीय रेल में संस्कृति के रंग, अजनबियों के संग गोवा यात्रा भाग 1 Goa Yatra Part 1 नीलम भागी









 भारतीय रेल में संस्कृति के रंग, अजनबियों के संग    गोवा यात्रा भाग 1    नीलम भागी
हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से तिरूअंनतपुरम राजधानी से सुबह 10.55 पर हमने गोवा के लिये प्रस्थान किया। मेरी साइड लोअर सीट थी, अंकूर श्वेता की अपर सीट थी। चुम्मू की यह पहली रेल यात्रा थी। डे केयर में रहने वाला चुम्मू ,आज मम्मा पापा और नीनो के साथ बहुत खुश था। हम स्टेशन पर पहले ही आ गये थे। स्टेशन पर कोई भी गाड़ी आती ,वह डर कर मेरी टाँगों से लिपट जाता। गाड़ी में सवार होते ही डरा हुआ चूम्मू, मेरी गोदी में ही बैठा, खिड़की से बाहर देखता रहा। अंकूर श्वेता भी सामान लगा कर सैटल हो गये। गाड़ी के चलते ही सब कुछ छूटता जा रहा देख, चुम्मू बहुत हैरान हो रहा था। चुम्मू को मेरी गोद में देख मेरे सह यात्री ने दोनों सीटों को मिलाकर ,सीट लेटने के लिये कर दी और चुम्मू से कहा,’’ आप आराम से सीट पर बैठो न।’’ सुनते ही वह मेरे गले से और कस कर लिपट गया। मुझे तकलीफ न हो इसलिये वह सज्जन अपरसीट पर चला गया। अब हम दोनों के लिये पूरी लेटने के लिये सीट थी। पर चुम्मू मेरी गोद से नहीं उतरा। इतने में पानी की बोतल और टॉवल मिला। वह गोद में बैठा बाहर ही देखता रहा। एक घण्टे बाद जब गर्म गर्म टोमैटो सूप आया। तो मैंने समझाया कि सीट पर बैठो नही ंतो सूप  आपके ऊपर गिर जायेगा। तब वो सीट पर बैठा, मैंने उसे स्टिक और बटर दिया। अब वह उसे खाता जा रहा था और अजनबी सह यात्रियों को देखता जा रहा था। खाते ही वह डरते डरते गाड़ी के फर्श पर खड़ा हुआ फिर हिलता हिलता धीरे धीरे वह अपने पापा के पास गया फिर मम्मी के पास। डर खत्म होते ही इसके उसके सबके पास जाने लगा और बतियाने लगा। अब सबका आपस में परिचय शुरू हो गया। चुप्पी खत्म। इतने में लंच आ गया फिर आइसक्रीम। हम तीनों के पास वह घूम घूम के खाता रहा। फिर मेरे पास आकर लेटा बतियाता रहा और सो गया। श्वेता अपने साथ बैठी महिला से बतियाने लगी फिर एकदम खुशी से अंकूर को बोली,’’ये अपर्णा हैं आप ही के ऑफिस में काम करती हैं।’’अपर्णा के पति सौरभ ने अपना परिचय स्वयं दिया कि मैं आप दोनों के ऑफिस में काम करता हूँ।’’ अंकूर मुझसे बोला,’’माँ, ये सौरभ अर्पणा है और हम तीनों एक ही ऑफिस में हैं। ऑफिस इतना बड़ा है कि कभी मिले ही नहीं।’’मेरे ऊपर वाले को छोड़ कर, सभी को गोवा जाना था। अंकूर श्वेता अपनी अपनी अपर सीट पर सोने चले गये क्योंकि चुम्मू के जागने पर वे सो नहीं सकते। पहली  बार गाड़ी रूकी उसकी रिदम खत्म और  स्टेशन के कोलाहल से चुम्मू जग गया। स्टेशन के सीन को वह देखता रहा। गाड़ी के चलते ही उसने अंकूर ,श्वेता को अपर सीटों पर सोते देखा तो बोला,’’नीनों ऊपर जाना है।’’ इसकी आवाज सुनते ही अंकूर श्वेता नीचे उतर आये। अब चाय नाश्ता सर्व होने लगा। एक घण्टा उसका इसमें पास हो गया फिर उपर जाना है का जाप शुरू। उसे अपर सीट पर बिठा दिया। अब वहाँ से तांक झांक करता रहा। सभी सहयात्रियों का ध्यान इसमें लगा रहा कि चुम्मू गिर न जाये। कुछ देर में वह बोर होकर मेरे पास आ गया। शाम हो गई थी। अब  टमाटो सूप सर्व, चूम्मू बटर लगा कर रिटक खाने लगा। इसके बाद वह समझदारों की तरह घूमने लगा पर जहाँ तक हम दिखते वहीं तक जाता। अब डिनर सर्व होने लगा। जैसा लंच था, वैसा ही डिनर कोई चेंज नहीं। यानि जो वैजिटेरियन है। वो लम्बी दूरी की गाड़ी में एक जैसा ही खाना खायेगा। आइसक्रीम खाने के बाद सब सोने की तैयारी में लग गये। कोई लैपटॉप पर भाग मिल्खा देख रहा था, ये भी देखने लगा। मेरे होते हुए वह कहीं और तो सोता नहीं है। फिर चुम्मु मेरे पास आकर लेट कर गाने लगा ’अब तूं भाग मिल्खा। अब तूं भाग मिल्खा 'सब सो गये पर उसका गीत बंद नहीं हुआ। एक बुर्जुग सरदार जी आकर हमारे पास खड़े हुए, इसे देख कर हंसे फिर बोले,’’ओए मिल्खा सिंग, हुन तूँ सोजा काका।’ उसने उसी वक्त गीत बंद कर दिया। सुबह उठते ही बैड टी, कुछ देर बाद नाश्ता। दस बजे चुम्मू सो कर उटा। सुरंगों वाले खूबसूरत रास्ते पर वह जाना चाहता था, गाड़ी में बैठ कर देखना नहीं। कोई उसे कलरिंग करवा रहा था, कोई कहानी सुना रहा था। कोई र्काटुन दिखा रहा था। 12.35 पर हमने मडगांव के साफ सुथरे स्टेशन पर  कदम रक्खे।

Monday 22 May 2017

द वैनेशियन मकाओ The Vanacian Macao मकाओ भाग 5 नीलम भागी










द वैनेशियन मकाओ                                  मकाओ   भाग 5  नीलम भागी
गीता के उठने से पहले हम तैयार हो गये थे। रूम से बाहर उसके लिये मकाओ था। उठते ही बोली,’’मकाओ चलो।’’उसे जल्दी से तैयार किया। कॉनराड के अंदर से ही हम वैनेशियन की ओर चल पड़े। इवेंट समाप्त हो गया था। राजीव हमें बाहर ही मिल गये थे। बाहर रात थी। हम अन्दर गये। अरे!!! ये क्या !ऐसा लग रहा था जैसे सुबह होने वाली हो । मैं तो विस्मय विमुग्ध सी कुदरत को मात देती हुई, इस नकली छत को देख रही हूँ। पता नहीं कितनी देर तक उसे निहारती रही। मेरी तंद्रा तब टूटी ,जब नीचे बहने वाली नहर से गंडोला पास से गुजरा। मैंने नीचे नहर में झांका, उसे एक लड़की खेते हुए गा रही थी। उस पर सवार जोड़ा भी उसके स्वर में स्वर मिला रहा था। मुझे लगा मैं किसी स्वप्न लोक में आ गई हूँ। दुनियाँ का सबसे बड़ा कैसीनो भी इसमें है। यहाँ भी सर्दी थी। अब हमने शॉपिंग शुरू कर दी। जब तक हम बुरी तरह से थक नहीं गये। यहाँ घूमते ही रहे। डिनर के लिये हम इम्पीरियल हाउस डिम सम में बैठे। इतने बड़े मैन्यू में मेरे लिये वैज खोजना रूई में सूई ढूंढने जैसा था। मुझे पाँच वैज डिश मिली। तीन मैंने यहाँ नहीं खाई थीं। वो आर्डर की। वॉक फ्राइड नूडल विद सुपीरियर सोया सॉस, क्रिस्पी वैजिटेबल स्प्रिंग रोल, स्टिर फ्राइड सीज़नल वैजिटेबल। उत्तकर्षिनी राजीव को नॉनवेज की बहुत सारी वैराइटी में से ऑर्डर करना था उन्होंने किया। जब तक हमारा ऑर्डर आया हम जैस्मिन चाय पीते रहे। टर्निप केक और चिल्ड स्वीटैंड मैंगो सूप से हमने डिनर का समापन किया। रात 12.50 पर 813 हांग कांग डालर, हमने बिल पे किया। उन्होंने हमें कहा कि हमारे यहाँ जिसका बिल 500 हांगकांग डॉलर से ज्यादा होता है। उसे कैसीनों में कम्प्लीमैंट्री हम भेजते हैं। इतना सुनते ही उत्तकर्षिनी राजीव मुझसे बोले,’’ मम्मी आप लक्की हो, दाव लगा कर आओ, जरूर जीतोगी।’’ मैंने मना कर दिया। दोनों ने जिद की तब भी मैं नहीं गई। कंप्लीमैंट्री कैसीनो गिफ्ट , हमने छोड़ दिया। अब हम पैदल पैदल अंदर से ही कॉनरॉड चल पड़ें। हम रात दो बजे अपने रूम में पहुँचे। कारण  बीच बीच में रास्ता बड़ी विनम्रता से बदल दिया जाता था। इस पदयात्रा में ,मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर मिल गया कि जहाँ इतने पर्यटक हर समय नज़र आते हों, वहाँ साफ सफाई कब होती होगी। सफाई भी ऐसी कि सब कुछ नया लगता है। जो उस समय आधी रात को हो रही थी। रूम में पहुँचते ही हम सो गयें। देर से सोकर उठे। ब्रेकफास्ट के लिये गये। जल्दी जल्दी पैकिंग की। ऑन लाइन फैरी की टिकट बुक की। कार में मैं आगे की सीट पर बैठी। फैरी टर्मिनल तक मैं मकाओ की सुंदरता , हरियाली को ऑखों में समेटे लौट रही हूँ। टर्मिनल में पहुँचते ही  हमारा सामान चैकइन में चला गया। हमारे स्टिकर लगा दिये गये। फैरी में सवार हुए। धूप खिली हुई थी। दर्शनीय मकाओ पीछे छूटता जा रहा था। रंग बदलते हुए समुद्र में हम जा रहे थे। जिधर देखो पानी और कभी कभी  कोई फैरी क्रास कर जाती। सामने टी.वी. चल रहा था पर मेरी आँखे विंडो पर टिकी सागर को निहार रहीं थीं। सामने हांगकांग एयरर्पोट दिखने लगा। फेैरी से हम उतरे। हमारी सिक्योरिटी जाँच आदि हुई। बोर्डिंग पास मिला। अब हम अपने घर अपने देश लौट रहे थे, जिसकी खुशी अनोखी थी।

Thursday 18 May 2017

मकाओ टावर, सिटी ऑफ ड्रीम्स, अमा टैम्पल, वण्डरफुल मकाओ Macao भाग 4 नीलम भागी

मकाओ टावर, सिटी ऑफ ड्रीम्स, अमा टैम्पल, वण्डरफुल wonderful  Macao  भाग 4    नीलम भागी







हम धीरे धीरे चल रहें हैं क्योंकि जिधर भी नज़र जाती है। उस जगह की सुंदरता हमें रूकने को मजबूर करती है। गीता की आँखों की चमक भी यही कहती है। उससे मैं पूछती हूँ ,’’चलें उसका एक ही जवाब होता है,’’न न न ।’’हमने उसे पै्रम से आजाद कर दिया। यातायात दिशा चालन यहाँ लैफ्ट है। कोई परेशानी नहीं, गीता मजे से हाथ पकड़ कर चल रही थी। जब वह थक गई तो हम गाड़ी से मकाउनिस की आस्था का प्रतीक, अमा टैम्पल गये। जो    लगभग 1488 से बना प्राचीन, समुद्र की देवी, मछुआरों की रक्षक का टैम्पल है। यहाँ भी मोटी मोटी पीली या रंगीन अगरबत्तियाँ जला कर लोग, हमारी तरह हाथ जोड़ कर प्रार्थना कर रहे थे। लेकिन जलाने की जगह फिक्स थी। मुझे भी तो सागर के रास्ते हाँग काँग एयरपोर्ट लौटना था। मैंने भी दिल से देवी की प्रार्थना की।  मेरीटाइम म्यूजियम देखा। लोकल स्नैक्स, गिफ्ट आइटम ,आइसक्रीम,कोल्डड्रिंक













के खूब स्टाल थे। 338 मीटर (1109फीट) मकाओ टावर देखा। गीता बोली,’’चलो।’’उसके चहरे पर चमक तो कोटाई में ही आती है। हम चल पड़े। यहाँ 90% चीनी, 2% पुर्तगाली, 3%अन्य रहते हैं। औसत आयु 84 वर्ष है। 20 दिसम्बर 1999 को मकाओ चीन को हस्तान्तरित हुआ। इस तरह के विकास को तो देख कर लगता है कि बच्चे ने जन्म लेते ही चलना शुरू कर दिया। हरियाली का पूरा ध्यान रक्खा गया है।
सबसे नया आर्कषक सिटी ऑफ ड्रीम्स है। मनोरंजन के बेतहाशा अवसर, एक छत के नीचे दुनिया भर के डिजाइनर ब्राण्ड। यहाँ आते ही गीता में ग़ज़ब की फुर्ती आ गई। वह आगे आगे चल रही थी, हम दोनों उसके पीछे पीछे। ऐसा लग रहा था जैसे स्वप्न लोक में घूम रहें हो। उसे न भूख न प्यास, बस इधर से उधर और उधर से इधर। काफी समय बाद जब वह थोड़ी सुस्त होने लगी। हम भी बुरी तरह थक गये थे। तब हम एशिया किचन में खाने के लिये बैठे। मुझे चाय की तलब लग रही थी। मैंने चाय आर्डर की। उत्तकर्षिनी ने यहाँ की कोई नानवेज डिश आर्डर की। जब से मैने अनजाने में बींस में पोर्क खाया, तब से मैं वेज बहुत ध्यान से आर्डर करती हूँ। यहाँ भी मैंने हांग कांग स्टाइल फैंच टोस्ट विद पीनट बटर एंड सीरप आर्डर किया। ट्रांसपेरंट कप में चाय पत्ती डाल कर उबाला पानी आ गया। मैं सोच रही थी कि दूध चीनी में कढ़ी हुई चाय आयेगी। जब मैंने कहा कि इसमें दूध चीनी नहीं है तो उन्होंने मेरे आगे लाकर चीनी का डिब्बा और दूध दे दिया। चाय वहाँ जैसी पी जाती होगी, वैसी दे दी। लेकिन फैंच टोस्ट लाजवाब था। उत्तकर्षिनी ने भी टेस्ट करके वाह कहा। उसने भी अपनी डिश को स्वादिस्ट बताया। शाम हो चुकी थी, पास में ही कॉनराड था, हम पैदल चल दिये। रूम में जाते ही गीता को दूध की बोतल दी। वो पी कर सो गई। हमने टी.वी. पर लाइव रेनबो अवार्ड फंग्शन लगा लिया। पास में ही वैनेशिया था। वहाँ बहुत बड़ी स्क्रीन पर यही इवेंट आ रहा था। मैं जब भी रूम में होती, सोने के समय ही लेटती। विंडो के बाहर ही मेरी आँखे लगी रहती हैं क्योंकि यहाँ की खूबसूरती को मैं एक पल के लिये भी नहीं खो सकती। अब भी मैं बाहर लगी स्क्रीन पर कॉफी पीते हुए इस प्रोग्राम को देख रही थी। गीता के उठते ही हमें वैनेशिया जाना है। क्रमशः 

Monday 15 May 2017

सीनैडो स्क्वायर, पुर्तगाली बस्ती ,सेंट पॉल गिरजाघर के खंडहर, धार्मिक म्यूजियम,पार्क और पारम्परिक संस्कृति Macao मकाओ भाग 3 नीलम भागी

 सीनैडो स्क्वायर, पुर्तगाली बस्ती, सेंट पॉल गिरजाघर के खंडहर और पारम्परिक संस्कृति  मकाओ  भाग 3
                                                     

नीलम भागी
हमने जैसे ही डिनर समाप्त किया, एक टैक्सी रैस्टोरैंट के सामने आकर रूकी, सवारियाँ बाहर और हम टैक्सी में बैठे, उसने प्रैम भी फोल्ड कर डिक्की में रख दी। होटल में पहुँचे तो तब तक रात के 12 बज चुके थे। गीता तो पापा को देख कर मस्त हो गई। मैं तो थकान के कारण तुरंत सो गई। सुबह ब्रेकफास्ट के लिये गई। विशाल इंटरनैशनल बुफे था। मैं तो फल, चीज़ और तरह तरह के मिल्क शेक पीती रही और तरह तरह के व्यंजन पढ़ती घूमती रही। नॉनवेज तो बहुतायत में, इण्डियन फूड में व्यंजनों के नाम का अंग्रेजी में अनुवाद ज्यादा था, मसलन भटूरों पर स्लिप लगी थी, फ्राइड ब्रेड। ब्रेकफास्ट से लौटते ही राजीव मीटिंग में चले गये। हम घूमने जाने की तैयारी करने लगे। हमने पुर्तगाली हैरीटेज देखने का प्रोग्राम बनाया। चीन का पहला और अंतिम यूरोपीय उपनिवेश मकाओ है। 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारी यहां आकर बसे तब से लेकर 20 दिसम्बर 1999 तक यहाँ का शासन पुर्तगालियों के अधीन रहा। यहाँ अब राजभाषा चीनी और पुर्तगाली है। हमारे जाने से पहले ही राजीव आ गये। उनका आने जाने में तो समय खर्च होता ही नहीं था। सब कुछ इस कैनराड में ही था। उत्तकर्षिनी ने साथ चलने को कहा तो बोले,’’सिर्फ दो घण्टे, उसी में हम लंच भी कर लेंगे। हम पुर्तगाल के उपनिवेश रहे स्थानों को देखने के लिये टैक्सी पर सवार हुए। साफसुथरी सड़क के दोनों ओर रंगबिरंगे काँच की खूबसूरत आधुनिक बिल्डिंगो को देखते हुए हम जा रहे थे। अनुशासित भीड़ हर जगह दिखी। टैक्सी से उतरे सड़क पार की, सामने सीनैडो स्क्वायर जहाँ दुनिया भर के पर्यटक थे। क्रिस्मस की तैयारी चल रही थी। हम यहाँ की वास्तुकला को देख रहे थे। गलियों में घूमने निकले।  एक गली में साइकिल रिक्शा भी दिखी, रिक्शावाला उस पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। अगर दुकान दिखी तो उसमें फल से लेकर नॉनवेज तक सब खाने का सामान है। लोकल स्नैक्स की दुकाने थी। खिड़कियो का रंग हरा दिखा कुछ दूरी पर सेंट पॉल के खंडहर, धार्मिक म्यूजियम और वहीं बहुत सुंदर बाग़ का भ्रमण किया . हम लंच के लिये रैस्टोरैंट ढूंढते हुए घूम रहे थे। कोटाई में रूके थे इसलिये यहाँ लग रहा था जैसे प्राचीन नगर में स्टाइलिश लोग  घूम रहें हों। जब हम लौटे तो रिक्शावाला वैसे ही रिक्शा पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। दो घण्टे से अधिक समय हो गया था। हम टैक्सी स्टैण्ड पर लंबी लाइन में लगे। उत्कर्षिनी रेस्टोरेंट ढूंढने निकल गई। उत्त्कर्षिनी ने फोन किया कि रैस्टोरैंट मिल गया पर राजीव को बैठ कर खाने का समय नहीं था। वह स्नैक्स ले आई, तब तक टैक्सी का भी नम्बर आ गया।  मकाओ वास्तुकला, पारम्परिक संस्कृति और आधुनिक जीवन का अनोखा मिश्रण है। सबसे नया आर्कषक सिटी ऑफ ड्रीम्स है। मनोरंजन के बेतहाशा अवसर एक छत के नीचे दुनिया भर के डिजाइनर ब्राण्ड। रास्ते भर जो सुन्दर सजी बिल्डिंग दिखती उसे देखते ही गीता बोल उठती,’’यहाँ  चलो।’’होटल पहुँच कर राजीव तो रूम में चले गये। गीता के पीछे पीछे हम घूमते रहे। जहां पर वह जाती, हम दोनों भी वहीं जाते। कैनराड में भी एक ही छत के नीचे सब कुछ। अन्दर से ही खूबसूरती में घूमते हुए, हम फिर वैनेशिया की ओर चल दिये। क्रमशः