भारतीय रेल में संस्कृति के रंग, अजनबियों के संग गोवा यात्रा भाग 1 नीलम भागी
हज़रत निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन से तिरूअंनतपुरम राजधानी से सुबह 10.55 पर हमने गोवा के लिये प्रस्थान किया। मेरी साइड लोअर सीट थी, अंकूर श्वेता की अपर सीट थी। चुम्मू की यह पहली रेल यात्रा थी। डे केयर में रहने वाला चुम्मू ,आज मम्मा पापा और नीनो के साथ बहुत खुश था। हम स्टेशन पर पहले ही आ गये थे। स्टेशन पर कोई भी गाड़ी आती ,वह डर कर मेरी टाँगों से लिपट जाता। गाड़ी में सवार होते ही डरा हुआ चूम्मू, मेरी गोदी में ही बैठा, खिड़की से बाहर देखता रहा। अंकूर श्वेता भी सामान लगा कर सैटल हो गये। गाड़ी के चलते ही सब कुछ छूटता जा रहा देख, चुम्मू बहुत हैरान हो रहा था। चुम्मू को मेरी गोद में देख मेरे सह यात्री ने दोनों सीटों को मिलाकर ,सीट लेटने के लिये कर दी और चुम्मू से कहा,’’ आप आराम से सीट पर बैठो न।’’ सुनते ही वह मेरे गले से और कस कर लिपट गया। मुझे तकलीफ न हो इसलिये वह सज्जन अपरसीट पर चला गया। अब हम दोनों के लिये पूरी लेटने के लिये सीट थी। पर चुम्मू मेरी गोद से नहीं उतरा। इतने में पानी की बोतल और टॉवल मिला। वह गोद में बैठा बाहर ही देखता रहा। एक घण्टे बाद जब गर्म गर्म टोमैटो सूप आया। तो मैंने समझाया कि सीट पर बैठो नही ंतो सूप आपके ऊपर गिर जायेगा। तब वो सीट पर बैठा, मैंने उसे स्टिक और बटर दिया। अब वह उसे खाता जा रहा था और अजनबी सह यात्रियों को देखता जा रहा था। खाते ही वह डरते डरते गाड़ी के फर्श पर खड़ा हुआ फिर हिलता हिलता धीरे धीरे वह अपने पापा के पास गया फिर मम्मी के पास। डर खत्म होते ही इसके उसके सबके पास जाने लगा और बतियाने लगा। अब सबका आपस में परिचय शुरू हो गया। चुप्पी खत्म। इतने में लंच आ गया फिर आइसक्रीम। हम तीनों के पास वह घूम घूम के खाता रहा। फिर मेरे पास आकर लेटा बतियाता रहा और सो गया। श्वेता अपने साथ बैठी महिला से बतियाने लगी फिर एकदम खुशी से अंकूर को बोली,’’ये अपर्णा हैं आप ही के ऑफिस में काम करती हैं।’’अपर्णा के पति सौरभ ने अपना परिचय स्वयं दिया कि मैं आप दोनों के ऑफिस में काम करता हूँ।’’ अंकूर मुझसे बोला,’’माँ, ये सौरभ अर्पणा है और हम तीनों एक ही ऑफिस में हैं। ऑफिस इतना बड़ा है कि कभी मिले ही नहीं।’’मेरे ऊपर वाले को छोड़ कर, सभी को गोवा जाना था। अंकूर श्वेता अपनी अपनी अपर सीट पर सोने चले गये क्योंकि चुम्मू के जागने पर वे सो नहीं सकते। पहली बार गाड़ी रूकी उसकी रिदम खत्म और स्टेशन के कोलाहल से चुम्मू जग गया। स्टेशन के सीन को वह देखता रहा। गाड़ी के चलते ही उसने अंकूर ,श्वेता को अपर सीटों पर सोते देखा तो बोला,’’नीनों ऊपर जाना है।’’ इसकी आवाज सुनते ही अंकूर श्वेता नीचे उतर आये। अब चाय नाश्ता सर्व होने लगा। एक घण्टा उसका इसमें पास हो गया फिर उपर जाना है का जाप शुरू। उसे अपर सीट पर बिठा दिया। अब वहाँ से तांक झांक करता रहा। सभी सहयात्रियों का ध्यान इसमें लगा रहा कि चुम्मू गिर न जाये। कुछ देर में वह बोर होकर मेरे पास आ गया। शाम हो गई थी। अब टमाटो सूप सर्व, चूम्मू बटर लगा कर रिटक खाने लगा। इसके बाद वह समझदारों की तरह घूमने लगा पर जहाँ तक हम दिखते वहीं तक जाता। अब डिनर सर्व होने लगा। जैसा लंच था, वैसा ही डिनर कोई चेंज नहीं। यानि जो वैजिटेरियन है। वो लम्बी दूरी की गाड़ी में एक जैसा ही खाना खायेगा। आइसक्रीम खाने के बाद सब सोने की तैयारी में लग गये। कोई लैपटॉप पर भाग मिल्खा देख रहा था, ये भी देखने लगा। मेरे होते हुए वह कहीं और तो सोता नहीं है। फिर चुम्मु मेरे पास आकर लेट कर गाने लगा ’अब तूं भाग मिल्खा। अब तूं भाग मिल्खा 'सब सो गये पर उसका गीत बंद नहीं हुआ। एक बुर्जुग सरदार जी आकर हमारे पास खड़े हुए, इसे देख कर हंसे फिर बोले,’’ओए मिल्खा सिंग, हुन तूँ सोजा काका।’ उसने उसी वक्त गीत बंद कर दिया। सुबह उठते ही बैड टी, कुछ देर बाद नाश्ता। दस बजे चुम्मू सो कर उटा। सुरंगों वाले खूबसूरत रास्ते पर वह जाना चाहता था, गाड़ी में बैठ कर देखना नहीं। कोई उसे कलरिंग करवा रहा था, कोई कहानी सुना रहा था। कोई र्काटुन दिखा रहा था। 12.35 पर हमने मडगांव के साफ सुथरे स्टेशन पर कदम रक्खे।