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Wednesday 17 October 2018

उद्योग मंदिर, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, एवं दांडी यात्रा Dandi March SABERMATI Aashram PART 3 Neelam Bhagi नीलम भागी




मैं आश्रम में घूमती जा रहीं हूं और मेरे दिमाग में कुछ पढ़े और विद्वानों द्वारा सुने बापू पर व्याख्यान भी घूम रहे थे। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद 25 मई 1915 में बापू ने कोचरब में जीवन लाल के बंगले में सत्याग्रह आश्रम खोला था। आर्थिक, राजनीतिक क्रान्ति की जो प्रयोगशाला उनके मस्तिष्क में थी वो वहाँ पर उस बंगले में सम्भव नहीं था। खेती बाड़ी, पशु पालन का प्रयोग भी मुश्किल था। बापू को तो सत्य, अहिंसा, आत्मसंयम, विराग एवं समानता के सिद्धांत पर महान प्रयोग करना था जो यहाँ सम्भव था। चालीस लोगों के साथ सामुदायिक जीवन को विकसित करने के लिये बापू ने 1917 में यह प्रयोगशाला शुरू की यानि साबरमती आश्रम। यहाँ के प्रयोग विभिन्न धर्मावलंबियों में एकता स्थापित करना, चरखा, खादी ग्रामोद्योग द्वारा जनता की आर्थिक स्थिति सुधारना, अहिंसात्मक असहयोग या सत्याग्रह द्वारा जनता में  स्वाधीनता की भावना जाग्रत करने के लिये किए गये।
उद्योग भवन को उद्योग मंदिर कहना कितना उचित है! जाने पर, देखने और मनन करने पर पता चलेगा। वहाँ जाकर एक अलग भाव पैदा होता है। यहीं से चरखे द्वारा सूत कात कर खादी वस्त्र बनाने की शुरूआत की गई। देश के कोने कोने से आने वाले बापू के अनुयायी यहाँ से खादी के वस्त्र बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त करते थे। तरह तरह के चरखे, धागा लपेटने की मशीने, रंगीन धागे, कपड़ा आदि वहाँ देख रही थी। कताई बुनाई के साथ साथ चरखे के भागों का निर्माण कार्य भी यहाँ होने लगा। मैंने ये महसूस किया कि यहाँ कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। सब चुपचाप देख रहे थे या सेल्फी ले रहे थे। लगभग सभी तरह के यहाँ चरखे थे।  ये देख कर मुझे अपने बचपन के दिन याद आने लगे जब घरों में चरखा रखना आम बात थी। दो तवे जैसा चरखा जिसे गांधी चरखा कहते हैं। वो बहुत प्रचलित था। जिसे उठा कर महिलाएं कहीं पर भी सखियों में बैठ कर गाती, बतियाती सूत कात लेती थीं।
अहमदाबाद के टैक्सटाइल मालिकों और मजदूरों में 21 दिन से हड़ताल चल रही थी। जिसको सुलझाने के लिए गांधी जी ने  अनशन कर दिया। जिसके प्रभाव से, उसे तीन दिन में समाप्त कर दिया गया। यहीं से गांधी जी ने खेड़ा सत्याग्रह का सूत्रपात किया। रालेट समिति की सिफारिशों  का विरोध करने के लिए गांधी जी ने यहाँ राष्ट्रीय नेताओं का सम्मेलन आयोजित किया। 2 मार्च को वायसराय को पत्र लिख कर अवगत कराया कि वे नौ दिन का सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने जा रहें हैं। 12 मार्च 1930 को नमक कानून तोड़ने के लिए, बापू ने यहीं से अपने 78 साथियों के साथ दांडी यात्रा शुरू की थी। 330 मील पैदल चल कर, 6 अप्रैल 1930 को यह यह कानून तोड़ा था।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन  एवं दांडी यात्रा – –नमक बनाने पर  थोड़ा सा टैक्स बढाया गया हमारे समुद्रों में नमक बनता है इस सुअवसर का गांधी जी ने लाभ उठाया इसे जन जाग्रति आन्दोलन में बदल दिया गाँधी जी ने तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन से  नमक कानून रद्द करने के लिए कहा 12 मार्च 1930 के दिन सावर मती के आश्रम से 78 चुने हुए स्त्री पुरुष सहयोगियों के साथ गांधी जी का काफिला पैदल  ऐतिहासिक यात्रा पर निकल पड़ा आगे- आगे रास्ते में पड़ने वाले गावों में सरदार पटेल जन समर्थन जुटा रहे थे | वह  रास्ते के हर गावं में ठहरते सबको आजादी का अर्थ समझाते  गाँधी जी पैदल चल कर उनके पास से गुजर रहें हैं छोटा सा समूह बढ़ता गया –बढ़ता गया ,330 किलोमीटर की ऐतिहासिक यात्रा रास्ते में रुक – रुक कर गाँधी जी जन समूह को सम्बोधित कर आजादी की अलख जगा रहे थे | 6 अप्रैल के दिन बिना कर चुकाए गांधी जी ने अपनी झोली में नमक भर लिया  ऐतिहासिक यात्रा की गूंज पूरे देश में फैल गई जगह – जगह नमक कानून तोड़ा गया ब्रिटिश साम्राज्य हिल गया |गांधी जी कैद कर लिये  गये सरकार का जितना दमन चक्र चला उतना ही विरोध बढ़ गया.नमक सत्याग्रह दुनिया के सबसे प्रभावशाली आंदोलन में शामिल है। इस सत्याग्रह में राजा गोपालाचारी, पं. जवाहरलाल नेहरू के अलावा 8000 भारतीयों को सत्याग्रह के दौरान जेल में ठूंसा। देश विदेश में वाइस आफ अमेरिका के माध्यम से प्रस्तुति कि कानून भंग के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियां खायीं, पर पीछे नहीं मुड़े। मजबूर होकर लार्ड एर्विन ने गांधी जी से बातचीत का प्रस्ताव भेजा |  






3 comments:

Mukesh Kaushik said...

आज के चटपटे तथाकथित साहित्य के शोर शराबे के बीच, गांधी जी की लुप्त होती जा रही विचारधारा को जनमानस तक पहुंचाने का आपका प्रयास सराहनीय है ।

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार