
कुछ समय बाद राजरानी अपने पति के साथ आई। उसने मेरे आगे पचास हजार रुपये रख कर कहा,’’दीदी निकाल दो प्लॉट।’’ चौदहा के पचास इतनी जल्दी! मैंने खुशी खुशी लाकर उनको फाइल दे दी और नोट सम्भाल लिए। अगले दिन उनके नाम पावर ऑफ एटार्नी कर दी। एक दिन मैं आराधना से मिलने उसके घर गई। वहाँ सरोजा काम कर रही थी। मुझे देखते ही चहक कर बोली,’’दीदी इसी बिल्डिंग में मुझे इतना काम मिल गया है कि मैं अकेली कर नहीं सकती। जितना शरीर सह ले उतना ही करती हूँ। मुझे आपसे जरुरी बात करनी थी। बात ये है कि राजरानी रोज मेरे पास आकर कहती है कि मैं अपना प्लाट उसे बेच दूं। वो बदले में मुझे इसी लोकेशन का कहीं और प्लाट खरीदवा देगी, साथ में पैसा भी देगी। पर मैंने सोचा पहले आप से बात कर लूं। आप ले लोगी तो आपका जोड़ा बन जायेगा। हमने तो रहना ही है। यहाँ नहीं रहे तो कहीं और दस बीस घर छोड़ कर रह लेंगे। घर के बदले घर और कुछ पैसे भी मिल जायेंगे। मैंने कहा,’’वो प्लॉट तो राजरानी ने मुझसे खरीद लिया।’’ सरोजा ने पूछा,’’कितने का और कब?’’ मैने बताया,’’पिछले महीने ही तो, पचास हजार का।’’सुनते ही सरोजा को जोर का झटका लगा। वो बोली,’’लो कर लो बात, रोड का डेढ़ लाख का रेट है। और राजरानी का तो जोड़ा रोड का बन रहा था वो तो आपको बाजार भाव से भी फालतू देती।’’ अब तो मैं अपना घर नहीं बदलूंगी। वो तो खुशी खुशी अपने काम में लग गई। और मैं तो अपने को ठगा सा महसूस कर रही थी। आराधना मुझे डांटे जा रही थी कि यहाँ आकर रेट नहीं पता कर सकती थी। मैंने कहा,’’तूं भी तो मेरठ की है। तेरा अर्पाटमैंट भी तो प्रशासन के ड्रा में निकला है। तुझे पता था ये सब! हमने मेरठ में कभी ऐसा सुना ही नहीं था। हमारे वाद विवाद के बाद मैंने अपने मन को समझाया कि मुझे तो मुंह मांगी कीमत मिली है। राजरानी तो व्यापारी है। मुझे बेचने से पहले सोचना चाहिए था। और मैंने किसी तरह मन को समझा ही लिया। राजरानी के दोनो बेटे मेरे स्कूल में पढ़ते थे। पहले उसका परचून का काम था और ऊपर बना कर उसमें मो रहते थे मेरा प्लॉट खरीदने से अब उनका दोनो प्लॉट मिलाकर परचून और जनरल स्टोर की दुकान थी। मेरे महीने का घर का सामान उनकी दुकान से आता था। बेसमैंट से लेकर चार मंजिल उन्होंने बना लिया था। ऊपर रिहाइश थी। मैं सामान की लिस्ट लेकर जाती। राजरानी का पति उसे बुलाता, वह तुरंत आकर मुझे घर ले जाती। मेरा स्वागत सत्कार करती। सरोजा के बेटे परशोतम के लिए वह दुखी होती थी। वो बताती कि सरोजा तो सुबह काम पर चली जाती है। दोपहर बाद आती है। वो पड़ोसी होने के नाते उसके घर का, बेटे का ध्यान रखती है। मेरा सामान मेरे घर पहुंच जाता और बिल मेरे पास जिस पर टोटल पर काफी रियायत दी होती थी। मैं पेमैंट करती। हर बार मुझे एक बात राजरानी जरुर कहती कि सरोजा को आप समझाइये न। अपना प्लॉट हमें दे दे। इसकी पसंद का घर बनवा कर देंगे, साथ में कैश भी देंगे। हर महीने मुझे यहाँ आना अच्छा लगता था। सर्दी में राजरानी के साथ छत पर धूप में बैठती। पीछे के घरों में झुग्गी से आये प्रवासी लोग एक एक ईंट लगवा रहें हैं या लगा कर घर को ऊंचे से ऊंचा बना रहे होते थे। सैंपल के मकान जैसा किसी ने भी घर नहीं बनाया क्योंकि उस तरह बनाने में धूप हवा के लिए जगह छोड़नी पड़ती है। पर कोई भी अपनी एक इंच भी जगह छोड़ने को तैयार नहीं था। सबने सौ प्रतिशत एरिया कवर किया। सरोजा का घर फेसिंग पार्क है। अगर राजरानी उसे खरीद लेती है। तो रैजिडेंस में सौ प्रतिशत कवर होने पर भी उसके घर में क्रॉस वैंटिलेशन हो जाता और पार्क वो पार्किंग के लिए इस्तेमाल करती। क्रमशः
2 comments:
प्रापर्टी की दिल्ली में ऐसे ही कीमत बढती है घटती कभी नहीं सुनी समाज से जोड़ता लेख
धन्यवाद
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