Search This Blog

Tuesday 26 November 2019

जिंदगी ख्वाब है...... हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 3 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 3 Neelam Bhagi नीलम भागी


इस बार जब मैं सामान खरीदने गई, तो राजरानी चहकती हुई मुझे ऊपर लेकर गई। मेरे आगे मिठाई का डिब्बा रखकर बोली,’’दीदी, पहले मुंह मीठा करो फिर आपको खुशखबरी सुनाउंगी।’’मैंने बर्फी का एक पीस मुंह में डाला तो वह बोली,’’दीदी हमने पीछे वाला सुखिया का प्लॉट खरीद लिया। अब हमारा अंग्रेजी के एल शेप का, पिचत्तर स्क्वायर मीटर का प्लॉट हो गया है। भगवान सरोजा को अकल दे, वो भी अपना प्लाट बेच दे तो हमारा 100 मीटर का रोड का प्लॉट हो जायेगा। फ्रंट रोड और बैक साइड फेसिंग पार्क। आप उसे समझाओ न फिर हम दोनो प्लॉट एक साथ बनवा लेंगे।’’मैंनेे जवाब दिया कि मैं कोशिश करुंगी। अब राजरानी का कारोबार होल सेल का होने लगा था। दोपहर तक आसपास के दुकानदार सामान लेने आते थे। दोपहर बाद ये रिटेल के ग्राहक अटैंड करते थे। महीने में एक बार यहाँ आने का मेरा शौक बन गया था। उसके दोनो बेटे अब दिल्ली के नामी पब्लिक स्कूल के आर्थिक रुप से पिछडे़ आरक्षित पच्चीस प्रतिशत सीटों में एडमीशन पा गये थे। उनका स्थायी निवास झुग्गी झोपड़ी पुनिर्वास कालौनी का जो था। अब मैं दोपहर बाद ही सामान खरीदने आती। राजरानी मुझ से खूब बतियाती। उसका विषय होता था ’ये हमारे पीछे वाले’ साथ ही वहाँ की बुराइयाँ शुरु कर देती और कहती,’’दीदी बच्चों को मैं इनके साथ खेलने नहीं देती। ये लोग गालियां बहुत बकते हैं।’’ इन घरों कें आदमी तो फैक्टिरियों में काम करने वाले, असंगठित क्षेत्र के कामगार, मेनरोड पर बनी दुकानों पर काम करते थे। महिलाएं ज्यादातर घरों में या फैक्ट्ररी में काम करतीं हैं। लेकिन यहाँ रहने वालों का मकसद बच्चों को आमदनी के अनुसार  अच्छी शि़क्षा दिलाना, कोशिश अंग्रेज़ी स्कूल में दाखिला करान और घर को ऊँचे से ऊँचे बनाना है ताकि किराये की आमदनी हो सके। जो घरों में काम करती हैं, वे दोपहर को घर आकर जल्दी से अपने घर के काम निपटा कर, बच्चों को टयूशन भेज कर,पार्क में बैठ कर एक दूसरे की जुएं निकालती हुई बतियाती हैं। अपनी अपनी मैडम के घरों की बातें एक दूसरे से शेयर करती हैं। घरों में तो न धूप आती है न हवा। घर तो इन्हें आंधी पानी से बचाता है और सोने के काम आता है। मुझे तो पार्क इन सब का सांझा आंगन बन गया लगता है। प्रवासी हैं आपस में बहुत मेल मिलाप से रहते हैं। ज्यादातर ने अपनी मैडम का नाम उनके प्लैट नम्बर से रक्खा हुआ है। सभी को एक दूसरे की मैडम की पूरी जानकारी रहती है। अपनी मैडम से हमदर्दी भी रखती हैं। घर घर काम करती हुई कुछ तो मनोवैज्ञानिक हो जातीं हैं। अब जैसे आराधना का गुस्सा नाक पर रक्खा रहता है। कभी भी सरोजा को कह देगी, तू जा मुझे नहीं करवाना तुझसे काम। सरोजा के पास काम की कमी नहीं है पर अराधना जैसी मैडम भी नहीं है। सरोजा अगले दिन जाकर कहेगी,’’दीदी गुस्सा उतर गया तो काम करुं।’’और काम में लग जायेगी, ऐसे ही आठ साल हो गये हैं। सुखिया के पति ने राजरानी को प्लॉट बेचा बदले में यहाँ घर न लेकर पाँच लाख रुपये गाँव ले गया। इस बात से सब दुखी थीं। सबके अपने अपने ख्वाब हैं । सरोजा का एक ही ख्वाब था कि उसका परशोतम जल्दी से जवान हो जाये और वो उसकी शादी कर दे। कहीं से भी उसे खाने को अच्छी चीज मिलती है तो उसे लाकर बेटे को खिलाती है।  सारा घर वोे संभालता है। घर एकदम साफ सुथरा रखता है। दिन भर रेडियो पर गाने सुनता है|रात को माँ के पेैर दबाता है। सरोजा उसके खाने का विशेष ध्यान रखती है। बिना सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा लगाये उसे घर से बाहर नहीं निकलने देती । क्रमशः

No comments: