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Tuesday, 5 November 2019

मेरे दिल को तुम भा गए, विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 14 नीलम भागी



   
 धीरे धीरे मैं संभली| नया काम पकड़ा और अपने को काम में और पढ़ने में लगाया| एक इवेंट मैनेजमैंट कंपनी के साथ मैं यहाँ आई थी। इस देश ने मुझे मोह लिया लौटी और अधूरी पढ़ाई पूरी की। फिर यहाँ आ गई। तीन साल मैंने गधे की तरह काम किया। मेरी जिन्दगी में फिर डैरिक आया। वो बहुत हैण्डसम था| मेेेरे दिल को भा गया। हम लिव  इन में रहने लगे। मैंने उसे कह दिया था कि यदि तुम मुझे सूट करोगे, तब मैं शादी करूंगी। चार साल बाद मुझे लगा कि इसका आई. क्यू कम है। ये मेरी रफ्तार से नहीं चल पा रहा है। हम अलग हो गये क्यूंकि मैं बेवकूफ के साथ जीवन नही बीता सकती| अब मेरा टारगेट इस विला में रहना था। इसका रैंट बहुत ज्यादा है। अपनी मेहनत और लगन से चार साल बाद मैं इसमें रहने आई। इसके बाद सायमन से मेरी दोस्ती हुई| वह मेरे साथ लिव इन में आया। हमारा एक सा काम था दोनों मिल कर करते पर तीसरे साल वो मुझसे अलग हो गया। मैंने पूछा,’’क्यों ?’’कात्या मूले ने बड़ी डूबी हुई आवाज में जवाब दिया,’’जाते  हुए उसने बस यही कहा कि वह अपनी गर्लफैंड के साथ रहने आया था पर यहाँ लग रहा था कि वह होस्टल की र्वाडन के सुपरविजन में हो।’’ वो बड़ी दुखी होकर बोली कि उसने सोचा था कि बत्तीस साल की उम्र तक वह शादी कर लेगी या ज्यादा से ज्यादा पैंतीस साल बस पर... मैंने उठ कर उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा कि जिसकी किस्मत अच्छी होगी, उसे तूं मिलेगी। वो मुस्कुरा दी। शुभरात्री कर हम चल दिये। आते ही बेटी ने टी.वी. बंद कर सारा किस्सा सुना। सुनकर वह भी गम्भीर हो गई। और कात्या मूले के लिए दुखी होकर बोली,”मां इसकी शादी कैसे होगी? गुण अवगुण तो सभी में होते हैं| मैंने बेटी से कहाकि इन रिश्तों में न तो अधिकार है, न हक है, न ही सामाजिक  भय, बंधन और न किसी प्रकार की वचन बद्धता| जब तक अच्छा लगा रहे, ऊब होने पर कमियां दिखनी शुरू फिर तूं अपने रास्ते मैं अपने। फिर मानसिक भटकन बेहतर की तलाश में। सुनकर बेटी बोली कि इसका मतलब तो अरेंज मैरिज करनी चाहिए। मैं बोली,’’एक उच्चशिक्षित, आत्मनिर्भर इनसान पर अपनी इच्छा थोपना, मैं उचित नहीं समझती। लेकिन लिव इन के पक्ष में, मैं अपने देश की सामाजिक व्यवस्था के कारण बिल्कुल नहीं हूं। अच्छा लगा जब बेटी ने मेरे सर्मथन में सिर हिलाया। अब मैं अगले दिन का बेसब्री से इंतजार करने लगी। आज कुत्ता घूमाने गए, इधर उधर की बाते हीं की। वो भी जल्दी फारिग़ हो गया। हम लौट आये। अब शाम का इंतजार। शाम को वो बाहर से आई। मैं र्गाडन में लेटी पढ़ रही थी। उसे ले जाना, छोड़ना शायद क्लांइंट का था। इसलिये मुझे उसका आना जाना पता नहीं चला। मैं उसे देखते ही खिल गई। उसने पूछा कि उसका पर्स कितने का होगा। हमेशा की तरह मै हजारों रूपये बताती वो उतने हजारों दरहम का होता। मेरा अंदाज गलत होता, वह बहुत खुश होती। मुझे उसे खुश देखना बहुत अच्छा लगता था| क्रमशः 

2 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

विश्व रंगबिरंगा है हर देश की संस्कृति अपने में अलग होती है अपने परिवेश के अनुसार ढलती है बहुत अच्छे ढंग ने विषय को गहराई से लिखा आप अपने हिसाब से जो अर्थ निकाल लें

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद