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Monday 12 April 2021

श्वेता का संडे स्पेशल, रंगीले हैल्दी परांठे, नीलम भागी Shweta's Sunday Special! Healthy veg paneer parantha Neelam Bhagi

 

कुछ दिनों से श्वेता देख रही थी कि डिनर में गुड़िया शाश्वत के लिए आलू के परांठे बना कर जाती थी। श्वेता जब खाना लगाती तो शाश्वत बहुत खुश होकर आलू के परांठे खाता। कोई सब्जी दाल साथ में छूता भी नहीं। दीदी तो वही बनायेगी जो बच्चा फरमाइश करेगा। श्वेता डर गई की बच्चे आलू की तरह न हो जाएं। जैसे ही संडे आया। श्वेता ने आधा लीटर फुल क्रीम दूध की थैली में एक नींबू का रस डाल कर पनीर बनाया, पनीर बनाने की विधि का लिंक नीचे लिखी है।

चाय की छननी से छाना। पनीर के पानी में स्वादानुसार नमक अजवाइन डाल कर, उससे  आटा लगा लिया। फटे दूध के पानी में कैशियम और फॉस्फोरस होता है इसलिए पौष्टिक आटा तैयार हो गया। शिमला मिर्च, गाजर, चुकन्दर, प्याज आदि पसंद की सब्जियां बारीक काट लीं। इन सब्जियों में चाय की छन्नी पर जो पनीर इक्ट्ठा हुआ है उसे इनमें मिला कर फ्लेवर के लिए मोटी फीकी हरी मिर्च भी थोड़ी डाल दी। इसमें नमक और थोड़ा चाट मसाला(न भी डालें तो चलेगा, पनीर के पानी में नींबू का रस है न) मिला कर भरावन तैयार कर लिया। अब आटे की लोई में इस भरावन को भर कर परांठे सेक लिए। बच्चों ने यम्मी यम्मी करके खाए। श्वेेता ने गुड़िया से कहा कि बच्चे जब भी डिनर में आलू के परांठे बनाने को कहें। तूं इन्हीं रंगीले परांठों की तैयारी करके चली जाया कर। बच्चों को आलू बहुत पसंद होते हैं इसलिए जीरा आलू बना दिए। रंगीले सब्जियों के परांठे मैं आकर सेक लूंगी। बस ध्यान रखना भरावन में नमक नहीं डालना। वह मैं डालूंगी, नमक से सब्ज़ियां पानी छोड़ देंगी तो बनाना बहुत मुश्किल हो जायेगा। अब इन हैल्दी परांठों के साथ जीरा आलू मजे से खा सकते हैं।  

पनीर बनाने की विधि का लिंक 

https://neelambhagi.blogspot.com/2018/06/blog-post.html?m=1



      

 





पनीर बनाने की विधि का लिंक 

https://neelambhagi.blogspot.com/2018/06/blog-post.html?m=1


      




Saturday 10 April 2021

पौधे कैसे लगाएं !! नीलम भागी How to do gardening! Neelam Bhagi





95 साल की अम्मा अभी नींद से उठ कर रात 11:00 बजे, अपने स्कूल के समय में निबंध में लिखी कविता अर्थ सहित सुनाने लगीं। मैंने भी अपनी किताब रख कर ध्यान से सुनी। एक पेड़ जल रहा था उस पर बैठे पंछियों को देख कर वहां से गुजरने वाले राहगीर ने पक्षियों को समझाया

आग लगी इस पेड़ को, जलने लगे पात

तुम क्यों जलते पंछियों, जब पंख तुम्हारे पास!!

     पेड़ जल रहा है, पंख होते हुए भी तुम क्यों नहीं उड़ रहे हो? पंछियों ने राहगीर को जवाब दिया:

फल खाये इस पेड़ के, गंदे कीने पात।

यही हमारा धर्म है, अब जलें इसी के साथ।

अम्मा सुना कर बोली,’’ ये लाइनें मैंने मातृभूमि निबंध में लिखने के लिए याद की थीं।’’ सुना कर अम्मा तो सो गईं। पर मेरे दिमाग में पेड़ पौधे पत्तियां छा गए। मैं पढ़ना छोड़ कर, लिखने बैठ गई हूं। कुछ साल पहले मेरी सर्जरी हुई। मैं आई सी यू में थी। मेरी हालत बिगड़ गई। डॉ. ने ऑक्सीजन लगाई। कुछ देर में मेरी हालत सुधरने लगी। ये ऑक्सीजन हमें पौधे ही देते हैं। उनकी दी ऑक्सीजन में सांस लेते हुए भी कुछ लोग गाड़ी खड़ी करने के लिए पेड़ कटवा देते हैं। या खूबसूरत घर बनवा कर उसके सामने यदि कोई पेड़ है तो उसे कटवा देते हैं कि घर का लुक छिप रहा है।

पर सभी पेड़ों के दुश्मन नहीं है। कोरोना काल में फ्लावर शो न लगने से लोग बहुत परेशान हैं। यहां एक जगह से प्रकृति प्रेमी सब कुछ खरीद लेते थे। बागवानी के सामान की दुकाने बहुत दूर हैं। एक ही छुट्टी होती है। उसी में पौधों को समय दें या खरीदारी करने जाएं। ठेला चलाकर जो पौधे बेचने आते हैं, वे एक ठेले में कितना भार ढो सकते हैं! उन्हें सोसाइटी में घुसने नहीं दिया जाता है। इस कारण से बागवानी का शौक सब लोग नहीं कर पाते। विंडो, बालकोनी, टेरेस गार्डिनिंग करके वे भी अपने हिस्से का कुछ वायु प्रदूषण कम करना चाहते हैं पर नहीं कर पाते।
अंकुर के घर मैं रात को रूकी। रात को शाश्वत और अदम्य मेरे साथ सोए। सुबह मेरे साथ  अदम्य नहीं था।  बालकोनी का दरवाजा खुला था। बाहर देखा अदम्य गमलों में बड़े शौक से पानी दे रहा था। मैंने हैरान होकर कहा,’’अरे! ये पौधे कहां से आए? इतने में शाश्वत उठ गया और मेरा हाथ पकड़ कर बोला,’’चलिए, मैं आपको दिखा कर लाता हूं।’’ संडे था हम गेट से बाहर आए। सोसाइटी की बाउण्ड्री वॉल के साथ बागवानी के सामान की दुकान लग रही थी। फुटपाथ का भी अतिक्रमण नहीं था। देख कर बहुत अच्छा लगा तभी इस मल्टी स्टोरी सोसाइटी में सभी की बालकोनी में कंटेनर गार्डिनिंग थी। 
जब भी किसी माली को गमलों से लदे ठेले को खिंचते हुए देखती हूं तो मन में ये प्रश्न उठता है कि इन्हें भी सेक्टरों में साप्ताहिक कुछ घण्टों के लिए ठेला लगाने को जगह मिलनी चाहिए।   

     
नोएडा से प्रकाशित दैनिक जनता की खोज में यह लेख प्रकाशित हुआ है।

Friday 9 April 2021

गुणों से भरपूर सौंफ उगाएं और खाएं नीलम भागी Indian Sweet Fennel Neelam Bhagi

 


खाने के बाद सौंफ चबाना अच्छा लगता है। इसी सौंफ को जब उगाया तो और भी अच्छा लगा। कारोना काल में घर से बाहर न जाने के कारण गार्डिनिंग में मेरी बहुत रुचि हो गई है। इसलिए सौंफ भी थोड़ी सी उगा ली। जिसके बारीक पत्ते देखने में भी बहुत सुन्दर लगते और माउथफ्रेशनर का भी काम करते हैं। इसमें कोई कीड़ा नहीं लगता न ही ज्यादा देखभाल की जरुरत है। मेरी सहेली जब चिकन और फिश बनाती है तो इसके पत्ते मांग के ले जाती है। उसका कहना है कि धनिए की तरह इसकी पत्तियां चिकन और फिश में डालने से वह बहुत लजी़ज़ बनता है। आप खाती नही, ंतो आप कैसे जानोगी भला! पर मैं गुड़ की चाय और गुड़ के गुलगुलों में इसको बारीक काट कर डालती हूं जिससे वह बहुत स्वाद बनते हैं। पहले मैं उसमें सौंफ पीस कर डालती थी।    

हुआ यूं कि मेरे आंगन में पड़ों के पत्ते बहुत गिरते हैं। मैं उन्हें आटे की खाली दस किलो की थैली में भरती रहती हूं। भरने पर कंपोस्ट के लिए डाल देती हूं। सितम्बर में मैंने इसी थैली का ग्रो बैग बना कर उसमें पत्तों को ठूस कर छत पर ले गई। अब इस पर 6’’ पॉटिंग मिक्स भर कर दबाया। पॉटिंग मिक्स 50% मिट्टी, 40% वर्मी कंपोस्ट बाकि रेत और नीम की खली से तैयार किया। मिट्टी डाल कर अच्छी तरह दबाने के बाद इस पर दूर दूर सौंफ बिखेर दी और उसे इस मिट्टी से ढक दिया और अच्छे से पानी दे दिया और धूप में रख दिया। सात से दस दिन में काफी अंकुरण हो गया। कुछ पौधों को निकाल कर माइक्रोग्रीन की तरह सलाद मेें इस्तेमाल कर लिया। बाकि बढ़ते रहे ये वैसे ही चबाने में बहुत अच्छे लगते हैं। बढ़ने का तो इन्हें मौका ही नहीं मिला क्योंकि जब जरुरत होती ऊपर से काट लेती।




अब इनमें फूल आ गए हैं।

इस बार इन्हें कम से कम 10’’ के गमलों में एक गमले में 3 या 4 सौंफ डाल बोउंगी और आपके साथ शेयर करुंगी ताकि आप भी कैल्शियम, मैग्निशियम, फास्फोरस, पोटेशियम, जिंक और आयरन से भरपूर ताज़ा माउथफ्रैशनर उगायें।

एक मिनट में मुफ्त का ग्रो बैग बनाने के लिए लिंक 




https://youtu.be/RsfCymsbTDk


Monday 5 April 2021

मैंने कंटेनर में भिंडी उगाई आप भी उगा सकते हैं नीलम भागी How to Grow Okra in pots Neelam Bhagi



भिंडी की सब्जी मुझे बेहद पसंद है। उगाने के कारण इसके फूल भी बहुत सुदंर लगते हैं। आप भी मेरी तरह उगाइए।
सबसे पहले विश्वसनीय दुकान से बहुत बढ़िया बीज खरीदिए। मैं 34वां गार्डन टूरिज्म फैस्टिवल जो र्गाडन ऑफ फाइव सेंसेज में लगा था। उसे देखने गई थी। 5 इन्द्रिय उद्यान, र्गाडन ऑफ फाइव सेंसेज नामक यह उद्यान दिल्ली के दक्षिणी भाग में सैद- उल- अजाब गांव के पास स्थित है। वहां गार्डिनिंग के प्रयोग में आने वाली हर एक चीज की मार्किट लगी हुई  थी। मेरी आंखें सामान पर थीं, दुकान के नाम पर नहीं। वहीं से मैंने भिंडी के बीज खरीदे।

पहली बार मैंने टैरेस गार्डिनिंग शुरु की थी। मेरे कंटेनरों में हरी सब्ज़ियां उगी हुईं थीं। उनका मौसम जाने वाला था। अब मैंने मुफ्त के ग्रो बैग तैयार किए। उनमें भरने के लिए  पॉटिंग मिक्स  तैयार किया। 60% मिट्टी, 30% वर्मी कम्पोस्ट, 10% में रेत और नीम की खली को अच्छी तरह मिला कर इन ग्रो बैग में भर लिया। 21 फरवरी रात को मैंने बीजों को पानी में भिगो दिया था। 22 फरवरी को मैंने इन भीगे भिंडी के बीजों को एक एक मुफ्त के ग्रो बैग में 2 या 3 सेमीं अंगुली से गड्ढा करके बो दिया और पानी अच्छी तरह दे दिया और नीचे दो दो छोटे ड्रेनेज होल कर दिए ताकि फालतू पानी बाहर चला जाए। अगर आपके पास 18’’ का गमला है तो एक गमले में चार बीज बो सकते हैं। 12’’ के गमले में दो बीज लगाएं। अगर जमीन पर बोना है तो लाइन की दूरी 1फीट रखें। बीजों को बोने के बाद हल्की मिट्टी से उन्हें ढक दें। 

मेरे मुफ्त के ग्रो बैग में 27 फरवरी से लगभग सभी बीजों का अंकुरण हो गया। भिंडी 27 से 30 डिग्री तापमान पर बहुत अच्छा ग्रो करती है। पौधे बहुत अच्छे ग्रो करने लगे।


15 दिन बाद मैं इनमें वर्मी कम्पोस्ट एक मुट्ठी से कम डाल देती। 16 मार्च से मेरे जो भी सरसों , बथुए, मेथी, पालक आदि के कंटेनर खाली होते जाते, मैं शाम को उनमें भ्ंिाडी के पौधे ट्रांसप्लांट करती जाती। मेरा एक भी पौधा ट्रांसप्लांट करने में नहीं मरा।
पुराने कंटेनर को खाली करके, शाम के समय मुफ्त के ग्रो बैग में लगे भ्ंिाडी के पौधे को कंटेनर में रख कर इस मुफ्त के ग्रो बैग को कैंची से काट कर पूरी तरह मिट्टी से हटा कर फैंक देती। अब पौधा बिना कवर के पुरानी मिट्टी के साथ कंटेनर में रखा होता।


उसके चारों ओर खाली जगह में तैयार मिट्टी भर देती। अब उनमें बहुत सुंदर फूल आ गए हैं। फाइबर, पोटेशियम, विटामिन के सेेेेेे भरपूर हरी हरी भिंडी भी लगनी शुरु हो गई है। पहली बार मैंने वहां से बीज खरीदे, बीज बहुत अच्छे निकले। 

एक मिनट में मुफ्त के ग्रो बैग बनाना सीखने के लिए लिंक पर क्लिक करें 


  https://youtu.be/RsfCymsbTDk

रसोई के कचरे का इस्तेमाल

किसी भी कंटेनर या गमले में ड्रेनेज होल पर ठीक   रा रखकर सूखे पत्ते टहनी पर किचन वेस्ट, फल, सब्जियों के छिलके, चाय की पत्ती बनाने के बाद धो कर आदि सब भरते जाओ बीच-बीच में थोड़ा सा वर्मी कंपोस्ट से हल्का सा ढक दो और जब वह आधी से अधिक हो जाए तो एक मिट्टी तैयार करो जिसमें 60% मिट्टी हो और 30% में वर्मी कंपोस्ट, या गोबर की खाद, दो मुट्ठी नीम की खली और थोड़ा सा बाकी रेत मिलाकर उसे  मिक्स कर दो। इस मिट्टी को किचन वेस्ट के ऊपर भर दो और दबा दबा कर, इस तैयार मिट्टी को 6 इंच, किचन वेस्ट के ऊपर यह मिट्टी रहनी चाहिए। बीच में गड्ढा करिए छोटा सा 1 इंच का, अगर बीज डालना है तो डालके उसको ढक दो।और यदि पौधे लगानी है तो थोड़ा गहरा गड्ढा करके शाम के समय लगा दो और पानी दे दो।


Sunday 4 April 2021

श्वेता का संडे स्पैशल ’’पौष्टिक बेसन लड्डू’’ नीलम भागी Shweta"s Sunday Special Besan Laddu Neelam Bhagi

 

चाकलेट, केक, चिप्स आदि को बच्चे बड़े शौक से खाते हैं।़ बच्चों के लिए कुछ भी बना कर ’’खा ले बेटा, खा ले बेटा’’ का जाप करो तो वे नहीं खाते। थोड़ी तरकीब लगाओ तो वे सब चट कर जाते हैं। मसलन श्वेता ने बेसन के लड्डू बनाए। इसके लिए उसने दो बड़े कटोरे मोटा बेसन, एक कटोरा देसी खाण्ड( जिसे बुरा भी कहते हैं), आधा कटोरा घी, 8 बारीक पीसी हरी इलायची, इच्छानुसार ड्राइफ्रूट जो भी पसंद हो लिया। 

 श्वेता ने एक मोटे तले के बर्तन में घी डाल कर गैस मीडियम पर जला कर घी पिघलते ही उसमें बेसन मिला दिया और उसे लगातार चलाती रही। इस समय बेसन सूखा सूखा सा लगता है। पांच मिनट के बाद इसमें भूनने की महक आने लगी, उसने गैस एकदम स्लो करके थोड़ा सा घी कम लगने पर और डाल दिया और इसे चलाती रही। बेसन ने खूब घी छोड़ दिया और इसका रंग बदल गया तो उसने गैस बंद कर दी पर चलाती रही ताकि इसके तली पर बेसन न जल जाये।


जब बेसन इस लायक हो गया कि न चलाने पर तले पर नहीं जलेगा तब उसने खाण्ड में कटा ड्राइफ्रूट, इलायची पाउडर मिलाकर, बेसन में डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर लिया। छूने लायक होते ही इसके लड्डू बना लिए जो खाने में बेहद लजीज़। पर देखने में हलवाई जैसे नहीं क्योंकि वह हलवाई नहीं है।

खिलाने की तरक़ीबः- लड्डू बनाने के बाद श्वेता ने आधे लड्डू गायब कर दिये और आधे पारदर्शी जार में रख कर अदम्य और शाश्वत से कहा,’’ये लड्डू मैंने अपने साथ लंच में ले जाने के लिए बनाए हैं। तुम लोग एक एक ले सकते हो, एक से ज्यादा बिल्कुल नहीं।’’ दोनों जब भी खेलते कूदते आते एक एक ही लड्डू लेते पर दिन में कई बार। श्वेता घर आते ही जार में लड्डू कम देख कर खुश हो जाती और जार को फिर भर देती है।


लेकिन मेरे पास जब खाण्ड नहीं होती तो मैं इसकी जगह बारीक चीनी का इस्तेमाल करती हूं। लड्डू खाते समय इसके दाने दांतों में आते हैं जो चबाने में अच्छे लगते हैं।

खाण्ड की जगह मोटी चीनी और इलायची एक साथ पीस कर मिला सकते हैं।