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Saturday 10 April 2021

पौधे कैसे लगाएं !! नीलम भागी How to do gardening! Neelam Bhagi





95 साल की अम्मा अभी नींद से उठ कर रात 11:00 बजे, अपने स्कूल के समय में निबंध में लिखी कविता अर्थ सहित सुनाने लगीं। मैंने भी अपनी किताब रख कर ध्यान से सुनी। एक पेड़ जल रहा था उस पर बैठे पंछियों को देख कर वहां से गुजरने वाले राहगीर ने पक्षियों को समझाया

आग लगी इस पेड़ को, जलने लगे पात

तुम क्यों जलते पंछियों, जब पंख तुम्हारे पास!!

     पेड़ जल रहा है, पंख होते हुए भी तुम क्यों नहीं उड़ रहे हो? पंछियों ने राहगीर को जवाब दिया:

फल खाये इस पेड़ के, गंदे कीने पात।

यही हमारा धर्म है, अब जलें इसी के साथ।

अम्मा सुना कर बोली,’’ ये लाइनें मैंने मातृभूमि निबंध में लिखने के लिए याद की थीं।’’ सुना कर अम्मा तो सो गईं। पर मेरे दिमाग में पेड़ पौधे पत्तियां छा गए। मैं पढ़ना छोड़ कर, लिखने बैठ गई हूं। कुछ साल पहले मेरी सर्जरी हुई। मैं आई सी यू में थी। मेरी हालत बिगड़ गई। डॉ. ने ऑक्सीजन लगाई। कुछ देर में मेरी हालत सुधरने लगी। ये ऑक्सीजन हमें पौधे ही देते हैं। उनकी दी ऑक्सीजन में सांस लेते हुए भी कुछ लोग गाड़ी खड़ी करने के लिए पेड़ कटवा देते हैं। या खूबसूरत घर बनवा कर उसके सामने यदि कोई पेड़ है तो उसे कटवा देते हैं कि घर का लुक छिप रहा है।

पर सभी पेड़ों के दुश्मन नहीं है। कोरोना काल में फ्लावर शो न लगने से लोग बहुत परेशान हैं। यहां एक जगह से प्रकृति प्रेमी सब कुछ खरीद लेते थे। बागवानी के सामान की दुकाने बहुत दूर हैं। एक ही छुट्टी होती है। उसी में पौधों को समय दें या खरीदारी करने जाएं। ठेला चलाकर जो पौधे बेचने आते हैं, वे एक ठेले में कितना भार ढो सकते हैं! उन्हें सोसाइटी में घुसने नहीं दिया जाता है। इस कारण से बागवानी का शौक सब लोग नहीं कर पाते। विंडो, बालकोनी, टेरेस गार्डिनिंग करके वे भी अपने हिस्से का कुछ वायु प्रदूषण कम करना चाहते हैं पर नहीं कर पाते।
अंकुर के घर मैं रात को रूकी। रात को शाश्वत और अदम्य मेरे साथ सोए। सुबह मेरे साथ  अदम्य नहीं था।  बालकोनी का दरवाजा खुला था। बाहर देखा अदम्य गमलों में बड़े शौक से पानी दे रहा था। मैंने हैरान होकर कहा,’’अरे! ये पौधे कहां से आए? इतने में शाश्वत उठ गया और मेरा हाथ पकड़ कर बोला,’’चलिए, मैं आपको दिखा कर लाता हूं।’’ संडे था हम गेट से बाहर आए। सोसाइटी की बाउण्ड्री वॉल के साथ बागवानी के सामान की दुकान लग रही थी। फुटपाथ का भी अतिक्रमण नहीं था। देख कर बहुत अच्छा लगा तभी इस मल्टी स्टोरी सोसाइटी में सभी की बालकोनी में कंटेनर गार्डिनिंग थी। 
जब भी किसी माली को गमलों से लदे ठेले को खिंचते हुए देखती हूं तो मन में ये प्रश्न उठता है कि इन्हें भी सेक्टरों में साप्ताहिक कुछ घण्टों के लिए ठेला लगाने को जगह मिलनी चाहिए।   

     
नोएडा से प्रकाशित दैनिक जनता की खोज में यह लेख प्रकाशित हुआ है।

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