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Saturday 14 January 2023

जब भी इसे पढ़ती हूँ, कुछ नया पाती हूँ!! उत्सव मंथन नीलम भागी Geeta jyanti Utsav Manthan Neelam Bhagi


  दुबई में मेरी जर्मन सहेली कात्या मूले अपनी किताबों का संग्रह दिखाने लगी तो वहाँ अ्रग्रेजी में अनुवाद गीता देखते ही मैंने उससे पूछा,’’गीता पढ़ कर तुम्हें कैसा लगा?’’उसने गीता को उठाया, उस पर हाथ फेरते हुए जवाब दिया,’’जब भी इसे पढ़ती हूँ, कुछ नया पाती हूँ।’’

 और मुझे अपनी दादी याद आने लगी, जिसका शस्त्र था संस्कृत और गीता। वह गीता को जरी गोटे के खूबसूरत कपड़ें में लपेट कर रखती थीं। सुबह नहा कर जैसे ही वह गीता हाथ में लेंती, आस पास की अनपढ़ महिलाएं तुरंत हमारे आंगन में आकर उनका आसन बिछातीं, चौकी रखतीं। दादी सामवेद की ऋचा की तरह ऊँची आवाज़ में गीता का श्लोक पढ़तीं। जिनकी आंगन की दीवार ऊँची थी, वे आवाज सुन कर दौड़ती हुई आतीं। फिर दादी उसका अर्थ समझातीं। जब मैं संस्कृत पढ़ने लगीं। तो मैंने अम्मा से कहा,’’दादी श्लोकों का गलत अर्थ बताती हैं।’’सुन कर अम्मा मुस्कुराते हुए बोलीं,’’मुझे पता है, अगली बार इसी श्लोक का अर्थ दूसरा होगा। तू स्कूल जाती है, मैं तो रोज सुनती हूँ। बेटी, माताजी असाधारण महिला हैं। महिलाएं इनसे दिल की बात करती हैं। जिसको ये टारगेट करती हैं उसे जो समझाना होता है, वैसा ही इनका अर्थ होता है। गीता हम लोगों के ज़हन में रहती है। इसलिए संस्कृत में श्लोक बोल कर ही अर्थ करतीं हैं। इनका बहू बेटियाँ भी कितना सम्मान करतीं हैं!’’ दोपहर को दादी मोहल्लेदारी करने जातीं थीं। वहीं से वह श्लोक के अर्थ की तैयारी करती थीं, श्लोक कोई भी हो सकता। अगले दिन जिसे गीता के माध्यम से समझातीं थीं। दादी को सिर्फ पढ़ना आता था। उनकी इस आदत ने मेरा गीता के प्रति लगाव पैदा कर दिया। उत्कर्षिनी की बेटी के जन्म पर उस साल गीता की 5151वीं जयंती थी। हमने उसका नाम गीता रख दिया। 

गीता जयंती(3दिसम्बर) का उत्सव मार्गशीष महीने के शुक्ल पक्ष की एकदशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष 19 नवम्बर से अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव पर कुरुक्षेत्र में ब्रह्म सरोवर के आस पास 300 से अधिक राष्ट्रीय स्टॉल लगाए गए हैं। यहाँ के 75 तीर्थों पर इस दौरान गीता पूजन, गीता यज्ञ, अंतरराष्ट्रीय गीता सेमिनार, गीता पाठ, वैश्विक गीता पाठ, संत सम्मेलन आदि मुख्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। तीर्थयात्री कुरुक्षेत्र की 48 कोस परिक्रमा करके गीता महोत्सव मनाते हैं। महोत्सव के मुख्य कार्यक्रम 29 नवंबर से 4 दिसम्बर तक होंगे। 4 दिसम्बर को दीपदान होगा। गीता पढ़ना, घर में रखना हमारे यहाँ परंपरा है। 18 अध्यायों और 700 श्लोकों में चारों वेदों का संक्षिप्त ज्ञान है। गीता जयंती के दिन श्रीमदभागवत गीता के अलावा भगवान श्री कृष्ण और वेद व्यास की भी पूजा की जाती है। 



  पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता का ज्ञान दिया था। ऐसी भी मान्यता है कि यही ज्योतिसर तीर्थ वह पावन धरती है, जहां भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता रुपी अमृतपान कराया था। यहां एक प्राचीन सरोवर और एक पवित्र अक्षय वट है जो भगवान श्रीकृष्ण के गीता उपदेश का एकमात्र साक्षी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस एकादशी से मोह का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहते हैं।

हॉर्नबिल उत्सव(1 से 10 दिसम्बर नागालैंड) नागालैंड की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है तो ज़ाहिर है त्यौहार भी खेती के आसपास ही घूमते हैं। पर हॉर्नबिल उत्सव! ये हॉर्निबल पक्षी के नाम पर है जिसके पंख सिर पर लगाते हैं। धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। बहादुर नायकों की प्रशंसा के गीत गाए जाते हैं। तरह तरह के पकवान, लोकनृत्य और कहानियाँ इस त्योहार का हिस्सा हैं। इस उत्सव पर नागा संस्कृति देखने के लिए देश विदेश से पर्यटक आते हैं। 

कुंभलगढ़ उत्सव(1से 3 दिसम्बर) को कुंभलगढ़ किले में मनाया जाता है। इसमें अलग अलग संस्कृतियों से जुड़े कार्यक्रम को देखने देशी विदेशी पर्यटक भाग लेते हैं।

कार्थिगाई दीपम(6दिसम्बर) हिन्दु तमिलों, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और श्रीलंका में यह रोशनी के त्यौहार को कार्तिगई पूर्णिमा कहा जाता है। केरल में इस त्यौहार को त्रिकार्तिका के नाम से जाना जाता है जो देवी कार्तियेनी(चोटनिककारा अम्मा) भगवती के स्वागत के लिए मनाया जाता है। शेष भारत में, कार्तिक पूणर््िामा अलग तारीख में मनाया जाता है। तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में ’लक्षभा’ के नाम से मनाया जाता है। आंध्र प्रदेश तेलंगाना के घरों में कार्तिक मासालु(माह) को बहुत शुभ माना जाता है। स्वामीनारायण संप्रदाय भी इस त्यौहार को बहुत उत्साह से मनाता है।

दत्तात्रेय जयंती(7दिसम्बर) त्रिगुण स्वरुप यानि ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों का सम्मलित स्वरुप, इसके अलावा भगवान दत्तात्रेय जी को गुरु के रूप में पूजनीय, की जयती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे। इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक हैं और माता अनुसूया को सतीत्व के रूप में जाना जाता है। राजा कार्तीवीर्य अर्जुन सहस्त्रबाहु भगवान दत्तात्रेय के अनन्य भक्तों में से एक हैं। ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य सुबह काशी में गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका, दत्त भक्तों के लिए पूजनीय स्थान है। इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेेलगाम में स्थित है। देशभर में दत्तात्रेय को गुरु के रूप मानकर इनकी पादुका को नमन किया जाता है। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। नरसिंहवाडी दत्ता भक्तों की राजधानी के लिए जाना जाता है। कृष्णा और पंचगंगा नदियों के पवित्र संगम पर स्थित, महाराष्ट्रीयन इतिहास के प्रसंगों में इसका व्यापक महत्व है। दक्षिण भारत सहित पूरे देश में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। 

 गलदान नामचोट(18दिसम्बर) प्राकृतिक सुन्दरता के साथ, लददाख में नामचोट उत्सव के समय जाना सोने पर सुहागा है। यह एक ऐसा त्यौहार है जिसमें तिब्बती विद्वान को सम्मानित करने के लिए बौद्व भिक्षुओं द्वारा नाटक किए जाते हैं।

शिल्पग्राम महोत्सव(21से 30दिसम्बर) उदयपुर के शिल्पग्राम के उत्सव में एक जगह पर देशभर  की संस्कृति की झलक देश भर से आये कलाकारों के आने से देखने को मिलती है। कला, संस्कृति, खानपान और वेशभूषा पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।

विद्वानों का मानना है जो जनजातियां नाचती गाती नहीं-उनकी संस्कृति मर जाती है।

नृत्य, गायन उत्सवों की शुरूआत भारत के मंदिरों में हुई थी। लेकिन अब देश विदेश से इन उत्सवों को देखने पर्यटक आते हैं।  

दिसबंर में आयोजित उत्सव सनबर्न फेस्टिवल (गोवा, 28 से 30दिसम्बर ) संगीत नृत्य

संगीत प्रेमियों के लिए, माउंट आबू विंटर फैस्टिवल (राजस्थान, 30 और 31 दिसम्बर)  लोकनृत्य, संगीत घूमर, गैर और धाप, डांडिया, शामें कव्वाली, 

रण उत्सव(गुजरात 1नवम्बर से 20 फरवरी) रेगिस्तान में सांस्कृतिक कार्यक्रम गरबा लोक संस्कृति  आदि। 

श्री क्षेत्र उत्सव पुरी की परंपराओं को जीवित करती रेत की कला,

 ममल्लपुरम डांस फेस्टिवल(चेन्नई 25 दिसम्बर से 20 दिन तक चलने वाला नृत्य उत्सव) खुले आकाश के नीचे, नृत्य संगीत, शास्त्रीय और लोक नृत्य,

 कोचीन कार्निवाल मनोरंजन कार्यक्रम है जो हर साल दिसंबर के अंतिम दो सप्ताह तक मनाया जाता है। केरल के कोच्चि में र्फोट कोच्चि में वास्कोडिगामा स्क्वायर पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फैहरा कर उद्घाटन किया जाता हैं। एक जनवरी को कार्निवाल का विशाल जुलूस है जिसका नेतृत्व हाथी करते हैं और नृत्य मुख्य आर्कषण हैं।  

विष्णुपुर महोत्सव 27 से 31 दिसम्बर के बीच मदनमोहन मंदिर, विष्णुपुर के पास  पश्चिमी बंगाल में आयोजित यह महोत्सव, अपने खूबसूरत टेराकोटा मंदिरों सिल्क की साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी विशेषता स्थानीय हस्तशिल्प और संगीत है। विष्णुपुर अपने स्वयं के शास्त्रीय संगीत के घराने के लिए भी प्रसिद्ध है।

 सांस्कृतिक उत्सवों का दिसम्बर जाने पर और जनवरी आने की पूर्व संध्या पर कुछ लोग  नववर्ष मनाते हैं। पर मेरी 94वें साल में चल रही अम्मा कहतीं हैं कि ये हमारा नया साल नहीं है। अब अम्मा की बात तो माननी है न।   

नीलम भागी(लेखिका, पत्रकार, ब्लॉगर, ट्रैवलर)

प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के दिसंबर जनवरी अंक में यह  लेख प्रकाशित हुआ