प्रत्येक नदी वहां के स्थानीय लोगों के लिए पूजनीय होती है. कोई भी शुभ काम करने से पहले परिवार में नदी पूजन की भी परंपरा होती है. विवाह पंचमी श्रीराम जानकी विवाह से पहले, विवाह की एक रस्म है, कमला नदी पूजन की, उसे मटकोर कहते हैं। लोक कथा है कि सीता जी के विवाह में मटकोर(कमला पूजन) में कमला माई की मिट्टी लाई गई थी जो सीता जी के हल्दी में मिलाई थी. सीता जी के नेत्र से कमला जी उदय हुई थीं। सीता जी की प्रिय सखी कमला हैं, उसके किनारे बचपन में खेली है । मटकोर पूजन का प्रश्न उत्तर में एक लोकगीत है, जिसे मिथलानियाँ इस अवसर पर गाती हैं।
कहाँ माँ पियर माटी, कहाँ मटकोर रे।
कहाँ माँ के पाँच माटी, खोने जाएं।
पटना के कोदार है, मिथिला की माटी।
मिथिला के ही पाँचों सखी, खोने मटकोर हैं।
पाँच सुहागिने कुदार, तेल, सिंदूर, हल्दी, दहीं लेकर 5 आदमी नदी के किनारे की मिट्टी खोदते हैं, उसमें से मिट्टी निकाल कर, ये सब सुहागचिन्ह और पाँच मुट्ठी चने डाल देते हैं। वर वधु नदी में स्नान करते हैं। लौटते समय चने, पान, सुपारी बांटते हैं। उस मिट्टी को वर वधु के उबटन में मिला कर, हल्दी की रस्म होती है। विवाह पंचमी के बाद से मिथिला में साहे शुरु होते है। तब से मिथिला में विवाह संस्कार की शुरुवात ही नदी पूजन से होती है। 17 वें अखिल भारतीय साहित्य परिषद अधिवेशन रीवा मध्य प्रदेश में मैं आई हूं. रीवा से परिचय करती हुई, बीहर रिवर फ्रंट पहुंच गई. वहां से एक परिवार बाजे गाजे के साथ मिट्टी के घड़े में नदी का जल लेकर से लौटा था. नदियां हमारी संस्कृति की पोशाक हैं. तभी तो नदी नहीं तो हम नहीं.
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